यूपीए सरकार के करप्शन के खिलाफ, समाजवादी कार्यकर्ता अन्ना हजारे का सहारा लेकर जो आम आदमी पार्टी अस्तित्व में आई थी। अब 12 साल बाद खुद करोड़ों के करप्शन के आरोपों के कारण आप का अस्तित्व ही खतरे में है। दिल्ली शराब घोटाला केस में पार्टी के मुखिया और दिल्ली के CM अरविंद केजरीवाल और डिप्टी CM रहे मनीष सिसोदिया जेल में हैं। अब तो इस घोटाले में आम आदमी पार्टी के भी संलिप्त होने के सबूतों के बाद आप को भी आरोपी बना दिया गया है। इन सबके बीच एक साल के अंदर मौजूदा विधायक, पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री समेत सैकड़ों कार्यकर्ता पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं। CM अरविंद केजरीवाल पर झूठे वादे बार-बार एक्सपोज हो रहे हैं। लोकसभा चुनाव में आप को करारी हार झेलनी पड़ी है। ऐसे में पार्टी के अंदरखाते सब कुछ ठीक नहीं चलने के कारण अब आप नेता ही दबी जुबान में ये चर्चा करने लगे हैं कि बिना लीडरशिप के पार्टी कितने दिन चलेगी? अरविंद केजरीवाल का जेल से सरकार चलाने का जिद-भरा फैसला कहीं पार्टी को डुबो ही ना दे?अरविंद केजरीवाल ही शराब घोटाले में किंगपिन और मुख्य साजिशकर्ता
दिल्ली की शराब नीति में करोड़ों के घोटाले के मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने राउज एवेन्यू कोर्ट में दाखिल चार्जशीट में सीएम अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी को भी आरोपी बनाया है। चार्जशीट में ईडी ने अरविंद केजरीवाल को घोटाले में किंगपिन और मुख्य साजिशकर्ता बताया है। इतना ही नहीं ईडी ने दावा किया है कि गोवा इलेक्शन में रिश्वत के पैसों का ना सिर्फ इस्तेमाल हुआ, बल्कि इसकी पूरी जानकारी केजरीवाल को भी थी। चार्जशीट में अरविंद केजरीवाल और आरोपी विनोद चौहान के वॉट्सएप चैट का डिटेल दिया गया है। आरोप है कि के कविता के पीए ने विनोद के जरिए 25.5 करोड़ रुपए गोवा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी को पहुंचाए थे। ईडी का कहना है कि इस चैट से ये साफ है कि विनोद चौहान के अरविंद केजरीवाल के साथ कितने घनिष्ठ रिश्ते थे। शराब नीति मामले में मनी लॉन्ड्रिंग की जांच कर रही ईडी ने अरविंद केजरीवाल को 21 मार्च को गिरफ्तार किया था। वे अभी तिहाड़ जेल में हैं। लंबे इंतजार के बाद 12 जुलाई को अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली, लेकिन रिहाई अटकी हुई है। ईडी और सीबीआई के जिस तरह के संगीन आरोप हैं, उससे केजरीवाल की कई और रातें जेल में कट सकती हैं।लोकसभा चुनाव में करारी हार, नहीं चला ‘जेल का बदला वोट’ का स्लोगन
ऐसे में बड़े सवाल केजरीवाल की पार्टी के अस्तित्व को लेकर भी उठ रहे हैं। दरअसल, केजरीवाल ने जेल जाने के बावजूद किसी को मुख्यमंत्री नहीं बनाया, क्योंकि ना तो उन्हें किसी पर विश्वास है, और ना ही वो ऐसा चाहते थे। क्योंकि केजरीवाल को लगा था कि लोकसभा चुनाव में ‘जेल का बदला वोट’ का स्लोगन केजरीवाल को सिंपैथी दिलाएगा। लेकिन केजरीवाल इतने एक्सपोज हो चुके हैं कि दिल्ली की जनता ने उनकी पार्टी के प्रति कोई सहानुभूति नहीं दिखाई। परिणामस्वरूप आम आदमी पार्टी को कांग्रेस से गठबंधन करने के बावजूद दिल्ली की सातों सीटों पर करारी हाल झेलनी पड़ी। लेकिन केजरीवाल इसे बाद भी रस्सी जो जल गई, पर ऐंठन नहीं गई, वाली कहावत चरितार्थ कर रहे हैं। करारी हार के बाद भी वे अपनी इस जिद पर सवार हैं कि जेल से ही सरकार चलाएंगे।केजरीवाल सीएम पद छोड़ेंगे तो हजारों करोड़ का शीशमहल भी छूट जाएगा
दिल्ली के आम आदमी पार्टी की सरकार में मंत्री रहे राजकुमार आनंद ही केजरीवाल के जेल से सरकार चलाने के फैसले पर सवाल खड़े करते हैं। वे कहते हैं, ‘जेल से सरकार चलाने की जिद खुद उनकी है। उन्हें लगता है कि CM पद छोड़ेंगे, तो बहुत कुछ छोड़ना पड़ेगा। उनका हजारों करोड़ का शीशमहल छूट जाएगा। उन्हें किसी पर विश्वास नहीं है कि जेल से छूटने पर फिर से उन्हें सीएम पद मिलेगा या वो फिर से सड़क पर आ जाएंगे। वे कहते हैं कि जब केजरीवाल जेल जा रहे थे, तब जनता से कहा गया कि पार्टी के अंदर रेफरेंडम हुआ। इसके मुताबिक कार्यकर्ता चाहते हैं कि केजरीवाल जेल से सरकार चलाएं, लेकिन ये सब लोग अच्छी तरह जानते हैं कि रेफरेंडम कैसे होते हैं। किसलिए और किसके फेवर में कराए जाते हैं। इसलिए इस तरह की बातों का कोई मतलब नहीं है।लीडरशिप क्राइसिस से जूझ AAP में लगातार उठ रहे बगावती सुर
पार्टी छोड़कर गए पूर्व विधायक नितिन त्यागी ने भी मीडिया से बातचीत में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर झूठे वादे करने और फिर विक्टिम कार्ड खेलने का आरोप लगाया है। वे मानते हैं कि हालात ऐसे बनते जा रहे हैं, जिसमें AAP का अस्तित्व ही खतरे में नजर आ रहा है? क्योंकि पार्टी लीडरशिप क्राइसिस से जूझ रही है। AAP में लगातार बगावती सुर उठ रहे हैं। केजरीवाल ने पार्टी की मजबूत सेकेंड लेयर बनाई ही नहीं, जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ रहा है। जहां तक आम आदमी पार्टी के अंदरखाने की बात है तो मौजूदा हालात में तो पार्टी में काफी खलबली है। इतना तो तय है कि आने वाले वक्त में पार्टी को और झटके लगेंगे। पार्टी के कई नेता अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। इसीलिए वे दूसरी पार्टियों में अपनी संभावनाएं तलाशने में जुट गए हैं। जिन्हें मौका मिल रहा है, वे आप का दागदार दामन छुड़ाकर नया राजनीतिक करियर बनाने में लगे हैं।
तो लोकसभा की तरह विधानसभा चुनाव में भी बैठ जाएगा आप का भट्टा
दरअसल, आप नेताओं की सबसे बड़ी चिंता आसन्न विधानसभा चुनाव को लेकर है। दबी जुबान से पार्टी के अंदरूनी हल्कों में जिक्र होने लगा है कि केजरीवाल की यही रणनीति रही तो, कहीं ऐसा न हो कि लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी आप का भट्टा बैठ जाए। जिस सिम्पैथी की आस केजरीवाल लगाए बैठे हैं, वो उनके लगातार झूठ के एक्सपोज होने और शराब घोटाले में संलिप्तता के चलते उन्हें मिलना बहुत मुश्किल है। आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता रहे आशुतोष कहते हैं, ‘आप के सामने अपना अस्तित्व बचाने का संकट है। शराब घोटाला ने इनकी मुश्किल बढ़ा रखी है। पार्टी के सबसे बड़े नेता जेल में हैं।
केजरीवाल को किसी पर भरोसा नहीं, इसलिए नहीं छोड़ रहे सीएम पद
आप की सबसे बड़ी दिक्कत यह भी है कि पार्टी का कोई स्ट्रक्चर नहीं है। कोई सेकेंड लाइन और थर्ड लाइन लीडरशिप नहीं है। अब आप ही सोचिए कि पार्टी कैसे आगे बढ़ेगी। दरअसल, अरविंद केजरीवाल को संविधान पर भरोसा ही नहीं है। किसी नेता या पत्नी पर भरोसा नहीं है। सुनीता केजरीवाल बीच में काफी एक्टिव हुई थीं। उस वक्त बातें ये भी थीं कि शायद वे मुख्यमंत्री बनें, लेकिन फिर केजरीवाल का जेल से ही सरकार चलाने का फैसला सामने आया। वे CM पद से इस्तीफा देकर किसी और को एक्टिंग CM बना सकते थे। फिर जेल से बाहर आकर खुद कुर्सी संभाल लेते, जैसा हेमंत सोरेन ने किया। लेकिन केजरीवाल को लगता है कि वो कुर्सी छोड़ेंगे तो लड़ाई हार जाएंगे। ये अहंकार है। वो अभी कितने दिन जेल में रहेंगे किसी को नहीं पता, लेकिन वो पद नहीं छोड़ना चाहते। ऐसा इसलिए है क्योंकि पूरी पार्टी सिर्फ एक आदमी के इर्द-गिर्द घूम रही है।’
वरिष्ठ नेता स्वाति मालीवाल केस ने AAP की मुश्किलें और बढ़ाईं
स्वाति मालीवाल केस तो सिर्फ एक उदाहरण है, जो खुलकर सामने आ गया है। पार्टी के अंदरूनी हलकों में तो नाराजगी और बगावती सुर तेजी से उठने लगे हैं। पार्टी के एक सीनियर लीडर ऑफ द रिकॉर्ड कहते हैं, ‘सबको चुप रहने का ऑर्डर मिला है, लेकिन पार्टी के अंदर इस मामले को लेकर गुस्सा है। यह सही है कि ने स्वाति मालीवाल केस ने AAP की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। क्योंकि स्वाति पार्टी की पुरानी सदस्य हैं। वो पार्टी बनने से पहले से आंदोलनों और तमाम गतिविधियों से जुड़ी रहीं। उनके मामले में कम से कम विधायकों की एक बैठक तो होनी चाहिए थी। स्वाति मालीवाल पार्टी में CM की सबसे करीबी थीं। उन्होंने ये आरोप क्यों लगाए? उस पर साथ बैठकर चर्चा की जरूरत तक नहीं समझी गई। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भविष्य में स्वाति मालीवाल से मिलते-जुलते और केस भी देखने को मिल सकते हैं। ऐसे में पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है।
लीडरशिप क्राइसिस के बीच भी AAP के अंदर CM पद के कई दावेदार
पार्टी में एक ओर तो लीडरशिप क्राइसिस साफ दिख रही है, दूसरी ओर कुछ नेता इस ताक में भी नजर आ रहे हैं कि कैसे वो केजरीवाल की जगह सीएम बन सकते हैं। ऐसे नेताओं में आतिशी, संदीप पाठक, दुर्गेश पाठक, संजय सिंह आदि शामिल हैं। लेकिन ये फिलहाल केजरीवाल के आगे कुछ बोल नहीं पा रहे हैं। या ये कहें कि किसी में हिम्मत नहीं है। पूर्व AAP नेता नितिन त्यागी कहते हैं, ‘पार्टी के अंदर 5-6 CM हैं। मैंने लक्ष्मीनगर से जैसे ही इस्तीफा दिया, यहां के कैंडिडेट के लिए 5 नाम आए। एक आतिशी का कैंडिडेट है, तो दूसरे को संदीप पाठक ने आश्वासन दिया है। तीसरे को संजय सिंह ने तो चौथे को गोपाल राय और पांचवें को दुर्गेश पाठक ने दिया है। छठा मनीष सिसोदिया का भतीजा है। अगर पार्टी के अंदर दरारें नहीं होतीं, तो एक सीट के लिए 6-6 कैंडिडेट नहीं होते।’AAP के पूर्व मंत्री बोले- केजरीवाल और उनकी सरकार की नीयत ही खराब
केजरीवाल सरकार में समाज कल्याण मंत्री रहे राजकुमार आनंद साफ-साफ मानते हैं कि सरकार की नीयत ही खराब है। ये पहले ऐसी योजनाओं की घोषणा करते हैं, जो लागू ही नहीं होती। फिर विक्टिम कार्ड खेलते हैं कि जनहित के कल्याण के बीच LG अड़ंगा लगा रहे हैं। योजना को पास कराने की कोशिश नहीं करते। वे कहते हैं, ‘दिल्ली में हर साल करीब 3000 करोड़ रुपए का SC-ST फंड एलोकेट होता है। ये फंड दलितों की बस्तियों, उनके बच्चों की पढ़ाई और दूसरी वेलफेयर स्कीम्स के लिए आता है, लेकिन इस फंड का बहुत मामूली सा हिस्सा ही उन पर खर्च होता है। बाकी दूसरे डिपार्टमेंट्स के खाते में चला जाता है। बच्चों के लिए फैलोशिप स्कीम्स लाई गईं। मंत्री रहते हुए मैं सैकड़ों बच्चों से मिला, लेकिन उसमें दलित नहीं थे। यही हाल दलितों की बस्तियों और उनके हिस्से की दूसरी योजनाओं का है।’
केजरीवाल पहले झूठे वादे करते हैं, फिर विक्टिम कार्ड खेलते हैं
AAP के पूर्व विधायक नितिन त्यागी को 7 जून, 2024 में कथित पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप मढ़ दिया गया। कुछ ही दिनों बाद नितिन ने BJP जॉइन कर ली। दरअसल, लोकसभा चुनाव में दिल्ली की महिलाओं को हर महीने 1000 रु. देने का वादा किया था। इस योजना के विरोध और सस्पेंशन पर त्यागी मीडिया से साफ कहते हैं, ‘योजना ठीक थी, लेकिन नीयत नहीं। दरअसल ये योजना कभी लागू ही नहीं होनी थी। पार्टी का पहले से प्लान था कि सितंबर में हम कह देंगे कि लेफ्टिनेंट जनरल योजना को अप्रूव नहीं कर रहे। जैसा पहले ‘वन टाइम वाटर बिल सेटलमेंट स्कीम’ को लेकर किया था।’ वे आगे कहते हैं कि ये योजना 1 अगस्त, 2023 में लागू होनी थी, लेकिन कह दिया गया कि LG ने अप्रूव नहीं की। योजना लागू न होने का आरोप केंद्र की BJP सरकार पर लगा। जबकि सच तो ये है कि इस पर कभी कोई कैबिनेट नोट बना ही नहीं था। ना ही कोई बैठक हुई थी। योजना को प्रोसेस करने की कोशिश ही नहीं हुई थी। ये वादा सिर्फ खुद को विक्टिम दिखाने और केंद्र पर ठीकरा फोड़ने के लिए किया गया था।