Home गुजरात विशेष मोदी विरोध मतलब गुजरात का विरोध क्यों बन गया ?

मोदी विरोध मतलब गुजरात का विरोध क्यों बन गया ?

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ये सच है कि गुजरात का विकास और नरेंद्र मोदी एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं। राज्य के छह करोड़ लोगों की मेहनत से गुजरात की धमक आज पूरी दुनिया में है। अब ‘गुजरात नुं गौरव’ शब्द छह करोड़ गुजरातियों की शान है। गुजराती अस्मिता और स्वाभिमान शब्द गुजरात के करोड़ों जनमानस को गहरे तक छूता है। लेकिन बीते डेढ़ दशक में इस पर गहरा आघात किया जाता रहा है। मोदी विरोध में हर पल गुजरात को बदनाम करने की राजनीति होती रही है। जिस गुजरात ने महात्मा गांधी जैसा महापुरुष दिया उस गुजरात की आत्मा को चोट पहुंचाई जाती रही है। जिस गुजरात ने सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसा लौहपुरुष दिया उस गुजराती जनमानस के स्वाभिमान को तोड़ने की हर कोशिश की गई है। जिस गुजरात ने दयानंद सरस्वती जैसा युगपुरुष दिया उस गुजरात को घाव देने का कुत्सित प्रयास होता रहा है। आखिर नरेंद्र मोदी का विरोध गुजरात का विरोध क्यों बन गया है?

मोदी विरोध का मतलब गुजरात विरोध समझ लिया गया
नरेंद्र मोदी ने गुजरात की कमान संभाली तो राज्य कई विपत्तियों से जूझ रहा था। एक तरफ भुज और कच्छ में भूकंप से तबाही मची थी, तो दूसरी तरफ राज्य का सत्तर प्रतिशत इलाका सूखे से त्रस्त था। एक साथ कई चुनौतियों के बावजूद नरेंद्र मोदी ने नये गुजरात के निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर दी। लेकिन बनते-बढ़ते गुजरात की फिक्र छोड़ विपक्ष ने मोदी विरोध की राजनीति शुरू कर दी।

सियासत ने किया गुजराती स्वाभिमान को बदनाम
गुजराती समाज के चेतना को जगाने की कोशिश को विपक्ष ने सियासी रंग दे दिया। गुजराती स्वाभिमान को आगे बढ़ाने की नरेंद्र मोदी की आकांक्षा में भी विरोधियों ने राजनीति ही देखी। विपक्ष ने नरेंद्र मोदी के किए काम में खोट निकालना जारी रखा तो नरेंद्र मोदी ने गुजरात की माटी की खुशबू को देश-दुनिया में फैलाना जारी रखा। धीरे – धीरे नरेंद्र मोदी का नाम गुजराती लोगों की आन बन गई। वे गुजराती अस्मिता के प्रतीक और ‘गुजरात नुं गौरव’ बन गए। ऐसे में मोदी विरोध का मतलब ही गुजरात विरोध हो गया।

मोदी विरोध में गुजरात दंगों को लेकर राज्य को बदनाम किया गया
2002 में गोधरा कांड हुआ और पूरा गुजरात सांप्रदायिक दंगे की आग में झुलसने लगा। लेकिन महज तीन दिन में ही हालात पर काबू पा लिया गया और कानून का राज कायम हो गया। लेकिन विपक्ष तो जैसे ऐसे ही हालात के इंतजार में बैठा था। इसे सियासी हथियार बनाया और गुजरात को बदनाम करने का सिलसिला शुरू कर दिया। ऐसी तस्वीर पेश की गई कि साढ़े पांच करोड़ लोग चालीस लाख मुस्लिमों के पीछे पड़ गए हों।

गुजरातियों का मनोबल तोड़ने की कोशिश क्यों?
दुष्प्रचार, अफवाहों और सरासर झूठ का विश्वभर में प्रचार चलता रहा। पांच करोड़ गुजरातियों को अस्पृश्य बना दिया गया। गुजरात की इज्जत को सरेआम नीलाम किया गया। सत्य का गला घोंटकर गुजरातियों के मनोबल को तोड़ने का षड्यंत्र चलता रहा।

इशरत जहां एनकाउंटर के फर्जी खबर में गृह मंत्रालय हुआ शामिल
15 जून 2004 को अहमदाबाद में एक मुठभेड़ में आतंकी इशरत जहां और उसके तीन साथी जावेद शेख, अमजद अली और जीशान जौहर मारे गए। गुजरात पुलिस के मुताबिक उनके निशाने पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी थे। लेकिन केंद्र की सत्ताधारी कांग्रेस सरकार को इसमें भी सियासत दिखी। सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की जाने लगी। लेकिन गृह मंत्रालय के पूर्व अंडर सेक्रेटरी आरवीएस मणि ने कांग्रेस की साजिशों की परतें खोल दीं। उन्होंने साफ कहा कि इशरत और उसके साथियों को आतंकी ना बताने का उन पर दबाव डाला गया था। इससे पहले मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर और कुछ दिनों के लिए इशरत जहां एनकाउंटर पर बनी एसआइटी की टीम मुखिया सत्यपाल सिंह ने भी कहा कि उन्हें इशरत जहां के एनकाउंटर झूठा साबित करने के लिए ही एसआइटी की कमान सौंपी गई थी। इतना ही नहीं उन्हें इस एनकाउंटर के तार नरेंद्र मोदी तक पहुंचने को कहा गया था। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी इस मामले में खुलासा करते हुए कहा है कि कई अहम दस्तावेज गायब कर दिए गए हैं। जाहिर है तत्कालीन केंद्र सरकार की शह पर जांच एजेंसियों को भी गुजरात को बदनाम करने के लिए दुरुपयोग किया गया।

विध्वंसक ताकतों को बढ़ावा दिया गया
आपको ऐसा नहीं लगता कि भारत को और अधिक शक्तिशाली और मजबूत होना चाहिए? इसके लिए पहली शर्त ‘एकता’ है। जाति या वर्ग, गांव और शहर के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।
– नरेंद्र मोदी
बार-बार दंगे की बात कर राज्य के सांप्रदायिक सौहार्द्र को तहस-नहस करने की सियासी साजिश हर बार रची जाती रही। लेकिन जब सफलता नहीं मिली तो गुजरात के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने की साजिश की जाने लगी। जुलाई 2015 में आरक्षण की मांग को लेकर शुरू हुआ पाटीदार आंदोलन गुजरात में जातीय अंतर्विरोधों को सुलगाने के लिए हुआ। ये इसलिए हुआ कि बहुसंख्यक आबादी में फूट पड़ जाए और गुजरात विरोधी शक्तियों का बांटो और राज करो का नारा फलीभूत हो जाए। पाटीदारों के एक युवा चेहरे को प्रतीक बनाया गया और सामर्थ्यवान और सशक्त पाटीदारों को भी आरक्षण के लिए संघर्ष करने का रास्ता बता दिया। जाहिर है ये कोशिश भी गुजरातियों की एकता को तार-तार करने के लिए की गई। लेकिन हर बार गुजरात की जनता ने ऐसी कोशिशों को नकार दिया है।


दलित पिटाई के मामले को तूल दिया गया
जुलाई, 2016 में ऊना चार दलितों की पिटाई की गई। मीडिया और तथाकथित वामपंथी इंटेलेक्चुअल्स ने गुजरात को बदनाम करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। इसे राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां भी बनाई गई। अरविंद केजरीवाल, राहुल गांधी और मायावती जैसे नेताओं ने इसे मुद्दा बनाया और ऊना के दौरे भी किए। लेकिन जब साजिश का खुलासा हुआ तो साफ हुआ कि इसके पीछे भी सियासी सोच ही थी। दरअसल ऊना कांड बिहार चुनाव से ठीक पहले करवाया गया था। इसका मकसद था कि देश भर के दलितों में ये संदेश जाए कि बीजेपी के राज्यों में दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं।

साजिशकर्ता निकला कांग्रेसी
साजिश रचने वाला आरोपी सरपंच प्रफुल्ल कोराट कांग्रेस का नेता है। हालांकि उसे बीते पंचायत चुनाव में गांव के दलितों ने ही चुनाव में हरा कर इसका जवाब दे दिया। इस सीट से बीजेपी के प्रत्याशी धनजी भाई कोराट की जीत साबित करती है कि दलितों ने ऐसी कोशिशों को पहचान लिया है और ठान लिया है कि गुजराती मान-सम्मान को ठेस पहुंचाने वाली हर कोशिश को वे नाकाम कर देंगे।

गौरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी
कई बार गौरक्षा के नाम पर भी गुंडागर्दी की गई। एक-दो लोगों की इसमें जान भी चली गई। लेकिन इस साजिश का भी भंडाफोड़ तब हुआ जब ये खुलासा हुआ कि ये कई असामाजिक तत्वों ने इसे अवैध वसूली का धंधा बनाया है। गौरक्षकों की गुंडागर्दी में गुजरात सरकार को कठघरे में खड़ा करने की हर कोशिश विफल तब हो गई जब जांच में पता लगा कि इस कुकृत्य में कई दूसरे समुदाय के लोग भी शामिल थे।

गुजरात के गधों और गिर के शेर के नाम पर राजनीति
गुजरात को बदनाम करने की साजिश चोरी छिपे तो होती ही रही अब तो इसे सरेआम चुनावों में भी बदनाम करने की कोशिश की जाने लगी है। गुजरात की हर उस पहचान को निशाना बनाया जा रहा है जो गुजरात सिर्फ गुजरात में ही है। हालिया खत्म हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तो गुजरात के गधों तक को नहीं छोड़ा। उन्होंने गुजरात के गधों की हंसी उड़ाई और खूब सुर्खियां बटोरी। इससे पहले गिर के शेरों को लेकर भी वे बोलते रहे हैं। लेकिन यूपी के मतदाताओं ने गुजरात को बदनाम करने की इस कोशिश को भी अपने वोटों के जरिये नाकाम कर दिया।

बहरहाल सत्ता के भूखे तत्वों, छद्म सेकुलरों और कट्टरपंथी तत्वों की जुगलबंदी ने गुजरात का दुख बांटने के बजाय हर बार उसके जख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया, इसे बदनाम करने का प्रयास किया। गुजरात के गौरव पर गर्व करने के बजाय इसकी हंसी उड़ाई है इसमें खोट निकाली है। लेकिन ऐसी साजिशों को गुजरात ही नहीं देश की जनता भी भलि-भांति जान चुकी है।

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