बहुजन समाज पार्टी के ट्विटर हैंडल से विपक्षी एकता को लेकर एक तस्वीर पोस्ट किए जाने के बाद देश और यूपी की राजनीति में भूचाल आ गया। शोर मचा कि बुआ-बबुआ साथ-साथ हैं। लेकिन अगले कुछ घंटों में ही इस सियासी शिगूफे की हवा निकल गई। बसपा नेता सतीश चंद्र मिश्र ने इस ट्वीट से ये कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि पार्टी कोई ट्विटर अकाउंट नहीं चलाती है। बहरहाल पोस्टर जारी होने से लेकर सफाई जारी होने तक जो हुआ वह उस राजनीति को एक्सपोज कर गया जिसमें विपक्ष की एकता को बार-बार मजबूत दिखाने का प्रयास तो किया जा रहा है लेकिन जमीन पर इसकी बुनियाद खोखली है।
माया ने विपक्षी ‘एकता’ पर फेरा पानी
बीएसपी के ट्विटर अकाउंट @bspup2017 पर जारी इस पोस्टर में लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव, शरद यादव, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और सोनिया गांधी की तस्वीरें हैं। दरअसल 27 अगस्त को लालू यादव की पार्टी राजद की पटना में रैली होने जा रही है। उसी कड़ी में विपक्षी एकजुटता को दिखाते हुए यह पोस्टर जारी किया गया था। उसको तेजस्वी यादव जैसे राजद नेताओं ने रिट्वीट भी किया था। अब इस पोस्टर को बसपा ने फर्जी करार दिया है। जाहिर है बीएसपी के इस इनकार से विपक्षी दलों को एक करने के प्रयासों पर पानी फिरता नजर आ रहा है।
लालू के ऑफर को माया का ‘झटका’
भ्रष्टाचार मामले में सजायाफ्ता लालू प्रसाद हर स्तर पर मोदी सरकार का विरोध करते हैं। मायावती ने 18 जुलाई को जब राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया तो उन्होंने नया दांव खेला। लालू ने पहले तो उन्हें बिहार से राज्यसभा भेजने का ऑफर दिया था। फिर पटना में आयोजित होने वाली 27 अगस्त की रैली में मायावती को आमंत्रित किया। इस आड़ में वह दलित कार्ड खेलकर आगामी चुनाव की तैयारी करना चाह रहे थे। लेकिन मायावती ने लालू की पटना रैली में जाने से इन्कार कर दिया है। जाहिर है इससे लालू प्रसाद यादव की मोदी विरोध की मुहिम को बड़ा झटका लगा है।
बुआ-बबुआ का साथ आना मुश्किल !
2017 के विधानसभा चुनाव में सपा और बसपा को मिली शर्मनाक हार के बाद से ही इस बात की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी कि आने वाले दिनों में बुआ और बबुआ एक साथ आ सकते हैं। बीएसपी के ट्विटर की इस तस्वीर में मायावती और अखिलेश एक साथ नजर आ रहे हैं। लेकिन माया और मुलायम के रिश्तों की तल्खी जगजाहिर है। यूपी में सपा और बसपा मिलकर 1993 में चुनाव लड़ चुकी हैं और बीजेपी को हरा भी चुकी हैं, पर गेस्ट हाउस कांड में अपने ऊपर हुए हमले को मायावती, मुलायम सिंह की साजिश करार देती हैं और उस घटना का जिक्र करते हुए माया आज भी आगबबूला हो जाती हैं। ऐसे में नहीं लगता है कि माया-अखिलेश साथ-साथ आएंगे।

सोनिया की मीटिंग से ही मिले थे संकेत
2014 के बाद से लगातार चल रही मोदी लहर को नाकाम करने के लिए राट्रीय स्तर पर महागठबंधन बनाने की कोशिश कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी कर रही हैं। लेकिन विपक्षी दलों के विचारों में एका नहीं है और मोदी विरोध के नाम पर इकट्ठा हुए दलों की कोई विश्वसनीयता भी नहीं दिख रही है। 11 अगस्त को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विपक्षी दलों की मीटिंग बुलाई। इस मीटिंग के लिए न्योता तो दिया गया था 18 दलों को लेकिन शामिल हुए केवल 13 दल। स्पष्ट है कि विपक्ष का कुनबा लगातार घटता जा रहा है।
सोनिया के मंच पर बिखरी विपक्षी एकता
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कोशिश तो भरपूर की थी कि मोदी विरोध के नाम पर पूरा विपक्ष एक हो, लेकिन शरद पवार की एनसीपी ने इसका बायकॉट किया। जेडीयू के बागी शरद यादव की जगह अली अनवर शामिल हुए। इतना ही नहीं विपक्षी एकता की सबसे बड़े नामों में शामिल अखिलेश यादव और मायवती भी नहीं पहुंचे। दरअसल मोदी विरोध के नाम पर जमा हो रही इस जमात की न तो कोई नीति है और न ही कोई सिद्धांत। ऐसे में विपक्षी एकता कितनी परवान चढ़ पाएगी इस पर सवाल हैं।
विपक्ष की नीतियों में नीतीश ने ‘खोट’ देखा
नीतीश कुमार ने जब विपक्षी दलों का साथ छोड़ने का निर्णय किया को कई सवाल उठे। लेकिन जिस विपक्ष की नीतियां और सिद्धांत सिर्फ व्यक्ति विरोध हो तो नीतीश कुमार जैसे सिद्धांतवादी राजनीतिज्ञ भला अनैतिक गठबंधन का हिस्सा कब तक रहते? बिना एजेंडे के विपक्ष के साथ रहने के बजाय उन्होंने बिहार का हित देखा और विपक्ष का साथ छोड़ दिया। बीते 19 अगस्त को जनता दल युनाइटेड ने एनडीए का हिस्सा होने पर मुहर भी लगा दी है। जाहिर है नीतीश का विपक्षी खेमा छोड़ना विरोधियों के लिए बड़ा सेटबैक है।
मोदी विरोध की खोखली बुनियाद
दरअसल अहितकारी नीतियों, योजनाओं का विरोध होना लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए आवश्यक है। लेकिन विपक्षी दलों का सिर्फ मोदी विरोध के नाम पर एक होना किसी भी तरह से नीतिगत नहीं है। लेकिन मोदी विरोध का आलम यह है कि केंद्र सरकार कितनी भी अच्छी नीतियां देशहित में क्यों न बना लें, विपक्ष उसके विरोध में हो-हल्ला करता ही है। गलत नीतियों, विचारों का विरोध तो जरूरी है, लेकिन हितकारी नीतियों पर जबरदस्ती विरोध कर देशहित को नुकसान पहुंचाना समझ से परे है। सात अगस्त को जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट में लिखा था कि विपक्ष की एकता एक मिथक है और 2019 में फिर भाजपा की सरकार बनेगी।
The myth of opposition unity has been systematically shown for what it is- a chimera.It’s each 1 for themselves in 2019 & 5 more years 2 BJP https://t.co/uKb8rym8Uu
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) August 7, 2017