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गुजरात में क्यों खत्म हो गया विपक्ष ?

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एक समय था जब गुजरात जातिवाद और वंशवाद की राजनीति में जकड़ा हुआ था। तुष्टिकरण की सियासत के भरोसे सत्ता की नींव रखी जाती थी। दौर बीता और 2001 में जब नरेंद्र मोदी ने प्रदेश की कमान संभाली। उन्होंने अपने कार्यकाल में सर्वसमावेशी राजनीति की एक नयी लकीर खींची, जो ‘सबका साथ, सबका विकास’ के मूल सिद्धांत के साथ आगे बढ़ती गई और सरकार का प्रदर्शन ही राजनीति का पैमाना बन गई। उदाहरण के तौर पर उन्होंने 24 महीनों में गुजरात के सभी गांवों में बिजली लाने का वादा किया था, लेकिन 18 महीने में ही यह काम कर डाला। उन्होंने इसी तरह के अनेकों कार्य किये जो जाति, धर्म की बंदिशों से बाहर गुजरात के हर नागरिक के लिए होते थे। इनमें न कोई आम था, न कोई खास… था तो बस गुजरात। दरअसल ये सियासत की वो लकीर है जहां समाज को विभाजित करने का हर दांव उल्टा पड़ जाता है और विपक्ष को भी सत्ता पक्ष के साथ खड़ा होकर समाज को एक सूत्र में बांधने की बात करने को मजबूर करता है। ये सियासत की वो नजीर है जो गुजरात को अन्य राज्यों की राजनीति से अलग खड़ा करती है। आप कह सकते हैं कि ये नरेंद्र मोदी का वो गुजरात है जहां आकर विपक्ष का वजूद खत्म हुआ सा लगता है।

सवालों में विपक्ष का वजूद
भारतीय जनता पार्टी 1998, 2002, 2007, 2012 में गुजरात के लोगों के भरपूर समर्थन से दो दशक से सत्ता में है। इस बार भी पार्टी की जीत की संभावना व्यक्त की जा रही है। यानी साफ लग रहा है कि इस बार भी विपक्ष के लिए मौका नहीं आ रहा है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर गुजरात में विपक्ष क्यों नहीं उभर पा रहा है? आखिर क्या वजह है जो बीजेपी दिन ब दिन मजबूत होती जा रही है? आखिर क्या वजह है जो विपक्ष पर लोगों को भरोसा नहीं हो रहा है? आखिर क्या वजह है जो गुजरात में विपक्ष नाम की कोई चीज नहीं रह गई है?

मोदी ने की विकास की राजनीति, विपक्ष ने की जाति-धर्म की सियासत
विकास के जिस गुजरात मॉडल की चर्चा हर तरफ होती है उसके शिल्पकार देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। नरेंद्र मोदी ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में सुनियोजित, समेकित और एकीकृत रूप से गुजरात को गढ़ने का सिलसिला शुरू किया। ढांचागत सुधार, खेती-किसानी, पशुपालन, सड़क, बिजली, उद्योग व्यापार से लेकर कानून व्यवस्था के क्षेत्र में अभूतपूर्व काम हुए। लेकिन दूसरी तरफ विपक्ष रचनात्मक राजनीति से भागता रहा। एक के बाद विवादित मुद्दों को हवा देने की कोशिश की। विकास पथ पर बढ़ रहे गुजरात को रोकने की साजिश रची। जाति-धर्म के चश्मे से देखने के अपने नजरिए के तहत गुजराती समाज को टुकड़ों में बांटने की साजिश करता रहा। जाहिर है विकास की गति के सामने विनाश की रूपरेखा को गुजराती जनमानस ने स्वीकार नहीं किया।


विपक्ष ने किया दंगों का दुष्प्रचार, मोदी ने किया विकास
2002 में गोधरा कांड के बाद हुए सांप्रदायिक दंगे को विपक्ष ने अपने लिए राम बाण माना और इसे सियासी मुद्दा बना लिया। गुजराती जनमानस को झकझोर देने वाले दंगे पर राजनीति कर रहे विपक्ष की नीति आम जनता ने स्वीकार नहीं की। दूसरी तरफ विकास के अग्रदूत नरेंद्र मोदी ने सूखे कच्छ में पानी पहुंचाया, सौराष्ट्र को सिंचित करने की योजना बनाई, महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए मातृवंदना जैसी कई योजनाएं बनाईं, बालिकाओं की पढ़ाई के लिए कन्या केलवणी जैसी योजना लेकर आए, बेटी बचाओ अभियान चलाया और वाइब्रेंट गुजरात का आयोजन करवाया। 2004-05 से 2011-12 के बीच गुजरात ने 10.08 प्रतिशत की दर से ग्रोथ करता रहा। लेकिन विपक्ष गुजरात दंगों के तार नरेंद्र मोदी के नाम से जोड़ने के जुगत में लगा रहा।

मुद्दा विहीन हुए विरोधी दल
12 वर्ष तक नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गुजरात कृषि क्षेत्र में देश सबसे ज्यादा 10 प्रतिशत से ज्यादा ग्रोथ रेट के साथ आगे बढ़ता रहा। वहीं उद्योग और व्यापार में भी जबरदस्त बढ़ोतरी हुई। गुजरात के सभी 18 हजार 66 गांवों को सड़कों से जोड़ दिया गया और ज्योति ग्राम योजना के तहत घर-घर बिजली पहुंचा दी गई। कच्छ और सौराष्ट्र जैसे सूखे क्षेत्रों को राज्य में हर साल औसतन तीस हजार करोड़ रूपये का विदेशी निवेश होने लगा। ऐसे में गुजरात के विपक्षी दलों के पास जनता का मुद्दा नहीं बचा और वे संप्रदाय और जाति की राजनीति के जाल में ही उलझे रहे।

नरेंद्र मोदी का दमदार नेतृत्व
दूरदर्शी सोच के साथ विकास पुरुष के तौर पर नरेंद्र मोदी ने नये गुजरात का निर्माण किया। ओजस्वी वक्ता के रूप में नरेंद्र मोदी की प्रतिभा ने उन्हें गुजरात की छह करोड़ जनता से जोड़े रखने में मदद की और सरकार का भरोसा कायम रखा। इसके साथ ही राजनीति के कुशल कारीगर के तौर पर उन्होंने पार्टी के भीतर किसी गुट को पनपने नहीं दिया। केशु भाई पटेल जैसे नाराज नेता को भी वो साधने में कामयाब रहे। इसके साथ ही उन्होंने नयी पीढ़ी की नब्ज पकड़ी और आने वाले कई सालों की राजनीतिक पृष्ठभूमि तैयार कर दी। टेक्नोफ्रेंडली नरेंद्र मोदी सोशल साइट के जरिये लोगों से जुड़े रहे और जमीनी सच्चाई से रूबरू होते रहे। इन तमाम विशेषताओं ने नरेंद्र मोदी को एक दमदार नेतृत्व के तौर पर पहचान दी। वहीं विपक्ष नरेंद्र मोदी के सामने कोई विकल्प नहीं दे पाया।

कांग्रेस की नकारात्मक राजनीति
गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी के खिलाफ एसआइटी का गठन हो या इशरत जहां एनकाउंटर में नरेंद्र मोदी का नाम घसीटने की कोशिश। दलितों की पिटाई मामले में गुजरात सरकार को घेरने की कोशिश हो या फिर नरेंद्र मोदी के किए विकास कार्यों को नकारने की रणनीति। इन तमाम प्रकरणों ने कांग्रेस को ही कठघरे में खड़ा किया। नरेंद्र मोदी जब तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस उनपर हमलावर रही। लेकिन छह करोड़ जनता की उम्मीद नरेंद्र मोदी को टारगेट करना कांग्रेस के लिए अच्छे नतीजे नहीं ला पाया।

हर तबके में बनी समरसता
नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री बनने से पहले गुजरात गांव और शहर के विकास की विभाजक रेखा से बंटा हुआ था। हिंदू और मुसलमान, अगड़े और पिछड़ों लेकिन उन्होंने सर्वसमावेशी दृष्टि के साथ विकास को एक आंदोलन का रूप दे दिया। मोदी ने जहां नगरपालिकाओं और कॉरपोरेशन में ई-गवर्नेंस को पूरी तरह से लागू किया गया। वहीं गांवों में समरस पंचायत बनाया। अर्बन हेल्थ पॉलिसी लागू करने वाला गुजरात पहला राज्य बना तो गुजरात पहला राज्य बना जहां के 590 विलेज काउंसिल कंप्यूटर नेटवर्क से जोड़े गए और 13,693 पंचायत या विलेज काउंसिल में कम्प्यूटर मुहैया कराया गया। 

मुझे गुजरात का विकास एकांगी नहीं करना है। दो-चार स्थानों पर गुजरात विकसित हो, यह स्थिति मुझे स्वीकार नहीं है। मुझे तो गुजरात के प्रत्येक गांवों का विकास करना है, छोटे-से-छोटे मानव का विकास करना है। इस विकास की गंगा गांव-गांव में पहुंचे, यही मेरी प्रतिज्ञा है।
– नरेंद्र मोदी

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