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छद्म सेक्युलर के नाम पर राजनीति करने वालों को चीफ जस्टिस की सीख

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सेक्युलर के नाम पर दिखावा करने वालों ने पूरी दुनिया में भारत की छवि को अल्पसंख्यक विरोधी बनाने की हरसंभव कोशिश की। उसके लिए अलग-अलग और नए-नए तरीके से नाम गढ़े गए। लेकिन विविधताओं से भरे मां भारती की धरती पर किस तरह सबको समानता का अधिकार प्राप्त है। उसकी झलक एक बार फिर देश के मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति जे एस खेहर की जुबानी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सुनने, समझने और देखने को मिला। न्यायमूर्ति खेहर स्वयं अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं। उन्होंने 71वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर जो बातें कहीं, उस पर एक रिपोर्ट –

इनटोलरेंस के छद्म माहौल बनाने वालों को चीफ जस्टिस द्वारा कहे गए बातों की ओर ध्यान देना चाहिए। 71 वें स्वतंत्रता दिवस समारोह में जस्टिस खेहर ने अपने भाषण की शुरुआत एक प्रश्न से किया। उन्होंने कहा, “आपने अब्दुल्ला का नाम सुना है?” सवाल सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आरएस सूरी से था, जिन्होंने अपने भाषण में आज़ादी के गुमनाम सिपाहियों के लिए सम्मान की बात कही थी।

चीफ जस्टिस ने ही इस सवाल का जवाब भी दिया। उन्होंने कहा, “अब्दुल्ला एक वहीदी मुसलमान था। 28 सितंबर 1871 को उसने कलकत्ता हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जॉन पैक्स्टन नॉर्मन को चाकू मारा। जज की अगले दिन मौत हो गई। चाकू मारने के बाद भी अब्दुल्ला भागा नहीं, गिरफ्तारी दी। वो ब्रिटिश सरकार की भेदभाव भरी नीतियों से नाराज था। उसने अपने बयान में ये बताया था।”

जस्टिस खेहर यहीं नहीं रूके। उन्होंने इससे आगे की बात भी बताई। उन्होंने कहा, ”इस घटना के बाद भारत के गवर्नर जनरल मायो ने कहा कि वो सब वहीदी मुसलमानों को खत्म कर देंगे। कुछ दिनों बाद मायो बर्मा से लौटते हुए अंडमान में रूके। वहां शेर अली अफरीदी का नाम के शख्स ने 8 फरवरी 1872 उन्हें चाकू से मार दिया। शेर अली भी वहीदी मुस्लिम था। उसे सेल्युलर जेल में फांसी दी गई। उसने फांसी से पहले मुस्लिम और हिन्दू कैदियों को मिठाई खिलाई।”

इसके बाद चीफ जस्टिस खेहर ने बताया कि जब उन्होंने एक दिन किसी से शेर अली अफरीदी के बारे में पूछा तो वो पाकिस्तान के क्रिकेटर शाहिद अफरीदी के बारे में बताने लगा। अंग्रेज गवर्नर जनरल को मारने वाले को लोग आज पहचानते भी नहीं। इसके बाद जस्टिस खेहर ने जो कहा, उससे असहिष्णुता की बात करने वाले और अल्पसंख्यकों को भारत में असुरक्षित कहने वालों के मुंह पर कालिख पुत गई।

सभी समुदायों को समानता का अधिकार 
भारत में नागरिकों को हासिल अधिकारों पर बात करते हुए जस्टिस खेहर ने बताया कि उनका जन्म केन्या में हुआ, जो कि तब ब्रिटिश उपनिवेश था। वहां ब्रिटिश प्रथम श्रेणी के नागरिक माने जाते थे। फिर अमेरिकी और यूरोपियन लोगों का दर्जा था। इनके बाद अफ्रीकी और सबसे आखिर में एशियाई होते थे। इसी दर्जे के हिसाब से वहां नौकरी और दूसरी सुविधाओं पर हक मिलता था। 

चीफ जस्टिस ने कहा, “आज हमारे राष्ट्रपति दलित बिरादरी से हैं। पीएम वो हैं, जो कभी चाय बेचते थे। मैं बिना किसी भेदभाव के इस देश में चीफ जस्टिस बन सका।” चीफ जस्टिस ने कहा, “पिछले सप्ताह मैं एक शादी में चंडीगढ़ गया। वहां मैंने अपने बेटे की तरफ से तोहफे में मिली टीशर्ट पहनी। उस पर लिखा था ‘प्राउड टू बी ए सिख, बाय बर्थ एंड बाय चॉइस।’ मुझे बहुत अच्छा लगा। ये देश आपको अपने धर्म पर, अपने क्षेत्र पर गर्व करने का मौका देता है। हमें इस देश पर गर्व करना चाहिए।” 

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