दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शीर्ष अदालत ने अंतरिम जमानत तो दी, लेकिन साथ में ये भी कहा कि वह खुद पर लगे गंभीर आरोपों के मद्देनजर अपने पद से इस्तीफा देने को लेकर भी खुद ही फैसला करें। क्योंकि कोर्ट एक निर्वाचित मुख्यमंत्री को इस्तीफा देने के लिए नहीं कह सकता। हाल ही में झारखंड के फिर मुख्यमंत्री बने हेमंत सोरेन ने ED की गिरफ्तारी से पहले इस्तीफा दे दिया था। इसी तरह जयललिता ने भी गिरफ्तारी से पहले इस्तीफा दे दिया था। चारा घोटाले में गिरफ्तारी से पहले लालू प्रसाद यादव ने भी इस्तीफा देकर अपनी पत्नी राबड़ी को CM बना दिया था। लेकिन केजरीवाल को पत्नी सुनीता समेत पार्टी के किसी भी नेता पर विश्वास नहीं है। इसलिए वे जिद पर अड़े हैं कि मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देंगे और जेल से ही सरकार चलाएंगे। उन्हें लगता है कि इस्तीफा देने और बाद में जेल से छूटने के बाद कहीं ऐसा ना हो कि मुख्यमंत्री पद उनके हाथ में ही ना आए!
बेहतर होगा केजरीवाल खुद ही सीएम पद से हटने का फैसला लें- सुप्रीम कोर्ट
दिल्ली के शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में सुप्रीम कोर्ट ने सीएम अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत दी है। मई में भी कोर्ट ने इसी मामले में चुनाव प्रचार के लिए केजरीवाल को अंतरिम जमानत दी थी। हालांकि, इस बार केजरीवाल तब तक जेल से बाहर नहीं आ पाएंगे जब तक सीबीआई से जुड़े मामले में भी उन्हें जमानत न मिल जाए। यानी अंतरिम जमानत के बाद भी अरविंद केजरीवाल को फिलहाल जेल में ही रहना होगा। अंतरिम जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल से यह भी कहा है कि वह अपने पद से हटने पर फैसला खुद ही लें, क्योंकि उन पर गंभीर आरोप लगे हैं। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दिपांकर दत्ता की बेंच ने कहा कि केजरीवाल एक प्रभावशाली पद पर हैं और यह पद संवैधानिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। जस्टिस खन्ना ने कहा कि कोर्ट एक निर्वाचित नेता को पद से हटने का निर्देश नहीं दे सकता, खासकर तब जब वह मुख्यमंत्री हो। उन्होंने कहा कि बेहतर होगा कि केजरीवाल खुद ही कोई फैसला लें। यह दूसरी बार है जब सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को अंतरिम जमानत दी है। केजरीवाल ने 2 जून को सरेंडर कर दिया था, लेकिन जेल जाने से पहले अपने पद से इस्तीफा न देकर अनैतिक राजनीति को ही बढ़ावा दिया।
हेमंत ने करीबी पार्टी नेता को सीएम बनाया, लेकिन केजरीवाल में हिम्मत नहीं
ऐसा भी नहीं है कि सीएम पद पर रहते हुए गिरफ्तार होने वाले केजरीवाल पहले नेता हों। लालू यादव और जयललिता से लेकर हेमंत सोरेन का ताजा उदाहरण सामने है। झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने 31 जनवरी को अपनी गिरफ्तारी से पहले सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके साथ ही उन्हें अपने करीबी और विश्वासपात्र और जेएमएम के वरिष्ठ नेता चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया। चंपई साल 1991 से विधायक बनते रहे हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा में कई बार विभाजन के बाद भी वो शिबू सोरेन के साथ डटे रहे थे। भूमि घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जेल जाने के लगभग पांच महीने बाद सोरेन को 28 जून को झारखंड हाई कोर्ट ने जमानत दे दी थी। एक सप्ताह से भी कम समय में हेमंत ने मुख्यमंत्री के रूप में अपनी वापसी के लिए मंच तैयार कर लिया और वो सीएम बन गए। केजरीवाल ने अपनी पार्टी में ही ऐसा कोई विश्वासपात्र नहीं बनाया है। इसलिए केजरीवाल को डर है कि एक बार इस्तीफा दे दिया तो कहीं सीएम कुर्सी हाथ से ही न निकल जाए। लालू यादव ने भी जेल जाने पर इस्तीफा देकर अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बनाया था। लेकिन केजरीवाल को अपनी पत्नी पर भी भरोसा नहीं है कि टूट की कगार पर चल रही पार्टी के विधायक दल के नेता पद को वो नहीं संभाल पाएंगी।राजनीति में सीएम के जेल से सरकार चलाने जैसा और कोई उदाहरण नहीं
दरअसल, पार्टी को वन मैन शो की तरह चला रहे अरविंद केजरीवाल ने कोई सैकंड लाइनअप ही तैयार नहीं किया। मनीष सिसोदिया, संजय सिंह और सत्येंद्र जैसे कुछेक जो बड़े नेता थे, वे भी अब जेल की सलाखों के पीछे हैं। शराब घोटाले में गिरफ्तारी के बाद भी अरविंद केजरीवाल CM के पद पर हैं। पार्टी कह रही है कि वे जेल जाते हैं, तो वहीं से सरकार चलाएंगे। हालांकि पूर्व में इस तरह का कोई उदाहरण भी नहीं है, क्योंकि ये इतना आसान नहीं है। फाइलों पर साइन करने से लेकर कैबिनेट मीटिंग तक के लिए उन्हें बार-बार कोर्ट से परमिशन लेनी होगी। इसके अलावा लोकसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में न सिर्फ दिल्ली की सरकार चलाने की चुनौती है, बल्कि पार्टी को चुनाव की तैयारी भी करनी है। इसका पहला असर 22 मार्च को ही दिख गया। दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी की वजह से स्थगित करना पड़ा।
जेल से सरकार चलाना गलत, ऐसे तो हर कोई जेल से ऑफिस चलाने लगेगा
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ‘केजरीवाल दूसरी बार अंतरिम जमानत के बाद भी जेल से सरकार चलाने पर अड़े हैं, इससे गलत मैसेज जा रहा है। ऐसे में यदि कभी यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर किसी केस में जेल चला गया, तो वो भी वहीं से ऑफिस चलाने की बात कहेगा। अपराधी भी कोर्ट से डिमांड करेंगे कि हमें भी जेल से काम करने की परमिशन दी जाए।’ दरअसल सीएम अरविंद केजरीवाल ने अब तक अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया है। वह जेल से ही दिल्ली की सरकार चला रहे हैं। वह अब तक अपने मंत्रियों को दो निर्देश भी जारी कर चुके हैं। ऐसे में हर किसी के मन में एक सवाल उठ रहा है। क्या दिल्ली की सरकार ऐसे ही जेल से चलती रहेगी? दरअसल, लोक प्रतिनिधि अधिनियम 1951 में इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है कि किसी जनप्रतिनिधि, मुख्यमंत्री या मंत्री के जेल जाने पर क्या करना होगा। केजरीवाल इसी का फायदा उठा रहे हैं। मंत्रियों के जेल जाने पर भी उनके विभाग दूसरे मंत्रियों को दिए जा सकते हैं, लेकिन मद्रास हाईकोर्ट ने जेल जाने के बावजूद मंत्री पद से बर्खास्त नहीं करने पर राज्य सरकार की आलोचना की थी।
जेल से चलाएगा सरकार,
भ्रष्ट केजरीवाल… pic.twitter.com/MS924jM1sL— BJP (@BJP4India) March 28, 2024