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PM MODI और RSS एक-दूसरे के पूरक, इस ‘मोदी युग’ में ही हुआ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सबसे ज्यादा विस्तार

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पीएम नरेन्द्र मोदी ने नागपुर में आरएसएस मुख्यालय पहुंचकर यह साफ संदेश देने का काम किया है कि संघ और बीजेपी एक-दूसरे के पूरक हैं। पीएम मोदी ने यह शीशे की तरह साफ कर दिया कि बीजेपी और आरएसएस के बीच में लेशमात्र भी दरार नहीं है, बल्कि इन दोनों के बीच तो एक बहुत गहरा वैचारिक और मजबूत राजनीतिक गठबंधन है। संघ जहां वैचारिकी प्रदान करने के लिए मंथन करता है तो बीजेपी उस विचार को कार्यान्वित करने का काम करती है। ‘मोदी युग’ में यह पूरकता और परस्पर स्वीकार्यता बहुत तेजी से बढ़ी है। यह इससे भी साबित होता है कि ‘मोदी इरा’ में ही आरएसएस की शाखाओं से लेकर उनके साप्ताहिक मिलन और मासिक मंडलियों में आशातीत वृद्धि हुई है। पिछले एक दशक में संघ शाखाओं की संख्या तो करीब-करीब दोगुनी हो गई है। पीएम मोदी ने संघ के दफ्तर पहुंचकर उसको भारत की अमर संस्‍कृति का ‘वटवृक्ष’ बताकर संघ और बीजेपी के बीच अटल संबंधों का प्रभावी संदेश दिया। उन्होंने रेखांकित किया कि राष्ट्र इस वर्ष संविधान की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है और आरएसएस अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे करने जा कर रहा है। यानी पीएम मोदी ने राष्‍ट्र निर्माण के लिए विजन को शेयर करते हुए संघ और बीजेपी के भविष्‍य की राह पर एक सुर में कदमताल को लेकर उद्घोष कर दिया है।

मोदी-भागवत मिलकर साकार करेंगे मिशन 2029 की साझा रणनीति
वहीं पीएम मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मिलकर मिशन 2029 के लिए अपनी रणनीति को साकार रूप देने की दिशा में काम शुरू कर दिया है। कई राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, बीजेपी और आरएसएस के बीच बढ़ती नजदीकी के साथ 2029 के चुनावों के लिए रणनीतियों पर चर्चा भी तेज हो गई है। मोदी ने अपने भाषण में एक दृढ़ संकेत दिया कि आरएसएस के कार्यकर्ता से लेकर राजनीति में असरदार नेता बनने का सफर भारतीय राजनीति के भविष्य के लिए अहम है। उनकी यह बातें 2029 के चुनावों को लेकर दोनों संगठनों के साझा लक्ष्य की ओर इशारा करती हैं। बीजेपी की तरफ से यह संकेत दिए गए हैं कि पार्टी अपनी भविष्य की योजनाओं में आरएसएस के विचारों और दिशानिर्देशों को और ज्यादा महत्व देगी। इन दोनों संगठनों के बीच का गठबंधन आने वाले चुनावों में उनके लिए एक मजबूत आधार साबित हो सकता है, खासकर जब बात राज्यों की विधानसभा चुनावों की हो।

पीएम मोदी पर संघ प्रमुख के पिता मधुकर भागवत का भी प्रभाव
पीएम मोदी के संघ प्रमुख मोहन भागवत से हमेशा अच्छे रिश्ते रहे हैं। इसकी वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी यह मानते रहे हैं उनके जीवन पर मोहन भागवत के पिता मधुकर भागवत का बड़ा प्रभाव रहा। जब वह गुजरात के सीएम थे, तब उन्होंने एक ‘ज्योति पुंज’ किताब लिखी थी। इस किताब में उन्होंने संघ के उन प्रचारकों का जिक्र किया है। जिन्होंने गुजरात में काम करते हुए उनके जीवन पर प्रभाव डाला। इस किताब के विमोचन पर संघ प्रमुख खुद मौजूद रहे थे। बीजेपी के नए अध्यक्ष के ऐलान से पहले और जब बीजेपी में कई फैसले लंबित पड़े हैं तब पीएम मोदी का नागपुर दौरा काफी अहम माना जा रहा है। इस दौरे में अलग अंदाज में दिखे पीएम मोदी ने रेशम बाग में स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के केशव कुंज में करीब 14 साल बाद कदम रखा। उन्होंने संघ संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और दूसरे संघ प्रमुख श्रद्धेय माधवराव सदाशिवराव गोवलकर ‘गुरुजी’ को पुष्पांजलि अर्पित की। इस मौके पर उन्होंने भावुक संदेश भी लिखा। पीएम मोदी की इस मौके पर मौजूदा संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ गर्मजोशी भी दिखी।

मोदी इरा में ही संघ का कद बढ़ा और व्यापक विस्तार हुआ
दरअसल, पीएम मोदी और आरएसएस एक दूसरे के पूरक हैं। संघ और बीजेपी के रिश्तों पर नजर रखने वाले एक जानकार कहते हैं कि पीएम मोदी नागपुर के दौरे में एक स्वयंसेवक, प्रचारक के रूप में भी दिखे। उन्होंने अपने लिखित संदेश में संस्थापकों को कृतज्ञतापूर्वक याद किया। आंकड़ों में बात करें तो मोदी इरा में सबसे ज्यादा हुआ संघ का विस्तार है। पीएम मोदी के पहले कार्यकाल की कैबिनेट में बीजेपी से आने वाले 66 और संघ पृष्ठभूमि वाले 41 मंत्री थे। दूसरे कार्यकाल में क्रमश: 53 व 38 और अब तीसरे कार्यकाल में बढ़कर 57 और 42 हो गए हैं। इतना ही नहीं आरएसएस का जमीन स्तर पर भी व्यापक विस्तार हुआ है।
साल            शाखा     शाखा स्थल साप्ताहिक मिलन मासिक मंडली
2013-14   44982  29624       10146          7387
2024-25   83129  51710       32142        12091
प्रतिशत वृद्धि 85%     75%         216%         64%
                   (सोर्स – सरकार्यवाह प्रतिवेदन 2014 और 2025)
संघ अनुशासन में तपे स्वयंसेवकों और प्रचारकों का बीजेपी में प्रवेश
पीएम मोदी के इस नागपुर दौरे के बाद बीजेपी और आरएसएस की यह नई राजनीतिक एकजुटता आगामी विधानसभा चुनावों में देखने को मिलेगी। आगामी विधानसभा चुनावों में इस सामूहिक रणनीति का असर साफ दिखेगा। राजनीति के जानकार कहते हैं कि आप देखिए पीएम मोदी गुजरात के जिस वडोदरा में खुद प्रचारक रहे। वहां पर बीजेपी ने 44 पदाधिकारियों की बजाय एक स्वयंसेवक संघ में काम करने वाले डॉ. जयप्रकाश सोनी को मौका दिया है। उन्हें शहर अध्यक्ष बनाया है। गुजरात में बीजेपी ने कुल घोषित 35 शहर और जिला अध्यक्षों में 22 का जुड़ाव संघ, विहिप, बजरंग दल और एबीवीपी से है। ऐसे में उम्मीद है कि आने वाले दिनों में संघ की भट्‌ठी में तपे स्वयंसेवकों और प्रचारकों का बीजेपी में प्रवेश हो सकता है।

संघ-मोदी गठजोड़ आगामी विधानसभा चुनावों के लिए अहम कदम
आरएसएस का शताब्दी वर्ष समारोह और बीजेपी की कार्यकारिणी बैठक आने वाले दिनों में महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। इन दोनों आयोजनों में इस बात की उम्मीद जताई जा रही है कि बीजेपी और आरएसएस अपने संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए साझा योजनाओं पर काम करेंगे। बेंगलुरु में होने वाली कार्यकारिणी बैठक में नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का ऐलान भी इस रणनीतिक कदम का हिस्सा हो सकता है, जो 2029 के चुनावों में पार्टी की प्रचंड जीत को सुनिश्चित करेगा। क्योंकि बीजेपी और आरएसएस के बीच का यह नया गठजोड़ सिर्फ विधानसभा चुनावों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह 2029 की चुनावी रणनीति को मजबूत बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। दोनों संगठनों के बढ़ते रिश्ते और साझी रणनीति से यह साफ होता है कि भारतीय राजनीति में उनके सहयोग की भूमिका आने वाले समय में और भी महत्वपूर्ण होगी। 2029 तक यह गठबंधन भारतीय राजनीति को एक नए विजन के साथ नई दिशा देने में सक्षम हो सकता है।इस साल संघ का शताब्‍दी वर्ष, उसे भी बीजेपी की जरूरत
ऐसा नहीं कि सिर्फ बीजेपी को ही संघ की जरूरत है। संघ के मामले में भी ये बात लागू होती है। इस साल संघ अपनी स्‍थापना के 100वें वर्ष को पूरे करने जा रहा है। उसके लिए भी संदेश देने का वक्‍त है कि संघ ने राष्‍ट्रीय पुनर्निर्माण के एक आंदोलन के रूप में शुरुआत करके उपेक्षा से जिज्ञासा और स्वीकार्यता की यात्रा पूर्ण की है। उसकी वैचारिक धारा आज सत्‍ता के शिखर तक काबिज है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा भी है कि पिछले 100 वर्षों में आरएसएस के अपने संगठन के साथ की गई ‘तपस्या’ का फल मिल रहा है, क्योंकि देश 2047 में ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य के करीब पहुंच रहा है। उन्होंने कहा कि 1925-47 का समय संकट का समय था, क्योंकि देश आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था और अब 100 वर्षों के बाद आरएसएस एक और मील के पत्थर की ओर अग्रसर है। मोदी ने कहा कि 2025 से 2047 तक का समय महत्वपूर्ण है, क्योंकि हमारे सामने बड़े लक्ष्य हैं। हमें अगले 1,000 साल के मजबूत और विकसित भारत की आधारशिला रखनी है।

मोदी सरकार ने ही सरकारी कर्मचारियों का संघ से जुड़ने का मार्ग प्रशस्त किया
संघ से मन-प्राण से जुड़े पीएम मोदी ने ही सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को सीधे तौर पर संघ से जुड़ने और उसके लिए काम करने का मार्ग प्रशस्त किया था। दरअसल, 30 नवबंर 1966 को इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान गृह मंत्रालय ने एक आदेश जारी किया था-‘कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी पॉलिटिकल पार्टी या किसी ऐसे ऑर्गनाइजेशन से नहीं जुड़ सकता जो राजनीति करता हो।’ इस आदेश में जानबूझकर बाकायदा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जमात-ए-इस्लामी का नाम लिखा गया था। ताकि आरएसएस की विचारधारा वाले सरकारी कर्मचारियों को इससे जुड़ी गतिविधियों में भाग लेने से रोका जा सके। इन संगठनों से सरकारी कर्मचारियों के संबंध होने पर सिविल कंडक्ट रूल्स के तहत कार्रवाई होने की बात की गई। 25 जुलाई 1970 और 28 अक्टूबर 1980 को भी इंदिरा सरकार ने ऐसा ही आदेश जारी किया और अपनी बात दोहराई। प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने इन आदेशों की समीक्षा कर उनसे संघ का नाम हटा दिया। इसके लिए डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल एंड ट्रेनिंग यानी DOPT ने एक सर्कुलर जारी किया। इसके साथ ही सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को सीधे तौर पर संघ से जुड़ने और उसके लिए काम करने का मार्ग प्रशस्त हो गया।

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