मध्ययुगीन काल में वंशवाद, सामंतवाद, अवसरवादिता और समाज को विभिन्न वर्गों में बांटकर देखने की विचारधारा का बोलबाला था। ऐसी ही वैचारिक शक्तियों के पाश में आज भी देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस जकड़ी हुई है। भले ही इस पार्टी का नया अध्यक्ष युवा राहुल गांधी हो। राहुल गांधी के युवा होने का यह मतलब नहीं है कि कांग्रेस आधुनिक और प्रजातांत्रिक विचारों और मूल्यों की पार्टी हो गई है। देखने में युवा लगने वाली इस पार्टी के कर्म और सोच मध्ययुगीन काल के हैं, जिसमें वंशवाद, सामंतवाद,अवसरवादिता और समाज को विभिन्न वर्गों में बांटकर देखने की शक्तियों की पूजा की जाती है। कांग्रेस के उन्हीं मध्ययुगीन शक्तियों के गिरफ्त में होने के उदाहरणों की एक लंबी फेहरिस्त है-
महाराष्ट्र को बांटने का काम-गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश के साथ देश का ऐसा कोई प्रदेश नहीं है, जहां कांग्रेस ने समाज की विभिन्नता का अनुचित लाभ उठाते हुए, वोटबैंक में न बदला हो। महाराष्ट्र में मराठों को नौकरियों में आरक्षण के लिए बरगला कर राज्य में तूफान खड़ा करने का काम किया। इस तरह से महाराष्ट्र के समाज को मराठी और गैर-मराठियों में बांटने का कुत्सित खेल खेला।
देश को धर्म के नाम पर बांट दिया- देश की विविधता को वोटबैंक के रूप में देखने वाली कांग्रेस ने मुस्लिम नेताओं की महत्वाकांक्षाओं का भरपूर लाभ उठाया। इन नेताओं को तुष्ट करके मुस्लिम समाज का वोट बटरोने का फॉर्मूला कांग्रेस ने निकाला, और देश को धर्म के आधार पर बांट दिया। इसका कई चुनावों में कांग्रेस फायदा उठाती रही। कांग्रेस के इसी फॉर्मूले को कई क्षेत्रीय दलों ने भी अपनाना शुरू कर दिया। उत्तर प्रदेश में समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी, तो बिहार में राष्ट्रीय जनता दल ने। आज भी धर्म को कांग्रेस वोटबैंक के रूप में ही देखती है।
देश में ‘भगवा आतंकवाद’ का जहर बोया-देश को वोट के लिए धर्म और जाति के वर्गों में बांटकर चुनाव जीतने की रणनीति में माहिर कांग्रेस ने मुस्लिम समाज को तुष्ट करने के लिए, मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार में रहे गृहमंत्री पी चिदंबरम ने भगवा आतंकवाद के स्वरुप को जन्म दिया, ताकि मुस्लिम आतंकवाद के मनोवैज्ञानिक प्रभाव को कम किया जा सके, जिससे मुस्लिम वोट बैंक कांग्रेस के साथ ही बना रहे।
देश में दलितों के दिलों में जहर बोने का काम– ऊना में दलितों की पिटाई का कांड बिहार चुनाव से ठीक पहले करवाया गया। इसका मकसद था कि देश भर के दलितों में ये संदेश जाए कि बीजेपी के राज्यों में दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं। लेकिन जांच में सामने आया कि समधियाल गांव का सरपंच प्रफुल कोराट ऊना के कांग्रेसी विधायक और कुछ दूसरे कांग्रेसी नेताओं के साथ संपर्क में था। सरपंच ने ही फोन करके बाहर से हमलावरों को बुलाया था। जो वीडियो वायरल हुआ था वो भी प्रफुल्ल कारोट के फोन से ही बना था। कांग्रेस ने यह जहर देश में सिर्फ इसलिए पैदा किया ताकि चुनावों में दलित वोटों का फायदा लिया जा सके। यही नहीं हैदराबाद विश्वविद्यालय में दलित युवक की आत्महत्या जो एक कानून व्यवस्था की समस्या थी उसे राष्ट्रीय समस्या के रूप में पेश करने के पीछे भी यही मकसद था कि दलितों के वोटबैंक पर कब्जा किया जाए।
कांग्रेस का नेतृत्व आज राहुल गांधी के हाथ में है, लेकिन कांग्रेस की कार्यशैली मध्ययुगीन सभ्यता की है, जिसमें राष्ट्र से बड़ा स्वार्थ होता है। राहुल गांधी की पूरी कवायद यही है कि किस तरह से कांग्रेस को वापस सत्ता पर काबिज किया जाए, उनका यह मकसद नहीं है कि देश की विविधता को एक सूत्र में पिरोते हुए विकास की ऊंचाईयों पर ले जाने का काम किया जाए।