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अमेरिका ने माना 2005 में नरेंद्र मोदी को वीजा ना देना बड़ी भूल

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अमेरिका ने आखिर मान लिया है कि नरेंद्र मोदी को वीजा ना देना उस पर एक दाग की तरह रहेगा। अमेरिकी राष्टपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने 2005 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को अमेरिका आने के लिए वीजा देने से मना कर दिया था। अमेरिकी कांग्रेस में 1998 में पारित International Religious Freedom Act के तहत वीजा देने से इंकार किया गया था। अमेरिका के इतिहास में इससे पहले और इसके बाद कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी व्यक्ति को इस कानून के तहत वीजा नहीं दिया गया हो। यह सिर्फ और सिर्फ नरेन्द्र मोदी के साथ हुआ, लेकिन आज अमेरिका को अपनी गलती पर अफसोस होता है कि क्यों निहित स्वार्थ वाले समूहों के दबाव में कैपिटल हिल ने ऐसा निर्णय लिया। अमेरिका के पूर्व सीनेटर और बहुचर्चित प्रेसलर कानून को पारित करवाने वाले लैरी प्रेसलर ने कहा है कि नरेन्द्र मोदी को वीजा ना दिया जाना अमेरिका के ऊपर एक बदनुमा दाग है।

क्यों वीजा ना देना अमेरिका पर बदनुमा दाग है
अमेरिकी सीनेट के पूर्व सदस्य लैरी प्रेसलर ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में माना है कि ऐसे करिश्माई व्यक्ति को 2005 में अमेरिका द्वारा वीजा नहीं दिया जाना अमेरिका पर एक दाग है। उनका कहना है कि अमेरिका में जिस तरह ‘लॉबी’ और ‘प्रेशर ग्रुप’ काम करते हैं उसके कारण नरेन्द्र मोदी को वीजा देने से मना कर दिया था। वह बताते हैं कि जिस कानून के तहत ऐसा किया गया उसका इससे पहले और बाद में कभी इस्तेमाल नहीं हुआ। दबावों के चलते बुश प्रशासन ने दुनिया को अपनी धार्मिक समानता का परिचय देने के लिए नरेन्द्र मोदी पर पाबंदी लगा दी, जिससे उस समय अमेरिकी प्रशासन को कोई फर्क नहीं पड़ता था, क्योंकि नरेन्द्र मोदी उस समय केन्द्र सरकार में कोई कैबिनेट मंत्री भी नही थे, वे तो मात्र एक राज्य के मुख्यमंत्री थे। इसलिए अमेरिका ने निहित स्वार्थों के समूहों के दबावों के कारण ऐसा निर्णय किया।

अमेरिका ने मोदी को अपना अच्छा दोस्त माना
26 मई 2014 को नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तो सबकी निगाहें अमेरिका की ओर थी कि क्या अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा उनसे मुलाकात करेगें?, लेकिन देश-विदेश के पत्रकारों और समीक्षकों के प्रश्न तब बौने हो गये, जब सितंबर 2014 की अपनी पहली ही यात्रा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकियों को अपना मुरीद बना लिया। राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ एक घनिष्ठ रिश्ता स्थापित कर लिया, जिसे डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद भी याद किया जाता है। श्री मोदी के रिश्ते डोनाल्ड ट्रंप से भी अत्यंत घनिष्ठ हैं। आज अमेरिका, प्रधानमंत्री मोदी की जुबान बोलता है, आज उसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में एक मजबूत और सटीक निर्णय लेना वाला नेतृत्व दिखाई पड़ता है।

28 सितंबर 2014 को मेडिसन स्कावर में भाषण
लोकसभा में बहुमत की शक्ति से लबरेज प्रधानमंत्री मोदी ने न्यूयार्क के मेडिसन स्कावयर में 28 सितंबर 2014 को अप्रवासी भारतीयों के बीच जो भाषण दिया, उससे देश ही नहीं पूरी दुनिया ने मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व का लोहा माना और अमेरिका को वह सम्मान देना पड़ा, जिसको ना देकर उसने एक बड़ी भूल कर दी थी।

8 जून 2016, अमेरिकी सीनेट में भाषण
8 जून 2016 का दिन ऐतिहासिक हो गया, जब अमेरिका की दोनों सदनों को संबोधित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहुंचे और सदस्यों ने खड़े होकर करतल ध्वनि से स्वागत किया। इन तालियों की गूंज में अमेरिका में मोदी के खिलाफ काम करने वाले ‘लॉबी’ और ‘प्रेशर ग्रुप’ की आवाजें शांत हो गई। भारत से नरेन्द्र मोदी ऐसे पांचवें प्रधानमंत्री थे, जिनको अमेरिकी संसद ने संबोधित करने का यह सम्मान दिया था।

मोदी एक स्वप्नदृष्टा हैं
अमेरिका ने 2005 में नरेन्द्र मोदी को वीजा ना देकर दबावों में जो छवि बनाने की कोशिश की थी, उससे बिल्कुल अलग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का व्यक्तित्व है। तीन साल में देश हित के किए गये निर्णयों से यह स्पष्ट है कि उनके पास एक विजन है और उस विजन को लागू करने में कोई कदम उठाने से हिचकते नहीं हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इसी विशेषता ने विश्व के सभी नेताओं को अपना मुरीद बना लिया है और सभी उनके साथ काम करना पसंद करते हैं।

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