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यूपी में मायावती फिर ब्राह्मण वोटों की सोशल इंजीनियरिंग के सहारे: मिशन 2022 में 2007 के दांव का निकल रहा दम!

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यूपी विधानसभा चुनाव में विजय के लिए बीजेपी ने कमर कस ली है। मिशन 2022 के लिए जीत की रणनीति पर तेजी से काम हो रहा है। जहां मोदी विरोधी दल सोशल इंजीनियरिंग और मौकापरस्त गठबंधन पर जोर रहे हैं, वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सीएम योगी सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबक प्रयास मंत्र के साथ आगे बढ़ रहे है।
पीएम मोदी के सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबक प्रयास मंत्र से यूपी में मिलेगी जीत
साढे चार साल में उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सीएम योगी के विकास कार्यों की चमक साफ दिखाई दे रही है। इसके साथ ही यूपी में दंगा मुक्त शासन, कानून व्यवस्था में सुधार और आम जनता के हित में योगी सरकार के फैसलों ने यूपी के लोगों का दिल जीत लिया है। बीजेपी नेता एक दिन भी बिना आराम किए पूरी ताकत से मिशन 2022 में जुटा गए हैं । साथ ही ये भी तय किया गया है कि सौ दिन के सौ काम बताकर जनता का समर्थन मांगा जाएगा। 

यूपी में जीत के लिए मायावती का पुराना दांव 

इधर बीएसपी जैसे विरोधी पार्टियां उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में जीत के लिए पुराना दांव आजमा रही हैं। एक बार फिर से सोशल इंजीनियरिंग के सहारे जीत का सपना देख रही बीएसपी, 40 सीटों पर सवर्ण उम्मीदवारों को टिकट दे सकती हैं । लेकिन मायावती के इस दांव पर उठ रहे हैं सवाल, क्या मायावती का सोशल इंजीनियरिंग का फार्मुला इस बार काम कर पाएगा, क्या वे सवर्ण वोटों के सहारे यूपी में विधानसभा चुनाव में पार्टी की नैया पार लगा पाएंगी। क्या सिर्फ सोशल इंजीनियरिंग के दम पर यूपी की सत्ता का रास्ता तय कर पाएंगी मायावती।

सवर्ण उम्मीदवारों पर दांव लगा सकती है बीएसपी

बताया जा रहा है  कि सवर्ण उम्मीदवारों के अपने दांव पर अमल से पहले बीएसपी दूसरे दलों की रणनीति पर नजर बनाए हुए है। दूसरे पार्टियों के सवर्ण उम्मीदवारों की संख्या का असर बीएसपी के सवर्ण उम्मीदवारों की संख्या पर पड़ सकता है। दरअसल

  • साल 2007 में बीएसपी ने दलित-ब्राह्मण वोटों पर दांव लगाया 
  • 139 टिकट सवर्ण जातियों के उम्मीदवारों को टिकट दिए
  • 110 सीटों पर ओबीसी उम्मीदवारों को उतारा
  • 61 सीटों पर मायावती ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे
  • इसी सोशल इंजीनियरिंग से बीएसपी को यूपी में सत्ता मिली थी  

उत्तर प्रदेश में मायावती एक बार फिर सोशल इंजीनियरिंग के भरोसे

यूपी में मायावती एक बार फिर से सोशल इंजीनियरिंग के भरोसे हैं। बीएसपी का चुनाव अभियान ब्राह्मण सम्मेलन से शुरू हुआ, लेकिन बाद में इसका नाम प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन कर दिया गया। लेकिन सवाल है कि क्या मायावती की ब्राह्मणों को रिझाने की कोशिश इस पार भी कामयाब होगी। ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि

  • 2007 में बीएसपी से जुड़े कई ब्राह्मण नेता पार्टी छोड़ चुके हैं
  • कई ब्राह्मण नेताओं को बीएसपी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया
  • सवाल है कि क्या यूपी में ब्राह्मण समाज बीएसपी पर भरोसा करेगा
  • साल 2007 में मायावती की जीत का ब्राह्मणों नहीं मिला फायदा
  • मायावती की सोशल इंजीनियरिंग में केवल जीत का फार्मुला है 
  • जीत के बाद ब्राह्मण समाज के हित का कोई बड़ा वादा नहीं है

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोट बीएसपी ही नहीं, दूसरी मोदी विरोधी पार्टियों के लिए भी मजबूरी है। हर पार्टी सवर्णों के वोट को अपनी तरफ खींचना चाहती है। 2017 के विधानसभा चुनाव में कुल 56 सीटों पर ब्राह्मण उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी, इसमें 44 विधायक बीजेपी के थे। 

2007 की तर्ज पर बीएसपी का दांव 

2007 के तर्ज पर ही बीएसपी ने एक बार फिर से दांव चलना शुरू कर दिया है। लेकिन यूपी में योगी सरकार के तेज विकास ने हर समुदाय का विश्वास जीता है, ऐसे में उम्मीद कम है कि यूपी में ब्राह्मण थोक के भाव में अपना वोट किसी भी पार्टी के पाले में डालेंगे। यही वजह है कि सोशल मीडिया पर भी मायावती की सोशल इंजीनियरिंग को लेकर नसीहत दी जा रही है। यूजर्स कह रहे हैं कि महज वोटों के लिए बीएसपी ब्राह्मण-ब्राह्मण की माला जप रही है।  

यूपी में आसान नहीं ब्राह्मणों को बीजेपी से अलग करना

मोदी विरोधी दलों की रणनीति चाहे कुछ भी हो, आंकड़े कुछ और ही कहानी कह रहे हैं। समाचार पत्रों में छपे लोकनीति और सीएसडीएस के आंकड़ों के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव में 72 फीसदी, 2019 के लोकसभा चुनाव में ब्राह्मणों के 82 फीसदी वोट बीजेपी को मिले। वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में 80 फीसदी ब्राह्मणों ने बीजेपी को वोट किया। इन तीन चुनावों के बाद उत्तर प्रदेश में एक तस्वीर साफ हो गई कि ब्राह्मण वोटर बीजेपी के साथ हैं और विरोधी दलों के लिए इसमें सेंध लगाना आसान नहीं होगा।

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