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खुद के लिए चाहिए ‘हलाल’ सिस्टम, कांवड़ रूट पर ‘पहचान’ सिस्टम से भी परेशानी, इंडी अलायंस और लेफ्ट लिबरल को लगी मिर्ची

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उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में पुलिस ने कांवड़ यात्रा रूट पर खाने-पीने की सभी दुकानों पर मालिकों का नाम लिखने का आदेश जारी किया। 22 जुलाई से शुरू होने वाली कांवड़ यात्रा से पहले मुजफ्फरनगर जिले के सभी दुकानदारों, ढाबों, फल विक्रेताओं और चाय की दुकानों ने प्रशासन के निर्देशानुसार अपने प्रतिष्ठानों या वेंडिंग ठेलों पर मालिकों या कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करना शुरू कर दिया है। प्रशासन का कहना है कि इस निर्देश का उद्देश्य धार्मिक यात्रा के दौरान भ्रम से बचना और पारदर्शिता सुनिश्चित करना है। लेकिन प्रशासन के इस कदम से तुष्टिकरण के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन सहित लेफ्ट लिबरल गैंग को मिर्ची लग गई। यहां तक कि इस पहल को विवाद बनाने में जावेद अख्तर जैसे बुद्धिजीवी भी कूद पड़े हैं। जावेद अख्तर ने इसकी तुलना जर्मनी के नाजी शासन से कर डाली और कहा कि नाजी शासन में दुकानों पर निशान लगते थे। इनका दोगलापन देखिए कि खुद के लिए ‘हलाल’ सिस्टम चाहिए, लेकिन कांवड़ रूट पर ‘पहचान’ सिस्टम से भी परेशानी हो रही है।

हिंदू हलाल खाना बंद कर दे तो सेक्यूलरिज्म खतरे में !
दिलचस्प बात यह है कि हिंदू अगर हलाल सर्टिफिकेट का खाने को मना कर दे तो सेक्यूलरिज्म ख़तरे में हो जाता है। हिंदू अगर थूका हुआ खाने को मना कर दे तो भी सेक्यूलरिज्म ख़तरे में आ जाता है। यह समझ से परे है कि अपनी पहचान बताने में क्या हर्ज है ? क्या विपक्ष और लेफ्ट लिबरल कुतर्क की राजनीति नहीं कर रहे हैं? जब एक समुदाय के लोग कहते हैं कि हमें खाने पीने की चीजों पर हलाल मार्का चाहिए ताकि हमें पता चले कि हम जो खा रहे हैं क्या खा रहे हैं किसके यहां का खा रहे हैं। लेकिन जब यही बात दूसरे समुदाय के लोग करते हैं तब उनके पेट में मरोड़ उठने लगती है, यह दोगलापन है।

प्रशासन का निर्देश- पहचान के साथ करें दुकानदारी
एसएसपी अभिषेक सिंह ने कहा कि कांवड़ यात्रा की तैयारियां शुरू हो गई हैं। जिले में कांवड़ियों की ओर से लिए जाने वाले मार्गों की कुल लंबाई करीब 240 किलोमीटर है। इन मार्गों पर स्थित सभी भोजनालयों पर मालिकों या कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित होना चाहिए। एसएसपी ने कहा कि होटल हों, ढाबे हों या ठेले हों, जहां से कांवड़िए खाद्य सामग्री खरीदते हैं, उनके लिए आदेश जारी किया गया। दुकानदारों को निर्देश दिया गया है कि वे अपनी पहचान के साथ दुकानदारी करें यानी सभी दुकानदारों को अपनी दुकान पर नाम का बोर्ड लगाने को कहा गया है। मुजफ्फरनगर में कांवड़ यात्रा के रास्ते पर पड़ने वाले बहुत से मुस्लिम दुकानदारों ने बोर्ड लगाने शुरू कर दिए हैं।

यूपी के साथ उत्तराखंड सरकार का फैसला- नाम का बोर्ड लगाना होगा
उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उत्तराखंड की धामी सरकार ने भी फैसला किया है कि कांवड़ के रास्ते में पड़ने वाले दुकानदारों को अपना असली नाम का बोर्ड लगाना होगा। प्रशासन का निर्देश आते ही विपक्षी दलों और लेफ्ट लिबरल गैंग को मिर्ची लग गई है। मुजफ्फरनगर के दुकानदार प्रशासन का आदेश मान कर बोर्ड लगाना शुरू कर चुके हैं लेकिन इस फैसले पर सियासत शुरू हो गई है। अदसदुद्दीन ओवैसी से लेकर महुआ मोईत्रा तक ने योगी सरकार को घेरा है। AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी से लेकर अखिलेश यादव, पवन खेड़ा, जावेद अख्तर और तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोईत्रा ने तक ने फैसले पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।

शिकायतों के बाद प्रशासन ने उठाया यह कदम
पिछले वर्ष कावड़ यात्रा के समय मुजफ्फरनगर के बघरा में स्तिथ आश्रम के संचालक स्वामी यशवीर महाराज ने राष्ट्रीय राजमार्ग 58 पर स्थित होटल ढाबो के मुस्लिम समाज के लोगों द्वारा हिंदू देवी देवताओं के नाम पर आधारित नाम रखने का आरोप लगाते हुए कार्रवाई की मांग की थी। इस बार भी स्वामी यशवीर महाराज ने प्रशासनिक अधिकारियों से बात कर मुस्लिम होटल संचलको के नाम मोटे अक्षरों में अंकित करने की मांग की थी। हाल ही में मुजफ्फरनगर के विधायक और यूपी के मंत्री कपिल देव अग्रवाल ने एक जिला स्तरीय बैठक में कहा कि मुसलमानों को किसी भी विवाद से बचने के लिए हिंदू देवी-देवताओं के नाम पर अपनी दुकानों का नाम नहीं रखना चाहिए। जिला प्रशासन ने मंत्री की चिंता पर ध्यान दिया और पुलिस को कुछ शिकायतें भी मिली थीं। इसी को मद्देनजर रखते हुए निर्देश जारी किए।

दुकानदार स्वेच्छा से निर्देश का पालन कर रहेः SSP
मुजफ्फरनगर के एसएसपी अभिषेक सिंह का कहना है कि मुजफ्फरनगर में कांवड़ यात्रा का मार्ग 240 किलोमीटर है। इस मार्ग पर खान-पान के जितने ठेले और होटल हैं, इन जगहों से अपने लिए खाने-पीने की चीजें खरीदते हैं। इन दुकानदारों से कहा गया है कि वे अपने प्रोपराइटर और वहां काम करने वालों के नाम बाहर प्रदर्शित करें ताकि कावंड़ियों में किसी तरह की भ्रम की स्थिति उत्पन्न न हो। हमारी कोशिश है कि कांवड़ यात्रा के दौरान कहीं आरोप-प्रत्यारोप और कानून-व्यवस्था बिगड़ने की स्थिति न बने। मार्ग पर सभी दुकानदार स्वेच्छा से इस निर्देश का पालन कर रहे हैं।

फैसला वापस लेने का सवाल ही नहींः DIG सहारनपुर
सहारनपुर के DIG ने कहा कि योगी सरकार ठेलों-दुकानों पर नाम लिखवाने से पीछे नहीं हटेगी, बल्कि सवाल ही नहीं है। कांवड़ मार्ग पर बहुत शिकायतें आई हैं, यहां अनियमित रेट वसूले जाते हैं और मांस आदि की बिक्री की जाती थी। अब ऐसा नहीं करने दिया जाएगा।

असदुद्दीन ओवैसी ने अफ्रीका और जर्मनी से की तुलना
AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने इस फैसले की तुलना दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद और जर्मनी में यहूदिया के बहिष्कार से की। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा है, ‘उत्तर प्रदेश पुलिस के आदेश के अनुसार अब हर खाने वाली दुकान या ठेले के मालिक को अपना नाम बोर्ड पर लगाना होगा ताकि कोई कांवड़िया गलती से मुसलमान की दुकान से कुछ न खरीद ले। इसे दक्षिण अफ्रीका में अपारथाइड कहा जाता था और हिटलर की जर्मनी में इसका नाम ‘Juden Boycott’ था।

महुआ मोईत्रा ने संविधान विरोधी बताया
टीएमसी की सांसद महुआ मोईत्रा ने मुजफ्फरनगर प्रशासन के इस फैसले के संविधान विरोधी बताते हुए लिखा, ‘आगे क्या? क्या मुसलमान अपनी पहचान के लिए अपनी आस्तीन पर स्टार ऑफ डेविड का निशान पहनेंगे? अगली बार जब कांवड़ियों या उनके परिवारों को डॉक्टर या खून की आवश्यकता हो तो उनके इलाज के लिए दूसरी कांवड़ ढूंढ लें। यह पूरी तरह से अवैध और संविधान विरोधी है।’

यह सरकार प्रायोजित कट्टरताः पवन खेड़ा
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने इसे ‘सरकार प्रायोजित कट्टरता’ करार दिया। खेड़ा ने एक पोस्ट में कहा, “सिर्फ राजनीतिक दलों को ही नहीं सभी सही सोच वाले लोगों और मीडिया को इस राज्य प्रायोजित कट्टरता के खिलाफ उठ खड़े होना चाहिए। हम BJP को देश को अंधकार युग में वापस धकेलने की अनुमति नहीं दे सकते।”

दुकानों पर नाम लिखने के आदेश पर भड़के अखिलेश यादव
अखिलेश यादव ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा ‘… और जिसका नाम गुड्डू, मुन्ना, छोटू या फत्ते है, उसके नाम से क्या पता चलेगा? माननीय न्यायालय स्वत: संज्ञान ले और ऐसे प्रशासन के पीछे के शासन तक की मंशा की जाँच करवाकर, उचित दंडात्मक कार्रवाई करे. ऐसे आदेश सामाजिक अपराध हैं, जो सौहार्द के शांतिपूर्ण वातावरण को बिगाड़ना चाहते हैं।’

जावेद अख्तर ने कहा- नाजी शासन में दुकानों पर निशान लगते थे
कवि, गीतकार बुद्धिजीवी जावेद अख्तर को भी यह बात हजम नहीं हो पाई जावेद अख्तर ने इसकी तुलना जर्मनी के नाजी शासन से कर डाली और कहा कि नाजी शासन में दुकानों पर निशान लगते थे। जावेद अख्तर ने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘मुजफ्फरनगर यूपी पुलिस ने निर्देश दिया है कि निकट भविष्य में किसी विशेष धार्मिक जुलूस के मार्ग पर सभी दुकानों, रेस्टोरेंट और यहां तक ​​कि वाहनों पर मालिक का नाम प्रमुखता से और स्पष्ट रूप से दर्शाया जाना चाहिए। क्यों? नाजी जर्मनी में वे केवल विशेष दुकानों और घरों पर ही निशान बनाते थे।’

मोहम्मद जुबैर ने बताया- यह खतरनाक है!
लेफ्ट लिबरल गैंग से मोहम्मद जुबैर ने सोशल मीडिया पर लिखा- यह ख़तरनाक है। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में, एसपी अभिषेक सिंह ने कांवर यात्रा के मार्ग पर पड़ने वाले होटलों, ढाबों और छोटे विक्रेताओं को आदेश दिया कि वे मालिकों के धर्म की पहचान करने के उद्देश्य से उनकी दुकानों के सामने उनके नाम प्रदर्शित करें।

राजदीप सरदेसाई का सबका साथ सबका विकास पर तंज 
पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने सोशल मीडिया पर लिखा- तो अब, यूपी में कांवर यात्रा मार्ग पर खाद्य विक्रेताओं,फेरीवालों को पुलिस ने अपने ठेले,दुकानों,रेस्तरां पर अपना नाम लिखने के सख्त निर्देश दिए हैं। वास्तव में, यह एक संकेत है कि मुस्लिम मालिक वाली दुकानों से कोई भोजन नहीं खरीदा जाएगा! दक्षिण अफ्रीका में, ऐसी प्रथाओं को एक बार ‘रंगभेद’ परिभाषित किया गया था। सबका साथ, सबका विकास किसी का?

वैष्णो ढाबा, खाटू श्याम ढाबा, गणपित ढाबा- सबके मालिक मुसलमान
सहारनपुर में जनता वैष्णो ढाबा, आगरा-मथुरा रोड पर खाटू श्याम ढाबा, बरेली में चौधरी स्वीट्स, हरिद्वार रोड पर न्यू गणपति टूरिस्ट ढाबा नंबर-1, मुजफ्फरनगर में ओम शिव वैष्णो ये सभी दुकान पहचान बदलकर खोले गए हैं। इनके मालिक मुसलमान हैं। बिहार में उजियार आलम ने अपना नाम अर्जुन सिंह बताकर दुकान खोली और हिंदू लड़कियों को काम पर रखने लगा। उसका मकसद लड़कियों को लव जिहाद में फंसाकर धर्मांतरण करना था। इस काम के लिए उसे जरूर कहीं से पैसे मिलते होंगे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।

थूक जिहाद वालों की हो सकेगी पहचान 
आखिर इन पर लोग कैसे विश्वास करे। आजकल सोशल मीडिया अलग-अलग शहरों के अनेक वीडियो वायरल हो रहे होते हैं जहां इस समुदाय के लोग थूक जिहाद कर रहे होते हैं। फलों में थूक लगाकर पैक करते हैं। सैलून में थूक मिलाकर फेस मसाज करते हैं। गंदी नालियों में सब्जियों को धोते हैं। समोसे में गाय मांस मिलाकर बेचते हैं। ऐसे अनेक उदाहरण वीडियो प्रमाण के साथ हैं। ऐसे में हिंदुओं को यह जानने का अधिकार है कि जिस दुकान से वे अपने व्रत के लिए फल खरीद रहे हैं वह दुकान कौन चला रहा है।

दुबई में भी हिंदू पहचान छिपाकर नहीं खोलते दुकान
सोशल मीडिया पर एक यूजर मो. आसिफ खान ने लिखा- मुस्लिम बहुल देशों में लाखों हिंदू रह रहे हैं। वे अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं और अपने देश को धन भेज रहे हैं। अगर उन देशों में मुसलमान ऐसी हरकतें करने लगें तो क्या होगा? इसका जवाब देते हुए कश्मीरी हिंदू नामक यूजर ने कहा- ये है दुबई में रेस्टोरेंट “इंड्या बाय विनीत”। हिंदू आप लोगों की तरह अपनी पहचान नहीं छिपाते। दुबई के इस रेस्टोरेंट में गणेश जी मूर्ति भी लगी हुई है। अब जिसको खाना है आकर खाए जिसको नहीं खाना वो न आए। कम से कम वो पहचान तो नहीं छिपा रहे। लेकिन भारत में तो पहचान छिपाकर गलत हरकतें की जा रही हैं।

हिंदुओं पर थोपा गया है हलाल सर्टिफिकेट
भारत में खाने पीने के सामान का प्रमाणन करने वाला FSSAI हलाल सर्टिफिकेट नहीं देता है। भारत में हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जमीयत उलमा-ए-महाराष्ट्र (जमीयत उलमा-ए-हिंद की एक राज्य इकाई) और जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट जैसे कुछ संगठन कोई उत्पाद हलाल है नहीं, इसका प्रमाण पत्र जारी करते हैं। हलाल मुस्लिमों के खाने-पीने के सामान और विशेष कर मांस से सम्बन्धित है। यानी जो हलाल उत्पाद हैं, उन्हें मुस्लिम खा सकते हैं। मांस का हलाल होना इस बात का प्रमाणन है कि वह उसी तरीके से काटा गया है, जैसा इस्लामी किताबों में बताया गया है। हलाल सर्टिफिकेट यूं तो मुसलमानों के लिए होती है लेकिन इसे हिंदुओं पर भी थोपा जाता है। किसी कंपनी का सामान अगर हिंदू खरीदते हैं और उस पर हलाल सर्टिफेकेट है तो इसका मतलब है कि यह हिंदुओं पर थोपा गया है। क्योंकि हिंदुओं को हलाल से कोई मतलब नहीं है। यानी 18 प्रतिशत मुसलमानों के लिए जो हलाल सर्टिफिकेट लगाया गया है वह 80 प्रतिशत हिंदुओं पर भी थोप दिया गया।

बेवजह हलाल सर्टिफिकेट के लिए पैसे भरते हैं हिंदू
जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट हलाल इकोसिस्टम में आने वाली एक कम्पनी से 60,000 रुपये रजिस्ट्रेशन और फिर 1500 रुपये प्रति उत्पाद हलाल प्रमाणन के लिए लेती है। इसके ऊपर से GST भी लगता है। अगर कोई कंपनी 10 उत्पाद बनाती है और उसको हलाल प्रमाणन की आवश्यकता है तो उसे 75,000 रुपये + GST देना होगा। यह धनराशि सिर्फ तीन साल के लिए है, इसके बाद दोबारा फीस देनी होती है। कंपनियां इस सर्टिफिकेट को लेने के लिए जो खर्च करती हैं वह पैसे भी उत्पाद की लागत पर जोड़ देती हैं। इस तरह 80 प्रतिशत हिंदू जब भी हलाल सर्टिफिकेट वाले उत्पाद खरीदते हैं तो वे इसके लिए भी पैसा चुकाते हैं।

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