जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को हुए आतंकी हमले के जवाब में भारत ने 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को तबाह कर अपनी सैन्य ताकत और संकल्प का साफ संदेश दे दिया। यह कार्रवाई न केवल देश की सुरक्षा के लिए जरूरी थी, बल्कि दुनिया को यह बताने के लिए भी आवश्यक था कि भारत आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में डटकर खड़ा है। लेकिन ऑपरेशन सिंदूर के बाद अमेरिका और खासकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बर्ताव भारत के लिए संतोषजनक नहीं रहा। ट्रंप के बयान बार-बार बदलते रहे- कभी मध्यस्थता की पेशकश, कभी भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध रोकने का दावा, कभी संयम की अपील। ट्रंप की ‘बैलेंसिंग एक्ट’ नीति और पाकिस्तान के प्रति नरमी के साथ अमेरिका के व्यवहार ने भारत के लिए कई सवाल खड़े कर दिए हैं। आइए डालते हैं एक नजर-
भारत की कार्रवाई का खुला समर्थन न देना
ऑपरेशन सिंदूर के बाद अमेरिका ने भारत की सैन्य कार्रवाई का स्पष्ट समर्थन नहीं किया, बल्कि दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की। यह भारत के लिए आश्चर्यजनक और निराशाजनक था, क्योंकि भारत ने आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कदम उठाया था। भारत ने 7 मई 2025 को पाकिस्तान और पीओके में आतंकियों के खिलाफ जिस हिसाब से तेज, तकनीकी रूप से उन्नत सैन्य कार्रवाई की, उससे पाकिस्तान ही नहीं चीन, अमेरिका और तुर्किए भी हैरान रह गए। इस ऑपरेशन में स्वदेशी हथियारों और तकनीक का उपयोग कर भारत ने अपनी रणनीतिक और सैन्य आत्मनिर्भरता का प्रदर्शन किया, जिससे अमेरिका सहित कई देशों को भारत की बढ़ती शक्ति का अंदाजा हुआ।
ट्रंप की कूटनीतिक उलझन
ऑपरेशन सिंदूर के बाद अमेरिका ने भारत का खुलकर समर्थन नहीं किया, बल्कि दोनों देशों को एक पाले पर रखते हुए से संयम बरतने और तनाव घटाने को कहा। अमेरिकी विदेश मंत्री ने भारत और पाकिस्तान के नेताओं से अलग-अलग बात की, लेकिन भारत के पक्ष में कोई स्पष्ट समर्थन नहीं दिया। इससे भारत में यह धारणा बनी कि अमेरिका बैलेंसिंग एक्ट कर रहा है। इसके साथ ही अमेरिका ने कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता की पेशकश भी की, जिसे भारत ने सिरे से नकार दिया। भारत ने साफ किया कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है और किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार्य नहीं है।
बार-बार बदलता ट्रंप का बयान
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कभी दावा किया कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध रोकने में अहम भूमिका निभाई, तो कभी ये दावा किया कि युद्ध रोकने में मदद की है। कभी कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता की पेशकश की, तो कभी कहा कि वे भारत और पाकिस्तान के बीच ‘ग्रेट डील’ करा सकते हैं, तो कभी कहा कि दोनों देशों को खुद मिलकर हल निकालना चाहिए। इस दौरान ट्रंप के बयान अक्सर बदलते रहे- कभी भारत के पक्ष में, कभी पाकिस्तान के। इससे भारत में यह धारणा बनी कि अमेरिका की नीति स्पष्ट नहीं है और वह अपने हितों के अनुसार बयान बदलता रहता है। ट्रंप ने व्यापार और रक्षा के मुद्दों पर भी भारत के साथ सख्त रुख अपनाया, लेकिन जब पाकिस्तान की बात आई तो नरमी दिखाई।
पाकिस्तान के प्रति नरम रुख
अमेरिका ने पाकिस्तान पर आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए जोर नहीं दिया, जबकि वास्तविकता में वह आतंकवाद का प्रमुख स्रोत बना हुआ है। इससे साफ होता है कि अमेरिका पाकिस्तान को अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं के कारण नजरअंदाज नहीं कर रहा है। दरअसल में शीत युद्ध के समय से ही पाकिस्तान अमेरिका का रणनीतिक साझेदार रहा है। अफगानिस्तान, तालिबान और चीन के मुद्दों को लेकर अमेरिका के लिए पाकिस्तान की अहमियत बनी हुई है। यही वजह है कि वह भारत को भी साधे रखना चाहता है और पाकिस्तान से भी रिश्ते नहीं बिगाड़ना चाहता।
अमेरिका की ‘बैलेंसिंग एक्ट’ नीति
अमेरिका दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए पाकिस्तान को पूरी तरह छोड़ना नहीं चाहता, जबकि भारत के साथ अपने संबंधों को भी बनाए रखना चाहता है। अमेरिका को लगता है कि अगर उसने भारत का खुलकर समर्थन किया, तो पाकिस्तान पूरी तरह चीन के पाले में चला जाएगा, जो उसके लिए रणनीतिक रूप से नुकसानदेह होगा। पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति, उसकी परमाणु ताकत और चीन से करीबी दोस्ती- ये तीनों वजहें अमेरिका को मजबूर करती हैं कि वह पाकिस्तान से पूरी तरह दूरी न बनाए। यह नीति भारत के लिए अस्वीकार्य है क्योंकि आतंकवाद की जड़ पाकिस्तान में है।
भारत की बढ़ती ताकत से घबराहट
ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय वायुसेना ने तुर्की के ड्रोन के साथ चीन के एचक्यू-9 एयर डिफेंस सिस्टम और पीएल-15 मिसाइलों को निष्क्रिय कर दिया। इससे चीन के हथियारों की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे और भारत के स्वदेशी हथियारों की दुनिया भर में मांग बढ़ गई है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन ने पाकिस्तान को खुफिया जानकारी भी दी, लेकिन भारत ने सैटेलाइट तस्वीरों और सटीक कार्रवाई से चीन के दुष्प्रचार का मुंहतोड़ जवाब दिया। कार्रवाई के दौरान अमेरिकी एफ-16 भी पाकिस्तान के किसी काम नहीं आए। साफ है पाकिस्तान की छटपटाहट और भारत की बढ़ती ताकत से अमेरिका को घबराहट हो रही है।
इस दौरान ट्रंप ने भारत के खिलाफ व्यापारिक दबाव भी बनाए रखा, विशेषकर अमेरिकी उत्पादों पर भारत के उच्च आयात शुल्क को लेकर। इससे भारत को यह महसूस होता है कि अमेरिका केवल अपने आर्थिक हितों को देख रहा है, न कि भारत के सुरक्षा हितों को। अमेरिका की ‘बैलेंसिंग एक्ट’ नीति और पाकिस्तान के प्रति नरमी से भारत को यह भी अहसास हुआ कि संकट की घड़ी में उसे अपनी ताकत, आत्मनिर्भरता और स्वतंत्र विदेश नीति पर ही भरोसा करना होगा। भारत अब वैश्विक मंचों पर अपनी आवाज और ताकत दोनों को और मजबूत करने की दिशा में अग्रसर है।