Home समाचार पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा और डर के माहौल के बीच लोकतंत्र...

पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा और डर के माहौल के बीच लोकतंत्र की रक्षा कौन करेगा?

SHARE

पश्चिम बंगाल और केरल में सरकार और प्रशासन प्रायोजित नृशंस राजनीतिक हत्याओं का दौर जारी है। बंगाल की बात करें तो वहां चुनावी हिंसा ने पिछले एक साल में 30 से अधिक लोगों की जानें ली हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं को डराने-धमाने से लेकर उनकी उंगली काटने और जान से मारने तक भयावह हिंसा का दौर अभी भी जारी है। विपक्षी नेताओं पर हिंसक हमले, आगजनी और वोटरों के बूथ तक जाने ही न देने का काम तृणमूल के गुंडों ने बखूबी अंजाम दिया है।  

ममता का रक्तरंजित बंगाल

पश्चिम बंगाल में हिंसा और डर का आलम यह है कि चुनाव आयोग को वहां अंतिम दौर के मतदान के लिए निर्धारित समय सीमा के एक दिन पहले ही यानि 16 मई को ही चुनाव प्रचार खत्म करने का आदेश देना पड़ा। आयोग ने अनुच्छेद 324 के तहत यह कार्रवाई की। आयोग ने अपने बयान में कहा कि कई पार्टियों ने उनसे बंगाल में हो रही हिंसा पर शिकायत दर्ज की थी और उन्होंने भी पाया कि कई जिलों में जिला प्रशासन और जिला पुलिस ने हर प्रत्याशी और पार्टी को समान रूप से सुरक्षा और बाकी सुविधाएं नहीं प्रदान की। आयोग ने यह भी कहा कि उसे आम मतदाताओं की सुरक्षा की चिंता है और मतदाताओं को बंगाल में भयमुक्त वातावरण नहीं मिल पा रहा है।

यह भी स्पष्ट है कि इस लोकसभा चुनाव के दौरान बंगाल के मामले में चुनाव आयोग ने पूरी तरह से गैरजिम्मेदार रवैया अपनाया। आयोग ने जो थोड़ी सख्ती दिखाई, यह उसे पहले चरण से ही दिखाना चाहिए था। आयोग के इस कदम को ‘देर आए दुरुस्त आए’ भी नहीं कहा जा सकता है।     

लोकसभा चुनाव के दौरान अभी तक बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के गुंडों और बंगाल प्रशासन की मिलीभगत से जो हिंसा हुई, उसने लोकतंत्र को दागदार किया है। मतदान के दौरान मतदाताओं को डराने, धमकाने, प्रॉक्सी वोटिंग करने, पोलिंग एजेंट की पिटाई और विरोधी पार्टियों को रैली की इजाजत न देने, हेलिकॉप्टर न उतरने न देने से लेकर भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं की हत्या का रक्तरंजित दौर चला है। आइए, एक नजर डालते हैं कैसे जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि बंगाल की तस्वीर कितनी रक्तरंजित है।

भाजपा नेता अरविंद मेनन की तृणमूल के गुंडों ने की पिटाई

14 मई को तृणमूल के गुंडों ने भाजपा नेता अरविन्द मेनन के साथ कई जिला स्तर के नेताओं को पीटा। साथ ही, तुहीन मंडल नामक नेता के घर में भी उत्पात मचाया। इस साल की जनवरी के मामले को दोहराते हुए, ममता बनर्जी ने 13 मई को अमित शाह की जाधवपुर रैली के लिए इजाजत नहीं दी और उनके हेलिकॉप्टर को उतरने से मना कर दिया गया। इसके साथ ही, दर्जनों भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को आधी रात में उनके होटलों से कोलकाता पुलिस ने उठा लिया।

मेदिनीपुर में हिन्दुओं को वोट देने से रोका गया

12 मई को ही मेदिनीपुर में हिन्दुओं को वोट देने से रोका गया। उसी दिन तृणमूल के गुंडों को मोदी के पोस्टर फाड़ते देखा गया। भाजपा प्रत्याशी भारती घोष की गाड़ी पर हमला हुआ और ममता के गुंडों ने उन्हें वोट डालने से भी रोका। इसी दिन छठे चरण के चुनाव के दौरान तृणमूल और भाजपा के एक-एक कार्यकर्ता की हत्या की गई, तथा दो और भाजपा कार्यकर्ताओं पर गोली चलाई गई। साथ ही, घटाल क्षेत्र में सुरक्षाबलों और ग्रामीणों पर कुछ दूसरे ग्रामीण लोगों ने पत्थरबाजी की।

बंगाल भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष की गाड़ी पर हमला

7 मई को हेमंत बिस्व सरमा और दिलीप घोष की गाड़ियों पर हमले किए गए। 6 मई को पांचवें चरण के चुनाव के दौरान भाजपा पोलिंग एजेंट को क्रूरता से पीटा गया, वहीं भाजपा के बैरकपुर प्रत्याशी अर्जुन सिंह पर तृणमूल के गुंडों ने हमला किया। साथ ही, वहां के वोटरों को डराने-धमकाने की बातें भी सामने आईं। उसी दिन हुगली जिले में ईवीएम को तोड़ने की घटना हुई। वहीं, भाजपा प्रत्याशी लॉकेट चटर्जी की कार पर तृणमूल के गुंडों ने अटैक किया और शीशे तोड़ दिए। बनगांव से खबर आई कि वहां तृणमूल के लोग वोटरों को बूथ में घुसने से ही रोक रहे थे।

बाबुल सुप्रियो की कार में तोड़फोड़

1 मई को सीपीएम पोलिंग अजेंट शेख़ ख़िलाफ़त के घर को ममता बनर्जी के गुंडों ने आग के हवाले कर दिया। बीरभूम में भाजपा पोलिंग अजेंट की उंगली काट दी गई। बाबुल सुप्रियो की कार को भी तोड़ा गया था। भाजपा नेता अपूर्बा चक्रवर्ती को इस्लामपुर में तृणमूल के गुंडों ने बुरी तरह से पीटा। सिलीगुड़ी में भाजपा कार्यकर्ता उत्तम मंडल और उनके भाई गौतम मंडल को तृणमूल के गुंडों ने मतिगारा क्षेत्र में पीटा और उनके दुकान में तोड़-फोड़ की। बांकुरा के रानीबंध में भाजपा कार्यकर्ता अजीत मुर्मु को कथित तौर पर ममता दीदी के गुंडों ने इतना मारा कि अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई।

टीवी पत्रकारों पर हमले

29 अप्रैल को दुबराजपुर इलाके में सुरक्षाबलों और ग्रामीणों में झड़प हो गई और उन्हें ब्लैंक फायर करना पड़ा। उसी दिन, आसनसोल में हो रहे दंगों पर तृणमूल नेत्री मुनमुन सेन का जवाब था कि उन्हें बेड टी नहीं मिला। इंडिया टुडे और रिपब्लिक टीवी के पत्रकारों पर भी बंगाल के चुनावी हिंसा पर रिपोर्टिंग के दौरान हमले किए गए, जिसमें महिला पत्रकार भी शामिल थीं। आश्चर्य की बात यह है कि एडिटर्स गिल्ड ने इस पर चुप्पी बनाए रखी।

तृणमूल के पोलिंग एजेंट खुद डालते रहे वोट

पूर्वी बर्दवान में तृणमूल के लोगों द्वारा कैमरे पर ईवीएम में दूसरों के वोट डालते देखे जाने पर चुनाव आयोग ने उस अफसर को सस्पैंड किया। इसी तरह 23 अप्रैल को भी तृणमूल के पोलिंग एजेंट और बूथ के प्रेजाइडिंग अफसर खुद ही वोट डालते पाए गए।

रायगंज में हिन्दुओं को वोट से रोका गया

18 अप्रैल को रायगंज के हिन्दू मतदाताओं को वोटिंग करने से रोका गया और उनकी जगह कोई और वोट डालता रहा। कुछ लोग अगर वहाँ पहुँचे भी तो किसी और ने ही उनका वोट डाल रखा था। उसी दिन भाजपा के एक कार्यकर्ता शिशुपाल की लाश पेड़ से लटकती मिली। ये घटना परुलिया में हुई जहाँ पिछले साल भी दो और भाजपा कार्यकर्ताओं, त्रिलोचन महतो और दुलाल कुमार, की लाशें मिली थीं। महतो की लाश पेड़ से लटकी हुई थी, और दुलाल की एक हाय-टेंशन वाले बिजली के पोल पर।

मेनस्ट्रीम मीडिया में बंगाल की चुनावी हिंसा की कवरेज

यह अपने-आप में आश्चर्य की बात है कि मेनस्ट्रीम मीडिया में ऐसी खबरें देखने को नहीं मिलती हैं। बंगाल हो या केरल दोनों राज्यों में सत्ताधारी दलों के हिंसक दमन की खबरें मेनस्ट्रीम मीडिया से गायब रहती हैं। जबकि, दोनों राज्यों में बड़े पैमाने पर विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं की प्रशासन प्रायोजित हत्या की जाती रही।

आंकड़ों पर नजर डालें तो टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के मुताबिक 2018 के पंचायत चुनावों में बंगाल में 25 लोगों की हत्या हुई। वहीं, हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार इस दौरान 29 लोगों की हत्या हुई। इन 29 में से 13 लोग सिर्फ एक दिन में मारे गए। लेकिन, मुख्यधारा की मीडिया में इन घटनाओं की कोई विशेष चर्चा नहीं हुई।   

असहिष्णुता का हौव्वा बनाम हत्याओं की अनदेखी

क्या बंगाल में हो रही हिंसा पर चर्चा नहीं की जानी चाहिए। क्या ये डर का माहौल नहीं है? क्या दो-चार गौरक्षकों और गौ-तस्करों वाली घटनाओं पर सीधे मोदी से जवाब मांगने वाले लोग यह बताएंगे कि आखिर ऐसा क्या है बंगाल में कि मजहबी दंगों का दौर थमता ही नहीं है। किसकी शह पर यह हो रहा है? आखिर विरोधी पार्टियों के कैडर की हत्या इतनी आसानी से कैसे हो जाती है?

दरअसल, बंगाल में स्थिति इतनी भयावह है कि इस मामले में राष्ट्रपति को संज्ञान ले कर चुनाव आयोग को निर्देश देना चाहिए कि ऐसे वैसे संवेदनशील इलाके जहां हिंसा और भय की वजह से निष्पक्ष चुनाव नहीं हो पाए, वहां फिर से मतदान हो। आयोग की यह जिम्मेदारी है कि मतदाता बिना भय के वोट करे और मतदान कराने वाले तमाम अधिकारी भी भयमुक्त होकर उचित कार्रवाई करें।

अगर राज्य स्वयं ही गुंडों को पाले, उनसे पूरा का पूरा बूथ मैनेज करवाए, उनके नेता यह आदेश देते पाए जाएं कि सुरक्षाबलों को घेर कर मारो। उनके गुंडे इतने बदनाम हों कि वहां आनेवाला अधिकारी ईवीएम ही उन्हें सौंप दे, तो फिर ऐसी स्थिति में चुनाव सही तरीके से कैसे हो पाएगा?

ऐसे में, लोकतंत्र और निष्पक्षता की कसौटी तो यही कहती है कि बंगाल में फिर से मतदान कराए जाएं, चाहे परिणाम किसी के भी पक्ष में जाए। मतदाताओं को उनके लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। हर मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग अपनी इच्छा से करे। पूरी चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष और भयमुक्त वातावरण में होना चाहिए।

Leave a Reply