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‘वोट चोरी’ का झूठा नैरेटिव! अखिलेश का वायरल वीडियो निकला एडिटेड, चुनाव आयोग पर विपक्ष की साजिश बेनकाब

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विपक्ष द्वारा देशभर में चलाया जा रहा ‘वोट चोरी’ अभियान अब सवालों के घेरे में है। जिस आंदोलन को लोकतंत्र की रक्षा का नाम देकर प्रचारित किया गया, अब वह खुद ही झूठ और भ्रामक प्रचार की भेंट चढ़ता दिख रहा है। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने एक वीडियो शेयर पर उसे चुनावी धांधली का पुख्ता सबूत बताया, लेकिन उस वीडियो की सच्चाई सामने आते ही अब खुद उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता सवालों के घेरे में आ गई। अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक वीडियो शेयर करते हुए दावा किया कि बीजेपी समर्थित व्यक्ति एक ही मतदान केंद्र पर बार-बार वोट डाल रहा है। उन्होंने इसे चुनाव आयोग की मिलीभगत का प्रतीक बताया और मुख्य चुनाव आयुक्त से जवाब मांगते हुए इसे एक जीता-जागता एफिडेविट करार दिया।

अखिलेश यादव ने इस वीडियो से चुनाव आयोग को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही इस वीडियो की हकीकत सामने आई, अखिलेश यादव का पूरा नैरेटिव झूठ और सियासी ड्रामा साबित हुआ। इस वीडियो की वास्तविकता सामने आते ही यह बात साफ हो गई कि यह पूरी कवायद लोकतंत्र और चुनाव आयोग को बदनाम करने के लिए सिर्फ एक सुनियोजित राजनीतिक हमला था।

उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO UP) ने विपक्ष के ‘वोट चोरी’ अभियान की नींव ही हिला दी। ये वीडियो करीब साल भर पहले 13 मई 2024 का एटा जिले के खिरिया पमारान मतदान केंद्र का था। वीडियो में दिखने वाला युवक 18 वर्ष से कम आयु का नाबालिग था, जिसका नाम मतदाता सूची में शामिल नहीं था। वह स्वयं मतदान नहीं कर रहा था, बल्कि अशक्त व वृद्ध मतदाताओं की मदद कर रहा था। वीडियो को इस तरह एडिट किया गया कि यह प्रतीत हो कि वह बार-बार अकेले वोट डाल रहा है। चुनाव आयोग ने उसी समय तत्काल कार्रवाई करते हुए मतदान कर्मियों को निलंबित कर दिया था। इतना ही नहीं एफआईआर दर्ज करते हुए उसी समय 25 मई 2024 को पुनर्मतदान भी करा दिया था।

विपक्ष का यह अभियान एक राजनीतिक नैरेटिव गढ़ने की कोशिश है, न कि सच्चाई के लिए लड़ाई। हर चुनाव में हार के बाद विपक्ष ईवीएम, सुरक्षा बल, चुनाव आयोग और यहां तक कि मतदाताओं की नीयत तक पर सवाल उठाता है, लेकिन सबूतों के नाम पर सिर्फ काट-छांट किए गए वीडियो और भड़काऊ बयान मिलते हैं। वोट चोरी की जगह अब “सच छुपाओ, भ्रम फैलाओ” अभियान चल रहा है। और इसका सबसे ताजा उदाहरण बना अखिलेश यादव का फर्जी वीडियो कांड।

वोट चोरी प्रकरण में सीएसडीएस के संजय कुमार की ओर से गलत डेटा को लेकर माफी मांगने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी की सभा में वोटर लिस्ट से नाम काटने के फर्जी दावे के बाद अखिलेश यादव के इस एडिटेड वीडियो से विपक्ष की किरकिरी हो रही है। इसने विपक्ष की ओर से हाल ही में शुरू किए गए वोट चोरी अभियान पर भी सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। विपक्ष एक ओर यह दावा कर रहा है कि बीजेपी और चुनाव आयोग मिलकर बड़े स्तर पर वोट चोरी करवा रहे हैं, जबकि विपक्ष जब कोई तथाकथित सबूत सामने लाता है वो एडिटेड, भ्रामक और फर्जी निकलता है।

चुनाव आयोग की साख और पारदर्शिता पर हमला करना अब कुछ विपक्षी दलों की रणनीति बन गई है। लेकिन लोकतंत्र सिर्फ चुनाव लड़ने का नहीं, परिणाम स्वीकारने का भी नाम है। अगर हर हार के बाद ‘चोरी हुआ वोट’ का नारा लगाने लगें, तो लोकतंत्र नहीं, अराजकता जन्म लेती है। राहुल गांधी का वोट चोरी प्रजेंटेशन और अखिलेश यादव द्वारा फैलाया गया वीडियो झूठ सिर्फ एक वायरल क्लिप नहीं था, वह उस बड़े नैरेटिव का हिस्सा था जिसमें विपक्ष जानबूझकर चुनावी संस्थाओं की छवि बिगाड़कर जनता की आस्था को डगमगाने की कोशिश कर रहा है।

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