केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने आज, 8 दिसंबर को दैनिक भास्कर अखबार में एक आलेख लिखा है। इस विशेष लेख में स्मृति ईरानी ने लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की गारंटी पर महिलाओं का अटूट विश्वास भारतीय राजनीति का नया अध्याय लिख रहा है। आवास योजना, उज्जवला योजना जैसी सफल नीतियों के बाद केंद्र सरकार ने हाल ही नारी शक्ति वंदन अधिनियम सदन में पारित किया है। उन्होंने लिखा है कि नारी शक्ति का विकास भाजपा के विकास मॉडल का मुख्य आधार है। आप भी पढ़िए उनका आलेख-
2024 के ग्रांड फिनाले से पहले 4 राज्यों में मिली बड़ी विजय में किंग-मेकर की भूमिका महिला मतदाताओं ने निभाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटी पर उनका अटूट विश्वास भारतीय राजनीति का नया अध्याय लिख रहा है, जहां महिलाओं को वोटरों के तौर पर बड़ी संगठित शक्ति के तौर पर देखा जाने लगा है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि 21वीं सदी के अति-आधुनिक दौर और महिला सशक्तीकरण की तमाम चर्चाओं के बीच किसी ने सोचा नहीं था कि महिलाओं का संगठित वोट इतने बड़े स्तर पर राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों को प्रभावित कर सकता है।
शायद ही किसी तथाकथित विशेषज्ञ ने यह अनुमान लगाया होगा कि तेलंगाना, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में महिला वोटरों के बीच भाजपा और मोदी के नेतृत्व के प्रति इतना समर्पण देखने को मिल सकता है। शायद यही वजह रही है कि अब तक महिलाओं को एग्जिट पोल में भी इतना अहम वोटर-सेग्मेंट नहीं माना गया था। पर सारे एग्जिट पोल ध्वस्त हो गए। 3 दिसंबर 2023 को जारी हुए 4 राज्यों के चुनाव-परिणामों ने सारी वर्जनाओं को तोड़ डाला है।
आवास योजना, उज्जवला योजना जैसी सफल नीतियों के बाद केंद्र सरकार ने हाल ही नारी शक्ति वंदन अधिनियम सदन में पारित किया था। साथ ही राजस्थान और छत्तीसगढ़ में महिलाओं के लिए विशेष योजनाओं के ऐलान और मध्य प्रदेश में लाड़ली बहना योजना को लागू करके एक उदाहरण पेश करने से लेकर महिलाओं से जुड़े मसलों को चुनावी मुद्दे बनाने का पूरा लाभ भाजपा को मिला है।
राजस्थान में 48 प्रतिशत महिला वोटरों ने कांग्रेस के खिलाफ फैसला सुनाते हुए मोदी और भाजपा पर अपना भरोसा जताया। राजस्थान की 88 सीटों पर महिला वोटर पुरुषों की तुलना में अधिक हैं और इनमें से 55 पर भाजपा ने अपना परचम लहराया है। इसके अलावा अन्य पार्टियों और निर्दलीय उम्मीदवारों ने 8 सीटें जीती हैं।
मध्य प्रदेश की बात करें तो अपने संकल्पों की सिद्धि के साथ ही मोदी ने खूब जोर-शोर से चुनाव-प्रचार किया। उन्होंने मतदाताओं तक पहुंचने के लिए कुल 14 रैलियां और रोड शो किए। किसान, महिलाएं, आदिवासी हों या फिर गरीब तबका, हर वर्ग तक वे पहुंचे।
सात फीसदी भाजपा मतदाताओं ने मोदी फैक्टर की वजह से भाजपा को वोट किया। आंकड़ों से यह भी साफ है कि इस बार ग्रामीण वोटरों में भी महिला वोटरों की संख्या पुरुषों की तुलना में अधिक थी, जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिला है।
मध्य प्रदेश में ‘एमपी के मन में मोदी, मोदी के मन में एमपी’ की भाजपा की थीम चरितार्थ होती दिखी। लोगों का कहना है कि मोदी का नाम ही मतदाताओं में विश्वसनीयता, सम्मान और अपनेपन की भावना लेकर आता है, जिसने भाजपा की जीत पर मुहर लगा दी।
कुछ ऐसा ही भाव छत्तीसगढ़ में भी देखने को मिला। वहां पार्टी के जमीनी प्रचार कार्यों ने बेहतरीन माइक्रो-मैनेजमेंट का परिचय देते हुए आदिवासी महिलाओं तक भाजपा द्वारा महिलाओं के हित में चलाए जाने वाली योजनाएं पहुंचाईं। मोदी की गारंटी का जिक्र करते हुए खुद प्रधानमंत्री ने भी भाजपा कार्यकर्ताओं से प्रचंड जीत के बाद संबोधित करते हुए कहा, ‘मैं देश की नारी शक्ति का अभिनंदन करूंगा।
नारी शक्ति ये ठानकर निकली है कि वो भाजपा का परचम लहराएगी। नारी शक्ति का विकास भाजपा के विकास मॉडल का मुख्य आधार है। इसलिए इन चुनावों में महिलाओं, बहनों-बेटियों ने भाजपा को खूब सारा आशीर्वाद दिया है। मैं पूरी विनम्रता से देश की हर बहन-बेटी को यही कहूंगा कि आपसे जो वादे भाजपा ने किए हैं, वो शत-प्रतिशत पूरे किए जाएंगे और ये मोदी की गारंटी है।’
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस ने महिला वोटरों को लुभाने के प्रयास नहीं किए। कर्नाटक चुनाव के समय से ही कांग्रेस ने महिलाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करने वाली स्कीम पर जोर दिया, जिसका उसे कर्नाटक में फायदा भी मिला। परिणामस्वरूप, महिलाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करने वाली योजनाओं को चुनावी प्रचार में बल मिला और मध्य प्रदेश में उज्जवला योजना, आवास योजना, महिलाओं को नौकरी में 35 प्रतिशत आरक्षण, संपत्ति खरीद पर मिलने वाली छूट और अंततः लाड़ली बहना योजना के क्रियान्वयन ने एवं अन्य राज्यों में ऐसी ही घोषणाएं करके एक राज्य में उन्हें चुनाव से पहले ही लागू करने की नीति ने भाजपा को ‘एक्शन मोड’ वाली पार्टी की श्रेणी में रख दिया था, जिसकी काट कांग्रेस निकालने में असमर्थ रही।
भारत में महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक धार्मिक होती हैं। जहां हिंदू महिलाओं को धार्मिक मुद्दों पर भाजपा का साथ पसंद है तो वहीं तीन तलाक के मुद्दे पर मुस्लिम महिलाएं भी प्रधानमंत्री के साथ ढाल बनकर खड़ी हुई हैं।