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महागठबंधन में दरार: लालू-तेजस्वी को आंखें दिखाने लगी कांग्रेस, RJD से नहीं मिले कांग्रेस नेता, PK ने पैसे लेकर बांटी सीटें

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बिहार में विधानसभा चुनाव के ऐलान के बाद महागठबंधन में सीट और टिकटों के लेकर घमासान मच गया है। आरजेडी चीफ लालू यादव की कार की घेराबंधी कर डाली तो राबड़ी के आवास के बाहर नाराज कार्यकर्ताओं का अखाड़ा बन गया। उधर कांग्रेस भी महागठबंधन की कमजोर कड़ी होने के बावजूद लालू-तेजस्वी पर आंखे तरेर रही है। आलाकमान की शह पर कांग्रेस के बड़े नेता अब लालू यादव को भी भाव नहीं दे रहे। वरिष्ठ कांग्रेस नेता अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, जयराम रमेश और अधीर रंजन चौधरी चुनाव प्रबंधन के लिए पटना पहुंच चुके हैं। लेकिन उन्होंने जानबूझकर लालू और तेजस्वी से मुलाकात नहीं की। इससे महागठबंधन पर महा-संकट आने के आसार नजर आने लगे हैं। यदि दो-तीन दिन में सियासी पेच ना सुलझा तो दरार और बढ़ सकती है। दूसरी ओर पहली बार चुनावी मैदान में उतरे प्रशांत किशोर भी विवादों में घिर गए हैं। उनकी जन सुराज पार्टी के कार्यकर्ताओं ने ही पीके पर पैसे लेकर सीटें बांटने के आरोप लगाए हैं। ऐन चुनाव से पहले ऐसी पोल खुलने के बीच मानहानि मामले में नोटिस ने पीके की टेंशन और बढ़ा दी है।

राहुल के पीछे लग तेजस्वी ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी
दरअसल, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने वोटर अधिकार यात्रा के दौरान अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मार ली थी। इस यात्रा में राहुल गांधी 17 दिनों तक बिहार में रहे। तेजस्वी ने ही राहुल को लीड करने का मौका दिया और वे पहली बार राहुल गांधी के पीछे-पीछे घूमे। तेजस्वी ने यात्रा में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। इससे बिहार में मृतप्राय पड़ी कांग्रेस की कुछ सांसें चलने लगीं। राहुल गांधी को गुमान हो गया कि यह सब उनकी वजह से है। इसलिए इसके बाद से कांग्रेस अब आरजेडी को आंखे दिखाने लगी है। तेजस्वी के सीएम फेस पर भी एतराज जताने के बाद अब कांग्रेस ने सीट बंटवारा के लिए राजद को अल्टीमेट तक दे दिया है। यदि दो-तीन दिन में दोनों दलों में सहमति नहीं बनी तो कांग्रेस अपनी पहली सूची जारी कर सकती है। कांग्रेस ने पहले 15 उम्मीदवारों की सूची बना ली है। यदि कांग्रेस आम सहमति के पहले लिस्ट जारी कर देती है तो महागठबंधन पर महा-संकट के बादल छा सकते हैं।

कांग्रेस के बड़े नेता अब लालू-तेजस्वी को नहीं दे रहे भाव
कांग्रेस ने भले ही पिछले विधानसभा चुनाव में मात्र 19 सीटें जीतकर सबसे कमजोर प्रदर्शन किया हो। इसके बावजूद वह अगले माह होने वाले चुनाव के लिए राजद की आंख में आंख मिला कर बात कर रही है। यही वजह है कि कांग्रेस के बड़े नेता अब लालू यादव और तेजस्वी को भी भाव नहीं दे रहे। हाइकमान के आदेश पर अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, जयराम रमेश और अधीर रंजन चौधरी चुनाव प्रबंधन के लिए पटना आए। लेकिन उन्होंने लालू यादव और तेजस्वी से मुलाकात करने की जरूरत ही नहीं समझी। भूपेश बघेल ने तो सीधे-सीधे तेजस्वी यादव को चुनौती ही दे डाली। उन्होंने कहा, तेजस्वी खुद को अपनी ओर से सीएम फेस बता रहे हैं, लेकिन सीएम का चेहरा उनकी पार्टी का हाईकमान घटक दलों की सहमति से तय करेगा।

 

 

महागठबंधन उम्मीदवारों की घोषणा में देरी से चुनाव पर असर
चुनाव के लिए पहले चरण के नामांकन की शुरुआत 10 अक्टूबर से हो चुकी है। लेकिन 10 अक्टूबर तक महागठबंधन का सीट बंटवारा फाइनल नहीं हो सका है। संभावित प्रत्याशियों में इसको लेकर रोष है कि पिछली बार उम्मीदवारों की घोषणा में देरी से तैयारी का समय नहीं मिला था। पहले चरण के चुनाव के नामांकन की अंतिम तारीख से एक दिन पहले प्रत्याशियों के नाम घोषित किये गये। कांग्रेस ने आंतरिक गुटबाजी और संभावित असंतोष से निपटने के लिए यह देरी की थी। लेकिन इस कोशिश में उम्मीदवारों को हड़बड़ी में आधी अधूरी तैयारी के साथ चुनाव में उतरना पड़ा। टिकट को लेकर भी असंतोष था। पूर्व केन्द्रीय मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता केके तिवारी ने सोनिया गांधी को पत्र लिख कर टिकट वितरण में धांधली का आरोप लगाया था। उन्होंने चुनाव प्रबंधन से जुड़े नेताओं की जांच कराये जाने की मांग की थी।

तीन साल पीके के साथ घूमी, अब कर दिया विश्वासघात 
जन सुराज पार्टी की लिस्ट की घोषणा होते ही कार्यकर्ताओं और संभावित प्रत्याशियों की नाराजगी और रोष सामने आ गया है। जन सुराज की महिला कार्यकर्ता पुष्पा सिंह ने टिकट ना देने पर पीके पर विश्वासघात का आरोप लगाया है। उन्होंने मीडिया से कहा कि तीन साल मैं घर में नहीं बैठी। अपना सारा सुख त्याग दिया और जन सुराज के लिए काम किया। घर की बेटी-बहू होकर भी मैंने हिम्मत जुटाई। वे पैदल चले तो मैं भी उनके साथ चल पड़ी। आज मेरे साथ अन्याय हुआ है। टिकट के लिए उन लोगों का नाम अनाउंस हुआ जो क्षेत्र में घूमे ही नहीं, जनता उनको पसंद तक नहीं करती है। बहुत उम्मीद लेकर आई थी, सब पर पानी फिर गया है। मैंने तो उम्मीदवार बनने का प्रोसेस भी पूरा कर लिया था। पुष्पा ने कहा कि बनियापुर-मशरख की जनता जन सुराज का हिसाब कर देगी।

जन सुराज पार्टी ने 21 हजार लिए, टिकट किसी और को दिया
पाटलिपुत्र ऑफिस के बाहर पहुंचे कार्यकर्ता अमर कुमार सिन्हा ने दावा किया, ‘पार्टी ने उनको कुम्हरार विधानसभा से टिकट देने की बात कही थी। इसके लिए 21000 रुपए भी लिए काम कराया। 5 जनसभाएं करवाई और एंड मोमेंट पर ये सीट केसी सिन्हा को दे दी। सिन्हा के मुताबिक RCP सिंह ने अपनी बेटी को टिकट दिलवा दिया। पीके ने काम करवाया और RCP सिंह ने भरोसा दिया। हमने जन सुराज पार्टी छोड़ दिया। ये आदमी (प्रशांत किशोर) बिहार बदलाव की बात कर रहा है और दूसरे को चोर बोलकर खुद को ईमानदार साबित करना चाहता है।

मुजफ्फरपुर की सीट पीके ने 40 लाख में बेची- केजरीवाल
दरअसल, गुरुवार को जन सुराज ने 51 सीटों पर कैंडिडेट्स के नाम की घोषणा की। नाम की घोषणा के साथ ही हंगामा शुरू हो गया। कई कार्यकर्ता टिकट नहीं मिलने से नाराज दिखे। मुजफ्फरपुर में जन सुराज के नेता संजय केजरीवाल ने पार्टी से त्यागपत्र देने के साथ-साथ निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने की घोषणा की है। संजय केजरीवाल ने कहा कि जन सुराज में अब सिद्धांत-विचारधारा नहीं, बल्कि पैसे का बोलबाला हो गया है। मुजफ्फरपुर नगर विधानसभा की टिकट 40 लाख रुपए में बेची गई है।

125 करोड़ के मानहानि केस में नोटिस ने पीके की बढ़ाई टेंशन
दूसरी ओर 125 करोड़ के मानहानि केस में प्रशांत किशोर को कोर्ट से नोटिस जारी हुआ है। भाजपा सांसद डॉ. संजय जायसवाल की ओर से दायर मानहानि केस की सुनवाई सब जज 1 बेतिया के न्यायालय में हुई। कोर्ट ने मानहानि केस एडमिट कर लिया है। इसमें जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर को कोर्ट ने नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने प्रशांत किशोर को विशेष दूत से समन देने का आदेश दिया है। सांसद की तरफ से मैंडेटरी इंजेक्शन पिटीशन भी दाखिल किया गया था। जिस पर कोर्ट ने कारण बताओ नोटिस जारी किया है।

आइए, बिहार की चुनावी हवा में एनडीए के मजबूत और महागठबंधन के कमजोर होने की कुछ वजहों पर एक नजर डालते हैं…

1.मोदी-नीतीश के चेहरे के आगे सब हुए धराशायी
बिहार की राजनीति में चेहरों का असर हमेशा निर्णायक रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की अपार लोकप्रियता और सीएम नीतीश कुमार की प्रशासनिक पकड़ ने चुनावी समीकरण को बदल दिए हैं। सर्वे बताते हैं कि विकास कार्य और वर्क परफॉर्मेंस के साथ-साथ पीएम मोदी का करिश्मा मिलकर एनडीए को मजबूत बना रहे हैं। इसके आगे महागठबंधन का कोई चेहरा बराबरी नहीं कर पा रहा। तेजस्वी यादव जरूर हाथ-पैर मारने में लगे हुऐ हैं, लेकिन उनके कई सहयोगी दलों में उन्हें लेकर एका नहीं है। यही वजह है कि विभिन्न ओपिनियन पोल में मोदी-नीतीश की जोड़ी जनता को ज्यादा भरोसेमंद लग रही है।

2.तेजस्वी यादव के सीएम फेस बनने पर कन्फ्यूजन
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव खुद को कई बार सीएम फेस घोषित कर चुके हैं, लेकिन उनके नेतृत्व को लेकर जनता और सहयोगी दलों दोनों में ही भ्रम की स्थिति है। कई बार उनके बयानबाजी और रणनीति को लेकर सवाल उठे हैं। अलग-अलग सर्वे अनुमानों में युवा नेता होने के बावजूद वे अभी तक स्थायी विश्वास पैदा नहीं कर पाए हैं। ना ही उनके चाहने के बावजूद कांग्रेस ने उन्हें सीएम फेस माना है। यही कारण है कि कभी उन्हें सीएम के विकल्प के रूप में आगे बढ़ते हुए दिखाया जाता है, तो कभी विपक्षी खेमे में भी असहमति झलकती है। यह कन्फ्यूजन महागठबंधन को नुकसान पहुंचा रहा है।

3.महागठबंधन नहीं बना पाया कोई भी नैरेटिव
बिहार में नीतीश कुमार के सरकार कई साल है। लेकिन महागठबंधन के सहयोगी उनके खिलाफ कोई नैरेटिव नहीं बना पाए हैं। क्योंकि पीएम-सीएम की जोड़ी ने बिहार में विकास की गंगा बहा दी है। दरअसल, हर चुनाव एक नई कहानी मांगता है, एक ऐसा मुद्दा जो जनता से जुड़ सके। लेकिन, महागठबंधन अभी तक कोई ठोस नैरेटिव गढ़ने में नाकाम रहा है। ना रोजगार का ठोस एजेंडा, ना शिक्षा-स्वास्थ्य पर स्पष्ट विज़न। केवल नीतीश विरोध से जनता को साधा नहीं जा सकता। जबकि, एनडीए और उसके सहयोगी लगातार “विकास, स्थिरता और नेतृत्व” की लाइन पर अपनी पकड़ मजबूती के साथ बनाए हुए हैं।

4. बिहार में कांग्रेस और राहुल गांधी का सीमित प्रभाव
महागठबंधन की सबसे बड़ी कमजोरी उसके सहयोगी दलों में कांग्रेस है। राहुल गांधी ने तेजस्वी यादव को टूल बनाकर बिहार के कुछ जिलों में यात्रा निकालने की औपचारिकता जरूर पूरी की, लेकिन वे बिहार की जनता-जनार्दन के दिलों पर कोई छाप नहीं छोड़ पाए। ना ही प्रदेश में मृतप्राय पार्टी को जिंदा कर पाए। राज्य में कांग्रेस का संगठन बेहद कमजोर है और उसकी जमीनी पकड़ नगण्य है। महज कुछ सीटों पर लड़कर कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा तो बनती है, लेकिन कोई बड़ा वोट ट्रांसफर कराने की स्थिति में नहीं है। इस बार भी कांग्रेस की भूमिका ‘यूपीए के सहारे’ वाली ही दिख रही है जो गठबंधन को और अधिक कमजोर बना रही है।

5. बिहार में नया विकल्प, जनसुराज की चुनौती
राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने अभी तक पर्दे के पीछे से रणनीति बनाकर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग दलों को जिताने में भूमिका निभाई है। इस बार वे बिहार में अपनी पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में हैं। प्रशांत किशोर की ‘जनसुराज’ यात्रा ने बिहार की राजनीति में एक नया विकल्प पैदा किया है। हालांकि, चुनावी नतीजों में इसका बड़ा असर कितना होगा ये कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव महागठबंधन पर साफ दिख रहा है। क्योंकि एनडीए का वोट बैंक पूरी मजबूती से उसके साथ जुड़ा है। ऐसे में प्रशांत किशोर महागठबंधन के वोट बैंक में ही सैंध लगाएंगे। इससे विपक्ष के प्रत्याशियों के वोटों में कमी आ सकती है। सर्वे बता रहे हैं कि खासकर ग्रामीण और शिक्षित मतदाताओं में पीके का कुछ असर है।

6.ओवैसी से महागठबंधन का समीकरण कमजोर
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का बिहार में सीमांचल इलाका हमेशा से टारगेट रहा है। यहां मुस्लिम वोटों पर उनकी पकड़ बढ़ रही है, जिसका सीधा असर महागठबंधन के पारंपरिक वोट बैंक पर पड़ने वाला है। विभिन्न ओपिनियन पोल के अनुसार, सीमांचल में आरजेडी को मुस्लिम-यादव समीकरण पर हमेशा भरोसा रहा है, लेकिन ओवैसी की सक्रियता इस समीकरण को कमजोर बना रही है। आरजेडी का माई (मुस्लिम प्लस यादव) फेक्टर में दरार महागठबंधन की हार की एक बड़ी वजह बन सकती है।

7. लालू यादव की चारा चोर इमेज से होगा नुकसान
बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी अपने कार्यकाल में विवादित रहे हैं। जहां अपराधों के चरम पर होने के कारण उनका शासन जंगलराज के रूप में मशहूर हुआ। अपहरणों को तो बकायदा अपहरण-उद्योग का दर्जा मिला। अपहरण के बाद फिरौती में नेताओं का नाम आने से उनकी इमेज और बिगड़ी। रही-सही कसर बेलगाम भ्रष्टाचार ने पूरी कर दी। लालू यादव खुद ही करोड़ों के चारा घोटाले में जेल गए। नौकरी के बदले जमीन घोटाले समेत कई केस अब भी चल रहे हैं। ऐसे में राहुल गांधी के वोट चोर के नारे पर लालू यादव की चारा चोर की छवि बहुत भारी पड़ने वाली है। इससे आरजेडी समेत महागठबंधन के सहयोगियों को मुश्किल का सामना करना पड़ेगा।

8. महागठबंधन की सीट शेयरिंग में फंसा पेंच
बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद महागठबंधन सीट शेयरिंग में पेंच फंसता नजर आ रहा है। बाहर से जहां सभी नेता एकजुटता का प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं अंदर सीट बंटवारे खींचतान मची है। सीटों के बंटवारे पर भी अभी सभी की सहमति नहीं बन पा रही है। वीआईपी प्रमुख सहनी जहां 30 सीट और डिप्टी सीएम पर अड़े हुए हैं, वहीं माले भी 40 सीट की डिमांड कर रही है। इस पर भी महागठबंधन में सहमति नहीं बन पाई है। बल्कि सीटों का बंटवारा फंस गया है। कांग्रेस भी कमजोर होने के बावजूद इस बार ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बना रही है। कांग्रेस की संभावित हार से महागठबंधन का सियासी गणित भी कमजोर पड़ेगा।

9. तीन डिप्टी सीएम पर मंथन भी रहा बेनतीजा
सीट शेयरिंग के गुणा गणित के बीच कांग्रेस ने तीन डिप्टी का फॉर्मूला प्रपोज किया है। लेकिन लगातार तीन दिन की मीटिंग के बाद भी कोई रिजल्ट नहीं निकल पाया है। बीते एक सप्ताह में तेजस्वी यादव के आवास पर छह बैठक हो चुकी हैं, 5 अक्टूबर से लेकर 7 अक्टूबर तक लगातार तीन दिन बैठक चली। 7 अक्टूबर को तो रात एक बजे तक सीट शेयरिंग, डिप्टी सीएम, सीएम फेस को लेकर मंथन होता रहा। लेकिन कोई फैसला नहीं हो पाया। मीटिंग से निकलने बाद सहनी ने कहा–हम लगभग फाइनल प्वाइंट पर पहुंच गए हैं और मैं डिप्टी सीएम बनूंगा। 8 अक्टूबर को घोषणा कर देंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसके अलावा लालू के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव भी पार्टी से अलग होने के बाद तेजस्वी यादव की राह का कांटा बने हुए हैं।

10. आरजेडी की छह सीटों पर पेंच, माले भी अड़ी
तेजस्वी यादव के आवास पर हुई मैराथन बैठक में सीटों के फार्मूले पर डिटेल्ड चर्चा हुई। इसमें कहा गया कि 2020 के विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन को सबसे अधिक महत्व दिया जाए। जिन सीटों पर उम्मीदवार 1000 वोट से कम से हारे थे और दूसरे स्थान पर रहे थे, उसे भी बड़ा आधार बनाया जाए। 2024 के लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को तो सामने रखा ही जाए। लेकिन कांग्रेस और आरजेडी के बीच आधा दर्जन सीटों पर पेंच फंस गया। कांग्रेस की सबसे बड़ी मांग लेफ्ट की बछवाड़ा सीट को लेकर थी, जो सीपीआई की पारंपरिक सीट मानी जाती है। अगले ही दिन भाकपा-माले की नाराजगी खुलकर सामने आई। माले ने 40 सीटों की मांग दुहराई, जबकि सीपीआई ने 24 और सीपीआईएम ने 11 सीटों की मांग की। आरजेडी की तरफ से माले को 20 के आसपास सीटें देने की बात कही गई। इस पर माले तैयार नहीं हुई। आरजेडी ने स्पष्ट कर दिया कि वह 130-135 से कम पर लड़ना नहीं चाहती।

 

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