दक्षिण भारतीय फिल्मों के खलनायक अभिनेता प्रकाश राज कर्नाटक में हुई गौरी लंकेश की हत्या का जवाब देश के प्रधानमंत्री से मांग रहे हैं। उन्होंने अवॉर्ड वापसी की धमकी भी दे दी, लेकिन सवाल उठता है कि कर्नाटक में हुई हत्या पर प्रधानमंत्री से जवाब क्यों मांग रहे प्रकाश राज? कर्नाटक सरकार से सवाल क्यों नहीं किया जा रहा? जाहिर है यह सब सोची समझी साजिश के तहत ही किया जा रहा है। क्योंकि हत्या कर्नाटक में हुई, ये अभिनेता भी कर्नाटक के हैं, उनके गौरी लंकेश से ‘संबंध’ भी अच्छे थे, गौरी लंकेश के ‘संबंध’ कर्नाटक के सीएम से भी अच्छे थे। राज्य शासन में इतनी ऊंची पैठ वाली पत्रकार की हत्या हो गई और जवाब केंद्र सरकार दे? साफ है कि यह महज शिगूफा नहीं बल्कि बड़ी साजिश है। दरअसल यह एक विचारधारा ही नहीं एक लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कुत्सित कोशिश है।
पीएम मोदी से ‘असहिष्णुता’ रखते हैं तथाकथित बुद्धिजीवी
हालांकि प्रकाश राज ने अपनी ही बात से पलटते हुए अवॉर्ड वापसी की बात से इनकार कर दिया, लेकिन यह तो सत्य है कि वे अवॉर्ड वापसी की बात कहकर स्वयं को लाइम लाइट में ले आए। जाहिर है अंध विरोध अब धूर्तता में भी बदल चुकी है। अवॉर्ड वापसी गैंग, JNU गैंग, अफजल गैंग, not in my name गैंग फिर सक्रिय है। मृणाल पांडे, प्रशांत भूषण, संजय सिंह, योगेंद्र यादव सब के सब जैसे तथाकथित बुद्धिजीवी फिर एक हो रहे हैं। सागरिका घोष, राजदीप सरदेसाई, अभिसार शर्मा, रवीश कुमार, राणा अयूब जैसे पक्षकारों ने भी अपनी तैयारी कर ली है। दरअसल 2002 के दंगों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे असहिष्णु गैंग के निशाने पर रहे हैं। बहरहाल ये सवाल उठ रहे हैं कि आखिर अचानक ही यह ‘असहिष्णु’ गैंग इतना सक्रिय क्यों हो गया है? आखिर क्या वजह है जो कर्नाटक से इसकी आवाज निकली और दिल्ली के प्रेस क्लब में शोर मचाने लगी?
Press clubs across India will join in protests: our simple demand: ALL govts must act in cases of attacks on media. Status report needed. pic.twitter.com/AKmMXJgNEt
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) October 2, 2017
.@prakashraaj point is why is PM #Modi following who r celebrating #gaurilankeshmurder… pic.twitter.com/JTXE5JYJlk
— Shabbir Ahmed (@Ahmedshabbir20) October 2, 2017
Stop killing journalists ! Protest at Press Club Delhi pic.twitter.com/TIjoTva2Fp
— Sagarika Ghose (@sagarikaghose) October 2, 2017
राहुल की ताजपोशी के पहले भूमिका तैयार करने की कोशिश
कांग्रेस के युवराज सितंबर के आखिरी हफ्ते में अमेरिका भ्रमण पर थे। वहां उन्होंने साफ किया था कि वे कांग्रेस का अध्यक्ष बनने को तैयार हैं। यानी कांग्रेस में उनकी ताजपोशी की तैयारी शुरू हो चुकी है और दीपावली के बाद वे कांग्रेस की कमान संभाल लेंगे। सवाल उठ रहे हैं कि आखिर राहुल की ताजपोशी से अवॉर्ड वापसी का क्या संबंध? तो सबसे पहले ये जान लीजिए कि राहुल गांधी कांग्रेस के प्रधानमंत्री उम्मीदवार भी बनने वाले हैं। इसलिए पहले से ऐसी भूमिका तैयार की जा रही है कि देश में माहौल खराब है और वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकल्प हैं।
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव को लेकर तैयारी की कवायद
अवॉर्ड वापसी गैंग सक्रिय होने का एक कारण कई राज्यों में आने वाले विधानसभा चुनाव भी हैं। गुजरात, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक जैसे राज्यों चुनाव को प्रभावित करने के लिए पुरस्कार वापसी गैंग तैयार हो चुकी है। याद कीजिये 2015 में बिहार चुनाव से ठीक पहले ऐसे ही अवॉर्ड वापसी गिरोह ने माहौल बनाया था। तब यह साबित करने की हर कोशिश हुई कि देश में ऐसा माहौल हो गया है कि अब यहां रहना दूभर है। कई नेता-अभिनेता, तथाकथित बुद्धिजीवी और ‘कलम से क्रांति’ का दावा करने वाले कई ‘दलालों’ माहौल खराब करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन इस बार शायद इनकी दाल न गले… क्योंकि देश की जनता ने इन के कारनामों को जान लिया है।
मोदी सरकार को बदनाम कर 2019 में वापसी की कोशिश
2019 में सत्ता परिवर्तन के लिए ये लोग हर वो कोशिश करने वाले हैं जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को नुकसान पहुंचे। इसके लिए गुजरात में दलित पिटाई का कनेक्शन बीजेपी से जोड़ना हो या फिर यूपी में मुसलमानों को दंगों का पीड़ित और हिंदुओं को आक्रामक बताने की कोशिश की क्यों न हो? मध्यप्रदेश में किसान आंदोलन का बहाना हो या फिर राजस्थान गौरक्षकों को गुंडा बताने की साजिश हो। ये सबकुछ भीतर ही भीतर चल रहा है। सोशल मीडिया से लेकर कई टेलिविजन चैनलों तक में ये बैठ कर मोदी विरोध की पूरी स्क्रिप्ट पढ़ रहे हैं। भूमिका तो पहले से तैयार है, अवॉर्ड वापसी की बात तो महज शुरुआत भर है।
‘दलाल पक्षकारों’ की मोदी सरकार में दाल नहीं गल रही
मोदी विरोध की राजनीति के तहत अवॉर्ड वापसी का ये नाटक अब एक्सपोज हो चुका है, लेकिन वे अपनी कोशिश जारी रखे हुए हैं। दरअसल इन कांग्रेस परस्त पक्षकारों और तथाकथित बुद्धिजीवियों में से अधिकतर वैसे हैं जिन्होंने कांग्रेस के शासन काल में ‘मलाई’ खाई है। कॉरपोरेट दलाली से लेकर मीडिया मैनेज करने तक का ठेका लेते रहे हैं, लेकिन मोदी सरकार में इनकी दाल गल ही नहीं रही है। पीएमओ के इर्द गिर्द कोई पक्षकार नजर नहीं आता है। भ्रष्टाचार मुक्त और पारदर्शी शासन का वादा पीएम मोदी ने निभाया है और दलालों के चंगुल से देश की शीर्ष सत्ता को मुक्त किया है। जाहिर है जिन्हें सत्ता का स्वाद चाहिए उन्हें पीएम मोदी असहिष्णु नहीं तो क्या दिखेंगे?
चापलूस बुद्धिजीवियों द्वारा कांग्रेस को खुश करने कवायद
अवॉर्ड वापसी गिरोह में अधिकतर ऐसे हैं जो यह चाह रहे हैं कि कांग्रेस सत्ता में वापस आ जाए। इन्हें उम्मीद है कि अगर ऐसा होता है तो फिर इनकी चांदी होगी। जाहिर तौर पर इसकी तैयारी अभी से शुरू कर चुके हैं। इन्हें लगता है कि अगर किसी भी प्रकार से कांग्रेस सत्ता में वापस आने में कामयाब होती है तो इन्हें इनाम भी अवश्य मिलेगा। यह लालच भी इस अवॉर्ड वापसी गिरोह को पीएम मोदी के प्रति असहिष्णु बनाता है। दरअसल पुरस्कार वापसी गिरोह के पीछे एक ही थिंकटैंक और समूह काम कर रहा है। इसमें शामिल अनेक तत्वों के अपने अपने अलग-अलग स्वार्थ और लक्ष्य हैं किंतु सबके निशाने पर एक ही है जिसने इन सभी के जमे जमाए धंधे को चौपट कर दिया है।
विदेशों में पीएम मोदी की छवि खराब करने में लगा विपक्ष
कांग्रेस सरकारों के दौरान बड़े- बड़े घोटालों पर मुंह न खोलने वाले मोदी सरकार आने पर पुरस्कार वापसी करने लगे हैं। इनका दोहरापन तो देखिये गौरी लंकेश के लिए खड़े होने वाले पत्रकारों ने त्रिपुरा के शांतनु भौमिक के लिए कुछ क्यों नहीं कहा? इन लोगों ने तो भारत से ज्यादा पाकस्तान को सहिष्णु करार दे दिया। इस गैंग के सदस्य सिर्फ भारत में नहीं विदेशों में भी हैं। कई बार न्यूयॉर्क टाइम्स से लेकर कई अखबार समूहों में प्रधानमंत्री को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करते हैं। हाल में राहुल गांधी ने विदेश में प्रधानमंत्री की छवि को धूमिल करने की कोशिश की। बीते तीन सालों में प्रधानमंत्री ने अथक मेहनत से भारत की जो छवि बनाई है उसे यह अवॉर्ड वापसी गिरोह खत्म करने पर भी तुली है।
सिलेक्टिव क्यों हो जाते हैं अवॉर्ड वापसी गिरोह के सदस्य?
रोहिंग्या मुसलमानों पर रूदन करने वाले इन लोगों को म्यांमार में हिंदुओं का नरसंहार नहीं दिखता है। बीएचयू में छात्राओं के विरोध को समर्थन देने के लिए मुंडन कराने वालों को मुजफ्फरनगर की उस दलित बालिका की पीड़ा नहीं महसूस होती जिसके साथ एक वर्ग विशेष के गुंडों ने गैंगरेप किया। गौरी लंकेश पर क्रंदन करने वालों को केरल में आरएसएस और बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ वामपंथी सरकार का हिंसक व्यवहार नहीं दिखता है। प्रकाश राज जैसे कलाकार तभी क्यों व्यथित होते हैं जब वामपंथी विचारधारा पर हमले होते हैं? राज्य सरकार को जवाबदेह न मानकर प्रत्येक घटना के लिये केवल पीएम से जवाब मांगना दोहरा मापदंड नहीं तो क्या है?