कनाडा में खालिस्तानियों का गेम ओवर हो गया है! दरअसल, कनाडा संसदीय चुनाव खालिस्तानियों को बहुत बड़ा झटका देने वाला और भारत के लिए अच्छी खबर लाने वाला साबित हुआ है। चुनाव में जहां एक ओर भारत विरोधी तत्वों के ‘सरदार’ और खालिस्तान समर्थक अलगाववादी नेता जगमीत सिंह को बुरी तरह हार मिली है, वहीं खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप भारत पर मढ़ने वाले पूर्व पीएम जस्टिन ट्रूडो भी सत्ता से बेदखल हो गए हैं। जगमीत सिंह ही वो नेता हैं, जिनकी वजह से पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत के साथ संबंध खराब कर लिए थे। जगमीत सिंह न्यू डेमोक्रेट्स पार्टी के नेता हैं, जो कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री ट्रूडो के गठबंधन सहयोगी थे। अपनी पार्टी की कमान आठ साल से संभाल रहे जगमीत को चुनाव हारने के बाद अपना पद छोड़ना पड़ा है। अब कनाडा आम चुनाव में भारत के समर्थक मार्क कार्नी प्रधानमंत्री चुने गए है। इसके साथ ही ना सिर्फ भारत और कनाडा के संबंधों में नई ताजगी आएगी, बल्कि कनाडा के चल रहे खालिस्तानी मूवमेंट को भी करारा झटका लगेगा।
आम चुनाव में खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह को मिली करारी हार
कनाडा की राजनीति के एक्सपर्ट्स के मुताबिक जगमीत सिंह कनाडा से सक्रिय सिख चरमपंथियों के पसंदीदा राजनेता रहे हैं और पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के साथ उनके संबंध दशकों पुराने रहे हैं। जगमीत सिंह ने भारतीय राजनयिकों को निष्कासित करने के कनाडा सरकार के फैसले का समर्थन किया था। लेकिन अब वो चुनाव हार गये हैं। कनाडा में न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) के प्रमुख जगमीत सिंह को आम चुनाव में करारी हार मिली है। इसके बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। जगमीत सिंह अपनी तीसरी जीत की उम्मीद लगाए बैठे थे, लेकिन ब्रिटिश कोलंबिया में बर्नबी सेंट्रल सीट से हार गए। उनकी टक्कर में लिबरल उम्मीदवार वेड चांग थे। सिंह को जहां करीब 27 प्रतिशत वोट मिले, वहीं चांग को 40 प्रतिशत से अधिक वोट मिले।भारत को बदनाम करने वाले ट्रूडो की भी अब सत्ता के बेदखली
आपको याद दिला दें कि जस्टिन ट्रूडो की अगुवाई वाली कनाडा की सरकार ने जगमीत सिंह के दबाब में ही खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप भारत पर मढ़ा था। पीएम की कुर्सी बचाने और चुनाव जीतने की कोशिश में भारत को बदनाम करने वाले ट्रूडो की भी अब सत्ता के बेदखली के साथ ही पोल खुल गई है। निज्जर विवाद को लेकर जस्टिन ट्रूडो की काफी आलोचना हुई थी। कनाडा में लोग उनसे इतने खफा हो गए थे कि यहां पर आम चुनाव से पहले ही उनके इस्तीफे की मांग बहुत जोर पकड़ने लगी थी। यहां तक कि उन्हें अपनी पार्टी के सांसदों का भी विरोध झेलना पड़ा। तब भारत-कनाडा में जारी कूटनीतिक विवाद के बीच कनाडा के एक लिबरल सांसद ने प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से अगले चुनाव से पहले पार्टी नेता के पद से इस्तीफा देने को कहा था। कनाडा के सांसद सीन केसी का कहना है कि देश के लोग जस्टिन ट्रूडो को अब और बर्दाश्त नहीं कर सकते। अब आम चुनाव में सीन केसी की बात सच साबित हुई है।
अलगाववादी नेता जगमीत सिंह की पार्टी ने राष्ट्रीय दर्जा भी खोया
कनाडा के संसदीय चुनाव में खालिस्तानियों को बहुत बड़ा झटका लगा है। खालिस्तान समर्थक अलगाववादी नेता जगमीत सिंह की पार्टी में बड़ी गिरावट देखी गई और वह अपना राष्ट्रीय दर्जा खोने जा रही है, जिसके लिए पार्टियों को कम से कम 12 सीटें हासिल करनी होती हैं। इसमें एनडीपी को सफलता नहीं मिल पाई। एनडीपी को केवल 7 सीटों पर ही सिमट गई है। पिछले चुनाव में एनडीपी को 24 सीटें मिली थीं। इसके समर्थन से ही जस्टिन ट्रूडो ने काफी समय तक अपनी सरकार चलाई। लिबरल पार्टी 165 सीटों के साथ सबसे आगे है, जबकि खालिस्तानी नेता जगमीत सिंह चुनाव हार गए हैं। जगमीत सिंह ही वो नेता हैं, जिनकी वजह से पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत के साथ संबंध खराब कर लिए थे। न्यू डेमोक्रेट्स पार्टी के नेता जगमीत सिंह कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री ट्रूडो के गठबंधन सहयोगी थे। चुनाव हारने के बाद उन्होंने कहा कि वह पार्टी की कमान आठ साल तक संभालने के बाद पद छोड़ रहे हैं।
भारत के खिलाफ जहर उगलता रहा है खालिस्तान समर्थक जगमीत
कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा जगमीत सिंह के ही दबाब में सितंबर 2023 में खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत की संलिप्तता के आरोप लगाए थे। इसके बाद से नई दिल्ली और ओटावा के बीच तनाव बढ़ गया था। निज्जर को कनाडा में एक सिख मंदिर के बाहर गोली मार दी गई थी। सिख समुदाय से ताल्लुक रखने वाले जगमीत सिंह भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक है। उनका जन्म पंजाब के बरनाला जिले के ठीकरिवाल गांव में हुआ था। उनका परिवार 1970 के दशक में कनाडा जाकर शिफ्ट हो गया। जगमीत सिंह भारत खिलाफ जहर उगलते रहे हैं। चाहे 1984 के सिख विरोधी दंगा हो या नागरिकता कानून। उन्होंने कनाडा में भी खालिस्तानियों का मनोबल बढ़ाया। राजनीति में आने से पहले जगमीत वकालत करते थे।कनाडा में आरएसएस पर प्रतिबंध का हिमायती था जगमीत
कनाडा की राजनीति के एक्सपर्ट्स के मुताबिक जगमीत सिंह कनाडा से सक्रिय सिख चरमपंथियों के पसंदीदा राजनेता रहे हैं और पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के साथ उनके संबंध दशकों पुराने रहे हैं। जगमीत सिंह ने भारतीय राजनयिकों को निष्कासित करने के कनाडा सरकार के फैसले का समर्थन किया था। ANI के मुताबिक उन्होंने कहा था कि “हम भारत के राजनयिकों को निष्कासित करने के आज के फैसले का समर्थन करते हैं और हम कनाडा सरकार से एक बार फिर भारत के खिलाफ राजनयिक प्रतिबंध लगाने, कनाडा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नेटवर्क (RSS) पर प्रतिबंध लगाने और कनाडा की धरती पर संगठित आपराधिक गतिविधि में भाग लेने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए सबसे गंभीर परिणाम भुगतने के लिए प्रतिबद्ध होने का आह्वान करते हैं।”भारतीय समुदाय खालिस्तानी नेताओं के खिलाफ हुआ एकजुट
आपको बता दें कि पिछले दिनों भारतीय मूल के कनाडाई उद्योगपति आदित्य झा, जिन्हें कनाडा का सर्वोच्च सम्मान मिल चुका है, उन्होंने कहा था कि इस बार भारतीय समुदाय ने खालिस्तानी नेताओं के खिलाफ एकजुट होकर वोट करने का फैसला किया है। माना जा रहा है उसी की नतीजा जगमीत सिंह की हार है। लिबरल पार्टी को चुनावी पोल में करारी हार की तरफ बढ़ते देखा जा रहा था, लेकिन जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफा देने और ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद स्थिति बदल गई। ट्रंप बार-बार कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने की धमकी दे रहे थे और उन्होंने कनाडा के ऊपर भारी भरकम टैरिफ लगाने का ऐलान कर दिया। जिसके खिलाफ कनाडाई प्रधानमंत्री मार्क कार्नी भी डटकर खड़े हो गये। उन्होंने इसे कनाडा की संप्रभुता का मामला बताया और राष्ट्रवाद की भावना के आधार पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
कनाडा में भारत समर्थक मार्क कार्नी प्रधानमंत्री चुने गए
इस जीत के साथ ही लिबरल पार्टी को लगातार चौथी बार सरकार बनाने का मौका मिल रहा है। कनाडा में हुए आम चुनाव में मार्क कार्नी प्रधानमंत्री चुने गए है। कनाडा में लिबरल पार्टी ने लगातार चौथी बार सरकार बनाने में सफलता दिलाई है। इससे पहले जनवरी में जस्टिन ट्रूडो ने अपनी लिबरल पार्टी से इस्तीफा दे दिया था और मार्क कार्नी पीएम बन गए थे। कनाडा के न्यूज चैनलों के मुताबिक प्रधानमंत्री मार्क कार्नी की लिबरल पार्टी ने कनाडा के संघीय चुनाव में जीत हासिल कर ली है। जो जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफा देने के बाद कनाडा के प्रधानमंत्री बने थे। जस्टिन ट्रूडो जब तक प्रधानमंत्री थे, उनकी लिबरल पार्टी चुनाव में बुरी तरह से हारती दिख रही थी, लेकिन मार्क कार्नी के आने के बाद पार्टी ने अपने प्रदर्शन में जबरदस्त सुधार करते हुए चुनाव जीत लिया है।
मार्क कार्नी ने कनाडा में मकान की कमी को दूर करेंगे
मार्क कार्नी ने कनाडा में मकान की कमी और बढ़ती महंगाई को स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि वो हर साल दोगुने घर बनवाएंगे जो किफ़ायती भी होंगे। इससे विनिर्माण उद्योग को भी बढ़ावा मिलेगा और महंगाई कम होगी। कार्नी ने कम आय वाले लोगों पर टैक्स का बोझ कम करने का प्रस्ताव भी रखा था, ताकि ऐसे उपभोक्ताओं को राहत मिल सके। उन्होंने कहा था कि वो कनाडा को ऊर्जा के क्षेत्र में सुपर पावर के तौर पर देखना चाहते हैं। उन्होंने अमेरिकी ऊर्जा पर कनाडा की निर्भरता को कम कर देश में ऊर्जा से जुड़े बुनियादी ढांचे को विकसित करने की बात भी कही। कार्नी ने कनाडा के रक्षा बजट को पिछले साल के मुक़ाबले बढ़ाने के साथ ही घरेलू व्यापार और ज़्यादा कार बनाने की इच्छा जताई थी। अब कनाडा में कार के ज़्यादा पुर्जे बनाए जाएंगे।
भारत और कनाडा के रिश्तों में कई स्तरों पर आएगा सुधार
इसी साल जनवरी की शुरुआत में जस्टिन ट्रूडो ने अपनी ही पार्टी से बढ़ते दबाव चलते चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। कार्नी ने जबसे कनाडा की कमान संभाली है, उन्होंने अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री की अपेक्षा भारत के साथ रिश्तों में बदलाव के संकेत दिए। पूर्व बैंकर रहे कनाडाई प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने सोमवार को भारत और कनाडा के रिश्ते को ‘बहुत अहम’ बताया था और संकेत दिया था कि अगर वह दोबारा प्रधानमंत्री बनते हैं तो दोनों देशों के रिश्तों में सुधार लाने की कोशिश करेंगे। उन्होंने कहा कि भारत और कनाडा का रिश्ता कई स्तरों पर बहुत महत्वपूर्ण है। निजी संबंधों, आर्थिक और रणनीतिक मोर्चे पर भी। बहुत से कनाडाई हैं जिनके भारत से बहुत निजी संबंध हैं। मैं अपने अनुभव से कहता हूं कि इस समय विश्व अर्थव्यवस्था जिस तरह हिली हुई है और नया आकार ले रही है, ऐसे में भारत और कनाडा जैसे देश बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
अब कनाडा में भारत विरोध और खालिस्तानी आंदोलन कमजोर होगा
विदेश मामलों के जानकार मानते हैं कि मार्क कार्नी के पीएम बनने और जगमीत सिंह के हारने के बाद कनाडा में खालिस्तानी आंदोलन कमजोर होगा। कार्नी के भारत समर्थक रवैये से कनाडा में भारत विरोधी राजनीति और खालिस्तानी आंदोलन में कमी आएगी। दरअसल, ट्रूडो खुलेआम खालिस्तानियों के समर्थन में खड़े थे। अब नई सरकार ज्यादा सख्ती से खालिस्तान समर्थकों पर काबू पा सकती है। खालिस्तानी ट्रूडो के लिए बड़ा मुद्दा रहे हैं, जिस पर वे कनाडा की स्वतंत्रता और सुरक्षा की दुहाई देकर अपने लिए एक गुट का सपोर्ट हासिल करते थे। निश्चित ही नई सरकार खालिस्तान समर्थकों को अपनी ऑप्टिक्स से दूर रखना चाहेगी और भारत से अपने संबंधों को सुधारना चाहेगी।
जगमीत को खुश करने के चक्कर में ट्रूडो ने अपने लिए खाई खोदी
पूर्व पीएम जस्टिन ट्रूडो अपने निजी राजनीतिक स्वार्थ और खालिस्तानियों को खुश करने के चक्कर में भारत-कनाडा के रिश्तों में खाई खोदने का काम खुद ही किया था। जस्टिन ने पीएम मोदी से पंगा लेने की कोशिश की, लेकिन उनकी दाल नहीं गली। अपनी तीखी आलोचनाओं के बीच जस्टिन ने खुद कबूला था कि निज्जर हत्याकांड को लेकर उनकी सरकार ने भारत को कोई ठोस सबूत नहीं दिया। बता दें कि यह कोई पहला मामला नहीं है, जबकि ट्रूडो के रवैये के चलते कनाडा को शर्मसार होना पड़ा था। इससे पहले भी कई ऐसे मामले सामने आए, जब ट्रूडो विवादों में रहे और कई बार तो उन्हें सार्वजनिक तौर पर माफी भी मांगते हुए देखा गया।
कनाडा के पूर्व पीएम ट्रूडो और विवादों का हमेशा से नाता रहा था। वे आए दिन गलतियां करते हैं और शर्मिंदा होते हैं। उनके विवादों के कुछ किस्से…
- कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो से जुड़े 5 विवादित किस्से
1. साल 2016 में जस्टिन ट्रूडो अपने अरबपति दोस्त के प्राइवेट आइलैंड पर छुट्टियां मनाने की वजह से विवादों में फंस गए थे। कनाडा में नैतिक मामलों की निगरानी करने वाली संस्था ने पहली बार दिसंबर 2017 में इस मामले में ट्रूडो की निंदा करते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री ने नियमों का उल्लंघन किया है। तब रॉयटर्स की रिपोर्ट में बताया गया था कि आगा खान के फाउंडेशन को ट्रूडो और उनके अधिकारियों की लॉबिंग के लिए आधिकारिक तौर पर रजिस्टर्ड किया गया था। इसके बाद ट्रूडो ने कहा कि वह भविष्य में अपनी छुट्टियों के लिए वॉचडॉग की मंजूरी लेंगे। - 2. इसके अलावा मई 2016 में ट्रूडो की एक गलती के कारण उन्हें बेहद शर्मिंदा होना पड़ा। कनाडा के हाउस ऑफ कॉमन्स में हुई एक घटना को ‘एल्बोगेट’ के नाम से जाना जाता है। दरअसल विपक्ष के रवैये से परेशान होकर ट्रूडो एक शख्स को पकड़ने के लिए भागे इस दौरान उनकी कोहनी एक महिला के सीने पर लग गई। इस घटना के लिए ट्रूडो ने कई बार माफी मांगी। उन्होंने कहा ‘मैं भी एक इंसान हूं जो एक बेहद दबाव वाली नौकरी कर रहा है।’ उन्होंने वादा किया वह कभी ऐसा दोबारा नहीं करेंगे।
- 3. जस्टिन ट्रूडो साल 2018 में पहली बार भारत राजकीय दौरे पर आए थे, इस दौरान खालिस्तानी अलगाववादी जसपाल अटवाल के साथ ट्रूडो की तस्वीर को लेकर जमकर विवाद हुआ। अटवाल को पंजाब के मंत्री मलकीत सिंह सिंधु की हत्या की कोशिश के मामले में दोषी पाया गया था और उसे 20 साल की सजा सुनाई गई थी। मंत्री सिंधु 1986 में वैंकुअर गए थे जहां उनकी हत्या की कोशिश की गई थी। जसपाल अटवाल एक सिख अलगाववादी था, जो इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन से जुड़ा हुआ था।
- 4. एक और विवाद साल 2022 का है, जब ट्रूडो को ब्रिटेन की क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय के अंतिम संस्कार से दो दिन पहले उन्हें होटल की लॉबी में रैप सॉन्ग गाते हुए रिकॉर्ड किया गया था। वीडियो में ट्रूडो मरून टी-शर्ट और डार्क जींस पहने पियानो के ठीक बगल में खड़े होकर फ्रेडी मर्करी का हिट सॉन्ग गा रहे थे। सोशल मीडिया पर यह वीडियो काफी वायरल हुआ था, वीडियो में क्वीन एलिजाबेथ के अंतिम संस्कार में शामिल होने पहुंचे कनाडाई डेलिगेशन के अन्य लोग भी मौजूद थे। ट्रूडो की इस शर्मनाक हरकत की सोशल मीडिया पर लोगों ने काफी आलोचना की थी।
- 5. ताजा विवाद पिछले साल का ही है। जब उन्होंने स्पीकर फर्गस को आंख मारी थी। इसके जस्टिन ट्रूडो को काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था। दरअसल हाउस ऑफ कॉमन्स में स्पीकर फर्गस ने ट्रूडो को ‘सम्मानीय प्रधान मंत्री’ के तौर पर संबोधित किया तो वहीं ट्रूडो ने तुरंत उन्हें टोकते हुए ‘बहुत सम्मानीय’ जोड़ा। इस दौरान उन्होंने स्पीकर फर्गस को आंख मारी और अपनी जीभ भी बाहर निकाली। उनकी यह हरकत कैमरे में कैद हो गई, जिसके बाद सोशल मीडिया पर उनकी काफी आलोचना हुई।