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कर्नाटक में राजस्थान वाला ढाई साल का सियासी नाटक और तेज, बिहार की हार कमजोर ‘युवराज’ के लिए खतरे की घंटी!

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कर्नाटक में कांग्रेस की सिद्धारैमया सरकार 20 नवंबर को ढाई साल का कार्यकाल पूरा कर चुकी है। इसके साथ ही सत्ता-संघर्ष का तापमान इतना बढ़ गया है कि मंत्रालयों से ज्यादा गर्मी अब मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के बीच के सियासी लड़ाई सीएम की कुर्सी पर काबिज होने को लेकर हो रही है। कर्नाटक में कांग्रेस की राजनीति के नाटक में अब वही स्क्रिप्ट खुलकर सामने आने लगी है जो राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच खुलेआम चली थी। ढाई साल का फार्मूला, कुर्सी को लेकर अविश्वास, समर्थकों का ध्रुवीकरण और दिल्ली दरबार में लॉबिंग…वही सब अब कर्नाटक से लेकर दिल्ली तक नजर आने लगा है। फर्क बस इतना है कि कर्नाटक में यह सब और भी ज्यादा सार्वजनिक, ज्यादा तेज और ज्यादा विषाक्त रूप ले रहा है। दरअसल, यह राहुल गांधी की वही कांग्रेस है जो हर चुनाव में स्थिरता का नारा तो लगाती है और सत्ता मिलते ही खुद को अस्थिर करने में लग जाती है। इसका सबसे बड़ा नुकसान राज्य की जनता को उठाना पड़ता है। राजस्थान यह भुगत चुका है और अब कर्नाटक की बारी है।

राहुल-सोनिया के दफ्तरों के बाहर डीके के सैकड़ों समर्थक जुटे
दिल्ली में हाल ही में राहुल गांधी और सोनिया गांधी के दफ्तरों के बाहर जिस तरह डीके के सैकड़ों समर्थक जुटे, वह सिर्फ शक्ति-प्रदर्शन नहीं बल्कि हाईकमान की कमजोरी को दुनिया के सामने रखने जैसा है। कांग्रेस के कार्यकर्ता तक मानने लगे हैं कि लगातार हार और बिहार में शर्मनाक हार के बाद हाईकमान अब निर्णय लेने की क्षमता खो चुका है। भाजपा के खिलाफ लड़ाई तो दूर, अपनी ही सरकार को स्थिर रखने का जज़्बा कांग्रेस के दिल्ली दरबार के बड़े नेताओं के पास नहीं बचा है। राहुल गांधी सिर्फ अपने कुछ चुनिंदा सलाहकारों के बीच घिरे हुए हैं। वे इसलिए भी निर्णय नहीं ले पा रहे हैं, क्योंकि राहुल गांधी की स्थिति पहले जैसी नहीं रही। 96 हार के बाद किसी भी नेता का और उस नेता पर से कार्यकर्ताओं का विश्वास डगमगाना लाजिमी है। कर्नाटक में जो स्क्रिप्ट लिखी जा रही है, वह कोई नया नाटक नहीं है। कांग्रेस की यही स्क्रिप्ट है, उसमें बस राजनीति के अभिनेता बदलते रहते हैं।

सिद्धारमैया ने शुरू से ही डीके को सीमित रखने की कोशिश की
इधर जहां तक कर्नाटक के नाटक का सवाल है तो सिद्धारमैया ने शुरू से ही डीके को सीमित रखने की कोशिश की है। चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेस हाईकमान यानि राहुल गांधी ने जो समझौता कराया था। ढाई साल बाद सत्ता परिवर्तन सिद्धारमैया ने तब तो अंदरखाते सत्ता के लिए इसे स्वीकार कर लिया, लेकिन अशोक गहलोत की तरह कभी भी खुले तौर इसे नहीं माना। ठीक सचिन पायलट की तरह ही अब डीके शिवकुमार ने इसे अपनी सार्वजनिक प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है। अब जब ढाई साल का समय पूरा हो चुका है, डीके के समर्थक दिल्ली पहुंच चुके हैं। ये वही समर्थक हैं जो पिछले छह महीनों से कहते आए हैं कि “शक्ति हम पर है, सरकार उनकी वजह से है, और बिना डीके कर्नाटक में कोई कांग्रेस नहीं।” यह संदेश अब स्पष्ट है कि ढाई साल में मुख्यमंत्री बदले, वरना कर्नाटक में पार्टी टूट का खतरा वास्तविक है।

कर्नाटक को राहुल गांधी ने नहीं, स्थानीय नेतृत्व की शक्ति ने जीता
कर्नाटक का संकट राहुल गांधी की उसी राजनीतिक कमजोरी का परिणाम है। कांग्रेस कर्नाटक में जीत गई, लेकिन वह जीत किसी रणनीति की नहीं, बल्कि स्थानीय नेतृत्व डीके शिवकुमार की संगठन क्षमता और सिद्धारमैया की लोकप्रियता की देन थी। यह कोई राष्ट्रीय रणनीति का चमत्कार नहीं था। यह जमीन पर बनाए गए स्थानीय समीकरणों का खेल था। राहुल गांधी ने न तो कैडर को प्रेरित किया, न चुनाव की रणनीति को दिशा दी। यही कारण है कि विजय के बाद सत्ता वितरण में भी वे निर्णायक भूमिका निभाने में असफल रहे। इसी शून्य का लाभ लेकर सिद्धारमैया और डीके दोनों अपनी-अपनी परछाई बढ़ाने में लगे हैं।

सिद्धारमैया बनाम डी.के. शिवकुमार: शीत युद्ध अब सतह पर
कर्नाटक में सत्ता का यह संघर्ष अब खुलकर सामने आ गया है। यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि कर्नाटक कौन चलाएगा? अनुभवी सिद्धारमैया या संसाधन-संपन्न और युवा शक्ति पर पकड़ रखने वाले डीके शिवकुमार? कांग्रेस के भीतर यह धारणा फैलती जा रही है कि सिद्धारमैया अपने पद से हटने के पक्ष में नहीं और डीके का अस्तित्व पद मिलने पर ही टिकेगा। यह द्वंद्व उस समय और खतरनाक हो जाता है जब हाईकमान कमजोर हो और उसके पास समाधान का कोई फार्मूला न बचे। दिल्ली में डीके समर्थकों की पुरजोर आवाजें बताती हैं कि यह मेहनत सिर्फ राजभवन तक सीमित नहीं रहेगी। यह आने वाले दिनों में संगठन और सत्ता को पूरी तरह दो फाड़ कर सकती है।

बिहार हार का सीधा संदेश- राहुल का नेतृत्व जनता को स्वीकार्य नहीं
कर्नाटक में सत्ता संघर्ष का यह नाटक कांग्रेस हाईकमान की अव्यवस्था का दर्पण है। राहुल गांधी बिहार में बुरी तरह से हारकर पहले ही निशाने पर हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की राय साफ है कि बिहार हार का सीधा संदेश है कि राहुल नेतृत्व जनता को स्वीकार्य नहीं हो रहा। विपक्षी गठबंधन में वे विश्वसनीय नेता के तौर पर उभरने का दावा खो चुके हैं। जब राष्ट्रीय स्तर पर ही नेतृत्व कमजोर दिखे, तब राज्यों में मुख्यमंत्री बदलने जैसे निर्णय और भी कठिन हो जाते हैं। कांग्रेस में सत्ता हस्तांतरण कभी सुगमता से नहीं हुआ। हर बार बगावत, नाराजगी या टूट का खतरा साथ लेकर आता है। यही स्थिति अब कर्नाटक में है। डीके शिवकुमार कई बार कह चुके हैं कि वे मुख्यमंत्री बनने के योग्य हैं और सिद्धारमैया को वादा निभाना होगा। दूसरी ओर सिद्धारमैया अपनी छवि, कद और अपनी जातीय-पैठ के दम पर डीके को सीमित करने का हर प्रयास करते दिखते हैं।

हाईकमान कमजोर, राज्य नेताओं के भिड़ने से मिली जनता से हार
सत्ता का यह संघर्ष व्यक्तिगत अहंकार की टक्कर से कहीं अधिक जातीय राजनीति, क्षेत्रीय प्रभाव और संगठन के नियंत्रण की लड़ाई बन चुका है। इसकी गूंज दिल्ली तक इसलिए पहुंची है, क्योंकि राहुल गांधी किसी भी पक्ष का सामना करने की स्थिति में नहीं हैं। सालों से कांग्रेस की राजनीति में यही कहानी दोहराई जाती रही है। हाईकमान कमजोर, राज्य नेता आपस में भिड़े, और अंत में जनता से हार। राजस्थान में यह कहानी लंबे समय तक चली, पंजाब में यह कहानी सरकार गिराकर खत्म हुई और अब कर्नाटक में यह कहानी तेज हो चुकी है। कर्नाटक कांग्रेस एक ऐसी सरकार चला रही है जो अपने ही दो शीर्ष नेताओं की रस्साकशी में उलझी है। इस संघर्ष का सबसे बड़ा नुकसान जनता और प्रशासन दोनों को होता है, लेकिन कांग्रेस इस नुकसान को भी हजम करने की आदत डाल चुकी है।

खतरे में राहुल-सोनिया और प्रियंका की तिकड़ी की विश्वसनीयता
कर्नाटक में आने वाले महीनों में सत्ता परिवर्तन हो या न हो, एक बात स्पष्ट है कि कांग्रेस की केंद्रीय नेतृत्व क्षमता आज सबसे कमजोर स्थिति में है। राहुल-सोनिया और प्रियंका की तिकड़ी की विश्वसनीयता राज्यों के अपनी पार्टी के नेताओं पर ही असर डालने में असफल हो चुकी है। बिहार की हार ने यह और स्पष्ट कर दिया कि कांग्रेस न तो गठबंधन खड़ा कर सकती है, न जनादेश को प्रभावित कर सकती है, और न ही आंतरिक कलह को रोक सकती है। कर्नाटक का यह ढाई साल वाला नाटक, दिल्ली में डीके समर्थकों की लामबंदी, और बिहार में चुनावी हार तीनों मिलकर एक ही बात साबित करते हैं कि कांग्रेस आज भी उसी पुरानी बीमारी से ग्रस्त है— नेतृत्व की अस्पष्टता, निर्णय लेने की अयोग्यता और सत्ता की अंदरूनी लड़ाई।

दिल्ली दरबार में लगातार अपना दबाब बढ़ा रहे हैं डीके समर्थक
कर्नाटक की राजनीति एक बार फिर उस मोड़ पर खड़ी है, जहाँ सत्ता ही नहीं, बल्कि कांग्रेस नेतृत्व की क्षमता भी कठघरे में है। राजस्थान में जो ढाई साल का नाटक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच हुआ था, वही दृश्य अब दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण राज्य कर्नाटक में रिपीट हो रहा है। फर्क बस इतना है कि यहां स्क्रिप्ट वही है, बस कलाकार अलग हैं, लेकिन सत्ता की कुर्सी के लिए संघर्ष उतना ही तीखा और खुला है। सत्ता संतुलन अब स्पष्ट रूप से बदल रहा है। डीके शिवकुमार समर्थक दिल्ली में सक्रिय हैं और पार्टी हाईकमान पर दबाव बढ़ा रहे हैं कि “ढाई साल बाद सत्ता हस्तांतरण” का वादा निभाया जाए। सिद्धारमैया इसे अनुभव बनाम युवाशक्ति का संघर्ष बताते हैं, तो डीके गुट का मानना है कि हाईकमान अपने वादे पर खरा उतरे। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि डीके कैंप लगातार दिल्ली में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है। क्योंकि उसे पता है कि कर्नाटक की सत्ता की चाबी बेंगलुरु में नहीं, बल्कि तुगलक रोड, दिल्ली में रखी हुई है।

राजस्थान और पंजाब के बाद अब कर्नाटक की बारी
बिहार में एनडीए की ऐतिहासिक जीत के बाद राहुल गांधी की स्थिति पहले से अधिक कमजोर हुई है। कांग्रेस न केवल सीटें हार गई, बल्कि नेतृत्व की अनुपस्थिति, रणनीति की कमी, और चुनाव के दौरान राहुल गांधी की असंगत भागीदारी को लेकर पार्टी में सवाल मुखर हो चुके हैं। बिहार हार ने यह साफ संदेश दिया है कि राहुल गांधी की चुनावी रफ्तार न तो जनता को प्रेरित कर पा रही है और न ही ड्रॉइंग रूम की राजनीति करने वाले नेताओं को दिशा दे पा रही है। अब यह सवाल तेजी से उठ रहा है कि क्या कर्नाटक दूसरा राजस्थान बनने जा रहा है? जिस तरह राजस्थान में ढाई साल तक गहलोत-पायलट संघर्ष चलता रहा, उसी तरह कर्नाटक में भी एक “नियोजित ट्रांजिशन” की बात हवा में तैर रही है। लेकिन यहाँ फर्क है—राजस्थान में पायलट युवा चेहरा थे, लेकिन डीके शिवकुमार केवल युवा चेहरा नहीं, बल्कि प्रचंड संगठन क्षमता, संसाधनों और ढाँचे पर पकड़ रखने वाले नेता हैं। इसलिए इस बार संघर्ष अधिक तीखा, अधिक खुला और अधिक निर्णायक हो सकता है। यह कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के लिए यह चेतावनी की घंटी है!

सीएम बदलने के वादे से मुकरने के लिए मशहूर है कांग्रेस हाईकमान
अब डिप्टी सीएम शिवकुमार का खेमा इस फॉर्मूले को पक्का वादा मान रहा है। उनका कहना है कि अब नेतृत्व परिवर्तन होना ही चाहिए। दरअसल, कांग्रेस ने जब कर्नाटक में सरकार बनाई, तब सिद्धारमैया ने उम्र का हवाला देकर पहले दो साल की मांग की थी। शिवकुमार ने इसे ठुकरा दिया। उन्होंने राजस्थान और छत्तीसगढ़ का उदाहरण दिया, जहां ऐसे वादे पूरे नहीं हुए। शिवकुमार चाहते थे कि उन्हें पहला कार्यकाल मिले, चाहे वो दो साल का हो या तीन साल का। वहीं सिद्धारमैया के समर्थक इसे तब की सिर्फ एक राजनीतिक जरूरत बताते हैं, जो अब बदल चुकी है। दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर फैसले जटिल होते हैं। राहुल गांधी की लीडरशिप में केंद्रीय नेतृत्व की भूमिका अहम होती है। सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेताओं को ही देख लीजिए। इन्हें वादा तो मिला, लेकिन पद नहीं। अब ये फॉर्मूला सिर्फ समझौता नहीं, बल्कि राजनीतिक नैरेटिव बन गया है। वे कहते हैं, ‘शिवकुमार के समर्थक इसे वादे की पूर्ति मानते हैं, न कि बगावत। इससे आलाकमान पर दबाव बढ़ गया है। एक पक्ष का समर्थन करने पर दूसरा नाराज हो सकता है।

शिवकुमार-सिद्धारमैया में संतुलन बनाना खरगे की सियासी चाल
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि खरगे अपने बेटे प्रियांक खरगे को मुख्यमंत्री पद की दौड़ में लाना चाहते हैं। इसीलिए वे जानबूझकर अस्पष्टता बनाए रखना चाहते हैं। उनका मकसद डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया के बीच असंतुलन को बनाए रखना है। इससे दोनों के बीच सीएम कुर्सी की लड़ाई और तेज होगी। खरगे चाहते हैं कि दोनों नेताओं के बीच सहमति न बने। ताकि अंत में प्रियांक को तीसरे यानी सहमति के उम्मीदवार के रूप में पेश किया जा सके। इस घटनाक्रम ने कांग्रेस हाईकमान की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए। इससे ये साफ नहीं हुआ कि हाईकमान के भीतर ही मतभेद हैं या फिर जानबूझकर स्थिति को अस्पष्ट रखा जा रहा है।

सोनिया और राहुल गांधी के पत्ते ना खोलने से पार्टी को दोतरफा खतरा
कर्नाटक में कांग्रेस नेताओं के बीच चल रही इस नौटंकी पर भाजपा नजर रखे हुए है। कांग्रेस में खींचतान के चलते एक ओर विधायकों में असंतोष है, दूसरी ओर जनता के काम नहीं हो रहे हैं। इससे जनता को भी लगने लगा है कि भाजपा का ही शासन अच्छा था। दूसरी ओर राहुल गांधी और सोनिया गांधी के रुख पर भी भ्रम की स्थिति है। सरकार बनने के वक्त भी ये सवाल उठा था कि कौन-किसके साथ है। डीके शिवकुमार दावा करते रहे कि सोनिया गांधी उनके साथ हैं, लेकिन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया बने। इससे साफ है कि राहुल गांधी सिद्धारमैया के साथ हैं। पिछले ढाई साल में जब भी विवाद हुआ, राहुल गांधी ने सिद्धारमैया का समर्थन किया। सोनिया गांधी ने इस पर कुछ नहीं कहा। इससे विवाद थमने के बजाए धीरे-धीरे और सुलगता रहा। कमोबेश यही स्थिति राजस्थान में बनी थी। वहां सोनिया की जगह प्रियंका गांधी थी। राहुल गांधी ने अशोक गहलोत का समर्थन किया तो प्रियंका गांधी का झुकाव सचिन पायलट की ओर था। लेकिन पांच साल तक गहलोत ही सत्ता पर काबिज रहे। विधायकों और जनता में असंतोष हुआ, जिसका खामियाजा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भुगता। अब वही कहानी कर्नाटक में देखने को मिल सकती है।

आइए, अब कर्नाटक के मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार से सने उन आरोपों की बात करते हैं, जिनके चलते कांग्रेस विधायकों तक में असंतोष है…

सिद्धारमैया ने पत्नी को 14 बेशकीमती प्लॉट दिलाने में ही अहम भूमिका निभाई

यह शाश्वत सत्य है कि पाप का घड़ा आज नहीं तो कल फूटता जरूर है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के भी बरसों पुराने ‘पाप’ अब सबके सामने आने लगे हैं। यही वजह है कि सिद्धारमैया की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले पा रही हैं। करोड़ों के घोटाले में लोकायुक्त, ईडी की जांच और कोर्ट के कोड़े के बाद अब सिद्धारमैया के खिलाफ एक और नई शिकायत हुई है। उन पर आरोप लगा है कि उन्होंने पत्नी को 14 बेशकीमती प्लॉट दिलाने में ही अहम भूमिका नहीं निभाई, बल्कि मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) के इस करोड़ों के घोटाले में जब अंगुलियां उनकी ओर उठने लगीं तो मुख्यमंत्री ने सबूतों को भी नष्ट कराने की अहम कोशिश की। प्रदीप कुमार नाम के व्यक्ति ने प्रवर्तन निदेशालय को लेटर लिखकर यह शिकायत दर्ज कराई है। उन्होंने सिद्धारमैया व अन्य के खिलाफ सबूतों से छेड़छाड़ के लिए जांच और मामला दर्ज करने की मांग की है। शिकायत में मुख्यमंत्री के बेटे यतींद्र सिद्धारमैया का भी नाम है। इस शिकायत के बाद सीएम के साथ ही उनके पुत्र भी ईडी के रडार पर आ गए हैं।सीएम के बेटे यतींद्र सिद्धारमैया की भी 14 साइटों के अवैध अधिग्रहण में भूमिका
प्रदीप ने सत्ता का दुरुपयोग कर 14 साइटों को अवैध रूप से हासिल करने का आरोप लगाया गया है। ईडी को 2 अक्टूबर को लिखे पत्र में प्रदीप कुमार ने दावा किया, “सिद्धारमैया ने 8 जून 2009 से 12 मई 2013 के बीच और फिर 10 अक्टूबर 2019 से 20 मई 2023 के बीच कर्नाटक विधानसभा में विपक्षी दल के नेता के रूप में कार्य किया। सिद्धारमैया 13 मई 2013 से 15 मई 2018 के बीच कर्नाटक के सीएम भी थे। सिद्धारमैया के साथ-साथ उनके बेटे यतींद्र सिद्धारमैया, जिन्होंने 12 मई 2018 से 13 मई 2023 के बीच विधानसभा सदस्य के रूप में वरुणा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था, ने भी अपने माता-पिता सिद्धारमैया और पार्वती सिद्धारमैया के व्यक्तिगत आर्थिक लाभ के लिए अपने सार्वजनिक पद का दुरुपयोग करके गंभीर अपराध किया है।” उन्होंने कर्नाटक के राज्यपाल से भी सिद्धारमैया द्वारा कानून के प्रावधानों के विपरीत 14 साइटों के अवैध अधिग्रहण के बारे में शिकायत की थी।

सीएम MUDA के अधिकारियों का इस्तेमाल करके सबूतों को नष्ट कर रहे
ईडी को भेजे शिकायती पत्र में उन्होंने आगे कहा है, “इस बीच सिद्धारमैया अपने आधिकारिक पद का इस्तेमाल कर रिकॉर्ड से छेड़छाड़ कर रहे हैं और खुद के साथ-साथ MUDA के अधिकारियों का इस्तेमाल कर सबूतों को नष्ट कर रहे हैं।” इससे पहले कार्यकर्ता स्नेहमयी कृष्णा, जो MUDA घोटाले में याचिकाकर्ता हैं, गुरुवार को बेंगलुरु में प्रवर्तन निदेशालय (ED) के समक्ष पेश हुए। उन्होंने कहा कि MUDA मामले में हजारों करोड़ रुपये शामिल हैं। ED ने उन्हें तलब किया और कथित MUDA घोटाले से संबंधित सभी दस्तावेज और रिकॉर्ड पेश करने को कहा। यह कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ ED को की गई उनकी ईमेल शिकायत के संबंध में है।

MUDA बना हुआ है घोटालों का अड्डा, सिद्धारमैया का केस बड़ा उदाहरण
इस बीच याचिकाकर्ता स्नेहमयी कृष्णा ने कहा, “मैं अपने परिवार और अपनी आय पृष्ठभूमि से संबंधित कुछ आवश्यक दस्तावेजों जैसे पैन कार्ड, आधार कार्ड और अन्य के साथ ED अधिकारियों के समक्ष पेश होने आई थी। मैंने अपनी शिकायत से संबंधित दस्तावेज दिए हैं। सिद्धारमैया के मुद्दे को एक उदाहरण के रूप में लिया गया है। MUDA मामले में हजारों करोड़ रुपये शामिल हैं। इसलिए मैंने गहन जांच की मांग की है।” ईडी द्वारा कर्नाटक के सीएम पर कथित MUDA भूमि आवंटन घोटाले से जुड़े एक मामले में मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किए जाने के बाद, उनकी पत्नी ने MUDA आयुक्त को पत्र लिखकर प्राधिकरण द्वारा उन्हें आवंटित किए गए 14 प्लॉट को सरेंडर करने की पेशकश की।

कर्नाटक में जमीनों के खेल में किए गए पाप होने लगे उजागर

अब कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनकी पत्नी पर भी जमीनों के खेल में ईडी शिकंजा कसती जा रही है। दिग्गज कांग्रेस नेता सिद्धारमैया के दबाव में मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (MUDA) से उनकी पत्नी ने उस जमीन के बदले मैसूर के पॉश इलाके में 14 प्लॉट हासिल कर लिए, जो कानूनन उनकी थी ही नहीं। इस जमीन घोटाले मामले में मैसूर लोकायुक्त ने राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, उनकी पत्नी, साले और अन्य के खिलाफ FIR दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। दूसरी ओर प्रवर्तन निदेशालय की टीम ने 30 सितंबर को इन सभी के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया है। ईडी की जांच से डरी सिद्धारमैया की पत्नी बीएन पार्वती अब MUDA को 14 विवादित प्लॉटों को वापस करने जा रही हैं। इससे यह अपने-आप ही साबित हो रहा है कि उन्होंने न सिर्फ घोटाला किया है, बल्कि अपनी गंभीर गलती मान भी ली है।

उस जमीन के बदले 14 प्लॉट दिए, जो कानूनन सीएम की पत्नी की नहीं थी
आइये पहले जानते हैं कि मूडा (MUDA) का यह मुद्दा असल में क्या है। दरअसल, कई साल पहले अर्बन डेवलपमेंट संस्थान मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी ने रिहायशी इलाके विकसित करने के लिए किसानों से जमीनें ली थी। इसके बदले MUDA ने 50:50 की स्कीम दी। इसके तहत जमीन मालिकों को विकसित भूमि में 50 प्रतिशत साइट या एक वैकल्पिक साइट देने का प्रावधान किया गया। आरोप है कि MUDA ने 2022 में सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को मैसूरु के कसाबा होबली स्थित कसारे गांव में 3.16 एकड़ जमीन के बदले मैसुरु के एक पॉश इलाके में 14 साइट्स आवंटित की। इन साइट्स की कीमत पार्वती की जमीन की तुलना में की गुना ज्यादा थी। सबसे बड़ी बात तो यह कि इस 3.16 एकड़ जमीन पर भी पार्वती का कोई कानूनी अधिकार ही नहीं था। ये जमीन पार्वती के भाई मल्लिकार्जुन ने उन्हें 2010 में गिफ्ट में दी थी। MUDA ने इस जमीन को अधिग्रहण किए बिना ही सिद्धारमैया की पत्नी को प्लॉट आवंटन दे दिया।

गवर्नर ने दिए जांच के आदेश, सिद्धारमैया की याचिका हाईकोर्ट में खारिज
इस करोड़ों के घोटाले का खुलासा एक्टिविस्टों के माध्यम से हुआ। कर्नाटक के एक्टिविस्ट टीजे अब्राहम, प्रदीप और स्नेहमयी कृष्णा ने आरोप लगाया था कि CM ने MUDA अधिकारियों के साथ मिलकर 14 महंगी साइट्स को धोखाधड़ी से हासिल किया। इन लोगों का आरोप है कि MUDA में 5 हजार करोड़ रुपए का घोटाला हुआ है। इधर राज्यपाल ने 16 अगस्त को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17ए और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 218 के तहत सिद्धारमैया के खिलाफ केस चलाने की अनुमति दी थी। CM ने 19 अगस्त को इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। 24 सितंबर को हाईकोर्ट ने MUDA स्कैम में सिद्धारमैया के खिलाफ जांच करने के लिए राज्यपाल थावरचंद गहलोत के आदेश को बरकरार रखा। जस्टिस एम. नागप्रसन्ना ने राज्यपाल के आदेश के खिलाफ सिद्धारमैया की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा, ‘याचिका में जिन बातों का जिक्र है, उसकी जांच जरूरी है। केस में मुख्यमंत्री का परिवार शामिल है, इसलिए याचिका खारिज की जाती है।’

और ये रही सीएम सिद्धारमैया पर लगे इन आरोपों की फेहरिस्त

  • सिद्धारमैया की पत्नी को MUDA की ओर से मुआवजे के तौर पर मिले विजयनगर के प्लॉट की कीमत कसारे गांव की उनकी जमीन से बहुत ज्यादा है।
  • स्नेहमयी कृष्णा ने सिद्धारमैया के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई। इसमें उन्होंने सिद्धारमैया पर MUDA साइट को पारिवारिक संपत्ति का दावा करने के लिए डॉक्युमेंट्स में जालसाजी का आरोप लगाया गया है।
  • 1998 से लेकर 2023 तक सिद्धारमैया कर्नाटक में डिप्टी CM या CM जैसे प्रभावशाली पदों पर रहे। इसलिए उनके इस घोटाले से जुड़े होने की संभावना बहुत ज्यादा हैं। उन्होंने अपनी पावर का इस्तेमाल कर करीबी लोगों की मदद की।
  • सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती के भाई मल्लिकार्जुन ने साल 2004 में डिनोटिफाई 3 एकड़ जमीन अवैध रूप से खरीदी थी। 2004-05 में कर्नाटक में फिर कांग्रेस-JDS गठबंधन की सरकार में सिद्धारमैया डिप्टी CM थे।
  • योजना के तहत, जिन लैंड ओनर्स की भूमि MUDA द्वारा अधिग्रहित की गई है। उन्हें मुआवजे के रूप में वैकल्पिक साइटें आवंटित की गई हैं। साथ ही रियल एस्टेट एजेंट्स को भी इस स्कीम में जमीन दी गई है।
  • भूमि आवंटन घोटाले का खुलासा एक RTI एक्टिविस्ट ने करते हुए कहा कि पिछले चार वर्षों में 50:50 योजना के तहत 6,000 से अधिक साइटें आवंटित की गई हैं।

2014 में जब सिद्धारमैया CM थे तब भी ने मुआवजे के लिए किया था आवेदन
घोटाले की जांच की मांग की गई 5 जुलाई 2024 को एक्टिविस्ट कुरुबरा शांथकुमार ने गवर्नर को चिट्ठी लिखते हुए कहा कि मैसुरु के डिप्टी कमिश्नर ने MUDA को 8 फरवरी 2023 से 9 नवंबर 2023 के बीच 17 पत्र लिखे हैं। 27 नवंबर को शहरी विकास प्राधिकरण, कर्नाटक सरकार को 50:50 अनुपात घोटाले और MUDA कमिश्नर के खिलाफ जांच के लिए लिखा गया था। बावजूद, MUDA के कमिश्नर ने हजारों साइटों को आवंटित किया। सिद्धारमैया बोले कि 2014 में जब मैं CM था तो पत्नी ने मुआवजे के लिए आवेदन किया था। भू-आवंटन में गड़बड़ी मामले में मैसुरु में लोकायुक्त पुलिस द्वारा 27 सितंबर को दर्ज की गई एफआइआर में सिद्दरमैया, उनकी पत्नी बीएम पार्वती, उनके साले मल्लिकार्जुन स्वामी और देवराजू (जिनसे स्वामी ने जमीन खरीदकर पार्वती को उपहार में दी थी) तथा अन्य को नामजद किया गया है।

अंतरात्मा की आवाज सुनकर भूखंडों को वापस करने का लिया फैसला
इसके साथ ही सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया। लोकायुक्त और ईडी की एफआईआर डरी मुख्यमंत्री की पत्नी की अंतरात्मा जाग गई। सिद्धारमैया की पत्नी बीएन पार्वती ने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) को पत्र लिखकर केसर गांव में 3.16 एकड़ भूमि के के मुआवजे के बदले विजयनगर चरण 3 और 4 में उन्हें आवंटित 14 भूखंडों को वापस करने की पेशकश की। ये वही प्लॉट हैं, जो उनके परिवार के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों के केंद्र में हैं। एक बयान उन्होंने कहा कि वह अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन रही हैं। इसलिए इन भूखंडों को वापस करने जा रही हैं। बड़ा सवाल यह है कि यदि सीएम की पत्नी को प्लॉटों को आवंटन सही हुआ था तो उन्होंने खुद ही इन्हें वापस करने की पेशकश क्यों की। इससे साफ है जमीनों के इस घोटाले में बहुत बड़ा खेल हुआ है। जिसकी परतें अब खुलने लगी हैं।

सीएम के खिलाफ शिकायत करने वाली एक्टिविस्ट के खिलाफ कराई एफआइआर
एक ओर सीएम की पत्नी प्लॉटों को वापसी की बात कर रही हैं, तो दूसरी ओर सीएम के खिलाफ शिकायत करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता को प्रताड़ित किया जा रहा है। MUDA घोटाले में शिकायतकर्ता स्नेहमयी कृष्णा के खिलाफ एक महिला की शिकायत पर पुलिस ने मामला दर्ज किया है। महिला ने आरोप लगाया है कि कृष्णा ने संपत्ति के मामले में उसे धमकाया था। पुलिस के मुताबिक मैसुरु जिले के नंजनगुड की रहने वाली शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि कृष्णा ने 18 जुलाई को उसे और उसकी मां को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी थी और कहा था कि वह अपने ससुराल वालों के साथ एक संपत्ति को लेकर चल रहे विवाद से दूर रहे। कृष्णा ने आरोप को फर्जी बताते हुए मांग की है कि पुलिस मामले की गहन जांच करे ताकि सच सामने आ सके। सीएम के खिलाफ शिकायत करने के चलते ही उन्हें फंसाने की साजिश की जा रही है।

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