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India Vs China: पीएम मोदी की विजनरी नीतियों से भारत का मुकाबला करने में छूटे ड्रैगन के पसीने, Top-5 कारणों ने खोली जिनपिंग की पोल

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदर्शी आर्थिक नीतियों के आ रहे सुपरिणाम को देखकर दुनिया के पसीने छूट रहे हैं और चीन तो हैरान-परेशान हालत में है। भारत की इकोनॉमी को पंख लगे हैं। शेयर मार्केट नित-नई छलागें लगा रहा है और भारत जिस तेजी से आगे बढ़ रहा है, उसका मुकाबला करने में ड्रैगन की हालत पतली हो रही है। क्योंकि भारत की विकास दर बढ़ने के विपरीत राष्ट्रपति शी जिनपिंग की गलत नीतियों के चलते चीन की विकास दर सुस्त पड़ गई है। बीजिंग नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिक्स (NBS) ने को घोषणा की कि साल की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की विकास दर 4.7 प्रतिशत है, जो कि पहली तिमाही में 5.3 प्रतिशत थी। भारत की बात करें तो दूसरी तिमाही में उसकी विकास दर 7.6 प्रतिशत रही है। यानी दूसरी तिमाही में चीन बहुत पीछे है, जबकि भारत का ग्रोथ रेट अनुमान से भी आगे निकल गया है। इससे पहले, आरबीआई ने भी चालू वित्त वर्ष में देश की आर्थिक वृद्धि दर 7.2 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। इसके अलावा अन्य वैश्विक रेटिंग एजेंसियों ने भारत की वृद्धि दर 7 से 7.2 फीसदी तक रहने की उम्मीद जताई है।

तमाम इकोनॉमिस्ट और ब्लूमबर्ग ने सर्वे अनुमानों से काफी पीछे रहा ड्रैगन
चीन सरकार ने खुद स्वीकार किया कि उसकी जीडीपी वित्तीय वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही में घटकर 4.7 फीसदी पर आ गई है। आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि चीन अपनी नीतियों के कारण ही संपत्ति क्षेत्र में मंदी, धीमी जीडीपी वृद्धि, युवा बेरोजगारी, व्यापार में कम विदेशी निवेश और जनसंख्या संबंधी चुनौतियों से जूझ रहा है। पहली तिमाही के आंकड़ों को देखते हुए तमाम इकोनॉमिस्ट और ब्लूमबर्ग ने सर्वे में चीन की दूसरी तिमाही में जीडीपी के लिए 5.1 फीसदी की ग्रोथ रेट का अनुमान लगाया था, लेकिन चीन इन तमाम अनुमानों से बहुत पीछे रह गया है। यह आंकड़े ऐसे समय पर सामने आए हैं, जब सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) ने एक अहम बैठक की है, जिसे दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में दोबारा जान फूंकने की राष्ट्रपति शी चिनफिंग की कोशिश माना जा रहा है, लेकिन फिलहाल तो इसके नतीजे असफलता की ओर ही इशारा करते हैं।

इकोनॉमी में दोबारा जान फूंकने की राष्ट्रपति शी चिनपिंग की कोशिश नाकाम
एनबीएस ने साफ कहा कि चीन के लिए मौजूदा बाहरी वातावरण जटिल है, जबकि घरेलू मांग अपर्याप्त बनी हुई है। ऐसे में चीन को लगातार आर्थिक सुधार की नींव मजबूत करने की जरूरत है। ‘थर्ड प्लेनम’ नामक चार दिवसीय बैठक में कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के 376 पूर्ण और वैकल्पिक सदस्य हिस्सा ले रहे हैं। वे मुख्य रूप से सुधारों को व्यापक रूप से बढ़ाने और चीन के आधुनिकीकरण को गति देने से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करेंगे, ताकि गहराते जनसांख्यिकीय संकट, सुस्त विकास और बढ़ते सरकारी ऋणों से चरमराई चीन की इकोनॉमी को पटरी पर लाया जा सके। सीपीसी की बैठक अर्थव्यवस्था में सुधार का एजेंडा तय करने की दिशा में है।

भारत की जीडीपी की छलांग ऐसे चीन को कर रही है चित
नेशनल स्टेटिस्टिकल ऑफिस (National Statistical Office) के अनुसार 2024 की पहली तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट 7.8 फीसदी थी और दूसरी तिमाही में 7.6 फीसदी हासिल की। पिछले साल मार्च में यह आंकड़ा 8.2 फीसदी था। वहीं, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 2024 के लिए भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट 7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था। दूसरी ओर चीन पहली तिमाही में 5.3 प्रतिशत पर ही ठिठक गया है। आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में देश की आर्थिक वृद्धि दर 7.2 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। इसके अलावा अन्य वैश्विक रेटिंग एजेंसियों ने भारत की वृद्धि दर 7 से 7.2 फीसदी तक रहने का अनुमान लगाया है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में, भारत की जीडीपी 8.2 प्रतिशत की गति से बढ़ी, जो एक साल पहले 7 प्रतिशत थी। ऐसा चौथी तिमाही में उम्मीद से अधिक 7.8 प्रतिशत के मजबूत विस्तार के कारण हुआ।एक महीने में ही चीन की उपभोक्ता खपत घटकर करीब आधी रह गई
चीनी रिपोर्ट में कहा गया कि रियल एस्टेट संकट के चलते उपभोक्ताओं और कंपनियों ने सावधानीपूर्वक खर्च किया। चीन की विकास दर में गिरावट आने का मुख्य कारण खुदरा बिक्री में कमी आना है। आंकड़ों के अनुसार मई में चीन की उपभोक्ता खपत 3.7 प्रतिशत थी, जो जून में गिरकर सिर्फ 2 प्रतिशत ही रह गई। रियल एस्टेट के कर्ज के कारण उपभोक्ता खपत में इतनी ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है। सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) ने अहम बैठक में राष्ट्रपति शी चिनपिंग इस गिरावट के कारणों पर भी चर्चा करेंगे। ताकि चीन में लगातार पैर पसार रही आर्थिक सुस्ती से किसी तरह निजात मिल सके। हालांकि, अभी इसकी संभावना काफी कम नजर आती है।

एक ओर पीएम मोदी की नीतियां देश को थर्ड इकोनॉमी की ओर ले जा रही हैं,  वहीं चीन के लिए आर्थिक चुनौतियां संभावित संकट को और बढ़ा रही हैं। आइए, इसके प्रमुख कारणों पर एक नजर डालते हैं…

1. रियल एस्टेट बाजार, डेवलपर डिफ़ॉल्ट और गिरती घर की कीमतों से जूझ रहा चीन
चीन में संपत्ति क्षेत्र में घनघोर मंदी की आहट लगातार आ रही है। दरअसल, चीन की नीतियों ने अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मारी है। डेवलपर्स द्वारा अत्यधिक उधार लेने पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से “थ्री रेड लाइन्स” जैसी सख्त नीतियों ने परियोजनाओं को वित्तपोषित करने और विस्तार करने की क्षमताओं को सीमित कर दिया है। चीन में बीते वर्षों के तीव्र निर्माण के कारण कई शहरों में आवास की अत्यधिक आपूर्ति हो गई, जिससे नई संपत्तियों की मांग कम हो गई। धीमी जनसंख्या वृद्धि ने भी इसमें योगदान दिया है। चीन की समग्र आर्थिक वृद्धि धीमी हो गई है, जिससे उपभोक्ताओं का विश्वास डिगा है और उन्हें संपत्ति में निवेश करना जोखिमभरा लग रहा है। चीन के एवरग्रांडे जैसे प्रमुख डेवलपर्स द्वारा हाई-प्रोफाइल डिफॉल्ट ने इस क्षेत्र में निवेशकों और खरीदारों के विश्वास को हिला दिया है। महामारी के दौरान लॉकडाउन और आर्थिक अनिश्चितता ने संपत्ति की बिक्री और निर्माण गतिविधि को कम कर दिया था, जिससे चीन अब तक उबर नहीं पाया है। इसके अलावा देश में कई स्थानीय सरकारें भारी कर्ज में डूबी हुई हैं, जिससे वित्तीय अस्थिरता का भारी खतरा है।2. चीनी युवाओं की बेरोजगारी दर 20% को पार करते हुए रिकॉर्ड ऊंचाई पर
हाल के वर्षों में चीन में युवा बेरोजगारी एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बन गई है। युवाओं में उच्च बेरोजगारी एक बढ़ता हुआ सामाजिक और आर्थिक मुद्दा है। 2023 तक 16-24 आयु वर्ग के चीनी युवाओं की बेरोजगारी दर 20% को पार करते हुए रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई। बेरोजगारी की यह समस्या कई कारकों से उत्पन्न हुई है। इनमें आर्थिक मंदी मुख्य कारक है। इसके चलते चीन की आर्थिक वृद्धि धीमी हो गई है, जिससे नौकरी के अवसर कम हो गए हैं। यहां पर कोविड-19 का प्रभाव भी बहुत है। दरअसल, महामारी ने नौकरी बाजारों को बाधित कर दिया और विभिन्न क्षेत्रों में नियुक्तियां धीमी हो गईं हैं। कई स्नातकों के पास तेजी से विकसित हो रहे उद्योगों में नियोक्ताओं द्वारा मांगे गए कौशल का अभाव है। इसके साथ ही चीन के विश्वविद्यालय के स्नातकों की संख्या में वृद्धि ने उपलब्ध पदों के लिए प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा बढ़ा दिया है। चीन की अर्थव्यवस्था में विनिर्माण से सेवाओं तक बदलाव ने रोजगार के पूरे परिदृश्य को ही बदल कर रख दिया है।

3. चीन की अर्थव्यवस्था की पिछले दशकों की तुलना में सबसे धीमी गति
अर्थव्यवस्था की धीमी जीडीपी वृद्धि के कई प्रमुख कारक हैं। जनसंख्या चीन की बड़ी चुनौती है। चीन की बढ़ती आबादी और घटता कार्यबल उत्पादकता और आर्थिक विकास को तेजी से प्रभावित कर रहा है। विदेशों से व्यापारिक टेंशन, खासकर अमेरिका के साथ चल रहे व्यापार विवादों ने निर्यात और विदेशी निवेश को प्रभावित किया है। जीडीपी में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले रियल एस्टेट क्षेत्र में अस्थिरता ने देश की इकोनॉमिक हेल्थ के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं। इसके साथ ही कारर्पोरेट और स्थानीय सरकारी ऋण ने उच्च स्तर जोखिम पैदा किया है, जो विकास क्षमता को भी सीमित करता है। चीन की अर्थव्यवस्था अब तक कोरोना महामारी से उबर नहीं पाई है। महामारी और चीन की सख्त शून्य-कोविड नीति ने आर्थिक गतिविधि और आपूर्ति श्रृंखलाओं को बुरी तरह से बाधित किया है। इसके अलावा आर्थिक सुधारों की गति धीमी हो गई है, जिससे संभावित रूप से दक्षता लाभ और उत्पादकता वृद्धि सीमित हो गई है।4. आबादी और घटती कार्यबल दीर्घकालिक आर्थिक खतरे बढ़ा रही
चीन कई महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय चुनौतियों का सामना कर रहा है। चीन की पिछली जनसंख्या नियंत्रण नीतियों के कारण यहां की जनसंख्या तेजी से बूढ़ी हो रही है। इससे कार्यबल घट रहा है और स्वास्थ्य देखभाल और पेंशन प्रणालियों पर दबाव तेजी से बढ़ा है। चीन की एक बच्चे की नीति में ढील देने के बावजूद चीन की जन्म दर कम बनी हुई है। उच्च जीवन-यापन लागत और बदलते सामाजिक मानदंडों के कारण यहां कई युवा दंपति कम बच्चे पैदा कर रहे हैं। एक बच्चे की नीति में लड़कों को प्राथमिकता देने के कारण ऐतिहासिक रूप से लिंग असंतुलन पैदा हुआ है, जिसमें आबादी में महिलाओं की तुलना में अधिक पुरुष हैं। ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर आंदोलन के कारण असमान जनसंख्या वितरण और भीड़भाड़ वाले शहरों और कम आबादी वाले ग्रामीण क्षेत्रों दोनों में सेवाएं प्रदान करने में चुनौतियां पैदा हुई हैं। इसके अलावा कामकाजी उम्र की आबादी घट रही है, जो आर्थिक विकास और नवाचार को प्रभावित कर रही है।5. सरकारी ऋण में अप्रत्याशित वृद्धि से भी चीन की हालत पतली
हाल के वर्षों में चीन में स्थानीय सरकारी ऋण एक महत्वपूर्ण आर्थिक चिंता का सबब बन गया है। दरअसल, 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से ही स्थानीय सरकारी ऋण में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है। इस कर्ज का अधिकांश हिस्सा स्थानीय सरकारी वित्तपोषण वाहनों (एलजीएफवी) के माध्यम से रखा जाता है, जो ऑफ-बजट संस्थाएं हैं। इसने बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे और रियल एस्टेट विकास परियोजनाओं को वित्त पोषित किया है, लेकिन अब कर्ज की कमी का असर इनपर आया है। उच्च ऋण स्तर चीन की वित्तीय स्थिरता और आर्थिक विकास के लिए जोखिम पैदा कर रहा है। हालात यह हैं कि बीजिंग को स्थानीय सरकारी उधार को नियंत्रित और विनियमित करने के उपाय लागू करने के बाध्य होना पड़ा है। चीन के विभिन्न प्रांतों और नगर पालिकाओं में ऋण का स्तर में भी काफी असमानताएं हैं। दरअसल, पारदर्शिता के अभाव के चलते जटिल वित्तपोषण संरचनाओं के कारण स्थानीय सरकारी ऋण की पूरी सीमा अस्पष्ट बनी हुई है।

आईएमएफ के मुताबिक आर्थिक वृद्धि अनुमान (% में)
देश          पहले   अब
भारत        6.8    7.0
चीन         4.6     5.0
यूरो देश    0.5     0.9
अमेरिका    2.7    2.6
जापान      0.7    0.9

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