भारत सरकार ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदलने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। दो दशकों से चले आ रहे मनरेगा (MGNREGA) के ढांचे में क्रांतिकारी बदलाव करते हुए विकसित भारत–रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025 का प्रस्ताव रखा गया है। इसे संक्षेप में विकसित भारत–जी राम जी विधेयक कहा जा रहा है। यह नया कानून न केवल ग्रामीण परिवारों को अधिक दिनों के रोजगार की गारंटी देता है, बल्कि इसे ‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य से भी जोड़ता है।

मनरेगा की शुरुआत साल 2005 में हुई थी। तब इसका मकसद था कि गांव के हर उस परिवार को, जो बिना कौशल वाले काम के लिए तैयार है, साल में कम से कम 100 दिन का रोजगार मिले। इस योजना ने करोड़ों परिवारों को मुश्किल वक्त में सहारा दिया और गांवों में सड़कों, तालाबों और दूसरी बुनियादी सुविधाओं के निर्माण में अहम भूमिका निभाई।

समय के साथ मनरेगा में कई सुधार भी किए गए। लेकिन सरकार का मानना है कि इन सुधारों के बावजूद योजना की मूल संरचना अब कमजोर पड़ने लगी है। कई जगहों पर काम नहीं मिलने, मशीनों के इस्तेमाल, फर्जी हाजिरी और खर्च व वास्तविक काम में अंतर जैसी शिकायतें सामने आईं। कोरोना के बाद के दौर में तो बहुत कम परिवार ऐसे रहे, जिन्हें पूरे 100 दिन का काम मिल पाया।

इसी पृष्ठभूमि में सरकार ने मनरेगा की जगह एक नया और व्यापक कानूनी ढांचा लाने का फैसला किया है। विकसित भारत–जी राम जी विधेयक 2025 को सिर्फ रोजगार योजना नहीं, बल्कि रोजगार और आजीविका मिशन के तौर पर पेश किया गया है। सरकार का दावा है कि इससे ग्रामीण परिवारों की आय सुरक्षा और मजबूत होगी और गांवों में खपत बढ़ेगी।

इस विधेयक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि अब ग्रामीण परिवारों को साल में 100 दिन के बजाय 125 दिन के रोजगार की गारंटी मिलेगी। खेती-किसानी के हितों का ध्यान रखते हुए इसमें एक ‘नो-वर्क पीरियड’ यानी काम बंदी का समय भी रखा गया है। बुवाई और कटाई के व्यस्त सीजन के दौरान कुल 60 दिनों तक सार्वजनिक काम बंद रहेंगे, ताकि किसानों को मजदूर मिलने में दिक्कत न हो।

अब ग्रामीण रोजगार केवल खुदाई तक सीमित नहीं रहेगा। विधेयक के तहत काम को चार मुख्य क्षेत्रों में बांटा गया है:
1.जल सुरक्षा: पानी के संरक्षण और प्रबंधन से जुड़े कार्य।
2.ग्रामीण अवसंरचना: गांवों के लिए जरूरी बुनियादी ढांचा।
3.आजीविका ढांचा: कमाई के नए साधन पैदा करने वाली संपत्तियां।
4.जलवायु अनुकूल कार्य: मौसम में बदलाव के खतरों को कम करने वाले काम।

अब यह योजना केवल ‘केंद्रीय क्षेत्र’ की न होकर ‘केंद्र प्रायोजित’ होगी। इसका मतलब है कि अब राज्य भी लागत और जिम्मेदारी में हिस्सेदार होंगे। सामान्य राज्यों के लिए केंद्र और राज्य का खर्च 60:40 के अनुपात में होगा। पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों के लिए यह 90:10 होगा, जबकि बिना विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेशों का पूरा खर्च केंद्र उठाएगा।

पुरानी व्यवस्था में मशीनों के इस्तेमाल और फर्जी हाजिरी जैसी शिकायतों को दूर करने के लिए तकनीक का सहारा लिया गया है। अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण के जरिए काम की निगरानी होगी। भ्रष्टाचार रोकने के लिए केंद्र सरकार को कड़ी शक्तियां दी गई हैं। अगर किसी राज्य में गंभीर अनियमितता पाई जाती है, तो केंद्र फंड रोकने और सुधारात्मक कदम उठाने का अधिकार रखेगा।

श्रमिकों को काम न मिलने की स्थिति में 15 दिनों के बाद बेरोजगारी भत्ता मिलेगा, जिसकी जिम्मेदारी राज्यों की होगी। साथ ही, मजदूरी का भुगतान सीधे बैंक खातों में 15 दिनों के भीतर सुनिश्चित किया जाएगा। दूसरी ओर, गांवों में बेहतर सड़कों, कोल्ड स्टोरेज और सिंचाई की सुविधाओं के निर्माण से किसानों को अपनी उपज बाजार तक ले जाने में आसानी होगी।

योजना को बेहतर ढंग से लागू करने के लिए प्रशासनिक खर्च की सीमा 6 प्रतिशत से बढ़ाकर 9 प्रतिशत कर दी गई है। इससे पंचायतों को कुशल कर्मचारी रखने और बेहतर तकनीकी सहायता लेने में मदद मिलेगी। ग्राम सभाओं को और सशक्त बनाया गया है। हर छह महीने में सोशल ऑडिटॉ अनिवार्य होगी, ताकि जनता खुद देख सके कि पैसा कहां और कैसे खर्च हुआ है।

‘विकसित भारत-जी राम जी विधेयक 2025’ केवल एक रोजगार योजना नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बनाने का एक ब्लूप्रिंट है। मनरेगा के अनुभवों से सीख लेते हुए सरकार एक ऐसा ढांचा खड़ा करना चाहती है, जो रोजगार के साथ-साथ टिकाऊ विकास और आजीविका को भी मजबूत करे। यह गरीबी कम करने और गांवों में ही उत्पादक संपत्तियां बनाने की दिशा में एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है।

विकसित भारत–रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025 पर लोकसभा में शिवराज सिंह का संबोधन-









