दशकों तक विकास की धारा में बाधक बने नक्सलवाद का अब देश से खात्मा हो रहा है। बिहार अब नक्सलवाद से मुक्त हो चुका है। झारखंड और मध्यप्रदेश से भी इसका सफाया हो चुका है। झारखंड में 30 साल से बुद्ध पहाड़ (इसे बूढ़ा पहाड़ भी कहते हैं) पर कब्जा जमाए नक्सलवादियों को केंद्रीय सुरक्षा बलों ने खदेड़ दिया है। यह अपने आप में केंद्र सरकार की बड़ी सफलता है। वामपंथी उग्रवादी विचारधारा से प्रभावित होकर की जाने वाली नक्सली और माओवादी हिंसक गतिविधियां भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है। इसके साथ ही ये विकास के काम में भी रोड़ा अटकाते रहे हैं। शासन तंत्र, पूंजीपति और उद्योगपतियों को संदेह की नजर से देखने वाले नक्सली और माओवादी लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के खिलाफ अपनी समानांतर सरकार चलाने में विश्वास रखते हैं। वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिले जो पहले से बुनियादी सुविधाओं का अभाव झेल रहे थे, उग्रवाद की वजह से वे और पिछड़ गए क्योंकि उग्रवादी अपनी सत्ता चलाने के लिए वहां विकास में रोड़ा अटकाते रहे हैं। ये अलग बात है कि आदिवासी एवं जनजातीय समुदाय के लोगों को उग्रवादी यही कहकर भड़काते रहे हैं कि यहां विकास नहीं हुआ इसीलिए हम सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं जिसमें आप हमें साथ दो। देश में उग्रवाद के पनपने में कांग्रेस का सबसे बड़ा हाथ रहा है। देश में 70 सालों तक राज करने वाली कांग्रेस ने फूट डालो और राज करो की नीति पर चलते हुए गरीबों, वंचितों, आदिवासियों की कभी सुध नहीं ली। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आसीन होने के बाद यह स्थिति बदली है और अब बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश नक्सल मुक्त हो गया है और उम्मीद की जानी चाहिए छत्तीसगढ़ सहित देश के अन्य इलाके जल्द ही नक्सल मुक्त होंगे जिससे आदिवासी और जनजातीय समुदाय के लोग भी मुख्यधारा में शामिल हो सकें और विकास की धारा उन तक भी पहुंच सके।
दृढ़ इच्छाशक्ति से आज बिहार-झारखंड में नक्सल प्रभावित क्षेत्र लगभग समाप्त हो गए हैं,
माननीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी के नेतृत्व व गृह मंत्री श्री @AmitShah जी के प्रयासों से यह संभव हो पाया है। pic.twitter.com/Ldatn70feV
— Mahesh Kaswala (@mkaswalabjp) September 22, 2022
वामपंथी उग्रवाद की घटनाओं में 77 फीसदी कमी आई
सीआरपीएफ के डीजी कुलदीप सिंह ने बुधवार को कहा कि गृह मंत्रालय की नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई अंतिम चरण में है। अब हम कह सकते हैं कि बिहार-झारखंड नक्सल मुक्त हैं। ये बहुत बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने बताया कि झारखंड में बुद्ध पहाड़ जो नक्सल बहुल इलाका था, उसे मुक्त करा दिया गया है। हेलीकॉप्टर की मदद से वहां फोर्स भेजी गई। सुरक्षाबलों के लिए वहां स्थाई कैंप लगाया गया है। यह तीन अलग-अलग ऑपरेशनों के तहत किया गया है। उन्होंने कहा कि अप्रैल 2022 से अब तक छत्तीसगढ़ में सात नक्सली, झारखंड में चार और मध्य प्रदेश में तीन नक्सली ऑपरेशन थंडरस्टॉर्म के तहत मारे गए हैं। कुल 578 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया है या फिर उन्हें गिरफ्तार किया गया है। उन्होंने बताया कि हम कह सकते हैं कि अब बिहार नक्सल मुक्त है। रंगदारी गिरोह के रूप में इनकी मौजूदगी हो सकती है, लेकिन बिहार में ऐसी कोई जगह नहीं है जहां नक्सलियों का दबदबा हो। बिहार और झारखंड में ऐसी कोई जगह नहीं, जहां फोर्स नहीं पहुंच सकती। कुलदीप सिंह ने बताया कि वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) की घटनाओं में काफी कमी आई है। इसमें करीब 77 फीसदी की कमी आई है। 2009 में यह 2258 के सर्वकालिक उच्च स्तर पर था, जो वर्तमान में घटकर 509 हो गया है। मृत्यु दर में 85% की कमी आई है।
सुरक्षा बलों के लगातार अथक प्रयास का नतीज़ा। नक्सल मुक्त हुआ गढ़वा का बूढ़ा पहाड़।@JharkhandPolice @AnjaniJha_IPS pic.twitter.com/pS98GAKHt5
— Garhwa Police (@GarhwaPolice) September 22, 2022
CRPF ने चलाए 3 बड़े ऑपरेशन
झारखंड का बुद्ध पहाड़ 30 साल से ज्यादा नक्सलियों के कब्जे में था। अब वहां सीआरपीएफ का पूरा कब्जा हो गया। ये इलाका इतनी आसानी से कब्जे में नहीं आया है। इसके लिए सीआरपीएफ ने तीन बड़े ऑपरेशन चलाए. पहला आपरेशन आक्टोपस, दूसरा बुलबुल और तीलरा थंडरस्टार्म चलाया गया। बुद्ध पहाड़ झारखंड और मध्य प्रदेश के ट्राई जंक्शन पर है। सीआरपीएफ के डीजी कुलदीप सिंह ने कहा कि ये बहुत बड़ी उपलब्धि है। बुद्ध पहाड़ को कब्जे में लेने के लिए इंटेलिजेंस कनेक्शन पर बहुत ज्यादा जोर दिया गया। क्षेत्र में सोर्स डेवलप किया गया। सोर्स ने इसमें प्रमुख भूमिका अदा की। इस एरिया में 20 से ज्यादा फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस (FOB) बनाए गए हैं।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट कर देशभर में वामपंथी उग्रवाद के विरुद्ध चल रही लड़ाई पर सुरक्षाबलों को मिली सफलता को लेकर सुरक्षा एजेंसियों व राज्य पुलिसबलों बधाई दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आतंकवाद व LWE(वामपंथी उग्रवाद) के विरुद्ध गृह मंत्रालय की जीरो टॉलेरेंस की नीति जारी रहेगी और ये लड़ाई आगे और तेज होगी। देश की आंतरिक सुरक्षा में एक ऐतिहासिक पड़ाव पार हुआ है। उन्होंने कहा कि शीर्ष माओवादियों के गढ़ में महीनों तक चले इन अभियानों में सुरक्षा बलों को अप्रत्याशित सफलता प्राप्त हुई, जिसमें 14 माओवादियों को मार गिराया गया व 590 से अधिक की गिरफ्तारी/ आत्मसमर्पण हुआ। जिसमें लाखों-करोड़ों के ईनामी माओवादी जैसे मिथिलेश महतो जिस पर ₹1करोड़ का इनाम था, पकड़े गए हैं। उन्होंने कहा कि पहली बार बूढा पहाड़, चक्रबंधा व भीमबांध के दुर्गम क्षेत्रों से माओवादियों को सफलतापूर्वक निकालकर सुरक्षाबलों के स्थायी कैंप स्थापित किये गए हैं। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के नेतृत्व में देशभर में वामपंथी उग्रवाद के विरुद्ध चल रही निर्णायक लड़ाई में सुरक्षाबलों ने अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है। इसके लिए सीआरपीएफ, सुरक्षा एजेंसियों व राज्य पुलिसबलों को बधाई देता हूं।
मोदी सरकार ने दशकों पुरानी इस समस्या से निपटने के लिए इन क्षेत्रों में समावेशी विकास की रणनीति अपनाई है। सबसे पहले इन क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन पर बल दिया गया है। इन क्षेत्रों में डिपार्टमेंट आफ पोस्ट्स ने वित्तीय समावेशन के लिए बत्तीस वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों में प्रथम चरण में 1788 ब्रांच पोस्ट आफिस (142 महाराष्ट्र में) की स्वीकृति दी है, जिसमें से 1484 ब्रांच पोस्ट आफिस कार्यशील हो चुके हैं। इसके अलावा डिपार्टमेंट आफ फाइनेंशियल सर्विसेज ने वर्ष 2015 से 2018 के अंत तक तीस सर्वाधिक वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों में 604 नई बैंक शाखाएं और 987 एटीएम स्थापित किए हैं, जिससे इन क्षेत्रों में वित्तीय सेवाओं और सुविधाओं को बढ़ावा दिया जा सके। इसके अलावा इन क्षेत्रों में रूपे डेबिट कार्ड को निर्गत करने और बैंक मित्रों की उपलब्धता सुनिश्चित करने की भी सिफारिश की गई है। नाबार्ड ने भी भारत के अनुसूचित बैंकों को ऐसे क्षेत्रों में बैंक शाखाएं खोलने में मदद करने और सौर शक्ति वाले वीसैट कनेक्टिविटी देने का भी प्रस्ताव किया है।
दशकों से सुरक्षाबल बिहार, झारखंड के नक्सल प्रभावित इलाकों में आपरेशन चला रहे हैं और अब सुरक्षाबलों के जज़्बे का ही फल है कि झारखंड के प्रमुख नक्सली इलाके ‘बूढ़ा पहाड़’ से नक्सलियों को जड़ से उखाड़ा जा सका है।#Naxals #Bihar #Jharkhand pic.twitter.com/PUzuB5KqHf
— News Tak (@newstakofficial) September 22, 2022
नक्सलवाद से निपटने के लिए ‘SAMADHAN’ पहल
इस समस्या से निपटने के लिए भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने समाधान नामक रणनीति बनाई है, जिसमें कुशल नेतृत्व, आक्रामक रणनीति, प्रोत्साहन एवं प्रशिक्षण, कारगर खुफिया तंत्र, कार्ययोजना के मानक, कारगर प्रोद्यौगिकी, प्रत्येक रणनीति की कार्ययोजना और नक्सलियों के वित्तपोषण को विफल करने की रणनीति को शामिल किया गया है। इसके अलावा पुलिस बलों का आधुनिकीकरण भी किया जा रहा है। उग्रवाद प्रभावित राज्यों में स्थानीय पुलिस की सतर्कता और दक्षता के बिना वामपंथी उग्रवाद समाप्त नहीं किया जा सकता, इसलिए उनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है। केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न मंत्रालयों की प्रमुख योजनाओं के अलावा वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों के लिए विशिष्ट पहल की गई है, जिसमें प्रमुख तौर पर सड़क और टेलीकॉम कनेक्टिविटी में सुधार, वित्तीय समावेशन, कौशल विकास तथा शिक्षा शामिल हैं।
मोदी सरकार ने नक्सल समस्या से निपटने के लिये आठ सूत्रीय ‘समाधान’ नामक एक कार्ययोजना की शुरुआत की। यह अंग्रेज़ी के कुछ शब्दों के प्रथम अक्षरों से बना एक Acronym है। इस कार्ययोजना के आठ बिंदु इस प्रकार हैं:
S -Smart leadership=कुशल नेतृत्व
A -Aggressive strategy=आक्रामक रणनीति
M -Motivation and training=प्रोत्साहन एवं प्रशिक्षण
A -Actionable intelligence=कारगर खुफिया तंत्र
D -Dashboard based key performance indicators and key result areas= कार्ययोजना के मानक
H -Harnessing technology=कारगर प्रौद्यौगिकी
A -Action plan for each threat=प्रत्येक रणनीति की कार्ययोजना
N -No access to financing=नक्सलियों के वित्त-पोषण को विफल करने की रणनीति
ये है @SukmaDist जिले के पुलिस कप्तान @SUNIL_IPS2017 जो घोर नक्सल प्रभावित इलाका भेजी पहुँचे थे। वहां जवानों के साथ उन्होंने रस्सी के सहारे बरसाती नाला पार किया। जवानों का हौसला अफजाई किया। @CG_Police @crpfindia @ipskabra @ipsvijrk @News18CG @BastarTalkies @gyanendrat1 pic.twitter.com/pthPHbukYL
— satish chandak (@satishm01467955) September 21, 2022
नक्सली चरमपंथ से निबटने के लिये बहुआयामी रणनीति
सरकार नक्सली चरमपंथ से निबटने के लिये बहुआयामी रणनीति अपना रही है। इसमें सुरक्षा एवं विकास से संबंधित उपाय तथा आदिवासी एवं अन्य कमज़ोर वर्ग के लोगों को उनका अधिकार दिलाने से संबंधित उपाय शामिल हैं। सरकार की इस नीति के परिणामस्वरूप नक्सलियों के हौसले कमज़ोर हुए हैं तथा उनके आत्मसमर्पण की संख्या लगातार बढ़ रही है। विमुद्रीकरण ने भी नक्सलियों को पहुंचने वाली वित्तीय सहायता पर लगाम लगाई है और इसके बाद से अब तक 700 से अधिक माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया है। सरकार वामपंथी अतिवाद से प्रभावित क्षेत्रों में सड़कें बनाने की योजना पर तेज़ी से काम कर रही है और वर्ष 2022 तक 48877 किमी. सड़कें बनाने का लक्ष्य रखा गया है। वामपंथी अतिवाद से प्रभावित क्षेत्रों में संचार सेवाओं को मज़बूत बनाने के लिये सरकार बड़ी संख्या में मोबाइल टावर लगाने का काम कर रही है। इसके तहत कुल 4072 टावर लगाने का लक्ष्य रखा गया है। सरकार वामपंथी अतिवाद से प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे, कौशल विकास, शिक्षा, ऊर्जा और डिजिटल संपर्कता का यथासंभव विस्तार करने के भी प्रयास कर रही है।
ओडिशा के मलकानगिरी जिले में 700 नक्सल समर्थकों ने पुलिस और बीएसएफ अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। #NaxalFreeIndia #RRRForOscars Heartfelt pic.twitter.com/bJt5vU7JPI
— Nikhil Bajpai (@01_bajpai) September 19, 2022
वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों के लिये विशेष रणनीति
इसके तहत नक्सल प्रभावित ज़िलों (LWE Affected Districts) की संख्या को कम करने का निर्णय लिया गया था। इस पर प्रभावी नियंत्रण के लिये निम्नलिखित प्रयास किये जा रहे हैं:
विशेष केंद्रीय सहायता (Special Central Assistance-SCA)- सार्वजनिक संरचना और सेवाओं के बीच मौजूद खाई को खत्म करना।
सड़क संपर्क परियोजना (Road Connectivity Project)- प्रभावित क्षेत्रों में 5,412 किलोमीटर सड़कों का निर्माण।
कौशल विकास परियोजना (Skill Development Project)- वर्ष 2018-19 तक 47 ITI और 68 कौशल विकास केंद्रों का निर्माण।
शिक्षा संबंधी पहल (Education Initiatives)- नए केंद्रीय विद्यालयों (KVs) और जवाहर नवोदय विद्यालयों (JNV) के निर्माण हेतु मंज़ूरी। एकलव्य मॉडल (Eklavya Model) के तहत और अधिक स्कूल खोलने की भी योजना बनाई जा रही है।
वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion)- LWE प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले सभी नागरिकों को 5 कि.मी. के भीतर बैंकिंग सुविधाओं को उपलब्ध कराने की कोशिश की जा रही है।
इसके अलावा ‘LWE’ ज़िलों को उपलब्ध कराई जाने वाली वित्तीय सहायता को अधिक विशेषीकृत बनाने के साथ-साथ सामाजिक अंकेक्षण (Social Audit) को क्रियान्वित करना।
भारत में नक्सलवाद की उत्पत्ति
भारत में नक्सली हिंसा की शुरुआत वर्ष 1967 में पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग ज़िले के नक्सलबाड़ी नामक गांव से हुई और इसीलिये इस उग्रपंथी आंदोलन को ‘नक्सलवाद’ के नाम से जाना जाता है। ज़मींदारों द्वारा छोटे किसानों के उत्पीड़न पर अंकुश लगाने के लिये सत्ता के खिलाफ चारू मजूमदार, कानू सान्याल और कन्हाई चटर्जी द्वारा शुरू किये गए इस सशस्त्र आंदोलन को नक्सलवाद का नाम दिया गया। यह आंदोलन चीन के कम्युनिस्ट नेता माओ त्से तुंग की नीतियों का अनुगामी था (इसीलिये इसे माओवाद भी कहा जाता है) और आंदोलनकारियों का मानना था कि भारतीय मज़दूरों और किसानों की दुर्दशा के लिये सरकारी नीतियां ज़िम्मेदार हैं।
नक्सलवादियों की मान्यताएं
नक्सलवादी ये मानते हैं कि वे हिंसा के माध्यम से समाज में बदलाव ला सकते हैं। ये लोकतंत्र एवं लोकतांत्रिक संस्थाओं के खिलाफ हैं और ज़मीनी स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को खत्म करने के लिये हिंसा का सहारा लेते हैं। ये समूह देश के अल्प विकसित क्षेत्रों में विकासात्मक कार्यों में बाधा उत्पन्न करते हैं और लोगों को सरकार के प्रति भड़काने की कोशिश करते हैं।