राम जन्मभूमि अयोध्या में राम लला का भव्यतम और दिव्यतम मंदिर का सदियों का सपना पीएम मोदी के कार्यकाल में साकार हो रहा है। अगले साल श्रद्धालु-भक्तगण मंदिर में विधिवत दर्शन कर पाएंगे। बाबा विश्वनाथ की नगरी में काशी कॉरिडोर और महाकाल की नगरी उज्जैन में महाकाल लोक में दर्शन कर शिवभक्त अभिभूत हो ही रहे हैं। काशी कॉरिडोर की तर्ज पर अब बारी मथुरा की है। मोदी-योगी सरकार ने मिलकर यहां पांच सौ करोड़ से ज्यादा की लागत से देश-विदेश में विख्यात बांके बिहारी मंदिर के लिए कॉरिडोर बनाने जा रही है। ब्रज तीर्थ विकास परिषद ने कार्य योजना की विस्तृत रूपरेखा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने पेश की है। इस कॉरिडोर में चार और प्राचीन मंदिरों को शामिल किया जाएगा। 22,800 वर्ग मीटर में प्रस्तावित इस कॉरिडोर से बांके बिहारी के दर्शन में कम समय लगेगा। भीड़ प्रबंधन में सहूलियत होगी। अभी एक बार में 800 श्रद्धालु ही दर्शन कर पाते हैं।कॉरिडोर बनने के बाद एक साथ 5 हजार श्रद्धालु कर पाएंगे दर्शन
मथुरा-वृंदावन से लेकर गोकुल-नंदगांव और गोवर्धन-बरसाना तक लाखों श्रद्धालु हर साल दर्शनार्थ यहां आते हैं। बीते साल जन्माष्टमी पर भक्तों की बहुत भारी भीड़ के चलते बांके बिहारी मंदिर में दबने से दो श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। योगी सरकार अब यहां काशी की तर्ज पर विशाल कॉरिडोर बनाने जा रही है। ताकि लोगों को भगवान के दर्शन में परेशानी का सामना न करना पड़े। राज्य सरकार के निर्देश पर अधिकारियों ने कॉरिडोर की योजना बना ली है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसमें कुछ और सुधार के निर्देश दिए हैं। इस सुधार के बाद जल्द ही इस योजना को इलाहाबाद हाई कोर्ट के सामने भी रखा जाएगा। योगी सरकार की कोशिश है कि इसी वर्ष दीवाली से पहले कॉरिडोर के निर्माण का शुभारंभ हो जाए। कॉरिडोर बनने के बाद यह क्षमता बढ़कर 5 हजार हो जाएगी।
भक्त यमुना में डुबकी लगाने के बाद सीधे मंदिर में पहुंच सकेंगे
काशी में जिस तरह से गंगा को शिव के साथ जोड़ा गया है, उसी तरह यहां कॉरिडोर का डिजाइन इस तरह बनाया गया है कि योगीराज कृष्ण और यमुना नदी आपस में जुड़ जाएं। बता दें कि द्वापर युग में कृष्ण कन्हैया ने यमुना नदी के किनारे कई बाल लीलाएं की थीं। काशी की तर्ज पर मंदिर को यमुना नदी से जोड़ने के साथ ही यहां के चार अन्य प्राचीन और प्रख्यात मंदिरों को भी कॉरिडोर से जोड़ा जाएगा। ये कॉरिडोर मंदिर और यमुना नदी को जोड़ेगा। ठीक वैसे ही जैसे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर मंदिर और गंगा नदी से जुड़ा है। यानी भक्त यमुना में डुबकी लगाने के बाद सीधे मंदिर में पहुंच सकेंगे।
बांके बिहारी मंदिर के चारों ओर 9 मीटर का बफर जोन बनाया जाएगा
सरकार की योजना के मुताबिक वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर के चारों ओर 9 मीटर का बफर जोन बनाया जाएगा, जिसमें ग्रीन बेल्ट भी होगी। 750 वर्ग मीटर में परिक्रमा मार्ग से मंदिर के लिए चौड़े मार्ग का निर्माण करने के साथ 18,400 वर्ग मीटर का खुला क्षेत्र होगा। मंदिर के सामने दो तलों के परिसर में प्रतीक्षालय बनाया जाएगा। पूजा सामग्री की दुकानें, चिकित्सा व पुलिस सुविधा की व्यवस्था होगी। श्रद्धालु बांके बिहारी मंदिर के साथ-साथ चार और प्राचीन मंदिर के दर्शन कर सकेंगे। इसमें मदन मोहन और राधा वल्लभ जैसे प्राचीन मंदिर शामिल हैं।
श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह के विवाद को खत्म करने के लिए जुटाए साक्ष्य
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि वाराणसी के बाद सबसे अधिक 6.52 करोड़ धार्मिक पर्यटक मथुरा-वृंदावन आए। सामान्य दिनों में प्रति घंटे 2600 और दिन भर में 15 हजार श्रद्धालु पहुंचते हैं। वहीं, त्योहारों में रोजाना 50 हजार श्रद्धालु पहुंचते हैं। संकरे रास्ते, ठहरने व प्रसाधन सुविधाओं के अभाव से श्रद्धालुओं को दिक्कतें आती हैं। वृंदावन के साथ ही श्री कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह के विवाद को खत्म करने के लिए सनातनी हिंदू, वास्तुविद, वकील और रिसर्चर उन तमाम साक्ष्यों की खोज कर रहे हैं, जिनसे साबित हो कि मंदिर को तोड़कर यहां पर मस्जिद बनाई गई थी, जिसे अब शाही ईदगाह कहा जाता है। कोर्ट के केस के लिए एडवोकेट महेंद्र प्रताप सिंह ने कई सबूत जुटाए हैं।
मुगल काल से लेकर मथुरा गजेटियर तक में श्रीकृष्ण जन्मभूमि का जिक्र
साक्ष्य गवाह बने हैं कि मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सैकड़ों साल से बना हुआ है। आज से 5512 साल पहले श्रीकृष्ण भगवान मथुरा में प्रकट हुए थे। 1017 में महमूद गजनवी भारत आया और मथुरा पर बार-बार हमला किया। 9वें हमले में उसकी सेना ने शहर में लूटपाट कर मंदिर तोड़ दिया। गजनवी के साथ उसका मंत्री अल-उतबी भी था। कृष्ण मंदिर को देखकर गजनवी के मंत्री ने कहा था कि ऐसी खूबसूरत इमारत न मैंने देखी, न मेरे सुल्तान ने देखी थी। ऐसा लगता है कि इसकी तामीर फरिश्तों ने की हो। दोबारा इतनी सुंदर मंदिर बनाने में 200 साल लगेंगे। इसके मंदिर को तोड़ दिया गया। महेंद्र प्रताप के मुताबिक, ‘रिसर्च के दौरान हमने कई प्राचीनतम किताबों की स्टडी की, जिनमें मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि का रिकार्ड मिलता है। अल-उतबी की लिखी किताब-ए-यामिनी के साथ-साथ मथुरा गजेटियर, फ्रैंकोइस बर्नियर की लिखी ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर, वीएस भटनागर की लिखी एम्परर औरंगजेब एंड डिस्ट्रक्शन ऑफ टेंपल और अलेक्जेंडर कनिंघम की लिखी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया किताब में भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि का जिक्र है। इन्हें हम कोर्ट में बतौर सबूत पेश करेंगे।’औरंगजेब ने दिया था भगवान कृष्ण के मंदिरों को तोड़ने का फरमान
साकी मुस्ताद खान की किताब ‘मआसिर-ए-आलमगीरी’ में इस तथ्य का जिक्र आया है। इस किताब में औरंगजेब के 1658 से 1707 तक के शासन का इतिहास है। इसमें लिखा है- औरंगजेब ने मथुरा के केशवदेव मंदिर को ढहाने और यहां की मूर्तियों को आगरा में शाही जहांआरा बेगम साहिब मस्जिद की सीढ़ियों में लगाने का आदेश जारी किया। सिर्फ एक किताब नहीं है, ऐसी कई किताबें हैं, जिसमें औरंगजेब के श्रीकृष्ण मंदिर को ढहाने के आदेश का जिक्र है। मंदिर तोड़ने के बाद एक हिस्से में मंदिर के ढांचे पर मस्जिद बनवाई गई। इसे अब शाही ईदगाह बताया जा रहा है, लेकिन वही श्रीकृष्ण भगवान का जन्मस्थान और गर्भगृह है।’
कटरा केशव देव से मिलीं मूर्तियां और शाही ईदगाह में कमल की आकृति
सनातनी हिंदुओं का दावा है कि शाही ईदगाह में हिंदू धर्म से जुड़े कई निशान आज भी मौजूद हैं। वहां खंभों पर कमल के निशान हैं। नागराज आदिशेष की आकृति बनी है। महेंद्र सिंह के मुताबिक इसीलिए हमने सुप्रीम कोर्ट में शाही ईदगाह के एएसआई सर्वे की याचिका लगाई है। वैज्ञानिक तरीके से जांच होगी, तो पता चल जाएगा कि उस जगह मंदिर का गर्भगृह है या फिर शाही ईदगाह। इसके अलावा मथुरा के म्यूजियम में कई मूर्तियां हैं, जो श्री कृष्ण जन्मभूमि की समय-समय पर खुदाई के दौरान निकली हैं। आर्कियोलॉजी के जानकारों ने बताया भी है कि ये मूर्तियां किस वक्त की हैं। इससे साबित होता है कि यही जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान है।’
आजादी से पहले 1921 में आगरा डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने जमीन मंदिर की बताई
आजादी से पहले का डिस्ट्रिक्ट कोर्ट आगरा का भी एक अकाट्य आदेश है। कोर्ट का ये आदेश 1921 का है। इसमें लिखा है कि दीवार के अंदर की विवादित जमीन मंदिर की जगह है। अंग्रेजों ने 1815 में केशव देव मंदिर नीलाम किया, तो बनारस के पटनीमल ने ये जगह ले ली थी। तभी से मुस्लिम पक्ष की तरफ से बार-बार मुकदमे किए गए। 1920 में अंजुमन इस्लामिया की ओर से मुकदमा किया गया। इस पर कोर्ट ने फैसला सुनाया कि विवादित जमीन मंदिर की है। मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी गई। बार-बार कोशिशों के बावजूद हर बार मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया गया। यहां तक कि इसकी खसरा खतौनी में भी ईदगाह का जिक्र नहीं है। अब तक हाउस टैक्स भी श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ही जमा कर रहा है। ये सभी पुख्ता सबूत हैं।
133 साल में 10 मुकदमे, सभी श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पक्ष में आए
हिंदू पक्ष के मुताबिक, 1803 में अंग्रेजों ने मराठों को हराकर मथुरा पर कब्जा कर लिया था। 1815 में अंग्रेजों ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि की जमीन की नीलामी की थी। नीलामी ने बनारस के राजा पटनीमल ने जमीन खरीद ली। 1832 से लेकर 1965 तक इस जमीन के लिए 9 मुकदमे हो चुके हैं।
पहला मुकदमा, साल: 1832
1832 में शाही ईदगाह के पक्ष में पहला मुकदमा कलेक्टर कोर्ट में दायर किया गया। इसमें कहा गया कि जमीन का सौदा रद्द किया जाए। मस्जिद का रेनोवेशन कराया जाए। लेकिन कलेक्टर ने जमीन बेचने को सही ठहराया था।
दूसरा मुकदमा, साल: 1897
1897 में अहमद शाह नाम के शख्स ने मथुरा थाने में कटरा केशवदेव के चौकीदार गोपीनाथ पर मस्जिद की जमीन पर सड़क बनाने और रोकने पर मारपीट का मुकदमा दर्ज कराया। फरवरी 1897 में मुकदमा खारिज हो गया, कोर्ट ने कहा कि शाही ईदगाह की जमीन भी राजा पटनीमल की संपत्ति है।
तीसरा मुकदमा, साल: 1920
1920 में अंजुमन इस्लामिया ने याचिका लगाई कि मस्जिद के आसपास प्रह्लाद नाम का शख्स मंदिर बनवा रहा है और ये जमीन मुस्लिमों की है। कोर्ट ने मुकदमा खारिज कर कहा कि जमीन मंदिर की है।
चौथा मुकदमा, साल: 1928
1928 में पटनीमल के वारिस राय कृष्णदास ने मोहम्मद अब्दुल्ला खां पर मुकदमा किया कि वे मस्जिद के आसपास पड़े सामान का इस्तेमाल कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि राय कृष्ण दास इस जमीन के मालिक हैं। मुस्लिम आसपास पड़े सामान का इस्तेमाल नहीं करेंगे।
पांचवां मुकदमा, साल: 1946
मुस्लिम पक्ष की ओर से मदन मोहन मालवीय और अन्य पर केस दर्ज कर कहा गया कि इन्हें गलत तरीके से जमीन दी गई। कोर्ट ने मदन मोहन मालवीय के पक्ष में फैसला सुनाया।
छठा मुकदमा, साल: 1955
1955 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने म्यूनिसिपल बोर्ड को गोपाल मालवीय का नाम कागजों में दर्ज करने का प्रार्थना पत्र दिया। मुस्लिम पक्ष ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई और याचिका दायर की। एक बार फिर फैसला ट्रस्ट के पक्ष में आया।
सातवां मुकदमा, साल: 1960
1960 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ने शौकत अली और अन्य पर मुकदमा दायर कर कहा कि ये सभी हमारी जमीन से नहीं हट रहे हैं। कोर्ट ने सेवा संघ के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि जो न हटे, उसकी चल अचल संपत्ति कोर्ट को सौंपी जाए।
आठवां मुकदमा, साल: 1961
1961 में शौकत अली और अन्य की तरफ से एडिशनल सिविल जज की कोर्ट में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ पर मुकदमा दायर किया गया। इसमें पिछले मुकदमे रोकने की मांग की गई।
नौंवा मुकदमा, साल: 1965
श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ने दूसरे पक्ष पर मुकदमा दायर किया। इसमें कहा गया कि जो मुस्लिम पक्ष, मंदिर की जमीन पर किराएदार हैं और टैक्स भी जमा नहीं कर रहे हैं। फैसला श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ के पक्ष में आया।
दसवां मुकदमा, साल:1973
भगवान श्रीकृष्ण विराजमान कटरा केशव देव मथुरा की तरफ से याचिका दायर कर 20 जुलाई 1973 के फैसले को रद्द करने और 13.37 एकड़ कटरा केशव देव की जमीन को श्रीकृष्ण विराजमान के नाम घोषित किए जाने की मांग की गई थी। कहा गया है कि जमीन को लेकर दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते के आधार पर 1973 में दिया गया फैसला वादी पर लागू नहीं होगा क्योंकि वह पक्षकार नहीं था। इस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह ट्रस्ट और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की याचिका को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने मथुरा के जिला जज को पूरे मामले की नई सिरे से सुनवाई का आदेश दिए हैं।