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कांग्रेस सरकार के मुकाबले मोदी सरकार में रक्षा निर्यात में 30 गुना वृद्धि, 21 हजार करोड़ से ऊपर पहुंचा एक्सपोर्ट

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक के बाद एक कई बड़े फैसले किए, जिसका अब असर दिखाई दे रहा है। कल तक दूसरों पर निर्भर रहने वाला भारत आज न केवल अपनी जरूरत के हथियारों का निर्माण कर रहा है, बल्कि विदेशों में इसका तेजी से निर्यात भी कर रहा है। मेक इन इंडिया पहल से रक्षा निर्यात में हर साल बढ़ोतरी हो रही है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत का रक्षा निर्यात रिकॉर्ड 21,083 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया है। कांग्रेस सरकार के समय से तुलना करें तो वर्ष 2013-14 में मात्र 686 करोड़ रुपये का रक्षा निर्यात था जो कि 2023-24 में बढ़कर 21,083 हो गया। इस तरह मोदी सरकार की बेहतर नीतियों की वजह से रक्षा निर्यात में भारत ने पिछले 10 वर्षों में 30 गुना लंबी छलांग लगाई है। भारत के रक्षा उद्योग ने दुनिया को डिजाइन और विकास की अपनी क्षमता दिखाई है। यह भारतीय रक्षा उत्पादों और प्रौद्योगिकियों की दुनिया में स्वीकार्यता को भी दर्शाता है। भारत इस समय दक्षिण पूर्व एशिया, खाड़ी के देशों, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में 85 से अधिक देशों को निर्यात कर रहा है। देश में इस समय लगभग 100 कंपनियां रक्षा उत्पादों का निर्यात कर रही हैं।

भारत ने 21,000 करोड़ रुपये का रक्षा सामान बेचा
भारत ने रक्षा सामान के निर्यात में रिकॉर्ड बनाया है। 2023-24 में भारत ने 21,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का रक्षा सामान विदेशों को बेचा। इसमें छोटे हथियार, सुरक्षा के गियर और तोप जैसी चीज़ें शामिल हैं। ये आंकड़ा 2018-19 के मुकाबले दोगुना से भी ज्यादा है। वहीं कांग्रेस सरकार के समय से तुलना करें तो यह 30 गुना ज्यादा है। 2013-14 में मात्र 686 करोड़ रुपये का रक्षा निर्यात था जो कि 2023-24 में बढ़कर 21,083 हो गया।

मेक इन इंडिया से आयात पर निर्भरता कम हुई
रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने के लिए, सरकार ने “मेक इन इंडिया” जैसी कई नीतिगत पहल की है और पिछले 10 वर्षों में इसमें कई आर्थिक सुधार किए हैं। निर्यात प्रक्रियाओं को सरल बनाया गया है और एंड-टू-एंड ऑनलाइन निर्यात प्राधिकरण के साथ उद्योग-अनुकूल बनाया गया है जिससे व्यापार करने में आसानी हुई है। इसके अलावा आत्मनिर्भर भारत पहल ने देश में रक्षा उपकरणों के स्वदेशी डिजाइन, विकास और निर्माण को प्रोत्साहित करके देश की मदद की है जिससे लंबे समय में आयात पर निर्भरता कम हो गई है।

रक्षा सामान बनाने में निजी क्षेत्र का उदय
लार्सन एंड टुब्रो, टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स और भारत फोर्ज जैसी कंपनियां प्रमुख रक्षा उपकरण निर्माता कंपनियों के रूप में उभरने के साथ रक्षा उपकरणों के आपूर्तिकर्ता के रूप में निजी क्षेत्र का उदय हुआ है, जो एक महत्वपूर्ण विकास रहा है। 2023-24 में उत्पादन के कुल मूल्य में लगभग 79.2 प्रतिशत का योगदान डीपीएसयू/अन्य पीएसयू द्वारा और 20.8 प्रतिशत निजी क्षेत्र द्वारा किया गया है। आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि डीपीएसयू/पीएसयू और निजी क्षेत्र दोनों ने रक्षा उत्पादन में लगातार वृद्धि दर्ज की है।

मिसाइलें, रडार, नौसेना प्रणाली बना रहा भारत
भारत के रक्षा उत्पादों के निर्यात में मिसाइलें, रडार, नौसेना प्रणाली, हेलीकॉप्टर और निगरानी उपकरण शामिल हैं। भारत ने उन्नत नौसैनिक प्रणालियों के स्वदेशी उत्पादन में पर्याप्त प्रगति की है, जो निर्यात बाजार की भी पूर्ति करती है। आईएनएस विक्रांत विमानवाहक पोत जैसे उन्नत प्लेटफार्म इस क्षेत्र में हमारी उपलब्धि को उजागर कर रहे हैं।

रक्षा सामान बनाकर भारत ने बचाए 1.27 लाख करोड़ रुपये
जरूरी रक्षा सामान बनाने में भारत अब आगे बढ़ रहा है। पिछले दो साल से भारत एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के सामान खुद बना रहा है। 2023-24 में ये आंकड़ा 1.27 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इस तरह भारत ने 1.27 लाख करोड़ रुपये बचाए हैं क्योंकि ये सामान खुद नहीं बचाए होते तो इसे दूसरे देशों से खरीदना पड़ता। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पहले सालाना बढ़त कम थी, मगर अब कोरोना के बाद ये बढ़त 17 फीसदी के करीब पहुंच गई है।

रक्षा उत्पादन में प्राइवेट कंपनियों का हिस्सा करीब 20 फीसदी
भारत में रक्षा सामान बनाने वाली प्राइवेट कंपनियां और स्टार्ट-अप्स भी बढ़ रहे हैं, हालांकि अभी ज़्यादातर रक्षा सामान सरकारी कंपनियां ही बनाती हैं। प्राइवेट कंपनियों का हिस्सा करीब 20 फीसदी है। सरकार छोटे कारोबारों (MSME) को भी रक्षा के काम में लगाना चाहती है। ये छोटी कंपनियां बड़ी कंपनियों को रक्षा सामान बनाने के लिए पुर्जे (parts) देती हैं। इस वजह से छोटे कारखानों को भी अब ज्यादा काम मिल रहा है।

रूस से हथियार खरीदने में 18 प्रतिशत कमी आई
आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया पहल से भारत की रक्षा सामान को लेकर आत्मनिर्भरता बढ़ी है। भारत रूस से हथियार खरीदने पर पहले जितना निर्भर करता था, अब उसमें कमी आई है। पहले रूस से 58 प्रतिशत से ज्यादा हथियार खरीदे जाते थे, जो अब घटकर 36 प्रतिशत रह गया है।

सुखोई Su-30MKI के उत्पादन और निर्यात पर फोकस
पीएम मोदी के रूस दौरे के बाद दोनों देशों के डिफेंस पार्टनरशिप को नई ऊंचाई मिल सकती है। ब्रह्मोस मिसाइल को तैयार करने के बाद अब भारत और रूस एक बार फिर सुखोई Su-30MKI के उत्पादन को बढ़ाने के लिए काम कर सकते हैं। माना जा रहा है दोनों देश इसके उत्पादन को बढ़ाकर इसके निर्यात पर फोकस करेंगे। भारत ने 272 सुखोई (SU-30) की खरीदारी की थी। इसमें से 222 ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी के तहत HAL (हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड) को मिली थी।

सुखोई हो रहा अपग्रेड
सुखोई में बड़ा अपग्रेड भी चल रहा है। यह विमान 2050-60 तक भारतीय वायुसेना में शामिल रहेंगे। सुखोई में सबसे बड़ा अपग्रेड तीन ब्रह्मोस मिसाइलों के साथ किया गया है। ये मिसाइलें अब इस विमान में जोड़ी गई हैं। ऐसे में विमान का बड़ा आकार जो पहले समस्या था अब वो एक लाभ में बदल गया है। भारतीय वायुसेना में मौजूद सुखोई शक्तिशाली ब्रह्मोस ले जाने में सक्षम है।

जेट विमानों का हो सकेगा निर्यात
भारत की HAL और रूसी सुखोई के बीच इन जेट विमानों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए बात चल रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, रूस नए ऑर्डर के बिना भी इस पर समर्थन देने के लिए तैयार हो गया है। अभी नासिक में SU-30MKI की प्रोडक्शन लाइन विमानों की सर्विसिंग का काम जारी है। उत्पादन पर दोनों देश साथ काम करते हैं तो भारत के रक्षा निर्यात को बढ़ाने में मदद मिलेगी।

सेनाओं के लिए रक्षा उपकरण घरेलू उद्योग से प्राप्त करने पर जोर
रक्षा मंत्रालय ने अप्रैल 2022 में रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) में बदलाव करने का एलान किया। इन परिवर्तनों का एक हिस्सा ये भी है कि भविष्य में भारत की तीनों सशस्त्र सेनाओं और भारतीय तटरक्षक बलों द्वारा किए जाने वाले उपकरणों के सभी अधिग्रहण, घरेलू उद्योग से प्राप्त करने होंगे। रक्षा मंत्रालय ने ज़ोर देकर कहा है कि तीनों सेनाओं और तटरक्षक बलों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए विदेशी सैन्य उपकरणों की ख़रीद एक अपवाद होनी चाहिए, न कि प्रचलित नियम।

स्टार्ट-अप, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को बढ़ावा
विदेशों से अधिग्रहण के लिए अब रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) की पूर्व मंज़ूरी की दरकार होगी। इस क़वायद का उद्देश्य विदेशी विक्रेताओं से सैन्य हार्डवेयर की ख़रीद में कमी लाना है। घरेलू उद्योगों को रक्षा ख़रीद या अधिग्रहण का स्रोत बनाने वाली यह नीति, मई 2020 के आख़िर में मोदी सरकार द्वारा घोषित आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम का एक अभिन्न हिस्सा है। इस बदलाव के स्वाभाविक परिणाम के रूप में रक्षा मंत्रालय की रक्षा नीति ने विदेशी हार्डवेयर को देसी सामग्री से प्रतिस्थापित (substituting) करके घरेलू रक्षा उद्योग को मज़बूत करने पर ज़ोर दिया है। ज़्यादा से ज़्यादा स्वदेशीकरण की दिशा में यह नीतिगत बदलाव, रक्षा उत्कृष्टता के क्षेत्र में सरकार के नवाचार का भी नतीजा है। ये क़वायद भारत की स्टार्ट-अप प्रतिभा के साथ-साथ सूक्ष्म, लघु और मध्यम स्तर के उद्यमों (MSMEs) की ताक़त का लाभ उठाने की दिशा में एक प्रयास है।

आठ सालों में भारत का रक्षा निर्यात
2016-17—-01,521

2017-18—-04,682

2018-19—-10,745

2019-20—-09,115

2020-21—-08,434

2021-22—-12,814

2022-23—-15,920

2023-24—-21,083

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