प्रधानमंत्री मोदी के दो कार्यकाल की दूरगामी नीतियों का ही सुफल है कि भारत का डंका दुनियाभर में बज रहा है। बीते एक दशक में भारत ने निजी खपत बढ़ने की रफ्तार के मामले में अमेरिका, चीन और जर्मनी को पीछे छोड़ दिया है। इसी गति से देश 2026 तक दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बन जाएगा। डेलॉय इंडिया और रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया की एक ताजा रिपोर्ट बताती है कि भारत में निजी खपत 2013 के एक लाख करोड़ डॉलर से दोगुना होकर 2024 में 2.1 लाख करोड़ डॉलर पहुंच गई है। ये आंकड़े बताते हैं कि देश में निजी खपत हर साल 7.2 प्रतिशत की चक्रवृद्धि दर से बढ़ रही है। खास बात यह है कि वृद्धि की यह रफ्तार अमेरिका, चीन एवं जर्मनी से अधिक तेज है। भारत की आबादी में 88 प्रतिशत हिस्सेदारी उच्च वर्ग और उच्च एवं निम्न मध्यवर्ग की है, जो डिस्क्रेशनरी या जरूरी खर्चों के जरिए अर्थव्यवस्था को गति देता है। भारत में बड़ी आबादी गरीबी से बाहर आई है और लोअर मीडिल क्लास में शामिल हुई। इसीलिए वह एसेंशियल खर्चे कर पा रही है।
तीन गुना होगी 10,000 डॉलर से अधिक कमाने वालों की संख्या
रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया और डेलॉय की इंडियाज डिस्क्रेशनेरी स्पेंड इवॉल्यूशन रिपोर्ट के मुताबिक निजी खपत 2013 में एक लाख करोड़ डॉलर थी, जो 2023 में 2.1 लाख करोड़ डॉलर हो गई। वर्ष 2030 तक भारत की अर्थव्यवस्था 7.3 लाख करोड़ डॉलर की होगी और इसमें खपत का हिस्सा 60 प्रतिशत होगा। रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ती आमदनी, डिजिटल को अपनाने और उपभोक्ताओं की बदलती पसंद को देखते हुए भारत का डिस्क्रेशनरी खर्च विकास के नए चरण में प्रवेश कर रहा है। यानी भारत की प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2030 तक 4000 डॉलर से अधिक हो जाने की उम्मीद है। रिपोर्ट में बताया गया है कि 2030 तक सालाना 10 हजार डॉलर से अधिक आय वाले भारतीयों की संख्या तीन गुना हो जाएगी। यह 2024 में लगभग 6 करोड़ थी, जो दशक के अंत तक 16.5 करोड़ होगी। इससे पता चलता है कि देश का मध्य वर्ग कितना बड़ा होगा। आमदनी बढ़ने के साथ लोग क्वालिटी और बेहतर अनुभव को वरीयता दे रहे हैं। जेन ज़ी और मिलेनियल देश की आबादी का 52 प्रतिशत हैं और वे इस बदलाव के अगुवा हैं।
चार हजार डॉलर से अधिक होगी भारत की प्रति व्यक्ति आय
भारत की प्रति व्यक्ति आय 2030 तक बढ़कर 4,000 डॉलर से अधिक हो जाएगी। यह व्यवसायों के पास ग्राहकों की बदलती अपेक्षाओं को पूरा करने का एक अविश्वसनीय अवसर होगा। डेलॉय इंडिया के मुताबिक भारत का उपभोक्ता परिदृश्य परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। विवेकाधीन खर्च में वृद्धि, डिजिटल कॉमर्स का विस्तार और कर्ज तक बढ़ती पहुंच ब्रांड से जुड़ाव के नियमों को फिर से परिभाषित कर रही है। रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सीईओ कुमार राजगोपालन ने कहा, विवेकाधीन खर्च वृद्धि के नए चरण में प्रवेश कर रहा है, जो बढ़ती आय, डिजिटल स्वीकार्यता और विकसित उपभोक्ता प्राथमिकताओं से प्रेरित है। भारत में संगठित खुदरा कारोबार 10 फीसदी की सालाना दर से बढ़ रहा है। बढ़ती खर्च योग्य आय और विकसित होती उपभोक्ता प्राथमिकताओं के कारण 2030 तक इसके 230 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।
28 प्रतिशत खर्च प्रोसेस्ड फूड और बाहर खाने पर करते हैं भारतीय
आरएआई-डेलॉय रिपोर्ट के अनुसार प्रति व्यक्ति मासिक खर्च 2012 में ग्रामीण इलाकों में 1429 रुपये और शहरों में 2630 रुपये था। यह 2023 में क्रमशः 3774 रुपये और 6460 रुपये हो गया है। पिछले साल यह बढ़कर 4122 रुपये और 6996 रुपये हो गया। शहरों में लोगों का 13 प्रतिशत खर्च अनाज-दाल पर, 9 प्रतिशत खर्च अंडा-मछली आदि पर, 28 प्रतिशत खर्च प्रोसेस्ड फूड और बाहर खाने पर तथा 50 प्रतिशत खर्च अन्य मदों में होता है। यह रिपोर्ट इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि एक दिन पहले ही वेंचर फर्म ब्लूम वेंचर्स की एक गलत रिपोर्ट का हवाला देते हुए कुछ मीडिया में कहा गया था कि 100 करोड़ भारतीयों के पास खर्च करने के लिए पैसे ही नहीं है।
भारत में बड़ी आबादी गरीबी से निकलकर लोअर मीडिल क्लास में शामिल
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बड़ी आबादी गरीबी से बाहर आई और लोअर मीडिल क्लास में शामिल हुई। इसीलिए वह एसेंशियल खर्चे कर पा रही है। गरीबी का मतलब एसेंशियल खर्चे भी न उठा पाना होता है। जब लोअर मीडिल क्लास के लोग और ऊपर उठेंगे तो डिस्क्रेशनेरी खर्च भी शुरू करेंगे। उदारीकरण और खासकर वर्ष 2000 के बाद भारत में मध्य वर्ग का आकार लगातार बढ़ रहा है। यह तर्क दिया जाता है कि भारत में अफोर्डेबल हाउसिंग कम हो रही है, लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह है कि आज बड़ी संख्या में लोग अफोर्डेबल से बड़ा घर खरीदना चाहते हैं। यह आकांक्षी वर्ग लगातार बड़ा हो रहा है। अफोर्डेबल से ऊपर और एक करोड़ से कम कीमत वाले घर ही ज्यादा बिक रहे हैं। इन्हें खरीदने वाला मध्य वर्ग ही तो है।
असुरक्षित खुदरा कर्ज और क्रेडिट कार्ड पर कर्ज में कमी आई
आरएआई-डेलॉय की रिपोर्ट में फिच रेटिंग्स का हवाला देते हुए बताया गया है कि रिजर्व बैंक के इस फैसले से असुरक्षित खुदरा कर्ज और क्रेडिट कार्ड पर कर्ज में कमी आई। असुरक्षित खुदरा कर्ज वित्त वर्ष 2020-21 से 2023-24 के दौरान सालाना 22 प्रतिशत की औसत दर से बढ़ा था, लेकिन 2024-25 की पहली छमाही में इसमें सिर्फ 11 प्रतिशत वृद्धि हुई। इसी तरह क्रेडिट कार्ड पर कर्ज बढ़ने की दर 25 प्रतिशत की तुलना में 18 प्रतिशत रह गई। आरबीआई के निर्णय से बैंकों के अनसिक्योर्ड कर्ज पोर्टफोलियो में भी मामूली सुधार हुआ। इसका हिस्सा मार्च 2023 के 25.5 प्रतिशत से घटकर मार्च 2024 में 25.3 प्रतिशत रह गया।
भारत में दुनिया के मुकाबले खपत बढ़ने की दर सबसे अधिक
ब्लूम वेंचर्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा खपत बाजार है। अमेरिका का खपत बाजार 18.6 लाख करोड़ डॉलर, चीन का 6.9 लाख करोड़, जापान और जर्मनी का 2.3 लाख करोड़ तथा भारत का 2.1 लाख करोड़ डॉलर का है। पिछले 10 वर्षों में खपत बढ़ने की दर सबसे अधिक भारत में ही रही है। यह सालाना औसतन 7.2 प्रतिशत की दर से बढ़ी है, जबकि चीन में यह दर 7.1 प्रतिशत, अमेरिका में 5 प्रतिशत, जर्मनी में 1 प्रतिशत और जापान में -2 प्रतिशत है। इसमें स्पष्ट रूप से बताया गया है, “भारत का खपत वर्ग करीब 14 करोड़ लोगों का है। इनकी प्रति व्यक्ति आय लगभग 15 हजार डॉलर है। यह ज्यादातर स्टार्टअप के लिए बाजार है। उभरता आकांक्षी वर्ग 30 करोड़ लोगों का है जो ओटीटी, गेमिंग, एजुटेक आदि पर खर्च करता है। इनकी आय तीन हजार डॉलर के आसपास है। बाकी 100 करोड़ लोग डिस्क्रेशनरी खर्च नहीं करते और इनकी आय एक हजार डॉलर के करीब है। वे स्टार्टअप के बाजार में शामिल नहीं हैं।”
देश की प्रति व्यक्ति आय 1550 डॉलर से बढ़कर 2500 डॉलर पहुंची
दूसरे सर्वेक्षणों में विभिन आय वर्ग में शामिल लोगों की संख्या थोड़ी अलग है। रेडसीर (2022) के अनुसार 3.5 करोड़ लोगों की आय 25 हजार डॉलर से अधिक, 14 करोड़ की आय 14.2 से 25 हजार डॉलर तक, 72 करोड़ की आय 3.5 हजार से 14.2 हजार डॉलर तक और 52.5 करोड़ लोगों की आय 3.5 हजार डॉलर से कम है। बर्न्सटीन (2024) ने बताया कि भारत में 6.5 करोड़ लोगों की आमदनी 12 हजार डॉलर से अधिक, 6.5 करोड़ की 6 से 12 हजार डॉलर तक, 43 करोड़ की 3.3 हजार से 6 हजार डॉलर तक और 79 करोड़ की आमदनी 3.3 हजार डॉलर से कम है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार पिछले 10 वर्षों में भारत की प्रति व्यक्ति आय 1550 डॉलर से 60 प्रतिशत बढ़कर 2500 डॉलर के करीब पहुंची है।
भारत की इकोनॉमी असंगठित से संगठित की तरफ बढ़ रही
ब्लूम वेंचर्स ने बताया है कि भारत की इकोनॉमी असंगठित से संगठित की तरफ बढ़ रही है। वर्ष 2011-12 में कुल व्यक्तिगत आय जीडीपी का 15.2 प्रतिशत थी, जो 2022-23 में 25.2 प्रतिशत हो गई। जीएसटी में रजिस्टर्ड करदाताओं की संख्या भी अगस्त 2017 से नवंबर 2024 के दौरान 68 लाख से बढ़कर 1.49 करोड़ हो गई। रिपोर्ट के अनुसार महामारी के बाद कंज्यूमर क्रेडिट का कुल कर्ज वृद्धि में बड़ा योगदान रहा है। मार्च 2021 से दिसंबर 2023 तक बैंकों और एनबीएफसी (बड़े तथा मध्यम आकार के) की कुल सालाना कर्ज वृद्धि 14.8 प्रतिशत रही, जबकि इस दौरान उपभोक्ता कर्ज 20.6 प्रतिशत बढ़ा। आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में बताया गया है कि निजी खपत (PFCE) मौजूदा वित्त वर्ष की पहली छमाही में 6.7 प्रतिशत बढ़ी है और मौजूदा मूल्य पर जीडीपी में इसका हिस्सा 60 प्रतिशत से अधिक रहा है।
मजबूत बैंकिंग से वित्त प्रणाली में स्थिरता, SIP से आए 25 हजार करोड़
इस रिपोर्ट के अनुसार बैंकिंग क्षेत्र भी हाल के समय में मजबूत हुआ है, जिससे वित्तीय प्रणाली में स्थिरता आई है। आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि लगातार दो वर्षों के दौरान कर्ज वृद्धि नॉमिनल जीडीपी वृद्धि से अधिक रही है। मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में क्रेडिट जीडीपी का अंतर -0.3 प्रतिशत रह गया जो 2022-23 की पहली तिमाही में -10.3 प्रतिशत था। यह बताता है कि बैंक कर्ज में सतत वृद्धि हो रही है। रिजर्व बैंक की दिसंबर 2024 की फाइनेंशियल स्टैबिलिटी रिपोर्ट बताती है कि म्यूचुअल फंड में लोगों की भागीदारी काफी बढ़ी है। नवंबर 2024 में म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री का एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) सालाना आधार पर 38.8 प्रतिशत बढ़कर 68.1 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। इसमें एसआईपी का बड़ा योगदान रहा है। अक्टूबर में एसआईपी के जरिए 25000 करोड़ रुपये से अधिक राशि आई।
सबसे सकारात्मक बात यह है कि भारत का हर वर्ग ऊपर उठ रहा है
रिपोर्ट बताती है कि भारत में निम्न वर्ग और ऊपरी वर्ग दोनों को फायदा हो रहा है। आप यह जरूर कह सकते हैं कि ऊपरी तबके के आगे बढ़ने की दर अधिक है, लेकिन जब सबकी स्थिति बेहतर हो रही है तो उसमें गलत क्या है। ऐसा नहीं कि कोई एक वर्ग पीछे जा रहा है और दूसरा वर्ग आगे। सभी वर्ग आगे बढ़ रहे हैं। आर्थिक विश्लेषकों के मुताबिक, “एक तर्क यह दिया जाता है कि भारत में सबसे निचले 10 प्रतिशत लोगों की ग्रोथ बहुत कम हुई और सबसे ऊपरी 10 प्रतिशत लोगों की ग्रोथ ज्यादा हुई। तथ्य यह है कि सबसे निचले वर्ग में लोग कम हो रहे हैं, वहां से लोग निम्न-मध्य वर्ग में और निम्न-मध्य वर्ग से मध्य वर्ग में आ रहे हैं। जब किसी वर्ग में लोगों की संख्या कम होगी तो उनका हिस्सा भी कम होना लाजिमी है।”
पिछले नौ सालों में गरीबी दर में 17.89 प्रतिशत की कमी आई
रिसर्च फर्म कांतार (KANTAR) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की आबादी में उच्च मध्य वर्गीय 2014 में 7 प्रतिशत थे, जो 2022 में 33 प्रतिशत हो गए। निम्न वर्ग के लोगों की संख्या इस दौरान 69% से घटकर 12% रह गई। नीति आयोग के अनुसार, भारत में गरीबी दर 2013-14 में 29.1 प्रतिशत थी जो 2022-23 में घटकर 11.28 प्रतिशत रह गई है। यानी कि पिछले 9 सालों में 17.89 प्रतिशत की कमी आई। आयोग की मल्टीडाइमेंशनल पोवर्टी इन इंडिया रिपोर्ट के मुताबिक इन नौ वर्षों में 24.8 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर आए हैं।
भारत की स्थिति बेहतर, रिकवरी के-शेप नहीं, यू-शेप में है
रिपोर्ट यह भी बताती है कि कोविड-19 महामारी के बाद भारत की रिकवरी को के-शेप कहा जा रहा है, लेकिन यह ऐसा नहीं है। भारत की रिकवरी यू-शेप है जिसमें हर तबका ऊपर की ओर बढ़ रहा है। महामारी के बाद अमेरिका और यूरोप की इकोनॉमी की चाल भी के-शेप रही है। बल्कि भारत में विकास की स्थिति उनकी तुलना में काफी बेहतर है। महामारी के बाद भारत की विकास दर 2021-22 में 9.7 प्रतिशत, 2022-23 में 7.0 प्रतिशत, और 2023-24 में 8.2 प्रतिशत रही। अमेरिका में यह 2021 में 5.9 प्रतिशत, 2022 में 1.9 प्रतिशत, और 2023 में 2.5 प्रतिशत, रही। पड़ोसी देश चीन की ग्रोथ रेट भी इन वर्षों में क्रमशः 8.45 प्रतिशत, 2.99 प्रतिशत और 5.20 प्रतिशत रही।