महात्मा बुद्ध, महावीर, चाणक्य और आर्यभट्ट की धरती बिहार शिक्षा का अद्भुत केंद्र रहा है। यहां के पाटलिपुत्र, नालंदा, विक्रमशिला और गया जैसे शहर दुनिया भर में भारत के सांस्कृतिक और बौद्धिक वैभव के प्रतीक माने जाते थे। लेकिन कई दशकों तक बिहार की इस गौरवशाली परंपरा को कभी भी संजोने और संवारने का प्रयास नहीं किया गया। 1990 के दशक में लालू यादव के राज में तो यह और उपेक्षा और पतन की गर्त में चला गया।
आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बिहार की डबल इंजन सरकार पुनौरा धाम के सीता मंदिर से लेकर विष्णुपद मंदिर और नालंदा विश्वविद्यालय तक, बिहार की सांस्कृतिक धरोहरों को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में निरंतर जुटे हैं। ताकि बिहार के गौरवशाली अतित को एक बार फिर से सामने लाया जा सके।
लालू यादव ने अपने शासन में “सामाजिक न्याय” के नाम पर जातीय ध्रुवीकरण पर पूरा जोर लगा दिया। उनके भाषणों में सांस्कृतिक मूल्यों की बजाय बोलचाल की भाषा में भीड़ को हंसाने वाला अंदाज़ था। वे खुद को ‘गंवई राजनीति’ का चैंपियन बताते थे, पर इसका सीधा अर्थ था — विकास, संस्कृति और ज्ञान के मुद्दों की उपेक्षा।
लालू-राबड़ी की सरकार ने बिहार पर 15 वर्षों तक राज किया, लेकिन बिहार के गौरवशाली अतीत को सहेजने का कोई प्रयास नहीं किया। हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देशभर के कलाकार भी उस दौर में बिहार से मुंह मोड़ने लगे थे।
जंगलराज के दौरान बिहार की संस्कृति और विरासत का कैसे सत्यानाश किया गया इस पर एक नजर डालिए।
- नालंदा विश्वविद्यालय, जिसकी ख्याति 5वीं सदी से चली आ रही थी, और जिसे पुनर्जीवित करने की संभावनाएं थीं — लालू शासन में उसका नाम तक नहीं लिया गया।
- गया, राजगीर, वैशाली, पावापुरी — ये सभी अंतरराष्ट्रीय स्तर के तीर्थस्थल थे, मगर इनके संरक्षण, विस्तार और विश्व विरासत स्थल के रूप में विकास पर शून्य प्रयास हुए।
- सड़कों की हालत इतनी दयनीय थी कि देश-विदेश से आने वाले पर्यटक धूल, भय और अव्यवस्था के कारण वापस लौट जाते थे। लेकिन आज डबल इंजन की सरकार में अतीत को वर्तमान से जोड़ने की रणनीति पर तेजी से काम हो रहा है। डबल इंजन सरकार का एक बड़ा लक्ष्य बिहार की सांस्कृतिक जड़ों को पुनर्परिभाषित करना रहा है। बिहार में उनका फोकस विशेष रूप से उन स्थलों पर है, जो या तो धार्मिक, बौद्धिक या ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
सीतामढ़ी के पुनौरा धाम में भव्य जानकी मंदिर
सीतामढ़ी के पुनौरा धाम में भव्य जानकी मंदिर के रूप में बिहार के धार्मिक पर्यटन मानचित्र पर एक ऐतिहासिक अध्याय जुड़ने जा रहा है। करीब 900 करोड़ की लागत से इसे अयोध्या के राम मंदिर की तर्ज पर बनाया जा रहा है। पुनौरा धाम में मंदिर के साथ ही यहां आने वाले पर्यटकों की हर सुविधा का ध्यान रखा जा रहा है। जानकी मंदिर को करीब 67 एकड़ भूमि पर बनाया जा रहा है और इसे बनाने में इसके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व पर भी पूरा जोर दिया गया है।
भव्य जानकी मंदिर की वास्तुकला देखने लायक होगी। मंदिर के प्रवेश द्वार के साथ ही इसके विशाल गर्भगृह में सीता माता की मूर्ति भी लगाई जाएगी। इस भव्य मंदिर को गढ़ने के लिए लाल बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे अयोध्या का राम मंदिर, आगरा किला और दिल्ली का लाल किला भी बने हैं। इससे मंदिर को मजबूती के साथ ही दिव्य आभा भी मिलने वाली है। मंदिर के चारों ओर के इलाके को बहुत ही खूबसूरती से तैयार किया जाएगा। यहां पूजा, ध्यान केंद्र, यज्ञशाला, भोजनालय और धर्मशाला के साथ ही कई ऐसे निर्माण किए जाने हैं, जिसके तहत एक पूरा धार्मिक-पर्यटन शहर बसाया जाना है।
मान्यताओं के मुताबिक पुनौरा धाम में ही मां जानकी प्रकट हुई थीं। यहां आज भी वह स्थल मौजूद है जिसे जानकी कुंड कहा जाता है। इस क्षेत्र युगों युगों से लोगों की आस्था का केंद्र रहा है। अब इस मंदिर के बनने के बाद इसका ऐतिहासिक महत्त्व और बढ़ जाएगा। मिथिला क्षेत्र में जानकी मंदिर का निर्माण यहां की अस्मिता जुड़ा है। माना जा रहा है कि पुनौरा धाम मिथिला के साथ साथ पूरे बिहार की सांस्कृतिक पहचान को और मजबूत करेगा।
विष्णुपद और महाबोधि मंदिर कॉरिडोर
बिहार का गया ज्ञान एवं मोक्ष की नगरी है। धार्मिक एवं पर्यटन के दृष्टिकोण से बेहद हीं महत्वपूर्ण जगह है। यहां के विष्णुपद और महाबोधि मंदिर के लिए एक कॉरिडोर विकसित किया जाना है। मोदी सरकार ने केंदीय बजट में इसकी घोषणा भी की थी। विष्णुपद कॉरिडोर और महाबोधि कॉरिडोर का काम तेजी से किया जा रहा है। विष्णुपद के लिए फोरलेन सड़क बनाई जानी है। इससे विष्णुपद से बोधगया की दूरी महज 10 मिनट में तय की जा सकेगी। इससे बिना किसी रूकावट के श्रद्धालु विष्णुपद से महाबोधि मंदिर कुछ ही मिनट में पहुंच सकेंगे। इसके अलावा राजगीर या पटना की ओर से आने वाले पर्यटकों को भी आसानी होगी।
यूनेस्को ने महाबोधि विहार को विश्व धरोहर घोषित किया है। बोधगया का महाबोधि मंदिर वो स्थान है जहां गौतम बुद्ध को महाबोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। बिहार की डबल इंजन सरकार भी तेजी से इस स्थान के विकास में जुटी है और बोधगया और आसपास के बौद्ध स्थलों को बौद्ध सर्किट से जोड़ कर श्रीलंका, जापान, थाईलैंड जैसे देशों से धार्मिक पर्यटन को भी प्रोत्साहित किया गया है।
नालंदा विश्वविद्यालय में फिर उग रहा शिक्षा का सूर्य
पिछले वर्ष नालंदा विश्वविद्यालय के परिसर का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा किया गया था। इस ऐतिहासिक अवसर ने नालंदा की वैश्विक महत्ता को फिर से स्थापित किया, जिसे भारत की शान और विश्व की साझा सांस्कृतिक विरासत माना जाता है। आज प्राचीन ज्ञान परंपरा के साथ विश्वविद्यालय आधुनिक वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए इनोवेशन पर भी जोर दे रहा है।
नालंदा विश्वविद्यालय आज एक अग्रणी शोध एवं उच्च शिक्षा केंद्र के रूप में अपनी भूमिका को सशक्त कर रहा है। विश्वविद्यालय ने लगभग बीस नए समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए है, जिससे दुनियाभर में उसकी पहुंच बढ़ी है। नालंदा विश्वविद्यालय में 21 विभिन्न देशों के 400 से अधिक छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। इसके राजगीर परिसर का विकास भी तेज़ी से हुआ है। यह डबल इंजन सरकार के इसके सतत विकास के संकल्प को दिखाने वाला है। आज नालंदा विश्वविद्यालय केवल भारत की ही नहीं, बल्कि एशिया और उससे परे अनेक देशों की साझा सांस्कृतिक विरासत है।
1990–2005 के दौरान बिहार की पहचान अपराध, जातिवाद, और पलायन से जुड़ी रही है। यह वह दौर था जब दुनिया के सबसे पुराने विश्वविद्यालय की मिट्टी में झाड़ियां उग आईं, जब विष्णुपद मंदिर की ओर जाने वाली सड़कें गड्ढों से भर गईं और जब सीता की जन्मभूमि तक कोई राजनेता जाने को तैयार नहीं था। मगर आज, जब पुनौरा धाम में भव्य मंदिर बन रहा है और नालंदा में भी विद्या का सूर्य फिर से उग रहा है।