Home विशेष इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान में हिंदुओं की आवाज कौन सुनेगा?

इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान में हिंदुओं की आवाज कौन सुनेगा?

पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदू त्रासद जीवन जीने को मजबूर, रिपोर्ट

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पाकिस्तान का जब निर्माण हो रहा था तो इसका उद्देश्य इस्लामिक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना था। जिसमें सभी धर्मों के लिए समान स्थान का प्रावधान माना गया था। लेकिन बीते दशकों में हावी होती इस्लामिक कट्टरता ने इस व्याख्या को ही गलत करार दे दिया है। इस कट्टरता के कारण पाकिस्तान में अन्य धर्मों और अल्पसंख्यक समुदायों के अस्तित्व पर खतरा है। इसके साथ ही पाकिस्तान में इनकी धार्मिक स्वतंत्रता भी खतरे में है और अल्पसंख्यकों (विशेषकर हिंदू) पर लगातार हमले हो रहे हैं। अमेरिकी संस्था द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान में सिख, ईसाई और हिंदू जैसे अल्पसंख्यक जबरन धर्मांतरण के डर में रहते हैं।

अमेरिकी रिपोर्ट से खुली पाक की पोल
अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट रेक्स टिलरसन ने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट 2016 जारी करते हुए कहा, ”पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों का कहना है कि उनके जबरन इस्लाम कबूल करवाने से रोकने में पाकिस्तान सरकार द्वारा उठाए गए कदम नाकाफी हैं और उनकी धार्मिक स्वतंत्रता पर खतरा है। पाकिस्तान में दो दर्जन से अधिक लोग ईशनिंदा के कारण या तो फांसी का इंतजार कर रहे हैं या उम्रकैद काट रहे हैं।” रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि अल्पसंख्यकों को यह चिंता भी है कि पाकिस्तान सरकार जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए जरूरी कदम नहीं उठा पाती है।

पाकिस्तान में हिंदुओं पर होते हैं हमले
दरअसल जिन्होंने भी पाकिस्तान के बारे में सुना है और देखा है, वे सब लोग इस सच्चाई से अवगत हैं। यह सच्चाई केवल पाकिस्तान की ही नहीं है, यह सच्चाई उन सभी देशों की है जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। लेकिन पाकिस्तान ने तो इस मामले में अति कर दी है। हिंदुओं और ईसाई जैसे अल्पसंख्यकों को बंधुआ मजदूर बनाया जा रहा है। उनसे ईंट बनाने जैसे काम जबरन करवाए जा रहे हैं। हिंदुओं की शादियों को पंजीकृत नहीं किया जाता है और जबरन धर्मांतरण तो जैसे आम बात हो गई है। हाल के दिनों में मंदिरों को भी निशाना बनाया जाने लगा है। सबसे खास यह है कि सरकार द्वारा ऐसे कृत्यों पर कार्रवाई न करना ऐसे तत्वों को बढ़ावा देते हैं।

…ऐसे तो पाकिस्तान में एक भी हिंदू नहीं बचेगा!
पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यक हैं और उनके साथ कैसा व्यवहार होता है ये किसी छिपा नहीं है। 20 करोड़ की आबादी वाले पाकिस्तान में 10 प्रतिशत गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं। लेकिन आज हालात यह हो गये हैं कि पाकिस्तान में 17 करोड़ मुसलमानों के बीच हिन्दुओं क़ी आबादी मुश्किल से 27 लाख बची है। जबकि 1947 में पाकिस्तान में हिन्दू आबादी का घनत्व 27 प्रतिशत था, जो अब घटकर 2 प्रतिशत (लगभग 1.6 प्रतिशत) से कम रह गया है। जाहिर है मुस्लिम कट्टरपंथियों के अत्याचारों ने उनकी जिंदगी और भी मुश्किल कर रखी है।

हिंदू लड़कियों का जबरन धर्मांतरण
पिछले कई दशकों से हिंदू लड़कियों को अगवा कर उनको जबरन मुसलमान बनाने की घटनाएं बढ़ती चली आ रही हैं। पाकिस्तान में हिंदू होना कितना बड़ा गुनाह है, इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि हर साल पाकिस्तान में 300 हिंदू लड़कियों का अपहरण कर लिया जाता है। पाकिस्तान की ही संस्था ‘Movement For Solidarity And Peace’ की रिपोर्ट के मुताबिक अगवा होने वाली ज्यादातर हिंदू लड़कियों की उम्र सिर्फ 12 से 15 साल होती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अपहरण करने के बाद हिंदू लड़कियों की जबरदस्ती शादी करवाकर उनसे इस्लाम कबूल करवाया जाता है।

राजनीतिज्ञों के संरक्षण में धर्मांतरण
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सबसे अधिक हिंदू आबादी है लेकिन यहां भी आए दिन हिंदू लड़कियों पर अत्याचार हो रहे हैं। नाबालिग लड़कियों का अपहरण और फिर जबरन धर्मांतरण तो रोजमर्रा का हिस्सा हो गया है। हिंदुओं पर हमले और हत्याएं भी हो रही हैं। इस तरह की तमाम वारदात में मियां मिट्ठू नाम के एक मौलवी का जिक्र होता है। मियां मिट्ठू का असली नाम पीर अब्दुल हक है और वो पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी का नेता भी है। माना जाता है कि पाकिस्तान में हिंदुओं के धर्म परिवर्तन का ठेका इन्ही मियां मिट्ठू ने उठाया हुआ है। मियां मिट्ठू के खिलाफ 117 मामले दर्ज हैं लेकिन पाकिस्तान सरकार चुप है।

मियां मिट्ठू का असली नाम पीर अब्दुल हक के लिए चित्र परिणाम

11 अगस्त, 2016 को पाकिस्तान के अल्पसंख्यक बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन पर उतर आए थे। इस मौके पर पाकिस्तान के हर शहर में हिंदू आबादी सड़कों पर उतर आई और खुद पर हो रहीं ज्यादतियों के खिलाफ आवाज बुलंद करने लगी।

दोयम दर्जे के नागरिक हैं अल्पसंख्यक
गैर-मुस्लिमों, विशेषकर हिंदुओं के साथ पाकिस्तान में दोयम दर्जे का व्यवहार होता रहा है। 24 मार्च, 2005 को पाकिस्तान में नए पासपोर्ट में धर्म की पहचान को अनिवार्य कर दिया गया। स्कूलों में इस्लाम की शिक्षा दी जाती है। गैर-मुस्लिमों, खासकर हिंदुओं के साथ असहिष्णु व्यवहार किया जाता है। जनजातीय बहुल इलाकों में इस्लामिक कानून लागू करने की कोशिश हो रही हैं। हिंदू युवतियों और महिलाओं के साथ दुष्कर्म, अपहरण की घटनाएं आम हैं। उन्हें इस्लामिक मदरसों में रखकर जबरन धर्मांतरण का दबाव डाला जाता है।

अल्पसंख्यकों को पहचान खोने का खतरा
पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर हिन्दुओं के साथ शारीरिक तथा मानसिक उत्पीड़न हो रहा है, जिसके कारण पाकिस्तान से हिन्दुओं का भारत की तरफ पलायन भारी मात्रा में बढ़ा है। विभिन्न अल्पसंख्यक समुदाय अपनी पहचान, संस्कृति, अधिकार की मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार अनसुनी करती आ रही है। हिन्दू व्यापारियों और उनके परिवार की महिलाओं के अपरहण, दुकानों में की जा रही लूटपाट, संपत्ति पर जबरन कब्जे और धार्मिक कट्टरता के माहौल ने इस अल्पसंख्यक समुदाय (हिंदुओं) को अलग-थलग कर दिया है।

बढ़ती कट्टरता ने मानव होने का अधिकार छीना
पाकिस्तान में आज कट्टरपंथियों का बोलबाला है। धार्मिक कट्टरपन और इसे मानने वाले संगठनों ने एक अभियान चलाया है जिसके तहत सभी अल्पसंख्यकों ( विशेषकर हिंदुओं) का धर्मांतरण करवा दिया जाए। दरअसल ये कट्टरपंथी इस्लाम को अपने नजरिये से परिभाषित करते हैं तथा और जिहाद की अलग ही परिभाषा गढ़ते हैं। पाकिस्तान में केवल हिन्दू ही नहीं बल्कि बाकी अल्पसंख्यक भी प्रताड़ित हो रहे हैं।

बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार के लिए चित्र परिणाम

बांग्लादेश में भी हिंदुओं पर अत्याचार
बांग्लादेश में भी हिंदुओं पर अत्याचार के मामले तेजी से बढ़े हैं। बांग्लादेश ने “वेस्टेड प्रापर्टीज रिटर्न (एमेंडमेंट) बिल 2011” को लागू किया है, जिसमें जब्त की गई या मुसलमानों द्वारा कब्जा की गई हिंदुओं की जमीन को वापस लेने के लिए क्लेम करने का अधिकार नहीं है। इस बिल के पारित होने के बाद हिंदुओं की जमीन कब्जा करने की प्रवृति बढ़ी है और इसे सरकारी संरक्षण भी मिल रहा है। इसका विरोध करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर भी जुल्म ढाए जाते हैं। इसके अलावा हिंदू इस्लामी कट्टरपंथियों के निशाने पर भी हैं। उनके साथ मारपीट, दुष्कर्म, अपहरण, जबरन मतांतरण, मंदिरों में तोडफोड़ और शारीरिक उत्पीड़न आम बात है। अगर यह जारी रहा तो अगले 25 वर्षों में बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी ही समाप्त हो जाएगी।

बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार के लिए चित्र परिणाम

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