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पीएम मोदी की विदेश नीति में घिरा चीन दे रहा युद्ध की धमकी

भारत पर आक्रामक हो रहे चीन की बिलबिलाहट पर रिपोर्ट

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आधुनिक भारत के इतिहास पर नजर डालें तो सरकारें चाहे जो भी हों भारत की विदेश नीति अमूमन परंपरागत रही है। लेकिन यूपीए सरकार के दस साल के दौरान विदेश नीति के मोर्चे पर भारत अप्रभावी साबित हुआ और बाहरी चुनौतियों का सही जवाब नहीं दिया जा सका। यद्यपि वर्ष 2014 में पीएम मोदी के सत्ता संभालते ही इसमें व्यापक बदलाव देखा जा रहा है। भारत की विदेश नीति में व्यवहारिकता और सामंजस्य का अद्भुत समन्वय हो गया है। यही कारण है कि एशिया में एकमात्र ताकत कहलाने की इच्छा रखने वाला चीन अब अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत के बढ़ते कद से परेशान है और अब वह एक प्रतिद्वंद्वी की तरह देख रहा है। दरअसल पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत विश्व की तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है। ऐसे में विश्व भारत की तरफ उम्मीद से देख रहा है, वहीं चीन अपनी नीतियों और भारत की कूटनीति के कारण अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अलग-थलग पड़ता जा रहा है।

ओबीओआर पर भारत ने दिया झटका
16 मई 2017 को चीन में हुए OBOR समिट का बॉयकाट कर भारत ने चीन को बड़ा झटका दिया। चीन ने भारत पर अपनी ताकत दिखाने का आरोप लगाया। हालांकि चीन ने इस बात को कतई नहीं माना की भारत को पीओके में OBOR के तहत CPEC पर आपत्ति है। स्थानीय नागरिकों की आपत्ति और भारत की तरफ से इस बॉयकाट के बाद चीन बौखला गया। चीन ने दावा किया कि भारत की गैर मौजूदगी से OBOR पर फर्क नहीं पड़ा। लेकिन यह तथ्य है कि भारत के शामिल हुए बगैर चीन की OBOR का कोई महत्व ही नहीं रह जाएगा। जाहिर है चीन इस बॉयकाट से बिलबिलाया हुआ है।

साउथ चाइना सी पर चीन पड़ा अकेला
दक्षिण चीन सागर 35 लाख वर्ग किलोमीटर का एक विशाल अंतरराष्ट्रीय समुद्री इलाका है। इस इलाके पर चीन अपनी संप्रभुता बता रहा है। जबकि यह इलाका दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों के समुद्र तटों को छूता है। इस पर अपना अकेला दावा बताना एक तरह से चीन की दादागिरी है। लेकिन भारत चीन की धौंसपट्टी को न मानते हुए दक्षिण चीन सागर पर चीन के अकेले प्रभुत्व का विरोध करता है। दरअसल पिछले दिनों चीन अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय में फिलीपींस से मुकदमा तक हार चुका है। लेकिन इस फैसले को वह नहीं मान रहा है। ऐसे में भारत, अमेरिका, जापान, फिलीपींस, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश चीन की दादागिरी का विरोध कर रहे हैं।

 

छोटे देशों पर चीन की धौंस पर कंट्रोल
चीन अपना प्रभुत्व जमाए रखने के लिए विभिन्न देशों से अलग-अलग आधार पर रिश्ते बनाता है। इसी आधार पर वह जहां बड़े देशों से संतुलित रहता है, वहीं छोटे देशों जैसे दक्षिण कोरिया, जापान, वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, म्यामार, भूटान जैसे देशों क अपनी ताकत के जोर पर कब्जे में रखना चाहता है। जबकि भारत पर उसका जोर इसलिए भी नहीं चल रहा कि भारत की विदेश नीति उसकी आर्थिक नीतियों के आधार पर आगे बढ़ रही है। भारत एक बड़ा बाजार तो है ही एक मैन्युफैक्चरिंग हब भी बनता जा रहा है। जाहिर है चीन की अर्थव्यवस्था के आसरे चलने वाली दुनिया अब भारत की तरफ झुकाव रख रहा है, जिससे चीन अलग तरीके से ही परेशान है।

कई देशों ने चीन को किया आगाह
डोकलाम मामले में चीन ने भले ही विश्व के राजनयिकों को आगाह कर दिया है कि भारत को वह समझाए, लेकिन चीन का यह दांव उल्टा पड़ता नजर आ रहा है। चीन के सीधे युद्ध की धमकी को पश्चिमी देशों ने चीन को संयम बरतने की सलाह दी है। अमेरिका, फ्रांस, जापान, जर्मनी, आस्ट्रेलिया जैसे देश भारत के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। कहा तो जा रहा है कि अमेरिका, इजरायल सीधे मदद करने के लिए तैयार बैठे हैं। अमेरिका ने तो चीन को परोक्ष तौर पर यह चेतावनी दी है कि अगर हिंद महासागर में भारत के खिलाफ कुछ होता है तो वह जापान के साथ मदद के लिए सामने आ सकता है। वहीं आस्ट्रेलिया ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के अहम लोकतांत्रिक देशों, भारत, इंडोनेशिया और जापान को एक साथ काम करने का आह्वान किया है।

इस बार युद्ध करने की गलती नहीं करेगा चीन!
कागजों पर चीन की सेना भले ही भारत से भारी लगती हो, लेकिन इस बार चीन भारत से सीधे युद्ध करने की हिम्मत करेगा ऐसी कम संभावना है। वजह भारत-चीन का व्यापार अब सत्तर अरब डॉलर से ज्यादा बढ़ चुका है। दूसरी तरफ चीन से खार खाये पड़ोसी देश भी इसी ताक में हैं कि कब चीन भारत से उलझे तो वे भी चीन से अपना हिसाब बराबर कर लें। इसके अलावा ये भी है कि भारत ने दुनिया के देशों से व्यावहारिक संबंध बनाए हैं जबकि चीन ने सिर्फ अपना हित ही देखा है। जाहिर है विश्व के ज्यादातर देशों की सहानुभूति भारत के साथ है।

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