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मोदी सरकार का सख्त संदेश, नहीं लेंगे अमेरिकी F-35 फाइटर, एसबीआई रिसर्च- ट्रंप टैरिफ से USA को ज्यादा नुकसान

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का सात अगस्त से भारत के खिलाफ 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने का पैंतरा खुद उनके लिए ही उल्टा पड़ने वाला है! ट्रंप जिस F-35 फाइटर जेट की जबरन खरीद के लिए टैरिफ के माध्यम से भारत पर दबाव बना रहे थे, उसके बारे में भारत ने अमेरिकी अधिकारियों को स्पष्ट रूप से बता दिया है कि उसकी फाइटर जेट खरीदने में दिलचस्पी नहीं है। ब्लूमबर्ग ने अपनी एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी है। दूसरी ओर एसबीआई रिसर्च में यह भी साफ तौर पर सामने आया है कि ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी का नुकसान भारत से ज्यादा अमेरिका और उसके नागरिकों को ही होने वाला है। रिपोर्ट के अनुमान के अनुसार भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने का फैसला अमेरिका के लिए महंगा साबित होगा। टैरिफ के कारण हर अमेरिकी उपभोक्ता को सालाना औसतन 2,400 डॉलर (करीब दो लाख रुपए) का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ सकता है। अमेरिका में कम आय वाले परिवारों पर इसका असर तीन गुना तक हो सकता है। रिसर्च यह भी बताता है कि ट्रंप टैरिफ से डॉलर कमजोर हो सकता है। इसके अलावा अमेरिका की जीडीपी में भारत से कहीं ज्यादा गिरावट का अनुमान है।

अमेरिका के दबाव का भारत ने रणनीतिक कूटनीति से दिया जवाब
इस बीच वैश्विक मंच पर भारत की कूटनीति एक बार फिर चर्चा में है। अमेरिका के बार-बार दबाव बनाने के बावजूद भारत ने रूस से कच्चा तेल खरीदना जारी रखने का फैसला किया है। यह कदम न केवल भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने की रणनीति को दर्शाता है, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी की स्वतंत्र और संतुलित विदेश नीति का भी परिचायक है। हाल के दिनों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और नाटो महासचिव मार्क रूट ने भारत, चीन और ब्राजील जैसे देशों को रूस से तेल खरीदने के खिलाफ चेतावनी दी थी। ट्रंप ने तो 25 प्रतिशत टैरिफ और रूसी तेल खरीदने पर अतिरिक्त जुर्माने की घोषणा तक कर दी। फिर भी, भारत ने साफ कर दिया कि वह अपनी ऊर्जा नीति को राष्ट्रीय हितों और बाजार की ताकतों के आधार पर तय करेगा और किसी बाहरी दबाव में नहीं आएगा।रूस से सस्ता तेल खरीदने से भारत को अरबों डॉलर की बचत
अमेरिका और उसके सहयोगी देश रूस की युद्ध अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए तेल और गैस की बिक्री पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रहे हैं। इस बीच भारत पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक और झूठा दावा किया कि भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया है, लेकिन भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि भारत की ऊर्जा नीति पारदर्शी है और यह राष्ट्रीय हितों पर आधारित है। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी स्पष्ट किया कि अगर रूसी तेल पर प्रतिबंध लगता है तो भारत गुयाना, ब्राजील और कनाडा जैसे अन्य आपूर्तिकर्ताओं से तेल आयात करेगा।

पीएम मोदी की नीति से घरेलू  महंगाई को नियंत्रित करने में मदद मिली

यह दर्शाता है कि भारत ने वैकल्पिक रास्तों की तैयारी पहले से कर रखी है। बता दें कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है और उसकी ऊर्जा जरूरतें विशाल हैं। फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगाए, जिसके चलते रूसी तेल की कीमतें वैश्विक बाजार में कम हो गईं। तब भारत ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए रूस से सस्ता तेल खरीदना शुरू किया। मई 2025 में भारत ने रूस से 1.96 मिलियन बैरल प्रतिदिन तेल आयात किया, जो उसके कुल तेल आयात का 38% से अधिक था। इससे भारत ने न केवल अरबों डॉलर की बचत की, बल्कि घरेलू स्तर पर महंगाई को नियंत्रित करने में भी मदद मिली।

टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और भारत में उत्पादन की शर्त पर ही डिफेंस डील
भारत ने अमेरिकी राष्ट्रपति को तगड़ा झटका देते हुए साफ कर दिया है कि वह उससे F-35 फाइटर जेट नहीं खरीदेगा। F-35अमेरिका का 5वीं जेनरेशन का लड़ाकू विमान है। इसे लॉकहीड मार्टिन कंपनी ने डेवलप किया है। ब्लूमबर्ग ने अपनी एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से ये जानकारी दी है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि मोदी सरकार निकट भविष्य में अमेरिका के साथ कोई बड़ा रक्षा सौदा करने का मन नहीं बना रही है। सरकार रक्षा उपकरण बनाने वाली साझेदारी में ज्यादा दिलचस्पी रखती है। यानी, भारत टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और देश में उत्पादन की शर्त पर डिफेंस डील चाहता है। इस साल फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्हाइट हाउस दौरे के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को फाइटर जेट बेचने की पेशकश की थी। इसके बाद अप्रैल में भारत दौरे पर आए अमेरिका के उप राष्ट्रपति जेडी वेंस ने भी भारत को F-35 खरीदने का ऑफर दिया था।

रूस का Su-57 लड़ाकू विमान, कीमत F-35 से आधी
यदि भारत अमेरिकी F-35 फाइटर जेट नहीं खरीदता है तो उसके पास क्या विकल्प हो सकते हैं। इस पर विशेषज्ञों का मत है कि एक च्वाइस रूस का Su-57 लड़ाकू विमान हो सकता है। रूस ने भारत को अपना पांचवीं जेनरेशन का विमान Su-57 देने की पेशकश की है। F-35 के मुकाबले इसकी कीमत भी आधी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक एक Su-57 की कीमत करीब 325 करोड़ रुपए है। इसका रखरखाव भी F-35 के मुकाबले सस्ता होगा। भारत अमेरिका से F-35 खरीदता है तो उसे सर्विस से लेकर स्पेयर पार्ट्स तक के लिए अमेरिकी कंपनी पर निर्भर रहना होगा। जबकि Su-57 के साथ ऐसी दिक्कत नहीं है। रूस ने इसे भारत में ही बनाने का प्रस्ताव रखा है। इससे जुड़ी सभी सर्विस भी भारत में होगी। इसके अलावा रूस भारत का भरोसेमंद डिफेंस सप्लायर भी रहा है। कई दशक से रूस भारत का प्रमुख मिलिट्री सप्लायर है। फाइटर जेट्स और सबमरीन से लेकर मिसाइल सिस्टम और हेलिकॉप्टर्स तक रूस भारत को मुहैया कराता रहा है।

आत्मनिर्भर भारत खुद पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट बना रहा
पीएम मोदी खुद भारत को डिफेंस सेक्टर में आत्मनिर्भर बनाने में निरंतर लगे हैं। ऑपरेशन सिंदूर में भारत की शानदार सफलता के पीछे पीएम मोदी की रणनीति और डिफेंस सेक्टर का आत्मनिर्भर होना भी है। इसी लकीर पर चलते हुए भारत खुद के 5वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान पर काम कर रहा है, जो 2-3 साल में पूरा हो जाएगा। अप्रैल 2024 में सुरक्षा पर कैबिनेट समिति (CCS) ने पांचवीं पीढ़ी के स्वदेशी फाइटर जेट के डिजाइन और डेवलपमेंट के लिए 15 हजार करोड़ रुपए की प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी। कैबिनेट समिति के मुताबिक, AMCA विमान भारतीय वायु सेना के अन्य लड़ाकू विमानों से बड़ा होगा। इसमें दुश्मन के रडार से बचने के लिए एडवांस्ड स्टेल्थ टेक्नोलॉजी होगी। यह दुनिया में मौजूद पांचवीं पीढ़ी के स्टेल्थ लड़ाकू विमानों के जैसा या उससे भी बेहतर होगा।

अमेरिकी घरों का औसतन सालाना खर्च 2400 डॉलर बढ़ जाएगा
इस बीच स्टेट बैंक ऑफ इंडिया एक रिसर्च रिपोर्ट में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। रिसर्च के मुताबिक डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए 25 प्रतिशत टैरिफ का सबसे ज्यादा असर अमेरिका पर ही पड़ेगा। इससे महंगाई बढ़ेगी और अमेरिकी घरों का औसतन सालाना खर्च 2400 डॉलर (करीब 2.09 लाख रुपए) बढ़ सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह बढ़ा हुआ बोझ सभी परिवारों पर बराबर नहीं पड़ेगा। कम आय वाले अमेरिकी परिवारों को करीब 1300 डॉलर (1.13 लाख रुपए) का नुकसान हो सकता है, जो अमीर परिवारों के मुकाबले तीन गुना ज्यादा दबाव वाला होगा। वहीं, अमीर परिवारों को भी करीब 5000 डॉलर (4.37 लाख रुपए) तक का नुकसान हो सकता है।

टैरिफ से पूरे अमेरिका पर दवाब, लेकिन भारत में घटेगी महंगाई
एसबीआई ने अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया कि इन टैरिफ से केवल घरेलू खर्च ही नहीं बढ़ेगा, बल्कि इससे पूरी अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़ेगा। GDP में 40 से 50 बेसिस प्वाइंट की गिरावट आने की संभावना है। क्योंकि, इनपुट कॉस्ट बढ़ेगी और महंगाई की वजह से कंज्यूमर डिमांड कमजोर होगी। वहीं दूसरी ओर, भारत पर इसका असर उम्मीद के मुताबिक कम होगा। एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार, टैरिफ से बाहरी मांग घटने के कारण भारत में महंगाई कम हो सकती है, जबकि अमेरिका में खुदरा महंगाई 2.4% तक बढ़ सकती है। लंबी अवधि में इसमें 1.2% की बढ़ोतरी बनी रह सकती है। रिपोर्ट में बताया गया कि अमेरिका हर साल करीब 3.26 ट्रिलियन डॉलर (272 लाख करोड़ रुपए) का माल दूसरे देशों से आयात करता है।

हमें अमेरिका की जितनी जरूरत, उससे ज्यादा ट्रंप को भारत की है
उधर पूर्व राजदूत जे. के. त्रिपाठी के मुताबिक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रेशर टेक्टिक्स अपना रहे है। पाकिस्तान पर कम टैरिफ, उसका सहयोग इसी का हिस्सा है, लेकिन अमेरिका के लिए भारत ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। ट्रेड डील को लेकर अमेरिका को हमसे टकराव का रास्ता नहीं अपनाना चाहिए। भारत सरकार की ओर से सही रुख अपनाया जा रहा है। भारत और अमेरिका दो बड़ी शक्तियां हैं, जो आमने-सामने नहीं हो सकतीं। ट्रंप की अनप्रिडिक्टेबिलिटी में एक प्रिडिक्टेबिलिटी छुपी रहती है कि वह प्रेशर के साथ शुरुआत कर मिडिल ग्राउंड तलाशते है। टैरिफ लगाने का लम्बा प्रोसेस इसका उदाहरण है। हमें भी उस मिडिल ग्राउंड को तलाश रहे हैं। भारत को अपनी नीतियों पर बने रहना चाहिए। भारत को जितनी जरूरत अमेरिका की है, उससे ज्यादा जरूरत अमेरिका को भारत की है।

व्हाइट हाउस का सफेद झूठ, डेड नहीं सुपरफास्ट है हमारी इकोनामी
भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर का झूठ बार-बार दोहराने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के झूठों की फेहरिस्त लंबी होती चली जा रही है। इसी दिशा में अब ट्रंप ने भारतीय इकोनॉमी को ही डेड बता दिया है, जबकि वास्तविकता यह है कि भारत की विकास दर दुनियाभर में सबसे तेज हैं। यहां तक कि अमेरिकी रेटिंग एजेंसियों खुद भारत की तेज बढ़ती इकोनॉमी का लोहा मान रही हैं। लेकिन झूठ पर झूठ बोले जा रहे ट्रंप को टैरिफ के सिवाय कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा है। वैसे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ को 7 दिन के लिए टाल दिया है। ये आज से लागू होना था, जो अब 7 अगस्त से लागू होगा। हालांकि ट्रैड डील में इस टैरिफ के कम होने की बात कही जा रही है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों का मानना है कि इस टैरिफ का भारत की अर्थव्यवस्था पर कोई ज्यादा असर होने वाला नहीं है। अंतरराष्ट्रीय ब्रोकरेज फर्म गोल्डमैन सैश, नोमुरा और बार्कलेज ने अपनी-अपनी रिपोर्ट में ट्रंप टैरिफ से भारत की जीडीपी में केवल 0.3 प्रतिशत की गिरावट आने का अनुमान लगाया है। नोमुरा का मानना है कि टैरिफ का भारत पर कम असर होगा और इससे विकास दर में मात्र 0.2 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है।

ट्रंप का झूठ बोलने का रिकॉर्ड, अमेरिकी अखबारों ने लिस्ट छापी
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप झूठ बोलने, अपनी बात से मुकरने और यू-टर्न लेने के लिए जाने जाते हैं। ट्रंप ने भारत-पाक युद्ध रुकवाने का 26 बार दावा किया है। लेकिन, भारत सरकार तीसरे पक्ष की भूमिका से साफ-साफ इनकार कर चुकी है। लेकिन ट्रंप हैं कि झूठ पर झूठ बोले जा रहे हैं। इससे पहले, न्यूयॉर्क टाइम्स और वॉशिंगटन पोस्ट समेत अमेरिका के तमाम अखबार ट्रंप के झूठ की फेहरिस्त प्रकाशित कर चुके हैं। भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ के बाद वॉशिंगटन में ट्रंप ने कहा कि भारत-रूस दोनों अपनी डेड इकोनॉमी के साथ डूब जाएं, मुझे फर्क नहीं पड़ता। भारत की नीतियां अमेरिका के लिए नुकसानदायक हैं।

अमेरिकी रेटिंग एजेंसियों ने भारतीय इकोनॉमी को बताया सबसे सशक्त
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जिस इकोनॉमी को डेड बता रहे हैं, उसी भारत की इकोनॉमी को अमेरिकी एजेंसियां ही सबसे तेज और सशक्त बता रही हैं। लेकिन ट्रंप ने जानबूझकर इस और से आंखें मूंदकर एक और झूठ गढ़ दिया है। पिछले माह में ही भारत की इकोनॉमी को दुनिया की आर्थिक नब्ज टटोलने वाली 3 शीर्ष अमेरिकी रेटिंग एजेंसियों एसएंडपी ग्लोबल, गोल्डमैन सेक व मॉर्गन स्टेनली ने सबसे सशक्त बताया था। हाल में आईएमएफ ने भी कहा है कि भारतीय इकोनॉमी सबसे तेजी से बढ़ रही है और 2025-26 में 6.4% दर से बढ़ेगी। जबकि अमेरिकी ग्रोथ रेट 2.9% है। वहीं, एपल जैसी शीर्ष अमेरिकी कंपनियां भारत में निवेश बढ़ा रही हैं।

भारत की अर्थव्यवस्था घरेलू मांग पर टिकी होने से असर सीमित रहेगा
भारत से जाने वाले सामानों पर सात अगस्त से 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने का ऐलान अमेरिका ने किया है। इससे भारत और अमरीका के बीच व्यापारिक रिश्तों में तनाव की स्थिति है। हालांकि विशेषज्ञों के मुताबिक भारत की आर्थिक विकास दर, निर्यात और कंपनियों की कमाई पर टैरिफ का ज्यादा असर पड़ने वाला नहीं है। अंतरराष्ट्रीय ब्रोकरेज फर्म गोल्डमैन सैश, नोमुरा और बार्कलेज ने अपनी-अपनी रिपोर्ट में ट्रंप टैरिफ से भारत की जीडीपी में 0.3 प्रतिशत की गिरावट आने का अनुमान लगाया है। नोमुरा का मानना है कि टैरिफ का भारत पर कम असर होगा और इससे विकास दर में 0.2 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है। बार्कलेज और गोल्डमैन सैश का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था घरेलू मांग पर टिकी होने से असर सीमित रहेगा।

ट्रंप ने कुछ देशों पर ज्यादा टैरिफ का दबाव बनाकर लिया है यू-टर्न
गोल्डमैन सैश का कहना है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह फैसला इसलिए लिया है क्योंकि भारत ने रूस से ऊर्जा और रक्षा के सौदे किए हैं, जिससे अमरीका नाराज है। नोमुरा की रिपोर्ट में कहा गया है कि अमरीका की नाराजगी सिर्फ व्यापार घाटे की वजह से नहीं है, बल्कि उसे भारत की रूस पर बढ़ती निर्भरता भी चिंता में डाल रही है। वहीं, बार्कलेज का मानना है कि यह फैसला अमरीका की ओर से ट्रेड डील हासिल करने की रणनीति का हिस्सा है। अमेरिकी राष्ट्रपति पहले भी कुछ देशों पर ज्यादा टैरिफ का दबाव बनाकर बाद में इसे कम कर चुके हैं। क्योंकि उनके लिए अपनी ही कही किसी भी बात पर यू-टर्न लेना मामूली बात है।

भारत मांसाहारी गाय का दूध किसी भी कीमत पर नहीं लेगा
भारत और अमेरिका के बीच फरवरी में ट्रेड डील पर बातचीत शुरू हुई थी। यानी 6 महीने हो चुके हैं, लेकिन दोनों देश अभी तक किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए हैं। दरअसल, भारत में ज्यादातर लोग शुद्ध शाकाहारी दूध उत्पाद चाहते हैं, जबकि अमेरिका में कुछ डेयरी उत्पादों में जानवरों की हड्डियों से बने एंजाइम (जैसे रैनेट) का इस्तेमाल होता है। भारत ऐसी मांसाहारी गायों के दूध और उसने बने प्रोडक्ट को किसी भी कीमत पर लेने को तैयार नहीं है। इसके पीछे किसानों के हित के अलावा धार्मिक वजहें भी हैं। इसके अलावा भारत अपने छोटे और मंझोले उद्योगों (MSME) को लेकर ज्यादा सावधानी बरत रहा है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है और इस सेक्टर में करोड़ों छोटे किसान लगे हुए हैं। अगर अमेरिकी डेयरी उत्पाद भारत में आएंगे, तो वे स्थानीय किसानों को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसके अलावा, धार्मिक भावना भी जुड़ी हुई है। इसलिए भारत की शर्त है कि कोई भी डेयरी उत्पाद तभी भारत में बिक सकता है जब वह यह प्रमाणित करे कि वह पूरी तरह शाकाहारी स्रोत से बना हो।

ईयू, जापान और कई अन्य देशों ने ट्रंप के दबाव में बात मानी
दरअसल, अब इस बात का खुलासा हो चुका है कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अक्सर व्यापार के मामले में देशों को धमकाने के लिए ऊंचा टैरिफ लगाते हैं, फिर अपनी मर्जी के मुताबिक ट्रेड डील करते हैं। ईयू, जापान और कई अन्य देशों ने ट्रंप के दबाव में आकर उनकी बात मान ली थी। ट्रंप का टैक्स लगाने का तरीका दिखाता है कि वे व्यापार को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन पीएम मोदी के दूरदर्शी विजन के चलते भारत ने अपने हितों को बचाने का फैसला किया है। भारत के मामले में ट्रंप का यह तरीका अभी सफल नहीं हो पाया। क्योंकि भारत दबाव में आने के बजाय अपनी बात पर कायम रहा। नई दिल्ली ने तो साफ-साफ संदेश दे दिया कि सरकार राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगी। थिंक टैंक जीटीआरआइ ने कहा है कि 25 प्रतिशत टैरिफ के बावजूद भारत की स्थिति अमरीका के साथ ट्रेड डील करने वाले देशों से बेहतर हो सकती है। भारत के भाव न देने के बाद राष्ट्रपति ट्रंप का रुख नरम पड़ता दिखाई दे रहा है। 25 प्रतिशत टैरिफ और अतिरिक्त जुर्माने की घोषणा के बाद ट्रंप के तेवर कुछ ही घंटे में ढीले पड़ गए। अब उन्होंने पीएम मोदी की दोस्ती का हवाला देते हुए भारत के साथ बातचीत जारी रखने की बात कही है।

पीएम मोदी को दोस्त बताकर ट्रंप बोले- बातचीत अभी जारी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को आखिरकार मुंह की खानी पड़ी है। 25 प्रतिशत ट्रंप टैरिफ के बाद भारत ने साफ कर दिया है कि वह किसी भी दबाव में आने वाला नहीं है। भारत के इस कदम के बाद अब ट्रंप ने फिर से दोस्ती का हाथ बढ़ाया है और कहा है कि मोदी मेरे दोस्त हैं और ट्रेड डील पर फिर से बातचीत हो सकती है। एक अगस्त के बजाए अब टैरिफ की नई तिथि 7 अगस्त आई है। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप ने 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने के पीछे ब्रिक्स समूह और नई दिल्ली के साथ भारी व्यापार घाटे का हवाला दिया और यह भी कहा कि भारत के साथ बातचीत जारी है। ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना दोस्त बताया लेकिन कहा कि भारत अमेरिका के साथ व्यापार के मामले में ज्यादा कुछ नहीं करता है। उन्होंने कहा कि ‘भारत ब्रिक्स का सदस्य’ है, जो ‘अमेरिका विरोधी देशों का समूह’ है।

डोनाल्ड ट्रंप के ट्रैप में ना फंसना भारत की एक बड़ी सफलता
जीटीआरआइ ने कहा कि अमेरिका और भारत के बीच अभी भी समझौता हो सकता है, लेकिन यह केवल उचित शर्तों पर ही होगा। इसमें भारत के हित भी समाहित होंगे। फिललहाल तो भारत डोनाल्ड ट्रंप के एकतरफा समझौते के जाल से दूर निकल आया है, जो कि वैश्विक परिदृश्य में एक बड़ी सफलता है। ब्रिटेन, ईयू, जापान, इंडोनेशिया और वियतनाम ट्रेड डील के बावजूद अब उच्च टैरिफ का सामना कर रहे हैं और बदले में अमरीका को व्यापक रियायतें भी देंगे। इसमें अमरीकी कृषि उत्पादों पर शून्य टैरिफ, बड़े पैमाने पर निवेश के वादे और अमरीकी तेल, गैस व हथियारों की खरीद शामिल है। भारत ने ऐसी कोई रियायत नहीं दी है।

झंडा ऊंचा रहे हमारा: दबाव के बावजूद 5 वजह से नहीं झुका भारत
• भारत ने खेती और डेयरी-उत्पादों के मामले में झुकने से इनकार कर दिया। दरअसल पीएम मोदी भारत के जिन चार स्तंभों की बात करते हैं, उनमें एक अन्नदाता यानी किसान हैं। खेती और डेयरी-उत्पाद सीधे तौर पर इस बड़े वर्ग से जुड़ें हैं। यही वजह है कि भारत के किसानों के पक्ष में अड़ने से अमरीका के साथ बातचीत अटकी हुई है। अमरीका में डेयरी उत्पादों को बनाने के लिए जानवरों को जो खाना खिलाया जाता है, उसमें मांसाहारी चीजें भी होती हैं। यह भारत की संस्कृति के खिलाफ है।
• भारत सरकार ने स्टेंट और घुटने के इम्प्लाट जैसे कई जरूरी मेडिकल उपकरणों की कीमतों पर नियंत्रण हटाने से भी इनकार कर दिया।
• डिजिटल क्षेत्र में भी भारत ने 3 अपने डेटा को देश में ही रखने के नियम पर अडिग रहा। अमरीका की टेक कंपनियों ने इसका विरोध किया था, लेकिन भारत ने उनकी बात नहीं मानी।
• खेती भी एक ऐसा मुद्दा है जिस पर भारत ने समझौता नहीं किया। भारत ने जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) फसलों के मामले में भी कोई समझौता नहीं किया। अगर भारत इन मामलों में झुक जाता, तो इसका किसानों पर बुरा असर पड़ता।
• कुछ मुद्दे डोनाल्ड ट्रंप की निजी कंपनियों से जुड़े हैं, जैसे रियल एस्टेट और क्रिप्टोकरेंसी। अमेरिका ने उन्हें भी डील में शामिल किया है, जिस पर भारत राजी नहीं हुआ।

जगी उम्मीदें: जब ट्रेड डील होगी तो टैरिफ की दरें कम रहेंगी
ट्रंप टैरिफ से बाजार के एक्सपर्ट ज्यादा टेंशन में नहीं हैं। वे मान रहे हैं कि यह ट्रंप की भारत के साथ अपनी शर्तों पर डील करने की एक रणनीति भर है। पूर्व डिप्लोमेट दीपक वोहरा ने कहा, बिना डील के 25 फीसदी टैरिफ हासिल करना इसलिए अहम है, क्योंकि अधिकांश देश 30 फीसदी या उससे ज्यादा के स्तर पर हैं। वहीं ईयू और जापान ही 15-15 फीसदी के स्तर पर हैं। भारतीय एक्सपोर्टर के कंपटीशन वाले देशों में फिलीपींस, वियतनाम और इंडोनेशिया 19-20 फीसदी ब्रेकेट में हैं और इन्होंने डील कर ली है। ऐसे में जब ट्रेड डील होगी तो टैरिफ की दरें कम रहेगी और भारत अपने प्रतिस्पर्धियों से फायदे में ही रहेगा।डोनाल्ड ट्रंप यानी खिसयानी बिल्ली खंभा नोंचे, भारत से चिढ़ने की वजहें
• भारत-पाकिस्तान सीजफायर पर श्रेय: डोनाल्ड ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर पर श्रेय लेने की कई बार कोशिश की। लेकिन भारत ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि यह किसी बाहरी दबाव में नहीं हुआ था। पाकिस्तान के बुरी तरह भारत के समक्ष गिड़गिड़ाने के बाद ही यह निर्णय लिया गया। इससे ट्रंप को मिर्ची लग रही है।
भारत का आत्मनिर्भरता का रुख: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ और ‘परफॉर्मेंस लिंक्ड इंसेंटिव (PLI)’ जैसी योजनाएं घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देती हैं, जो अमेरिका के हितों से टकराती हैं, क्योंकि ट्रंप ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति पर चल रहे हैं।
भारी व्यापार घाटा: ट्रंप ने ब्रिक्स समूह और नई दिल्ली के साथ ‘भारी’ व्यापार घाटे का हवाला दिया है। ट्रंप का मानना है कि भारत व्यापार के मामले में अमेरिका के साथ ‘बहुत ज्यादा जुड़ा नहीं है।
ब्रिक्स समूह: ब्रिक्स समूह भी ट्रंप की दुखती रग है। वे ब्रिक्स समूह को मूलतः अमेरिका विरोधी देशों का एक समूह मानते हैं, और भारत इसका सदस्य है। पता नहीं क्यों ने मानते हैं कि ब्रिक्स अमेरिकी मुद्रा पर हमला है।
रूस से कच्चे तेल और सैन्य उपकरणों की खरीद: अमेरिका भारत द्वारा रूस से सैन्य उपकरण और कच्चा तेल खरीदने से नाराज है। जबकि मोदी सरकार ने रूस से सस्ता कच्चा तेज खरीदने का निर्णय राष्ट्रीय हितों में किया है। यदि मोदी ऐसा ना करते तो यहां पेट्रो उत्पाद की कीमतें बढ़ सकती थीं।
हथियारों का व्यापार: अमेरिका चाहता है कि भारत उससे ही सारे हथियार खरीदे, लेकिन भारत इसके लिए तैयार नहीं है। ट्रंप मानते हैं कि भारत तेल भी अमेरिका से ही खरीदना चाहिए।

यह फैसला अमेरिका के लिए कई तरह से घाटे का सौदा
आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान: भारत से आयातित उत्पादों पर टैरिफ लगने से अमेरिकी कंपनियों को महंगे विकल्प तलाशने होंगे, जिससे उनकी आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान आ सकता है।
अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए कीमतें बढ़ना: भारतीय उत्पादों पर टैरिफ लगने से अमेरिकी बाजार में उन उत्पादों की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे अमेरिकी उपभोक्ताओं पर सीधा बोझ पड़ेगा।
अमेरिकी कंपनियों को नुकसान: भारत से आयातित कच्चे माल या कंपोनेंट्स पर निर्भर अमेरिकी कंपनियों को उच्च लागत का सामना करना पड़ेगा, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हो सकती है।
राजनीतिक अस्थिरता: भारत जैसे महत्वपूर्ण रणनीतिक साझीदार के साथ व्यापारिक तनाव बढ़ने से भू-राजनीतिक संबंधों में अस्थिरता आ सकती है, जो अमेरिका के व्यापक हितों के लिए हानिकारक हो सकता है।
भारत में निवेश पर असर: अमेरिका भारत में तीसरा सबसे बड़ा निवेशक है। व्यापारिक तनाव से अमेरिकी कंपनियों के निवेश की योजनाओं पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है।

भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड-डील टॉक की टाइमलाइन

• 13 फरवरी 2025: प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका की राजकीय यात्रा के दौरान व्यापार समझौते को लेकर बातचीत में तेजी आई।
• 4-6 मार्च 2025: भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने अमेरिका का दौरा किया ताकि नीतिगत स्तर की बातचीत का आधार तैयार हो सके।
• 26-29 मार्च 2025: अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल भारत आया और डिजिटल व्यापार, फार्मास्यूटिकल्स और कृषि उत्पादों तक पहुंच पर तकनीकी बातचीत हुई।
• मार्च से जुलाई 2025 तक: दोनों देशों के अधिकारियों के बीच आमने-सामने की पांच दौर की वार्ता हुई।
• 2 अप्रैल 2025: ट्रंप ने भारत पर जवाबी टैरिफ लगाने का ऐलान किया (शुरुआत में 26प्रतिशत).
• 9 अप्रैल 2025: इस ऐलान पर अमल के लिए 90 दिनों की मोहलत दी गई।
• 9 जुलाई 2025: डेडलाइन खत्म होने पर इसे 1 अगस्त तक बढ़ा दिया गया।

• 30 जुलाई 2025: ट्रंप ने 1 अगस्त से भारतीय वस्तुओं पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की, साथ ही रूस से तेल और सैन्य उपकरण खरीदने पर जुर्माने का भी ऐलान किया।
• 1 अगस्त 2025: 25 प्रतिशत ट्रंप टैरिफ लगाने का फैसला हुआ।
• 7 अगस्त 2025: नया टैरिफ लागू करने की तिथि को सात दिन के लिए टाल दिया गया।
• 25 अगस्त 2025: छठे दौर की वार्ता नई दिल्ली में होनी है।

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