लालू-राबड़ी अपने 15 साल के राज में बिहार में जिस अंधे दौर की कहानी लिख गए, उसकी निशानियां आज भी जिंदा हैं। उस काले दौर में लालू प्रसाद यादव और बाद में उनकी पत्नी राबड़ी देवी की सरकार ऐसी राजनीति का गढ़ बन गई, जिसमें सामाजिक न्याय के नाम पर प्रशासनिक अराजकता, आर्थिक ठहराव और संस्थागत पतन ने स्थायी रूप से अपनी जड़ें जमा लीं। इस दौरान बिहार विकास की दौड़ में मीलों पीछे छूट गया।
परिवर्तन के नाम पर पतन- लालू यादव की जातिवादी राजनीति ने प्रशासन को पंगु बना दिया था। जातिगत वफादारी का खेल खुलेआम हो रहा था। कुछ ऐसे लोगों को प्रमुख पदों पर बैठाया गया, जिन्होंने अपने निकम्मेपन से ना सिर्फ राज्य की छवि पर बट्टा लगाया, बल्कि उन संस्थाओं के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया।
युवाओं के भविष्य के साथ धोखा- लालू प्रसाद यादव के शासनकाल बिहार की लोकसेवा भर्ती प्रणाली को लेकर कई विवाद और अनियमितताएं सामने आई थीं। इस दौर में सरकारी नौकरियों की भर्तियों में पारदर्शिता की भारी कमी, जातिवाद आधारित नियुक्तियां, और प्रशासनिक भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। लालू राबड़ी राज में BPSC के दो-दो चेयरमैन को जेल जाना पड़ा था। इंजीनियरिंग एडमिशन घोटाले के आरोपी को बीपीएससी का चेयरमैन बना दिया गया था। मुख्यमंत्री रहते जनवरी 1997 में लालू प्रसाद ने जिस डा. लक्ष्मी राय को बिहार लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाया था, जिन्हें पद पर रहते हुए भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाना पड़ा था।
लालू सरकार ने बीपीएससी में इस भ्रष्टाचार से सबक नहीं लिया और 2004 में बीपीएससी के चेयरमैन बने राम सिंहासन सिंह। जिन्होंने इसे भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया। वर्ष 2003 में बिहार के कनीय कर्मचारियों को बिहार प्रशासनिक सेवा में अपग्रेड करने के लिए बीपीएससी ने जिस परीक्षा को आयोजित किया था। उसमें आरोप लगा कि 184 कैडिडेट को गलत तरीके से पैसा के दम पर बिहार प्रशासनिक सेवा में अपग्रेड कर दिए गए।
लालू राज में इंजीनियरिंग एडमिशन घोटाला- वर्ष 1996 में इंजीनियरिंग इंट्रेस टेस्ट हुआ था। तब जेल की हवा खाने वाला डॉ लक्ष्मी राय जमशेदपुर रिजनल इंजीनियरिंग कॉलेज का प्रिंसपल था। उनको कॉपी कोडिंग का काम दिया गया था। लेकिन आरोप लगा कि अपने लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए उसने 245 छात्रों के कॉपी की कोडिंग ही बदल दी थी। प्रतिभाशाली युवाओं के भविष्य के साथ इससे बड़े धोखे की साजिश कोई हो नहीं सकती।
बर्बाद हो गई शिक्षा व्यवस्था- 1990 से 2005 तक का समय बिहार के इतिहास में एक ऐसा दौर रहा, जब राज्य की प्रशासनिक, आर्थिक और शैक्षणिक व्यवस्थाएं एक के बाद एक ढहने लगीं। इस काल को आमतौर पर “जंगल राज” कहा जाता है। यह केवल कानून व्यवस्था ही नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था के गिरते स्तर, नकली डिग्रियों की मंडी, और फर्जी नियुक्तियों के खुले बाजार के लिए भी कुख्यात रहा।
शिक्षा संस्थानों का पतन- लालू रबड़ी के इस दौर में कॉलेज खाली ढांचे बन गए थे। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में नियमित कक्षाएं नहीं होती थीं। छात्र सालों तक डिग्री के लिए भटकते थे। आरोप लगता है कि उस दौर में छात्रों को दाखिला देने के बदले पैसे लिए जाते थे। उस दौर में डिग्रियां केवल फॉर्मेलिटी बन चुकी थीं। परीक्षा हो या न हो, डिग्री मिल जाती थी।
शिक्षा माफिया का आतंक- इस दौरान नकली डिग्रियों का गोरखधंधा चरम पर पहुंच गया। कई निजी संस्थान और “फर्जी कॉलेज” बन गए जो मोटी रकम लेकर नकली डिग्रियां देते थे। 1995 में हुए बीएड डिग्री घोटाले ने सबको हैरान कर दिया था। तब ढ़ाई-ढ़ाई लाख रुपये में बीएड की डिग्रियां बांटने के आरोप लगे थे।
मेडिकल प्रवेश परीक्षा पेपर लीक
2002 में मेडिकल प्रवेश प्रतियोगिता परीक्षा पेपर लीक मामले में नवंबर 2003 को दिल्ली से डॉ. रंजीत उर्फ सुमन कुमार सिंह को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया। यह शिक्षा माफिया रंजीत डॉन नाम से जाना जाता था। इसके साथी को भी अरेस्ट किया गया। राजीव मुंबई में प्रिंटिंग प्रेस से पेपर लीक करता था।
हाशिए पर पढ़ाई–लिखाई- लालू-रबड़ी के शासन काल में स्कूलों में पढ़ाई लिखाई क स्तर काफी गिर गया। विश्वविद्यालयों में छात्र राजनीति पर बाहुबलियों का कब्जा हो गया। शिक्षा संस्थाओं में अयोग्यता शिक्षकों की भरमार हो गई और विद्याथियों का भविष्य ताक पर रख दिया गया। हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि स्कूलों में ‘भूतिया शिक्षक’ थे, जिनका काम सिर्फ सैलरी लेना था।
स्वास्थ्य व्यवस्था की दुर्दशा- विधानसभा चुनावों को देखते हुए लालू एंड पार्टी अब क्रेडिट लूटने में जुटे हैं। लेकिन लालू राज का एक वो दौर भी था जब स्वास्थ्य व्यवस्था जैसे जनकल्याण से जुड़ी जिम्मेदारियों को कोई देखने वाला नहीं था। लोग इलाज के लिए भटक रहे थे। बिहार के 60% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या तो बंद थे या उनमें डॉक्टर नहीं थे। गरीबों को इलाज के लिए निजी क्लीनिकों या दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता था। लालब रबड़ी सरकार की इन नीतियों की वजह से बिहार विकास की दौड़ में 30 साल पीछे चला गया।
बिहार की अर्थव्यवस्था का बंटाधार- लालू शासन में बिहार की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से जड़ हो गई। पहले यहां जो छोटे-मोटे कारखाने थे वो भी बंद हो गए।बिजली व्यवस्था चरमरा गई। सड़कें गड्ढों में तब्दील हो चुकी थीं। ज्यादातर गांवों में पक्की सड़कें नहीं थीं। जनता के पैसों की ऐसी लूट हुई और भ्रष्टाचार का ऐसा जाल फैला कि लोग बेतहाशा पलायन करने लगे।
अलकतरा घोटाला- सुपौल जिले में 21 साल पहले 39 लाख का अलकतरा घोटाला हुआ था। उस वक्त लालू प्रसाद ही बिहार के मुख्यमंत्री थे। उनके मंत्रिमंडल में पथ निर्माण मंत्री इलियास हुसैन सहित छह लोगों को इस घोटाले का आरोपी बनाया गया। इस मामले में सड़क बनाने से पहले ही अलकतरा का पैसा निकाल लिया गया था।
राजनीतिक परिवारवाद और भ्रष्टाचार- 1997 में जब चारा घोटाले में लालू यादव का नाम सामने आया और वे जेल गए। लेकिन उन्होंने प्रशासन की बागडोर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सौंप दी। इसके बाद बिहार में परिवारवाद और भाई-भतिजावाद अपने चरम पर पहुंच गया और लालू राज में शासन केवल नारों और मंचों तक सिमट कर रह गया।
लालू राज में पत्रकारों की हत्या- लालू राज में तेजी से बढ़ते अपराध और खुलेआम भ्रष्टाचार की एक वजह बिहार में लालू राज के दौरान पत्रकारों पर हुए हमले भी थे। बताया जाता है इस दौर में कई पत्रकारों को अपनी जान गंवानी पड़ी। 1991 में गया के पत्रकार अशोक प्रसाद की हत्या, 1994 में सीतामढ़ी के दिनेश दिनकर की हत्या, 1997 में गोपालगंज में हिंदुस्तान अखबार के कार्यालय पर बम हमला, 1999 में सिवान में दूरदर्शन कार्यालय पर हमला,1999 में मधुबनी में वरिष्ठ पत्रकार चंद्रिका राय पर हमला जैसे मामले आरजेडी के शासनकाल में चौथे स्तंभ के दयनीय हालत को बताने वाले हैं। लालू यादव के निरंकुश शासन ने बिहार को विकास की दौड़ से बाहर कर दिया। लालू यादव का अपना परिवार जितनी तेजी से ऊंचाई चढ़ता गया, बिहार उतना ही गर्त में जाता गया। यह कालखंड बिहार के इतिहास का एक खोया हुआ युग है – जिसकी कीमत आज भी राज्य के लोगों को चुकाना पड़ रहा है।