बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर खींचतान खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के प्रमुख मुकेश सहनी 25 सीटों की मांग पर अड़े हैं, जबकि RJD ने केवल 14 सीटों का ऑफर दिया है। इस ऑफर के साथ तेजस्वी यादव के साथ देर रात हुई मुलाकात के बाद मुकेश सहनी सख्त नाराज हैं। रात दो बजे के बाद जब मुकेश सहनी बैठक से निकले, तो उनके चेहरे पर नाराजगी साफ झलक रही थी। सहनी ने मीडिया से कोई बात तक नहीं की और सीधे अपने आवास लौट गए। तब से लेकर अब तक उन्होंने किसी से बातचीत नहीं की है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, सहनी अब अपनी पार्टी की अगली रणनीति बना रहे हैं। यदि महागठबंधन से बातचीत पटरी पर नहीं बैठी तो वे अपनी पार्टी के 40 उम्मीदवारों को विधानसभा में उतारने की रणनीति पर विचार कर रहे हैं। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि मुकेश सहनी इस बार अपनी राजनीतिक हैसियत दिखाने के मूड में हैं। उनका कहना है कि सहनी का मल्लाह और निषाद समाज की राजनीति में वोट बैंक है और सहनी उसी को लेकर अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते हैं।
हमारे जनाधार और मेहनत का सम्मान होना चाहिए-सहनी
मुकेश सहनी और तेजस्वी यादव के बीच देर रात राजधानी पटना में एक अहम बैठक हुई। तेजस्वी यादव के आवास पर करीब 2 बजे रात तक दोनों नेताओं के बीच बातचीत चली। बताया जा रहा है कि बैठक का माहौल शुरुआत में सकारात्मक था, लेकिन सीट शेयरिंग पर चर्चा आते ही टकराव बढ़ गया। तेजस्वी यादव ने महागठबंधन के भीतर संतुलन बनाए रखने की बात कहते हुए वीआईपी को 14 सीटें देने का प्रस्ताव रखा, लेकिन मुकेश सहनी ने साफ कहा कि ‘हमारे जनाधार और मेहनत का सम्मान होना चाहिए, 25 से कम सीट पर VIP चुनाव नहीं लड़ेगी।’ इसके अलावा सहनी ने सरकार बनने के बाद उसमें डिप्टी सीएम पद की भी डिमांड की। बताते हैं कि तीन डिप्टी सीएम के फार्मूले में सहनी को सैट किया जा सकता है, इस पर तेजस्वी ने स्वीकृति दी, लेकिन ज्यादा सीटें देने पर उन्होंने मना कर दिया।
अब ‘सन ऑफ मल्लाह’ सहनी बना रहे नई रणनीति
विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के प्रमुख और ‘सन ऑफ मल्लाह’ के नाम से मशहूर मुकेश सहनी इसके बाद अब खुलकर अपनी नाराजगी दिखा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक मुकेश सहनी किसी भी हालत में 25 सीटों से कम पर समझौता करने को तैयार नहीं हैं, जबकि राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने उन्हें सिर्फ 14 सीटों का ऑफर दिया है। रात दो बजे के बाद जब मुकेश सहनी बैठक से निकले, तो उनके चेहरे पर नाराजगी साफ झलक रही थी। सहनी ने मीडिया से कोई बात नहीं की और सीधे अपने आवास लौट गए. तब से लेकर अब तक उन्होंने किसी से बातचीत नहीं की है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, सहनी अब इस पर मन बना रहे हैं कि यदि तेजस्वी यादव ने उन्हें महागठबंधन में 25 सीटें नहीं दीं, तो वे अपनी पार्टी के 40 उम्मीदवारों को सियासी मैदान में उतारेंगे।
महागठबंधन की बैठक टली, RJD की आपात मीटिंग
महागठबंधन की एक अहम बैठक प्रस्तावित थी, जिसमें सीट शेयरिंग पर अंतिम सहमति बनने की उम्मीद थी। लेकिन VIP की नाराज़गी के चलते यह बैठक फिलहाल टाल दी गई है। अब RJD ने अपनी आपात बैठक बुलाई है, जिसमें तेजस्वी यादव पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ आगे की रणनीति तय करेंगे। मुकेश सहनी की नाराजगी महागठबंधन के लिए बड़ी चिंता का विषय बन गई है। पहले भी वे NDA और महागठबंधन के बीच पाला बदल चुके हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने महागठबंधन छोड़कर NDA के साथ तालमेल किया था, लेकिन बाद में फिर विपक्षी खेमे के करीब आ गए। महागठबंधन के नेताओं को यह भी चिंता सता रही है कि यदि सहनी फिर एनडीए के पाले में जाते हैं तो उनका पूरा खेल बिगड़ सकता है।
VIP का बिफरना गठबंधन की एकजुटता पर बड़ा सवाल
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि तेजस्वी यादव से निराश होकर मुकेश सहनी इस बार अपनी राजनीतिक हैसियत दिखाने के पूरे-पूरे मूड में हैं। उनका कहना है कि मल्लाह और निषाद समाज में उनकी भारी पैठ है। बिहार की सियासत में निषाद और मल्लाह भी एक बड़ा वोट बैंक है और सहनी उन्हीं को लेकर अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते हैं। VIP के रुख से महागठबंधन के अन्य घटक दलों में भी असमंजस की स्थिति है। कांग्रेस और वाम दल पहले ही अपने हिस्से को लेकर नाराजगी जता चुके हैं। अब VIP का बिफरना गठबंधन की एकजुटता पर बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि ‘सन ऑफ मल्लाह’ अपने लिए मनचाही सीटें हासिल करते हैं या एक बार फिर ‘VIP’ पार्टी की किस्मत की नाव किसी नए किनारे लगती है।
महागठबंधन पर दबाव बनाने की सहनी की रणनीति
हालांकि मुकेश सहनी के इस रुख को महागठबंधन पर दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है। बताया जा रहा है कि सहनी अपनी दो प्रमुख मांगों पर अड़े हुए थे, जिसके कारण सीट बंटवारे की आधिकारिक घोषणा अटकी हुई है।
1. 25 सीटों की मांग: वीआईपी प्रमुख महागठबंधन में अपने कोटे के लिए 25 विधानसभा सीटों की मांग पर मजबूती से खड़े थे, जिसे RJD और अन्य सहयोगियों द्वारा अत्यधिक माना जा रहा था।
2. उपमुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी: सहनी की दूसरी बड़ी जिद यह थी कि उन्हें महागठबंधन की ओर से उपमुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित किया जाए।
सूत्रों का कहना है कि उप मुख्यमंत्री पद पर तो महागठबंधन में सहमति बन सकती है, लेकिन सीटों के बंटवारे पर मामला अटका हुआ है। नामांकन प्रक्रिया शुरू हो जाने के बावजूद भी सीट बंटवारे की घोषणा न होने से महागठबंधन में पहले से ही तनाव था, और अब मुकेश सहनी का ‘नॉट रिचेबल’ हो जाना गठबंधन की एकता के लिए बड़ा झटका है। क्योंकि सीटों पर देरी से उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार पर बुरा असर पड़ रहा है।
लालू और तेजस्वी पर आंखे तरेरने लगी है कांग्रेस
उधर कांग्रेस भी महागठबंधन की कमजोर कड़ी होने के बावजूद लालू-तेजस्वी पर आंखे तरेर रही है। आलाकमान की शह पर कांग्रेस के बड़े नेता अब लालू यादव को भी भाव नहीं दे रहे। वरिष्ठ कांग्रेस नेता अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, जयराम रमेश और अधीर रंजन चौधरी चुनाव प्रबंधन के लिए पटना पहुंच चुके हैं। लेकिन उन्होंने जानबूझकर लालू और तेजस्वी से मुलाकात नहीं की। इससे महागठबंधन पर महा-संकट आने के आसार नजर आने लगे हैं। यदि दो-तीन दिन में सियासी पेच ना सुलझा तो दरार और बढ़ सकती है। दूसरी ओर पहली बार चुनावी मैदान में उतरे प्रशांत किशोर भी विवादों में घिर गए हैं। उनकी जन सुराज पार्टी के कार्यकर्ताओं ने ही पीके पर पैसे लेकर सीटें बांटने के आरोप लगाए हैं। ऐन चुनाव से पहले ऐसी पोल खुलने के बीच मानहानि मामले में नोटिस ने पीके की टेंशन और बढ़ा दी है।
राहुल के पीछे लग तेजस्वी ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी
दरअसल, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने वोटर अधिकार यात्रा के दौरान अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मार ली थी। इस यात्रा में राहुल गांधी 17 दिनों तक बिहार में रहे। तेजस्वी ने ही राहुल को लीड करने का मौका दिया और वे पहली बार राहुल गांधी के पीछे-पीछे घूमे। तेजस्वी ने यात्रा में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। इससे बिहार में मृतप्राय पड़ी कांग्रेस की कुछ सांसें चलने लगीं। राहुल गांधी को गुमान हो गया कि यह सब उनकी वजह से है। इसलिए इसके बाद से कांग्रेस अब आरजेडी को आंखे दिखाने लगी है। तेजस्वी के सीएम फेस पर भी एतराज जताने के बाद अब कांग्रेस ने सीट बंटवारा के लिए राजद को अल्टीमेट तक दे दिया है। यदि दो-तीन दिन में दोनों दलों में सहमति नहीं बनी तो कांग्रेस अपनी पहली सूची जारी कर सकती है। कांग्रेस ने पहले 15 उम्मीदवारों की सूची बना ली है। यदि कांग्रेस आम सहमति के पहले लिस्ट जारी कर देती है तो महागठबंधन पर महा-संकट के बादल छा सकते हैं।
कांग्रेस के बड़े नेता अब लालू-तेजस्वी को नहीं दे रहे भाव
कांग्रेस ने भले ही पिछले विधानसभा चुनाव में मात्र 19 सीटें जीतकर सबसे कमजोर प्रदर्शन किया हो। इसके बावजूद वह अगले माह होने वाले चुनाव के लिए राजद की आंख में आंख मिला कर बात कर रही है। यही वजह है कि कांग्रेस के बड़े नेता अब लालू यादव और तेजस्वी को भी भाव नहीं दे रहे। हाइकमान के आदेश पर अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, जयराम रमेश और अधीर रंजन चौधरी चुनाव प्रबंधन के लिए पटना आए। लेकिन उन्होंने लालू यादव और तेजस्वी से मुलाकात करने की जरूरत ही नहीं समझी। भूपेश बघेल ने तो सीधे-सीधे तेजस्वी यादव को चुनौती ही दे डाली। उन्होंने कहा, तेजस्वी खुद को अपनी ओर से सीएम फेस बता रहे हैं, लेकिन सीएम का चेहरा उनकी पार्टी का हाईकमान घटक दलों की सहमति से तय करेगा।
महागठबंधन उम्मीदवारों की घोषणा में देरी से चुनाव पर असर
चुनाव के लिए पहले चरण के नामांकन की शुरुआत 10 अक्टूबर से हो चुकी है। लेकिन 10 अक्टूबर तक महागठबंधन का सीट बंटवारा फाइनल नहीं हो सका है। संभावित प्रत्याशियों में इसको लेकर रोष है कि पिछली बार उम्मीदवारों की घोषणा में देरी से तैयारी का समय नहीं मिला था। पहले चरण के चुनाव के नामांकन की अंतिम तारीख से एक दिन पहले प्रत्याशियों के नाम घोषित किये गये। कांग्रेस ने आंतरिक गुटबाजी और संभावित असंतोष से निपटने के लिए यह देरी की थी। लेकिन इस कोशिश में उम्मीदवारों को हड़बड़ी में आधी अधूरी तैयारी के साथ चुनाव में उतरना पड़ा। टिकट को लेकर भी असंतोष था। पूर्व केन्द्रीय मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता केके तिवारी ने सोनिया गांधी को पत्र लिख कर टिकट वितरण में धांधली का आरोप लगाया था। उन्होंने चुनाव प्रबंधन से जुड़े नेताओं की जांच कराये जाने की मांग की थी।
तीन साल पीके के साथ घूमी, अब कर दिया विश्वासघात
जन सुराज पार्टी की लिस्ट की घोषणा होते ही कार्यकर्ताओं और संभावित प्रत्याशियों की नाराजगी और रोष सामने आ गया है। जन सुराज की महिला कार्यकर्ता पुष्पा सिंह ने टिकट ना देने पर पीके पर विश्वासघात का आरोप लगाया है। उन्होंने मीडिया से कहा कि तीन साल मैं घर में नहीं बैठी। अपना सारा सुख त्याग दिया और जन सुराज के लिए काम किया। घर की बेटी-बहू होकर भी मैंने हिम्मत जुटाई। वे पैदल चले तो मैं भी उनके साथ चल पड़ी। आज मेरे साथ अन्याय हुआ है। टिकट के लिए उन लोगों का नाम अनाउंस हुआ जो क्षेत्र में घूमे ही नहीं, जनता उनको पसंद तक नहीं करती है। बहुत उम्मीद लेकर आई थी, सब पर पानी फिर गया है। मैंने तो उम्मीदवार बनने का प्रोसेस भी पूरा कर लिया था। पुष्पा ने कहा कि बनियापुर-मशरख की जनता जन सुराज का हिसाब कर देगी।
जन सुराज पार्टी ने 21 हजार लिए, टिकट किसी और को दिया
पाटलिपुत्र ऑफिस के बाहर पहुंचे कार्यकर्ता अमर कुमार सिन्हा ने दावा किया, ‘पार्टी ने उनको कुम्हरार विधानसभा से टिकट देने की बात कही थी। इसके लिए 21000 रुपए भी लिए काम कराया। 5 जनसभाएं करवाई और एंड मोमेंट पर ये सीट केसी सिन्हा को दे दी। सिन्हा के मुताबिक RCP सिंह ने अपनी बेटी को टिकट दिलवा दिया। पीके ने काम करवाया और RCP सिंह ने भरोसा दिया। हमने जन सुराज पार्टी छोड़ दिया। ये आदमी (प्रशांत किशोर) बिहार बदलाव की बात कर रहा है और दूसरे को चोर बोलकर खुद को ईमानदार साबित करना चाहता है।
मुजफ्फरपुर की सीट पीके ने 40 लाख में बेची- केजरीवाल
दरअसल, गुरुवार को जन सुराज ने 51 सीटों पर कैंडिडेट्स के नाम की घोषणा की। नाम की घोषणा के साथ ही हंगामा शुरू हो गया। कई कार्यकर्ता टिकट नहीं मिलने से नाराज दिखे। मुजफ्फरपुर में जन सुराज के नेता संजय केजरीवाल ने पार्टी से त्यागपत्र देने के साथ-साथ निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने की घोषणा की है। संजय केजरीवाल ने कहा कि जन सुराज में अब सिद्धांत-विचारधारा नहीं, बल्कि पैसे का बोलबाला हो गया है। मुजफ्फरपुर नगर विधानसभा की टिकट 40 लाख रुपए में बेची गई है।
125 करोड़ के मानहानि केस में नोटिस ने पीके की बढ़ाई टेंशन
दूसरी ओर 125 करोड़ के मानहानि केस में प्रशांत किशोर को कोर्ट से नोटिस जारी हुआ है। भाजपा सांसद डॉ. संजय जायसवाल की ओर से दायर मानहानि केस की सुनवाई सब जज 1 बेतिया के न्यायालय में हुई। कोर्ट ने मानहानि केस एडमिट कर लिया है। इसमें जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर को कोर्ट ने नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने प्रशांत किशोर को विशेष दूत से समन देने का आदेश दिया है। सांसद की तरफ से मैंडेटरी इंजेक्शन पिटीशन भी दाखिल किया गया था। जिस पर कोर्ट ने कारण बताओ नोटिस जारी किया है।
आइए, बिहार की चुनावी हवा में एनडीए के मजबूत और महागठबंधन के कमजोर होने की कुछ वजहों पर एक नजर डालते हैं…
1.मोदी-नीतीश के चेहरे के आगे सब हुए धराशायी
बिहार की राजनीति में चेहरों का असर हमेशा निर्णायक रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की अपार लोकप्रियता और सीएम नीतीश कुमार की प्रशासनिक पकड़ ने चुनावी समीकरण को बदल दिए हैं। सर्वे बताते हैं कि विकास कार्य और वर्क परफॉर्मेंस के साथ-साथ पीएम मोदी का करिश्मा मिलकर एनडीए को मजबूत बना रहे हैं। इसके आगे महागठबंधन का कोई चेहरा बराबरी नहीं कर पा रहा। तेजस्वी यादव जरूर हाथ-पैर मारने में लगे हुऐ हैं, लेकिन उनके कई सहयोगी दलों में उन्हें लेकर एका नहीं है। यही वजह है कि विभिन्न ओपिनियन पोल में मोदी-नीतीश की जोड़ी जनता को ज्यादा भरोसेमंद लग रही है।
2.तेजस्वी यादव के सीएम फेस बनने पर कन्फ्यूजन
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव खुद को कई बार सीएम फेस घोषित कर चुके हैं, लेकिन उनके नेतृत्व को लेकर जनता और सहयोगी दलों दोनों में ही भ्रम की स्थिति है। कई बार उनके बयानबाजी और रणनीति को लेकर सवाल उठे हैं। अलग-अलग सर्वे अनुमानों में युवा नेता होने के बावजूद वे अभी तक स्थायी विश्वास पैदा नहीं कर पाए हैं। ना ही उनके चाहने के बावजूद कांग्रेस ने उन्हें सीएम फेस माना है। यही कारण है कि कभी उन्हें सीएम के विकल्प के रूप में आगे बढ़ते हुए दिखाया जाता है, तो कभी विपक्षी खेमे में भी असहमति झलकती है। यह कन्फ्यूजन महागठबंधन को नुकसान पहुंचा रहा है।
3.महागठबंधन नहीं बना पाया कोई भी नैरेटिव
बिहार में नीतीश कुमार के सरकार कई साल है। लेकिन महागठबंधन के सहयोगी उनके खिलाफ कोई नैरेटिव नहीं बना पाए हैं। क्योंकि पीएम-सीएम की जोड़ी ने बिहार में विकास की गंगा बहा दी है। दरअसल, हर चुनाव एक नई कहानी मांगता है, एक ऐसा मुद्दा जो जनता से जुड़ सके। लेकिन, महागठबंधन अभी तक कोई ठोस नैरेटिव गढ़ने में नाकाम रहा है। ना रोजगार का ठोस एजेंडा, ना शिक्षा-स्वास्थ्य पर स्पष्ट विज़न। केवल नीतीश विरोध से जनता को साधा नहीं जा सकता। जबकि, एनडीए और उसके सहयोगी लगातार “विकास, स्थिरता और नेतृत्व” की लाइन पर अपनी पकड़ मजबूती के साथ बनाए हुए हैं।
4. बिहार में कांग्रेस और राहुल गांधी का सीमित प्रभाव
महागठबंधन की सबसे बड़ी कमजोरी उसके सहयोगी दलों में कांग्रेस है। राहुल गांधी ने तेजस्वी यादव को टूल बनाकर बिहार के कुछ जिलों में यात्रा निकालने की औपचारिकता जरूर पूरी की, लेकिन वे बिहार की जनता-जनार्दन के दिलों पर कोई छाप नहीं छोड़ पाए। ना ही प्रदेश में मृतप्राय पार्टी को जिंदा कर पाए। राज्य में कांग्रेस का संगठन बेहद कमजोर है और उसकी जमीनी पकड़ नगण्य है। महज कुछ सीटों पर लड़कर कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा तो बनती है, लेकिन कोई बड़ा वोट ट्रांसफर कराने की स्थिति में नहीं है। इस बार भी कांग्रेस की भूमिका ‘यूपीए के सहारे’ वाली ही दिख रही है जो गठबंधन को और अधिक कमजोर बना रही है।
5. बिहार में नया विकल्प, जनसुराज की चुनौती
राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने अभी तक पर्दे के पीछे से रणनीति बनाकर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग दलों को जिताने में भूमिका निभाई है। इस बार वे बिहार में अपनी पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में हैं। प्रशांत किशोर की ‘जनसुराज’ यात्रा ने बिहार की राजनीति में एक नया विकल्प पैदा किया है। हालांकि, चुनावी नतीजों में इसका बड़ा असर कितना होगा ये कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव महागठबंधन पर साफ दिख रहा है। क्योंकि एनडीए का वोट बैंक पूरी मजबूती से उसके साथ जुड़ा है। ऐसे में प्रशांत किशोर महागठबंधन के वोट बैंक में ही सैंध लगाएंगे। इससे विपक्ष के प्रत्याशियों के वोटों में कमी आ सकती है। सर्वे बता रहे हैं कि खासकर ग्रामीण और शिक्षित मतदाताओं में पीके का कुछ असर है।
6.ओवैसी से महागठबंधन का समीकरण कमजोर
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का बिहार में सीमांचल इलाका हमेशा से टारगेट रहा है। यहां मुस्लिम वोटों पर उनकी पकड़ बढ़ रही है, जिसका सीधा असर महागठबंधन के पारंपरिक वोट बैंक पर पड़ने वाला है। विभिन्न ओपिनियन पोल के अनुसार, सीमांचल में आरजेडी को मुस्लिम-यादव समीकरण पर हमेशा भरोसा रहा है, लेकिन ओवैसी की सक्रियता इस समीकरण को कमजोर बना रही है। आरजेडी का माई (मुस्लिम प्लस यादव) फेक्टर में दरार महागठबंधन की हार की एक बड़ी वजह बन सकती है।
7. लालू यादव की चारा चोर इमेज से होगा नुकसान
बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी अपने कार्यकाल में विवादित रहे हैं। जहां अपराधों के चरम पर होने के कारण उनका शासन जंगलराज के रूप में मशहूर हुआ। अपहरणों को तो बकायदा अपहरण-उद्योग का दर्जा मिला। अपहरण के बाद फिरौती में नेताओं का नाम आने से उनकी इमेज और बिगड़ी। रही-सही कसर बेलगाम भ्रष्टाचार ने पूरी कर दी। लालू यादव खुद ही करोड़ों के चारा घोटाले में जेल गए। नौकरी के बदले जमीन घोटाले समेत कई केस अब भी चल रहे हैं। ऐसे में राहुल गांधी के वोट चोर के नारे पर लालू यादव की चारा चोर की छवि बहुत भारी पड़ने वाली है। इससे आरजेडी समेत महागठबंधन के सहयोगियों को मुश्किल का सामना करना पड़ेगा।
8. महागठबंधन की सीट शेयरिंग में फंसा पेंच
बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद महागठबंधन सीट शेयरिंग में पेंच फंसता नजर आ रहा है। बाहर से जहां सभी नेता एकजुटता का प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं अंदर सीट बंटवारे खींचतान मची है। सीटों के बंटवारे पर भी अभी सभी की सहमति नहीं बन पा रही है। वीआईपी प्रमुख सहनी जहां 30 सीट और डिप्टी सीएम पर अड़े हुए हैं, वहीं माले भी 40 सीट की डिमांड कर रही है। इस पर भी महागठबंधन में सहमति नहीं बन पाई है। बल्कि सीटों का बंटवारा फंस गया है। कांग्रेस भी कमजोर होने के बावजूद इस बार ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बना रही है। कांग्रेस की संभावित हार से महागठबंधन का सियासी गणित भी कमजोर पड़ेगा।
9. तीन डिप्टी सीएम पर मंथन भी रहा बेनतीजा
सीट शेयरिंग के गुणा गणित के बीच कांग्रेस ने तीन डिप्टी का फॉर्मूला प्रपोज किया है। लेकिन लगातार तीन दिन की मीटिंग के बाद भी कोई रिजल्ट नहीं निकल पाया है। बीते एक सप्ताह में तेजस्वी यादव के आवास पर छह बैठक हो चुकी हैं, 5 अक्टूबर से लेकर 7 अक्टूबर तक लगातार तीन दिन बैठक चली। 7 अक्टूबर को तो रात एक बजे तक सीट शेयरिंग, डिप्टी सीएम, सीएम फेस को लेकर मंथन होता रहा। लेकिन कोई फैसला नहीं हो पाया। मीटिंग से निकलने बाद सहनी ने कहा–हम लगभग फाइनल प्वाइंट पर पहुंच गए हैं और मैं डिप्टी सीएम बनूंगा। 8 अक्टूबर को घोषणा कर देंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसके अलावा लालू के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव भी पार्टी से अलग होने के बाद तेजस्वी यादव की राह का कांटा बने हुए हैं।
10. आरजेडी की छह सीटों पर पेंच, माले भी अड़ी
तेजस्वी यादव के आवास पर हुई मैराथन बैठक में सीटों के फार्मूले पर डिटेल्ड चर्चा हुई। इसमें कहा गया कि 2020 के विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन को सबसे अधिक महत्व दिया जाए। जिन सीटों पर उम्मीदवार 1000 वोट से कम से हारे थे और दूसरे स्थान पर रहे थे, उसे भी बड़ा आधार बनाया जाए। 2024 के लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को तो सामने रखा ही जाए। लेकिन कांग्रेस और आरजेडी के बीच आधा दर्जन सीटों पर पेंच फंस गया। कांग्रेस की सबसे बड़ी मांग लेफ्ट की बछवाड़ा सीट को लेकर थी, जो सीपीआई की पारंपरिक सीट मानी जाती है। अगले ही दिन भाकपा-माले की नाराजगी खुलकर सामने आई। माले ने 40 सीटों की मांग दुहराई, जबकि सीपीआई ने 24 और सीपीआईएम ने 11 सीटों की मांग की। आरजेडी की तरफ से माले को 20 के आसपास सीटें देने की बात कही गई। इस पर माले तैयार नहीं हुई। आरजेडी ने स्पष्ट कर दिया कि वह 130-135 से कम पर लड़ना नहीं चाहती।