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बिहार में लालू एंड कंपनी के ‘जंगलराज’ की अनंत कहानियां

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बिहार में वर्ष 1990 से 2005 के बीच लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के शासनकाल को याद कर आज भी लोग दहशत में आ जाते हैं। इसी दौर को “जंगल राज” कहा जाता है, जब राज्य में अराजकता, अपराध, भ्रष्टाचार और राजनीतिक सरंक्षण प्राप्त अपराधियों का बोलबाला था। हत्या, अपहरण, लूटपाट, बलात्कार और फिरौती जैसी वारदात आम हो गई थीं। कानून व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा चुकी थी। लेकिन पुलिस-प्रशासन पूरी तरह  निष्क्रिय और बेबस था। दहशत के उस दौर को समझने के लिए आपको जंगल राज की इन कहानियों को जरूर जानना चाहिए।

1990 के दशक में जब बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर लालू यादव का शासन शुरू हुआ, तो इसके बाद से ही अपराधियों का राजनीतिक संरक्षण बढ़ने लगा। कहा जाता है कि उस समय मंत्रियों के आवास अपराधियों के लिए गेस्ट हाउस की तरह थे। जहां अपराध के बाद उनको शरण मिलती थी।लालू राज में अपराधियों और राजनेताओं की सांठगांठ का इससे साफ पता चलता है कि उनके राज में कई गैंगस्टर और माफिया नेता विधायक और सांसद बन गए थे। जैसे शहाबुद्दीन, मुन्ना शुक्ला, आनंद मोहन, और तस्लीमुद्दीन। 1990 के विधानसभा चुनाव में जीत कर शहाबुद्दीन पहली बार विधायक बने। इसके बाद आपराधित छवि वाले  लालू ने शहाबुद्दीन को कई पदों ने नवाजा। इसका नतीजा बिहार के लोगों को भोगना पड़ा।

शहाबुद्दीन का आतंक
जैसे जैसे राजनीति में लालू यादव का कद बढ़ता गया, वैसे-वैसे बाहुबली शहाबुद्दीन का आतंक भी अपने चरम पर पहुंचने लगा।

चंदा बाबू के बेटों की तेजाब से हत्या
16 अगस्त 2004 को सिवान में आरजेडी के पूर्व सांसद बाहुबली शहाबुद्दीन पर आरोप लगा कि उसने चंदा बाबू के बेटों को तेजाब से नहलाकर शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे। कई ममालों में कोर्ट ने शहाबुद्दीन को सजा भी सुनाई थी, लेकिन जंगलराज में खौफ का पर्याय शहाबुद्दीन को लालू हर तरह से संरक्षण देते रहे। आरजेडी सरकार के संरक्षण में शहाबुद्दीन सीवान को अपनी जागीर समझने लगा और उसके बिना क्षेत्र का एक पत्ता भी नहीं हिलता था।

छोटे लाल गुप्ता और चंद्रशेखर का मर्डर
मोहम्मद शहाबुद्दीन बिहार में लालू यादव के जंगल राज का पोस्टर ब्वॉय था। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के कार्यकर्ता छोटे लाल गुप्ता के अपहरण और हत्या का मामला हो या फिर मार्च 1997 में जवाहर लाल नेहरू विवि छात्र संघ के अध्यक्ष रहे चंद्रशेखर को सीवान में हुई हत्या। कहा जाता है कि बाहुबली सांसद शहाबुद्दीन के इशारे पर उनके गुर्गों ने इसे अंजाम दिया था।

शहाबुद्दीन के आगे नतमस्तक लालू सरकार
सिवान के लोग शहाबुद्दीन के नाम से ही कांप उठते थे। लालू यादव की पार्टी की कृपा से राजनीति में दखल बढ़ने के साथ ही उसके खौफ के सामने प्रशासन ने भी घुटने टेक दिए। आरोप लगता है कि कानून व्यवस्था को ताक पर रखकर सरकार भी नतमस्तक हो गई और दबंगई के दम पर सत्ता के शिखर पर पहुंचने वाले इस बाहुबली को संरक्षण देने लगी। कहा जाता है कि उस दौर में SP से लेकर इंस्पेक्टर तक शहाबुद्दीन के रहमोकरम पर वर्दी पहनते थे।

चुनाव में हार का खूनी बदला
शहाबुद्दीन बड़े से बड़े कांड को अंजाम देने में जरा भी नहीं हिचकता था। इसकी बड़ी वजह थी लालू सरकार का खुलेआम संरक्षण। खबरों के मुताबिक चुनाव में अपनी पत्नी हिना की हार से बौखलाकर उसने ना सिर्फ भाटापोखर गांव में रहने वाले पंचायत मुखिया हरिंदर कुशवाहा को सरकारी कार्यालय में ही गोलियों से छलनी कर हत्या कर डाली, बल्कि इसके बाद जेडीयू नेता ओमप्रकाश यादव के घर पर ताबड़तोड़ सैकड़ों राउंड फायरिंग कर पूरे घर पर गोलियों के निशान बना डाले। अंदाजा लगाया जा सकता है कि लालू राज में अपराधियों की ताकत और हिम्मत किस कदर बढ़ चुकी थी।

समर्थकों से पुलिस वालों की पिटाई
चर्चा के मुताबिक शहाबुद्दीन के लिए पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों का भय न के बराबर था। इन अधिकारियों के साथ मारपीट इस बाहुबली के दिनचर्या में था। लेकिन हद तब हो गई जब मार्च 2001 में आरजेडी के स्थानीय अध्यक्ष मनोज कुमार पप्पू के खिलाफ एक वारंट लेकर गिरफ्तारी करने पहुंचे पुलिस अधिकारी संजीव कुमार को शहाबुद्दीन ने न सिर्फ थप्पड़ मार दिया बल्कि समर्थकों से पुलिस वालों की पिटाई भी करवा दी। माना जाता है कि शहाबुद्दीन ने अपने राजनीतिक करियर में सीवान के कई पुलिस अधिकारियों पर जुल्म ढ़ाया था। जंगल राज के आतंक में जब पुलिस ही सुरक्षित नहीं थी, तब आप लोग कितने असहाय थे, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

लालू की कृपा से संसद पहुंचा अपराधी शहाबुद्दीन
लालू प्रसाद यादव के साथ मिलकर बिहार में आतंक का दूसरा नाम बन चुके शहाबुद्दीन ने मुस्लिम-यादव वोटरों पर पकड़ बनाई जिसकी बदौलत 1991 के लोकसभा चुनावों में जनता दल को बड़ी जीत हासिल हुई। 1995 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद की पार्टी जनता दल के टिकट पर जीरादेई से शहाबुद्दीन दूसरी बार मैदान में उतरा और दूसरी बार विधायक बना। एक साल बाद ही 1996 में लोकसभा का चुनाव हुआ, आरजेडी ने शहाबुद्दीन को सीवान से टिकट दे दिया और वो जीत दर्ज कर लोकसभा पहुंच गया। जरा सोचिए, एक अपराधी को लालू यादव ने हमारे लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर तक पहुंचा दिया।

भाजपा नेता सत्यनारायण सिन्हा की सरेआम हत्या
30 अप्रैल 2003 को बिहार में ‘जंगलराज’ की जीती जागती तस्वीर को याद कर बिहार के लोग आज भी सिहर जाते हैं। इस दिन लालू प्रसाद यादव की ‘तेल पिलावन लाठी घुमावन’ रैली थी। इसी दिन दानापुर के जमालुउद्दीन चक के पास दानापुर की पूर्व विधायक आशा देवी के पति भाजपा नेता सत्यनारायण सिन्हा की सरेआम हत्या कर दी गई। मामले में लालू यादव का करीबी रीतलाल यादव आरोपी था।

IAS अधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या
5 दिसंबर 1994 में IAS अधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या से पूरे देश में सनसनी फैल गई थी। दरअसल तब आनंद मोहन की बिहार पीपुल्स पार्टी के छोटन शुक्ला की हत्या के बाद उनके समर्थक जुलूस निकालकर शव का अंतिम संस्कार करने जा रहे थे। इससे बेखबर गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया नेशनल हाईवे से गोपालगंज लौट रहे थे। मुजफ्फरपुर के पास अचानक 5 हजार की भीड़ ने गाड़ी को घेर लिया और कार से खींचकर उनकी हत्या कर दी गई।

शिल्पी जैन हत्याकांड
साल 1999 में शिल्पी जैन हत्याकांड ने सनसनी मचा दी थी, लेकिन आज तक शिल्पी को इंसाफ नहीं मिला है। 23 साल की शिल्पी पटना वीमेंस कॉलेज की होनहार छात्रा होने के साथ-साथ ‘मिस पटना’ का खिताब जीतकर हर दिल की धड़कन बन चुकी थी। दूसरी तरफ उसका दोस्त गौतम सिंह एक एनआरआई परिवार का बेटा था और बिहार की राजनीति में उसे रुचि थी। गौतम, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की युवा शाखा से जुड़ा था।  दोनों की लाश संदिग्ध हालत में गांधी मैदान के फ्रेजर रोड के एक गैराज में मिली। यह क्वार्टर उस समय के बाहुबली विधायक साधु यादव का था, जो तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी का भाई और लालू प्रसाद यादव का साला था। ये मामला आज तक अनसुलझा है। दोनों की मौत को आत्महत्या बता दिया गया। इस घटना को उस समय के सत्ता के रसूख का नंगा नाच नहीं तो और क्या कहेंगे।

चंपा विश्वास बलात्कार कांड
लालू राज के 990 से 2005 का दौर में ‘जंगलराज’ के दौरान एक और खौफनाक कांड सामने आया-चंपा विश्वास बलात्कार कांड। 1995 में एक दलित बिरादरी के प्रतिभाशाली आईएएस अधिकारी बीबी विश्वास की पोस्टिंग पटना में हुई जहां उन्हें समाज कल्याण विभाग का सचिव बनाया गया। उनके पड़ोस में आरजेडी की ताकतवर विधायक और लालू यादव की करीबी हेमलता यादव का घर था। 7 सितंबर 1995 को हेमलता यादव ने बीबी विश्वास की पत्नी चंपा विश्वास को अपने घर बुलाया। वहां उसके बेटा मृत्युंजय यादव ने पहली बार चंपा विश्वास के साथ बलात्कार किया। अगले दो साल (1995-1997) तक मृत्युंजय ने चंपा विश्वास, उनकी भतीजी, मां और घर की दो नौकरानियों के साथ बार-बार यौन शोषण किया। बताया जाता है कि तब बीबी विश्वास ने लालू यादव से मुलाकात की और मदद मांगी, लेकिन लालू का जवाब था, जाने दो, जिंदा तो हो। चंपा कांड ने दिखाया कि इस खौफनाक दौर में एक IAS का परिवार भी सुरक्षित नहीं था।

जंगलराज में अपहरण बना कारोबार
जंगल राज के दौर में बिहार में सैकड़ों डॉक्टरों और व्यापारियों के अपहरण हुए। आम लोग दहशत में जीते रहे, जबकि लालू यादव की सरकार और प्रशासन आंखे मूंदे बैठे रहे। 2001 से 2004 के बीच बिहार में 1,527 अपहरण के मामले सामने आए, जिनमें 2004 में अकेले 411 अपहरण हुए।  यह वह दौर था जब बिहार में अपहरण एक उद्योग बन गया था। पिछले दिनों बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के साले सुभाष यादव ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि तत्कालीन आरजेडी सरकार ही किडनैपिंग उद्योग का संरक्षक थी। उनका दावा है कि असल में मुख्यमंत्री आवास से ही आरोपियों को फोन कर मामले सुलझाए जाते थे।

इंजीनियर सत्येंद्र दुबे की हत्या
साल 2003 में बिहार के गया में भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले इंजीनियर सत्येंद्र दुबे की हत्या कर दी गई थी। लोग उन्हें आज भी देश के पहले व्हिसलब्लोअर के रूप में याद करते हैं। सत्येन्द्र ने उस समय भारत की सबसे बड़ी राजमार्ग परियोजना में भ्रष्टाचार को उजागर करने का प्रयास किया था। इस कांड से देश-विदेश में सनसनी मच गई थी। यह लालू राज में जंगल राज का जीता जागता प्रमाण है।

लालू सरकार का चारा घोटाला
चारा घोटाला 1990 के बीच में बिहार के पशुपालन विभाग से जुड़ा एक बड़ा घौटाला है। इस दौरान लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे। चारा घोटाले का खुलासा साल 1996 में सामने आया था। यह बिहार पशुपालन विभाग में से करोड़ों रुपए के गबन से जुड़ा मामला है। 90 के दशक की शुरुआत में बिहार के चाईबासा (अब झारखंड में) में सरकारी खजाने से फर्जी बिल लगाकर 37.7 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी की गई। चारा घोटाले में कुल 950 करोड़ रुपये के गबन किए जाने का आरोप है। इस केस से जुड़े मामलों में लालू यादव को सजा भी हो चुकी है।

अगड़ों में खौफ का माहौल
बिहार की राजनीति में ‘भूरा बाल साफ करो’ के नारे ने 1990 के दशक में जातीय तनाव को हवा दी थी। इस नारे का अर्थ-भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और कायस्थ समाज के खिलाफ माहौल बनाना था जिसे लालू प्रसाद यादव की रणनीति से जोड़ा गया। इस नारे को लेकर एक बार फिर से एक वीडियो के वायरल होने से बिहार विधानसभा के चुनाव की राजनीति एक बार फिर से गरमा गई है।

बारा का भयंकर नरसंहार
साल 1992 में बारा में भयंकर नरसंहार हुआ। इसने जातीय हिंसा को चरम पर पहुंचा दिया था। बारा नरसंहार लालू राज में ‘जंगलराज’ के बड़े उदाहरणों में से एक है। जातीय और भूमि विवाद की वजह से भूमिहार जाति के 40 लोगों को एक नहर के किनारे ले जाकर उनके हाथ बांध कर गला रेतकर हत्या कर दी थी। यह बारा नरसंहार बिहार के 1990 के दशक के जातीय संघर्षों का सबसे नृशंस प्रतीक बन गया। इस घटना को लालू प्रसाद यादव के शासनकाल में शुरू हुए तथाकथित ‘सामाजिक न्याय की राजनीति’ की विफलता के तौर पर देखा गया, जिससे बिहार में जातीय तनाव को हवा मिली।

बथानी टोला नरसंहार
बथानी टोला नरसंहार 11 जुलाई 1996 को बिहार के भोजपुर ज़िले के बथानी टोला में हुआ था। इसमें रणवीर सेना के लोगों ने 21 दलितों की हत्या कर दी थी। माना जाता है कि बारा गांव नरसंहार का बदला लेने के लिए ये हत्याएं की गई थीं।

औरंगाबाद का मियांपुर नरसंहार
मियांपुर नरसंहार बिहार में औरंगाबाद जिले के मियांपुर में 16 जून 2000 को हुआ था। इसमें 35 दलितों हत्या कर दी गई थी। इस मामले में जुलाई 2013 में उच्च न्यायलय ने साक्ष्य के अभाव में 10 अभियुक्तों में से नौ को बरी कर दिया था।

लक्ष्मणपुर बाथे की नृशंस घटना
लक्ष्मणपुर बाथे की घटना बिहार के नरसंहारों में सबसे बड़ा और नृशंस नरसंहार माना जाता है। इसमें बच्चों और गर्भवती महिलाओं को भी निशाना बनाया गया था। 30 नवंबर और 1 दिसंबर, 1997 की रात हुए इस नरसंहार में रणवीर सेना ने 58 लोगों की हत्या की थी। लक्ष्मणपुर-बाथे नरसंहार ने कई परिवारों को अनाथ कर दिया था। कई परिवारों में घर का काम-काज संभालने के लिए एक महिला भी नहीं बची थी। कुछ परिवारों में तो सिर्फ बच्चे ही जीवित रह गए थे।

जहानाबाद का शंकर बिगहा नरसंहार
साल 1999 में जहानाबाद में ही 23 दलितों की हत्या कर दी गई. इस बार भी हत्या का आरोप रणवीर सेना पर लगा। राबड़ी देवी की सरकार पर अपराधियों को सजा न दिलाने का आरोप लगा। बाद में ट्रायल के दौरान कई मामलों में दोषियों को बरी कर दिया गया। एक अनुमान के मुताबिक 1990-2005 के बीच कम से कम 300-400 दलित इन हिंसक घटनाओं का शिकार हुए। इन नरसंहारों के पीड़ित आज तक लालू-राबड़ी राज को कोस रहे हैं। बथानी टोला, लक्ष्मणपुर बाथे और शंकर बिगहा जैसे नरसंहार बिहार के इतिहास में काले धब्बे और जंगल राज की निशानी के तौर पर आज भी याद किए जा रहे हैं।

दिग्गज मंत्री बृजबिहारी प्रसाद की हत्या
लालू यादव के दिग्गज मंत्री बृजबिहारी प्रसाद की हत्या 13 जून 1998 को हुई थी। यह कोई हत्या कोई छोटी घटना नहीं थी। दूसरे शब्दों में कहें तो यही वो घटना थी, जिसने सही मायने में बिहार में अपराध या जंगलराज को देश और दुनिया के सामने ला दिया था। कहा जाता है कि लालू यादव की सरकार में मंत्री बनने के बाद बृजबिहारी ने अंडरवर्ल्ड में भी अच्छी पहचान बना ली। लेकिन वो अंडरवर्ल्ड की साजिश का ही शिकार हो गया।

दीदी और जीजा जी के शासन में साले का आतंक
लालू राबड़ी राज में साधु यादव की गिनती बिहार के बाहुबलियों में होने लगी थी। दीदी और जीजा जी के शासन काल में साधु यादव की तूती बोलती थी। उस दौर में ना सिर्फ पार्टी बल्कि पूरे बिहार में उनकी धाक थी। साधु यादव पर दबंगई, व्यापारियों को परेशान करने समेत कई आरोप लगते रहे हैं। वो बिहार में अपराधियों ओर बाहुबलियों को संरक्षण देने के लिए भी जाने जाते रहे। लालू यादव का दौर दरअसल काले राज का समय था, जब फिरौती, गुंडागर्दी और बदमाशी चरम पर थी। लालू यादव के दो साले, सुभाष यादव और साधु यादव, उस दौर में पटना की सड़कों पर खुलेआम जीप में घूमते थे। बताया जाता है कि उन्हें देखते ही दुकानदार अपने शटर बंद कर लेते थे। ये दोनों दुकान में घुसकर सीधे फिरौती मांगते थे। दुकानदार मना भी नहीं कर सकते थे क् क्योंकि वे जानते थे कि ये खुद लालू यादव के साले हैं। प्रशासन भी इनकी हरकतों पर आंखें मूंदे रहता था। साल 2002 में लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य की शादी बड़े धूमधाम से की गई थी। लेकिन इस भव्य शादी के इंतजाम के लिए लालू के साले एक कार शोरूम में घुस गए और दर्जनों गाड़ियां बिना पैसे दिए उठा ले गए। फिर वे एक सोने की दुकान पर पहुंचे और वहां से भी भारी मात्रा में जेवरात ले गए। इसके बाद उन्होंने फर्नीचर की दुकानों से 100 से ज़्यादा सोफा सेट उठा लिए। हैरानी की बात यह है कि इस दौरान पूरा प्रशासन चुप रहा।

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