अमरीकी ट्रंप टैरिफ को बेअसर करने के लिए पीएम मोदी के दिशा-निर्देशन में सरकार पूरी तरह एक्शन मोड आ गई है। वाणिज्य मंत्रालय ने करीब 25,000 करोड़ रुपए का एक्सपोर्ट प्रमोशन स्कीम तैयार किए हैं। इसके लागू होने के बाद हाई यूएस टैरिफ से पैदा हुई अनिश्चितताओं का पुरजोर मुकाबला किया जा सकेगा। कॉमर्स मंत्रालय ने यह प्रस्ताव वित्त मंत्रालय हो मंजूरी के लिए भेज दिया है। वित्त मंत्रालय भी इस पर सिद्धांत: सहमत है। एक्सपोर्ट सपोर्ट मिशन की ये स्कीमें कैबिनेट की स्वीकृति के बाद लागू की जाएंगी। रिपोर्ट के मुताबिक, एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन के अंतर्गत तैयार की इन स्कीमों में विश्व व्यापार साठन (डब्ल्यूटीओ) के सुझाव भी शामिल होंगे। जिनका ध्यान ट्रेड फाइनेंस और एक्सपोर्टर्स के लिए मार्केट एक्सेस को आसान बनाने पर होगा।
भविष्य में जोखिमों को कम करने के लिए एक्सपोर्ट बॉस्केट को विस्तार
भारत सरकार ने कहा है कि यह एक्सपोर्ट सपोर्ट मिशन उन चुनौतियों का समाधान करता है जो टैरिफ और ट्रेड-वार से जुड़ी अनिश्चितताओं तक ही सीमित नहीं है। यह टैरिफ से कहीं आगे जाता है। एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि हम दीर्घकालीन रणनीति पर काम कर रहे हैं। सरकार भविष्य में जोखिमों को कम करने के लिए एक्सपोर्ट बॉस्केट को विस्तार देना चाहती है और अफ्रीका-लैटिन उमरीका में नए बाजार खोज रही है।
ऊंचे टैरिफ लागू होने के बावजूद शेयर बाजार मोटे तौर पर बेअसर
दूसरी ओर अमेरिका में भारतीय प्रोडक्ट्स पर ऊंचा टैरिफ लागू होने के बावजूद शेयर बाजार मोटे तौर पर बेअसर रहा है। 2025 में अब तक बेंचमार्क इंडेक्स सेंसेक्स और निफ्टी 3 प्रतिशत से ज्यादा चढ़े हैं। निफ्टी ने अपने 100-दिन के ईएमए को बनाए रखा है। इस बीच रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ग्लोबल ने कहा है कि अमेरिकी टैरिफ से भारत की आर्थिक तरक्की प्रभावित नहीं होगी, क्योंकि यह निर्यात आधारित इकोनॉमी नहीं है। ज्यादातर बड़े अंतरराष्ट्रीय और घरेलू ब्रोकरेज फर्म्स और विश्लेषकों का मानना है कि अब सेंसेक्स और निफ्टी की तेजी जारी रह सकती है।
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1.जुलाई-सितंबर में कंपनियों की आय बढ़ने की ठोस वजहें
सालभर से भारतीय बाजार को दबाव में रखने रखने वाली सबसे बड़ी चुनौती कंपनियों की आय रही है। आईटी और बैंक जैसे सेक्टरों के नतीजे अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं आए। लेकिन ये बाजार के बढ़े हुए वैल्युएशन को वाजिब ठहराने में सफल रहे। इसलिए अब जुलाई-सितंबर तिमाही से कंपनियों की आय बढ़ने की उम्मीद है।
2. ट्रम्प के चलते तेज आर्थिक सुधार पर सरकार का फोकस
ट्रंप टैरिफ प्रकरण के बाद सरकार साहसिक सुधारों की दिशा में कदम बढ़ा रही है। सरकार के निरंतर चल रहे उपायों में इन्फ्रा और मैन्युफैक्चरिंग प्रोजेक्ट्स पर जोर है। घरेलू मांग को बढ़ावा देने के चौतरफा उपाय किए जा रहे हैं। ब्रिटेन जैसे प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) हुए हैं।
3. रूस-यूक्रेन थमने से भारत की राह और आसान होगी
भारत की सबसे बड़ी ताकत घरेलू खपत है। लेकिन कोई भी देश अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीतिक घटनाक्रम से अछूता नहीं रह सकता। अब रूस-यूक्रेन युद्ध की समाप्ति करीब आ रही है। मध्य-पूर्व में तनाव भी कम हो रहा है। यह स्थिति भारत के अनुकूल टैरिफ की राह निकालेगी।
4. भारत में मजबूत विदेशी पूंजी आने की ठोस वजहें मौजूद
खास तौर पर कोविड महामारी के बाद भारतीय शेयर बाजार में रिटेल निवेशकों का दबदबा बढ़ा है। ऐसे में विदेशी संस्थागत निवेशक के आने-जाने का असर कम हो गया। हाल के महीनों में इसके ठोस संकेत नजर भी आए हैं। वैल्युएशन के संतुलित होने पर विदेशी निवेशक भी वापसी तय है।
5. जुलाई में कारों की बिक्री स्थिर, स्कूटरों की 16 प्रतिशत बढ़ी
जुलाई में कारों की थोक बिक्री लगभग स्थिर रही। कंपनियों ने डीलरों को 3,40,772 कारों की सप्लाई की। इसके मुकाबले जून में डीलरों को 3,41,510 कारें डिस्पैच की गई थी। सियाम के मुताबिक, बीते माह दोपहिया की बिक्री 8.7 प्रतिशत बढ़कर 15.7 लाख हो गई। स्कूटरों की बिक्री में 16 प्रतिशत से ज्यादा इजाफा हुआ।
6. कम महंगाई, सस्ते लोन से भारत में बढ़ेगी घरेलू खपत
इस बात की गुंजाइश बढ़ी है कि रिजर्व बैंक क्रेडिट पॉलिसी और ढीली कर सकता है। इससे पहले ही उसने रेपो रेट एक प्रतिशत घटा दिया है। इससे रियल एस्टेट, ऑटोमोबाइल जैसे सेक्टरों में मांग बढ़ सकती है। इससे इकोनॉमी को बूस्ट मिलेगा।
एमएसएमई निर्यातकों को बिना गिरवी के लोन देने जैसी सुविधा मिलेगी
निर्यात प्रोत्साहन के लिए निर्यात ऋण विकास स्कीम, ई-कामर्स एक्सपोर्ट क्रेडिट कार्ड, फोकस्ड मार्केट इंसेंटिव स्कीम, एमएसएमई निर्यातकों को बिना गिरवी के लोन देने जैसी सुविधा दी जा सकती है। वैश्विक बाजार के साथ अमरीका में भारत का मुकाबला चीन, वियतनाम, इंडोनेशिया, कंबोडिया, ताइवान, जापान, दक्षिण कोरिया जैसे देशों से हैं, जहां भारत की तुलना में निर्यातकों को कम ब्याज दर पर लोन मिलता है। यहां नीतिगत ब्याज दरें 3 प्रतिशत से भी कम है। ऐसे में भारतीय निर्यातकों की लागत कम करने के लिए उन्हें भी कम ब्याज दर पर लोन देने की विशेष व्यवस्था बनाई जा सकती है। इस व्यवस्था का नाम निर्यात ऋण विकास दिया जा सकता है। नेशनल मैन्यूफैक्चरिंग मिशन में ऑटो कंपोनेंट और लेदर समेत करीब 15 सेक्टरों पर फोकस होगा। सूत्रों के मुताबिक, इस मिशन के तहत क्लीन टेक्नोलॉजी वाले सेक्टर पर विशेष जोर होगा। इसमें सोलर पीवी सेल, ईवी बैटरी, विंड टर्बाइन, ट्रांसमिशन इक्विपमेंट आदि का घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर फोकस होगा। इस मिशन के तहत सरकार इन सेक्टर्स को इंफ्रा जैसी बुनियादी सुविधा देगी। इसमें टेक्नोलॉजी. क्वालिटी प्रोडक्ट, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और स्किल डवलपमेंट को बढ़ावा देने पर फोकस होगा।
क्या है भारत का प्लान, नई स्कीम में क्या होगा?
वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए भारत सरकार सक्रिय हो गई है। बिज़नेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने 25,000 करोड़ रुपये की एक समर्थन योजना तैयार की है, जो छह साल की अवधि में लागू होगी। यह प्रस्ताव वित्त मंत्रालय को भेजा जा चुका है और मंजूरी मिलने के बाद कैबिनेट की स्वीकृति के लिए रखा जाएगा। नई योजना के तहत छोटे निर्यातकों को कोलैटरल-फ्री लोन की सुविधा दी जाएगी। इसके अलावा, उच्च जोखिम वाले बाज़ारों में निर्यात करने वालों को विशेष सहायता मिलेगी और क्रॉस-बॉर्डर फैक्टरिंग जैसे वैकल्पिक वित्तीय साधनों को भी बढ़ावा दिया जाएगा। निर्यातकों का मानना है कि सरकार को जल्द से जल्द ठोस कदम उठाएगी, ताकि अमेरिकी टैरिफ के असर को कम किया जा सके और भारत के निर्यात को सुरक्षित रखा जा सके।