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मोदी राज में क्रिटिकल मिनरल मिशन: भविष्य की जरूरतों को सुरक्षित करने की दिशा में एक बड़ा कदम

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने इसी साल जनवरी 2025 में नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (NCMM) की शुरुआत की है। यह मिशन केवल एक खनन कार्यक्रम नहीं, बल्कि भारत की ऊर्जा सुरक्षा, औद्योगिक आत्मनिर्भरता और तकनीकी सशक्तिकरण का रणनीतिक खाका है। यह मिशन भारत को वैश्विक मंच पर एक मजबूत, आत्मनिर्भर और टिकाऊ शक्ति बनाने की ओर ले जा रहा है।

21वीं सदी में जैसे-जैसे दुनिया स्वच्छ ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहनों और अत्याधुनिक तकनीकों की ओर बढ़ रही है, वैसे-वैसे उन दुर्लभ और बेहद अहम खनिजों की मांग भी तेजी से बढ़ रही है जो इन तकनीकों की रीढ़ हैं। यह इसी चुनौती को अवसर में बदलने की मोदी सरकार की एक कोशिश है। यह मिशन 2024-25 से 2030-31 तक सात वर्षों के लिए चलाया जाएगा, जिसमें कुल 16,300 करोड़ रुपये की सरकारी लागत और लगभग 18,000 करोड़ रुपये के निवेश की उम्मीद है।

इसका मकसद न केवल देश में महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति को सुनिश्चित करना है, बल्कि वैश्विक स्तर पर इन खनिजों की दौड़ में भारत को एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में स्थापित करना भी है। क्रिटिकल मिनरल्स, यानी ‘महत्वपूर्ण खनिज’, वे होते हैं जो देश की आर्थिक वृद्धि, सुरक्षा और तकनीकी विकास के लिए बेहद जरूरी होते हैं। भारत सरकार ने 2023 में ऐसे 30 खनिजों की एक सूची जारी की थी जिनमें लिथियम, कोबाल्ट, टंगस्टन, टाइटेनियम, गैलियम, जर्मेनियम, नियोडिमियम, स्ट्रोंटियम, रेनियम, सिलिकॉन आदि शामिल हैं। इन खनिजों का उपयोग सौर पैनलों, इलेक्ट्रिक वाहनों, हाईटेक इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा प्रणालियों, टेलीकॉम और रिन्यूएबल एनर्जी जैसे क्षेत्रों में किया जाता है।

देश की ऊर्जा क्रांति को गति देने के लिए इन खनिजों की निर्बाध आपूर्ति अनिवार्य है। उदाहरण के तौर पर, सौर ऊर्जा के लिए फोटोवोल्टिक सेल में सिलिकॉन, टेल्यूरियम, इंडियम और गैलियम का उपयोग होता है। वर्तमान में भारत की सौर क्षमता 64 गीगावॉट है, जिसे बढ़ाने के लिए इन खनिजों की निर्भरता और भी बढ़ेगी। पवन ऊर्जा टर्बाइनों में उच्च-प्रदर्शन मैग्नेट होते हैं जो नियोडिमियम और डिस्प्रोसियम से बनते हैं। भारत का लक्ष्य 2030 तक पवन ऊर्जा क्षमता को 140 गीगावॉट तक ले जाना है, जिससे इन खनिजों की मांग में जबरदस्त बढ़ोतरी होगी।

इसी तरह, इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) में उपयोग होने वाली बैटरियों में लिथियम, कोबाल्ट और निकल जैसे खनिज जरूरी हैं। भारत सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक देश में 30 प्रतिशत वाहन इलेक्ट्रिक हों। इसके अलावा, लिथियम-आयन बैटरी सिस्टम रिन्यूएबल एनर्जी के स्टोरेज और बैकअप के लिए भी जरूरी हैं। यानी, ऊर्जा की दुनिया में ये खनिज अब भविष्य की करेंसी बन चुके हैं।

नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (NCMM) सिर्फ खनिजों के खनन तक सीमित नहीं है। यह एक व्यापक रणनीति है जिसमें अन्वेषण (exploration), निष्कर्षण (extraction), प्रसंस्करण (processing), रिसाइक्लिंग, अनुसंधान और मानव संसाधन विकास भी शामिल हैं। भारत ने इन सभी मोर्चों पर काम शुरू कर दिया है। सरकार 1,000 से अधिक परियोजनाओं के जरिए देश के भीतर नए खनिज भंडार खोजने की योजना पर काम कर रही है। साथ ही, विदेशी खनिज परियोजनाओं में भी हिस्सेदारी के जरिए अपनी वैश्विक उपस्थिति मजबूत कर रहा है।

मिशन के तहत एक और बड़ी पहल 1,500 करोड़ रुपये की रिसाइक्लिंग प्रोत्साहन योजना है। इसका मकसद ई-कचरा, पुरानी लिथियम-आयन बैटरियों और स्क्रैप से कीमती खनिजों को दोबारा उपयोग में लाना है। इसका लक्ष्य सालाना 270 किलो टन रिसाइक्लिंग क्षमता तैयार करना, 40 किलो टन क्रिटिकल मिनरल्स का उत्पादन करना, 8,000 करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित करना और लगभग 70,000 नई नौकरियां पैदा करना है। यह कदम देश की आयात निर्भरता को कम करने और सप्लाई चेन को मजबूत करने की दिशा में काफी महत्वपूर्ण है।

मोदी सरकार इनोवेशन को इस मिशन का एक मुख्य स्तंभ मान रही है। मिशन का लक्ष्य है कि 2030 तक कम से कम 1,000 पेटेंट दायर किए जाएं। हाल ही में मई और जून 2025 में कुल 62 पेटेंट दायर किए गए, जिनमें से कई को मंजूरी भी मिली है। इनमें इटर्बियम-ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स, टंगस्टन-पॉलिमर कंपोजिट मोल्ड्स और सोडियम-आयन बैटरियों के लिए नए इलेक्ट्रोलाइट्स जैसे उन्नत अनुसंधान शामिल हैं। इनसे पता चलता है कि भारत अब न केवल खनिजों को निकालने में, बल्कि उन्हें प्रोसेस करके वैल्यू एडेड उत्पाद बनाने में भी आत्मनिर्भर बनने की दिशा में बढ़ रहा है।

इस इनोवेशन को आगे बढ़ाने के लिए सरकार ने 7 प्रमुख संस्थानों को उत्कृष्टता केंद्र (Centres of Excellence – CoEs) के रूप में नामित किया है। इनमें चार आईआईटी (बॉम्बे, हैदराबाद, ISM धनबाद, रुड़की) और तीन टॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट (CSIR-IMMT भुवनेश्वर, CSIR-NML जमशेदपुर और NFTDC हैदराबाद) शामिल हैं। ये केंद्र अत्याधुनिक अनुसंधान, तकनीकी विकास और उद्योगों के साथ सहयोग के जरिए भारत की खनिज क्षमताओं को नई ऊंचाइयों तक ले जाने वाले हैं।

मिशन का एक अनूठा पहलू यह भी है कि यह केवल पारंपरिक खनन पर निर्भर नहीं है। 100 करोड़ रुपये की विशेष योजना के तहत पॉयलट प्रोजेक्ट्स शुरू किए गए हैं जो ओवरबर्डन, खदान टेलिंग्स, फ्लाई ऐश और लाल मिट्टी जैसे अपरंपरागत स्रोतों से कीमती खनिज निकालने पर ध्यान देंगे। यह रणनीति न केवल कचरे को उपयोगी बनाएगी बल्कि पर्यावरणीय नुकसान को भी कम करेगी।

भारत ने 2030 तक GPD की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करना, अपनी आधी बिजली क्षमता को गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त करना और 2070 तक नेट-जीरो का लक्ष्य तय किया है। इन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को पाने के लिए नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन की भूमिका बेहद अहम है।

यह मिशन न केवल भारत को भविष्य की तकनीकों के लिए आवश्यक संसाधनों की आपूर्ति सुनिश्चित करने में मदद करेगा, बल्कि इसे एक वैश्विक विनिर्माण और नवाचार हब भी बना सकता है। निवेश, रोजगार, अनुसंधान और रणनीतिक साझेदारी – यह मिशन आने वाले वर्षों में भारत को क्रिटिकल मिनरल्स की दौड़ में आत्मनिर्भर और अग्रणी बना सकता है।

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