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Exposed: भारत-पाक वार के बीच वामपंथी प्रोपेगेंडा पोर्टल ‘The Wire’ को पोल खुलने से लगा बड़ा झटका!

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पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर के बाद केंद्र सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने एक बड़ा फैसला लिया। इसके तहत पाकिस्तान में बने और पाकिस्तान को फेवर करने वाले सभी कंटेंट, वेब सीरीज, फिल्में, पॉडकास्ट और गानों को भारत में चलने वाले सभी ओटीटी और मीडिया स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स पर बैन कर दिया गया। यह फैसला भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच आया, जो 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद और गहरा गया था। इस कदम को मोदी सरकार की आतंकवाद के खिलाफ जीरो-टॉलरेंस नीति माना जा रहा है। इस सिलसिले में उठाया गया यह कोई इकलौता कदम नहीं है। कुछ दिन पहले ही भारत सरकार ने पाकिस्तानी डिजिटल मौजूदगी पर सख्ती की थी। करीब 16 यूट्यूब चैनल, कई सेलेब्रिटीज के इंस्टाग्राम अकाउंट्स को बैन किया गया। इसके अलावा भारत सरकार ने वामपंथी मीडिया आउटलेट ‘द वायर’ पर भारत विरोधी रिपोर्टिंग के चलते प्रतिबंध लगा दिया है। ‘द वायर’ ने अपने बयान में कहा है कि प्रेस की आजादी की गारंटी का खुला उल्लंघन करते हुए उसे पूरे भारत में ब्लॉक कर दिया है। इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स का कहना है कि ‘द वायर’ को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के आदेश के तहत आईटी एक्ट-2000 के आधार पर ब्लॉक किया गया है।

 

खुद को पीड़ित दिखाकर सरकार पर दबाव बनाने की वायर की रणनीति
यह अलग बात है कि कई यूजर्स के मुताबिक द वायर वेबसाइट अब भी असेसेबल है। दरअसल, यह ‘द वायर’ की यह पुरानी रणनीति मानी जा रही है, जिसमें वह खुद को बेवजह पीड़ित दिखाकर सरकार पर दबाव बनाना चाहती है और नीतियों को बदलवाने की कोशिश करती है। एक्स प्लेटफार्म पर एक थ्रेड ने द वायर की रणनीति, सुनियोजित प्लानिंग और भारत विरोधी मंशा की पोल खोलकर रख दी है। विजय पटेल नाम के इस अकाउंट के थ्रेड में कहा गया है कि भारत सरकार ने वामपंथी मीडिया आउटलेट ‘द वायर’ पर भारत विरोधी रिपोर्टिंग के चलते प्रतिबंध लगा दिया है अब #TheWire कोर्ट जा सकता है। द वायर को यहां से मदद मिलने की पूरी संभावना है। मदद क्यों और किस प्रकार मिलेगी, इसको थ्रेड के माध्यम से विस्तार से समझाया गया है। इसके साथ ही इस थ्रेड के जरिए वायर गैंग की कारस्तानियों की पोल भी खोली गई है।

आइए, विजय पटेल (@vijaygajera) के एक लंबे थ्रेड के माध्यम से द वायर के खेल, चालाकियों और प्रो-वामपंथी कनेक्शनों को समझने की कोशिश करते हैं…

थ्रेड 2 – इस थ्रेड की शुरुआत करते हैं #Bastar फिल्म के इस ट्रेलर से इसमें दिखाया गया है कि 2010 में माओवादियों ने कैसे हमारे 76 सीआरपीएफ जवानों की हत्या की और कैसे जेएनयू में इसका जश्न मनाया गया था।

थ्रेड 3 – साल 2006 में कांग्रेस नेता और आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा ने सलवा जुडूम आंदोलन की शुरुआत की थी इस आंदोलन में स्थानीय लोगों को नक्सलियों से लड़ने के लिए राज्य सरकार की ओर से प्रशिक्षण और सहयोग दिया गया था।

थ्रेड 4 – साल 2007 में नंदिनी सुंदर ने सुप्रीम कोर्ट में एक PIL दाखिल की, जिसमें सलवा जुडूम पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई। यह तब हुआ जबकि यह आंदोलन माओवादियों को कड़ी टक्कर दे रहा था। इस PIL में कोलिन गोंसाल्वेस को नंदिनी सुंदर ने अपना वकील बनाया था।

थ्रेड 5 – क्या आप जानते हैं कि नंदिनी सुंदर कौन हैं? दरअसल, वो दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं और सिद्धार्थ वरदराजन की पत्नी हैं। अब आपका अगला सवाल होगा कि सिद्धार्थ वरदराजन कौन है ? सिद्धार्थ ही वामपंथी और हिंदू-विरोधी प्रोपेगेंडा वेबसाइट ‘द वायर’ का संस्थापक है। सरकार ने इस तरह की वेबसाइटों को प्रतिबंधित कर दिया है। आगे का थ्रेड आपके लिए चौंकाने वाला होगा।

थ्रेड 6 – शायद आपको पता होगा कि 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने सलवा जुडूम पर प्रतिबंध लगा दिया था। जो नक्सलियों के खिलाफ जमीनी स्तर पर लड़ाई लड़ रहा था। इसके सिर्फ दो साल बाद 2013 में नक्सलियों ने सलवा जुडूम के संस्थापक और आदिवासी महेंद्र कर्मा की हत्या कर दी थी। उन्हें निर्दयतापूर्वक 78 बार चाकूओं से गोदा गया। हां, पूरे 78 बार नक्सलियों द्वारा की गई यह क्रूरता देश को झकझोर देने वाली थी।

थ्रेड 7 – इसके बाद 2016 में नंदिनी सुंदर ने कम्युनिस्ट नेता संजय पराटे के साथ बस्तर का दौरा किया। उसने अपनी असली पहचान छुपाने के लिए फर्जी नाम “ऋचा केशव” का इस्तेमाल किया इस दौरान गांव के लोगों ने शिकायत की कि नंदिनी सुंदर ने उन्हें नक्सलियों का समर्थन करने और सरकार के खिलाफ भड़काया था और धमकी दी।

थ्रेड 8 – नंदिनी सुंदर और उनके साथियों पर हत्या के आरोप लगे थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में एक अजीबोगरीब खेल हो गया। दरअसल, ऐन मौके पर जिस व्यक्ति की हत्या हुई थी, उसकी की पत्नी ने ही कोर्ट में बयान बदल दिया। यह खेल किसने और कैसे खेला यह तो उजागर नहीं हुआ, लेकि इस आधार पर नंदिनी सुंदर को इस मामले में क्लीन चिट मिल गई।

10. Nandini Sundar’s parents were IAS officers of the 1963 batch, Pushpa Sundar and Sanjivi Sundar. They took early retirement after serving a few years. pic.twitter.com/MtYlwgIHo1

— Vijay Patel (@vijaygajera) May 9, 2025

थ्रेड 10 – अब मैं आपको बताऊंगा कि नंदिनी इतनी शक्तिशाली क्यों है। इसके साथ ही उद्योगपति इन लोगों को कैसे धन उपलब्ध कराते हैं। आगे जो जानकारी आपको और ज्यादा चौंकाने वाली है। दरअसल, नंदिनी सुंदर के माता-पिता पुष्पा सुंदर और संजीवी सुंदर 1963 बैच के IAS अधिकारी थे। उन्होंने कुछ वर्षों की नौकरी के बाद समय पूर्व सेवानिवृत्ति ले ली थी।

थ्रेड 11 – पुष्पा सुंदर ने फोर्ड फाउंडेशन में प्रोग्राम ऑफिसर के रूप में शामिल होकर फोर्ड फाउंडेशन और टाटा के समर्थन से एनएफआई की स्थापना की। एनएफआई हिंदू-विरोधी समूहों का समर्थन करता है। हम आपको NFI को लेकर आगे जरूरी और शॉकिंग जानकारी देने वाले हैं।

थ्रेड 13 – बहुत कम लोग जानते हैं कि रतन टाटा 1994 से 2006 तक फोर्ड फाउंडेशन के ट्रस्टी थे। रतन टाटा ने पुष्पा सुंदर की पुस्तक के लिए प्रस्तावना भी लिखी है।

थ्रेड 14 – नारायण मूर्ति 2008 से 2014 तक फोर्ड फाउंडेशन के एक अन्य ट्रस्टी थे। दिलचस्प बात यह है कि नंदिनी सुंदर को 2010 में इन्फोसिस पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

थ्रेड 15 – इससे पहले 1996 में, पुष्पा सुंदर ने एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) सम्प्रदान इंडियन सेंटर फॉर फिलैंथ्रोपी की शुरुआत की। दिलचस्प बात यह है कि इसे भी टाटा और फोर्ड फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित किया गया है अर्थात फंड किया गया है।

थ्रेड 16 – यह भी कोई कम दिलचस्प बात नहीं है कि आईएएल संजीवी सुंदर, जो नंदिनी सुंदर के पिता और पुष्पा सुंदर के पति हैं, ने भी टाटा की गैर-लाभकारी संस्था, टेरी (TERI) के लिए काम किया था।

थ्रेड 17 – जब पुष्पा सुंदर के दामाद और नंदिनी सुंदर के पति सिद्धार्थ वरदराजन ने ‘द वायर’ शुरू किया, तब टाटा ने 1.64 करोड़, नारायण मूर्ति ने एक करोड़, इन्फोसिस के एक अन्य संस्थापक नीलकेणि, जो आईपीएसएमएफ के प्रमुख थे, ने 12.2 करोड़ रुपये दिए थे।

थ्रेड 18- यह भी हैरान करने वाला तथ्य है कि इनपर आतंकवादियों का भी समर्थन करने के आरोप लगे हैं। दरअसल, यह साक्ष्य है कि उन्होंने (सुंदर गैंग ने) आतंकी याकूब मेमन और अफजल गुरु की दया याचिकाओं पर हस्ताक्षर किए हैं।

थ्रेड 19- अब, आइए सिद्धार्थ वरदराजन की बात कर लेते हैं। वे द वायर के संस्थापक हैं और आईएएस अधिकारी मुथुसामी वरदराजन के बेटे हैं। उल्लेखनीय है कि मुथुसामी वरदराजन ने 1979 से 1983 तक लंदन में भारतीय उच्चायोग में मंत्री के रूप में कार्य किया था।

थ्रेड 20 – दिलचस्प तथ्य यह भी है कि मुथुसामी वरदराजन, ओमबालापदी अप्पासामी मुथुसामी के बेटे थे। वे ब्रिटिश शासन के अधीन एक उच्च-स्तरीय पुलिस अधिकारी थे।

थ्रेड 21- आजादी के कुछ साल बाद 1959 में सिद्धार्थ वरदराजन के पिता पर यह आरोप लगा कि उन्होंने एक भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दिया था। जिसने उनके वाहन में आग लगा दी गई थी इसके परिणामस्वरूप दो लोगों की मृत्यु हुई और कई लोग घायल हुए, लेकिन अपने वरिष्ठों के समर्थन के कारण उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।

थ्रेड 22 – हैरान कर देने वाली बात यह भी है कि कई IAS अधिकारी और अन्य प्रभावशाली लोग गर्भवती महिलाओं को अमेरिका भेजा करते थे। नियमों के अनुसार अमेरिका के अस्पताल में जन्मा नवजात शिशु अमेरिकी नागरिकता प्राप्त करता है। सिद्धार्थ को इसी रास्ते से अमेरिका की नागरिकता मिली है। उनके बड़े भाई टुंकु वरदराजन, जिन्हें पतंजलि वरदराजन के नाम से भी जाना जाता है, के पास ब्रिटिश नागरिकता है।

 

 

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