Home समाचार प्रधानमंत्री मोदी और अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला के बीच प्रेरणादायक संवाद, देखिए...

प्रधानमंत्री मोदी और अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला के बीच प्रेरणादायक संवाद, देखिए फोटो और वीडियो-

SHARE

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार 18 अगस्त को देश के पहले मानव अंतरिक्ष मिशन के अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला के साथ बातचीत की। यह संवाद न केवल एक प्रेरणास्पद क्षण था, बल्कि भारत की वैज्ञानिक प्रगति, गगनयान मिशन और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक नया अध्याय भी सिद्ध हुआ। प्रधानमंत्री ने जब शुक्ला से पूछा कि अंतरिक्ष से लौटने पर कैसा महसूस होता है, तो उन्होंने बेहद सहज अंदाज़ में कहा, “सर, ऊपर ग्रैविटी नहीं होती। माहौल बिलकुल अलग होता है। शरीर और दिमाग दोनों को ढलने में समय लगता है। वापस आकर चलना भी मुश्किल हो जाता है।”

उन्होंने बताया कि कैसे अंतरिक्ष में कुछ दिन बिताने के बाद शरीर खुद को ढाल लेता है, लेकिन धरती पर लौटते ही मांसपेशियां और दिमाग को फिर से समायोजित होना पड़ता है। “पहला कदम रखते ही गिर गया था, लोगों ने संभाला। चलना आता है, लेकिन दिमाग को समय लगता है समझने में कि अब फिर से ग्रैविटी है।”

प्रधानमंत्री मोदी ने जब उनसे पौधों के प्रयोगों के बारे में पूछा, तो शुक्ला ने गर्व से बताया कि उन्होंने मूंग और मेथी के स्प्राउट्स उगाए। “बहुत कम संसाधनों में भी वो उग गए। 8 दिन में अंकुर फूटे। इससे स्पेस फूड और धरती पर फूड सिक्योरिटी में मदद मिल सकती है।” उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय पारंपरिक ज्ञान, जैसे कि पौधों के पोषण से जुड़े उपाय, अब वैश्विक रिसर्च का हिस्सा बन रहे हैं।

शुभांशु शुक्ला ने बताया कि जब वे विदेशी अंतरिक्ष यात्रियों से मिले, तो उनमें से कई भारत के गगनयान मिशन को लेकर बेहद उत्साहित थे। “मेरे क्रूमेट्स ने मुझसे ऑटोग्राफ लिया और कहा – जब भी आपका मिशन जाएगा, हमें इनवाइट करना!” प्रधानमंत्री ने हंसते हुए पूछा, “क्या वे आपको टैग-जीनियस बुलाते हैं?” शुक्ला ने विनम्रता से जवाब दिया, “सर, वो बहुत काइंड हैं। असली मेहनत तो एयरफोर्स और इसरो की ट्रेनिंग में हुई।”

प्रधानमंत्री ने शुक्ला को याद दिलाया कि उन्होंने उनसे “होमवर्क” करने को कहा था- यानी अंतरिक्ष से लौटकर मिशन के अनुभवों को भारत के भविष्य के लिए इस्तेमाल करना। शुक्ला बोले, “सर, मिशन सक्सेस था, लेकिन यह अंत नहीं, शुरुआत है।” उन्होंने कहा कि अब भारत को 40-50 प्रशिक्षित एस्ट्रोनॉट्स की जरूरत है। “1984 में राकेश शर्मा सर को देखकर भी मेरे मन में एस्ट्रोनॉट बनने का सपना नहीं था, क्योंकि कोई प्रोग्राम नहीं था। लेकिन आज के बच्चे पूछ रहे हैं – मैं कैसे एस्ट्रोनॉट बन सकता हूं? यही असली सफलता है सर।”

बातचीत में यह भी सामने आया कि भारत के पास अब न सिर्फ तकनीकी क्षमता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व करने की स्थिति भी है। प्रधानमंत्री ने कहा, “हम आत्मनिर्भर बनें और अपनी मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ाएं। स्पेस स्टेशन भी भारत के नेतृत्व में बने, यही लक्ष्य होना चाहिए।” शुक्ला ने सहमति जताते हुए कहा, “सर, पूरी दुनिया देख रही है कि चंद्रयान-2 के बाद भी हम नहीं रुके। चंद्रयान-3 सफल हुआ। अब हम एक वैश्विक नेता बन सकते हैं।”

शुक्ला ने बताया कि उन्होंने स्पेस से भारत की तस्वीरें लेने की कोशिश की। “सर, जब भारत नजर आता था – हैदराबाद, हिमालय, बिजली की चमक… तो वो दृश्य देखना एक भावनात्मक अनुभव था।” यह बातचीत केवल तकनीकी अनुभवों की चर्चा नहीं थी, बल्कि यह भारत के वैज्ञानिक आत्मविश्वास, युवाओं की आकांक्षा और एक नए युग के आरंभ की घोषणा थी। शुक्ला ने कहा – “मुझे मौका मिला देश का प्रतिनिधित्व करने का, अब मेरी जिम्मेदारी है कि और लोगों को यहां तक लाऊं।” प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा – “आपका अनुभव भारत के भविष्य के लिए मार्गदर्शक बनेगा।”

देखिए बातचीत का वीडियो-

Leave a Reply