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सशक्त नारी, सशक्त बिहार: डबल इंजन सरकार को मिल रहा माताओं-बहनों का भरपूर आशीर्वाद

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बिहार में नारीशक्ति के लिए ये बदलाव का दौर है। बीते एक दशक में महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में उठाए गए ठोस कदमों से बिहार के विकास को एक नई ऊर्जा मिल रही है। डबल इंजन सरकार की राजनीतिक सूझबूझ से राज्य में हर सेक्टर में माताओं-बहनों और बेटियों की भागीदारी बढ़ रही है।

“सशक्त नारी, सशक्त बिहार” आज सिर्फ एक नारा नहीं बल्कि जमीनी हकीकत है। गांव-गांव में माताएं और बहनें न केवल सरकार की योजनाओं का लाभ ले रही हैं बल्कि अपने आत्मविश्वास और मेहनत से पूरे समाज और राज्य को प्रगति की राह पर तेजी से अपनी भागीदारी निभा रही हैं।

सरकारी नौकरियों में 35% आरक्षण-महिलाओं को राजनीति और सरकारी नौकरियों में सीधी भागीदारी दिलाने के लिए बिहार की डबल इंजन सरकार ने महत्वूपर्ण कदम उठाए।

  • राज्य की सभी सरकारी नौकरियों में 35% आरक्षण महिलाओं के लिए सुनिश्चित किया गया है। इतना ही नहीं पंचायत और नगर निकाय चुनावों में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण से राजनीति में उनकी पहुंच बढ़ी है। बिहार में गया के गरारी पंचायत की 25 वर्षीय पूजा कुमारी राज्य की सबसे युवा और दो बार चुनी गई मुखिया हैं। पहले गांव की महिलाएं सार्वजनिक बैठकों में बोलने से हिचकिचाती थीं, लेकिन आज वे पंचायत में पानी, सड़क और शिक्षा के मसलों पर खुलकर निर्णय ले रही हैं।

महिला संवाद अभियानमहिलाओं तक सीधी पहुंच बनाने और उनकी समस्याएं समझने के लिए सरकार ने महिला संवाद अभियान शुरू किया।

  • 70,000 से अधिक स्थानों पर 2 करोड़ से अधिक महिलाओं से सीधा संवाद कायम किया गया।
  • इसका मक़सद था – सरकारी योजनाओं की जानकारी देना और उनके अनुभवों को जानना, ताकि नई योजनाओं को जमीन पर कारगर बनाया जा सके।
  • इस अभियान में करीब 1.35 लाख से अधिक जीविका समूह सक्रिय रूप से शामिल हुए। किशनगंज में महिला संवाद कार्यक्रम में तेघरिया पंचायत की परमवती देवी ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि वे एक स्कूल की रसोई में काम करती हैं। इससे उन्हें हर महीने कमाई हो रही है। नियमित आमदनी से घर में समृद्धि आई है। आर्थिक रूप से स्वावलंबन हुआ है तो बच्चों की परवरिश और उन्हें पढ़ाने-लिखाने में आसानी हो रही है। 

“जीविका” कार्यक्रम ने क्रांतिकारी बदलाव- बिहार में महिलाओं को आर्थिक संबल देने के लिए “जीविका” कार्यक्रम ने क्रांतिकारी बदलाव लाया गया है।

  • आज 3.5 करोड़ से अधिक महिलाओं के जनधन खाते खुल चुके हैं। इन खातों में सीधे सरकारी योजनाओं का पैसा पहुच रहा है।
  • सरकार ने SHG समूहों को मज़बूत करने के लिए 1000 करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि जारी की।
  • इसके परिणामस्वरूप अब बिहार में 20 लाख से अधिक “लखपति दीदियां” बनी हैं। ये ऐसी महिलाएं हैं, जिनकी सालाना आय एक लाख रुपये से अधिक हैं। दीदी बनाने में अग्रणी तीन बड़े राज्यों में एक राज्य बिहार भी है। इसी से इस योजना की सफलता का अंदाजा लगाया जा सकता है।

हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार के चंपारण में एक जनसभा के दौरान इस योजना की सफलता का जिक्र करते हुए कहा, नारी सशक्तिकरण के प्रयासों के जबरदस्त परिणाम सामने आ रहे हैं। देश में, बिहार में लखपति दीदियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। देश में हमने 3 करोड़ बहनों को लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य रखा है, वहीं अकेले बिहार में 29 लाख से ज्यादा लखपति दीदियां बनी हैं’।

माताओं-बहनों के लिए कल्याणकारी योजनाएं- महिलाओं की ज़िंदगी को आसान बनाने के लिए कई योजनाएं लागू की गईं हैं।

  • पेंशन 400 रुपये से बढ़ाकर 1100 रुपये महीने कर दी गई है, इसका बडा लाभ महिलाओं को भी होगा।
  • मुद्रा और स्टैंड-अप इंडिया योजनाके तहत महिलाओं को छोटे कारोबार के लिए बिना गारंटी ऋण दिए गए।
  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के तहत सुरक्षित प्रसव और मातृ स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
  • उज्ज्वला योजना से बिहार की अधिकांश ग्रामीण रसोई धुएं से मुक्त हो चुकी हैं।

योजनाओं को लेकर लोगों में जागरूकता- योजना बनाना ही काफी नहीं, उसे ज़रूरतमंद तक पहुंचाना सबसे चुनौतीपूर्ण काम है। इसी को ध्यान में रखते हुए राज्य में निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। लोगों को योजनाओं की जानकारी दी जा रही है। महिलाओं को अधिकार, स्वास्थ्य सेवाएं और आर्थिक अवसरों के बारे में बताया जा रहा है।

शिक्षा और कौशल विकास कार्यक्रम- महिलाओं के लिए शिक्षा और कौशल विकास सबसे बड़ी ताकत साबित हुई है।

  • छात्रवृत्तियां और मुफ्त साइकिल जैसी योजनाओं से लड़कियां नियमित रूप से स्कूल जाने लगीं। उन्हें नए नई उड़ान मिल रही है।
  • कन्या उत्थान योजना के तहत उच्च शिक्षा तक आर्थिक सहयोग दिया जा रहा है। पूर्णिया ने तो इसमें कमाल कर दिया है। यहां वर्ष 2024-25 में इस योजना के तहत निर्धारित लक्ष्य 10,226 को पार कर लिया गया है और 16,406 बालिकाओं का पंजीकरण हुआ है। 159 प्रतिशत की ये रिकॉर्ड उपलब्धि राज्य के दूसरे क्षेत्रों के लिए भी मिसाल बन सकती है।
  • तकनीकी शिक्षा और आईटीआई कॉलेजों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा दिया गया है। 

सामाजिक बदलाव और मानसिकता में परिवर्तन- पहले बिहार में महिलाओं का घर से निकलकर काम करना बहुत बड़ी बात मानी जाती थी, लेकिन आज महिलाएं न केवल कमाई कर रही हैं, बल्कि परिवार और समाज को नेतृत्व भी दे रही हैं। माताएं अपनी बेटियों को पढ़ाने पर जोर दे रही हैं। दहेज और बाल विवाह जैसी कुरीतियों कम हो रही हैं। महिलाए आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में बढ़-चढ़ कर भागीदारी निभा रही हैं।

स्वास्थ्य और पोषण की दिशा में सुधार- महिलाओं के सशक्तिकरण का मतलब केवल शिक्षा या रोज़गार नहीं, बल्कि स्वस्थ शरीर और सुरक्षित मातृत्व भी है। बिहार में लंबे समय तक मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर बड़ी समस्या रही। इसे कम करने के लिए प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, जननी सुरक्षा योजना और आंगनबाड़ी नेटवर्क जैसे कदम उठाए गए। सबसे अच्छी बात है कि आज जब सरकार योजनाएं बनाती है और महिलाएं उन्हें अपनाती हैं और सामाजिक सुधार को और मजबूती देती हैं। जब महिलाएं आत्मनिर्भर बनती हैं, तो इसका असर केवल उन पर नहीं बल्कि पूरे परिवार पर होता है। बच्चों को भी अच्छी शिक्षा मिलती है। परिवार को आर्थिक स्थिरता मिलती है। इसके साथ ही साफ-सफाई को भी बढ़ावा मिलता है। इसीलिए कहा जाता है: “नारी सशक्त होगी तो पूरा परिवार सशक्त होगा, और जब परिवार सशक्त होंगे तो बिहार के साथ ही देश भी सशक्त बनेगा।”। डबल इंजन सरकार ने नारी सशक्तिकरण को केवल कागजी वादों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे बिहार की बदली हुई सूरत का आधार बनाया है। यही वजह है कि आज डबल इंजन सरकार को बिहार की माताओं-बहनों और बेटियों का भरपूर आशीर्वाद मिल रहा है।

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