Home विपक्ष विशेष कोई बताएगा, आखिर कब बड़े होंगे राहुल बाबा?

कोई बताएगा, आखिर कब बड़े होंगे राहुल बाबा?

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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी 13 वर्षों से सक्रिय राजनीति में हैं, उनकी उम्र भी 48 की होने वाली है, लेकिन लगता है कि मानसिक तौर पर वे अभी भी परिपक्व नहीं हुए हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि पिछले 13 वर्षों के अपने राजनीतिक जीवन में वो हमेशा ऐसी बातें, ऐसी हरकतें करते आए हैं, जो बताती हैं कि उनकी अपनी सोच कुछ नहीं है। दूसरे लोग जैसा उनके कहते हैं, वो बोल देते हैं। इधर, पिछले कुछ वर्षों से उन्हें बदलने की कोशिश की जा रही है, ब्रांडिंग के लिए विदेशी एजेंसियों की भी मदद ली जा रही है, लेकिन कोई फर्क दिखाई नहीं पड़ रहा है। जाहिर है कि जिस नेता को जमीनी मुद्दे नहीं पता, जमीनी सच्चाई नहीं पता वो कैसे जनता की नुमाइंदगी ठीक से कर सकता है। उस पर भी तुर्रा ये कि कांग्रेस की तरफ से उन्हें अगले प्रधानमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट किया जा रहा है, लेकिन देश की जनता ऐसे शख्स को प्रधानमंत्री कैसे चुन सकती है, जिसका जनता के साथ जुड़ाव ही नहीं हो। एक नजर डालते हैं ऐसी घटनाओं पर जिनसे यह समझने में आसानी होगी कि राहुल बाबा कहीं पूरी जिंदगी राहुल बाबा तो नहीं रहेंगे।

योग्यता नहीं वंशवाद के चलते बने कांग्रेस अध्यक्ष
राहुल गांधी को राजनीति में आए डेढ़ दशक से कम वक्त हुआ है और वो देश की सबसे पुरानी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुके हैं, जबकि कांग्रेस पार्टी में एक से एक धुरंधर नेता हैं। आखिर क्या वजह है कि उन्हें अध्यक्ष बनाया गया, जाहिर सी बात है वंशवाद के चलते। कांग्रेस पार्टी में वंशवाद की राजनीति का बीज सबसे गहरा है, आजादी के बाद ज्यादातर नेहरू-गांधी खानदान का व्यक्ति ही अध्यक्ष रहा है। राहुल से पहले उनकी मां सोनिया गांधी 19 वर्षों तक कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं थी।

राहुल की इमेज बदलने के लिए लंबी-चौड़ी टीम
वंशवाद के जरिए राहुल गांधी को अध्यक्ष तो बना दिया गया, लेकिन इतनी बड़ी पार्टी को संभालने के लिए योग्यता कहां से लाएंगे। इसीलिए कांग्रेस पार्टी अपने अध्यक्ष की ब्रांडिंग में लगी हुई है। बताया जा रहा है कि देशी-विदेशी एजेंसियों की बड़ी टीम राहुल बाबा की ब्रांडिंग में लगी हुई है। राहुल गांधी की ब्रांडिंग के लिए विदेशों में विशेष कार्यक्रम प्रायोजित किए जाते हैं, जहां राहुल गांधी अपने विचार प्रकट करते हैं, उनकी बातों को मीडिया में कवरेज दिलाया जाता है, ताकि राहुल के बारे में लोगों की सोच बदल सके। इतना ही नहीं, बताया गया है कि राहुल गांधी को कम बोलने की भी सलाह दी गई है, सोशल मिडिया और ट्विटर के जरिए अपनी बात कहने को कहा गया है, ताकि गलती की गुंजाइश बेहद कम हो।

इतनी सावधानी के बाद भी राहुल कर देते हैं गलती
राहुल गांधी की सार्वजनिक मौजूदगी और बातचीत को लेकर बेहद सावधानी बरती जाती है। ज्यादातर ट्विटर से ही संवाद करने वाले राहुल गांधी उसमें भी गलती कर देते हैं। जब कुछ पता नहीं होगा तो उनकी टीम भी कितना संभालेगी। हाल के कुछ ट्वीट पर नजर डालें तो, फिल्म अभिनेत्री श्रीदेवी की असामयिक मृत्यु पर उन्होंने ट्वीट किया और उसमें यूपीए सरकार के दौरान पद्म पुरस्कार दिए जाने का जिक्र कर दिया। लोगों ने जब ट्रोल किया तो, उन्हें ट्वीट डिलीट करना पड़ा।

लाख छिपाने के बाद भी सामने आ जाती है असलियत
जैसा कि पहले जिक्र किया है कि राहुल गांधी की इमेज चमकाने के लिए विदेशों में प्रायोजित संवाद कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। हाल ही में सिंगापुर में National University of Singapore में राहुल गांधी का ऐसा ही कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में राहुल गांधी देश की समस्याओं के बारे में अपने विचारों को प्रकट कर रहे थे, लोग तालियां बजा रहे थे। पहले से तैयार सवालों का जवाब राहुल गांधी बेहद गंभीरता से देते हुए दिखे। इस कार्यक्रम के दौरान जब लाइव सवाल पूछने का दौर आया तो राहुल गांधी की हालत पतली हो गई।

कड़े सवालों पर बगलें झांकने लगते हैं राहुल गांधी
सिंगापुर के विश्वविद्यालय में आयोजित इसी कार्यक्रम में लाइव सेशन के दौरान एक आर्थशास्त्री ने भारत की अर्थव्यवस्था में उनके परिवार के योगदान की बात करते हुए सवाल पूछा कि जब गांधी परिवार ने जितने वर्षों भारत पर राज किया, उस दौरान भारत में प्रति व्यक्ति आय बढ़ने की रफ्तार, दुनिया के औसत से कम थी। वहीं जब गांधी परिवार सत्ता में नहीं था, तब भारत की प्रति व्यक्ति आय बढ़ने की रफ़्तार, दुनिया के औसत के मुकाबले बहुत तेज़ी से बढ़ रही थी। इस सवाल से राहुल एकदम असहज हो गए, और पानी की बोतल ढूंढते हुए दिखाई दिए। राहुल ने सीधे तौर पर कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि अर्थशास्त्री से ही सवाल करने लगे। ऐसा अक्सर होता है, राहुल गांधी हमेशा एकतरफा संवाद में विश्वास रखते हैं। इससे पहले जब 1 फरवरी 2018 को बजट के बाद पत्रकारों ने संसद के बाहर जब राहुल गांधी से प्रतिक्रिया जाननी चाही तो वो बिना कोई जवाब दिए आगे बढ़ गए। बाद में उन्होंने ट्वीट कर बजट पर अपनी राय जाहिर की।

राहुल ने मोबाइल से देखकर लिखा शोक संदेश
राहुल गांधी के बारे में दावा किया जाता है कि वो विदेश में पढ़े हैं और बहुत ही समझदार और संवेदनशील नेता है। इस दावे की पोल उस वक्त खुल गई जब नेपाल में आए भूकंप के बाद मई 2015 में राहुल गांधी नई दिल्ली स्थित नेपाली दूतावास पहुंचे और वहां शोक संदेश लिखा। राहुल ने शोक संदेश अपने मन से नहीं लिखा, बल्कि इसके लिए मोबाइल का सहारा लिया। अब बताइए जो नेता एक शोक संदेश भी अपने मन से नहीं लिख पाता हो, वो देश का नेतृत्व कैसे कर सकता है?, यह सवाल तो उठना लाजिमी है।

कभी दिखाते हैं फटा कुर्ता, कभी पहनते हैं हजारों की जैकेट
राहुल गांधी कब कौन सी हरकत कर बैठेंगे इसका कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता है। उत्तराखंड में चुनाव की रैली के दौरान राहुल गांधी ने अपनी कुर्ते की फटी जेब दिखाते हुए कहा कि देश में आम आदमी की आर्थिक हालत खराब हो चुकी है। यही राहुल गांधी थोड़े दिन पहले जब नॉर्थ ईस्ट में थे और एक पार्टी में 70 हजार रुपये की ब्रांडेड जैकेट पहने हुए नजर आए। मतलब साफ है कि राहुल गांधी सिर्फ नौटंकी में विश्वास करते हैं।

 

आलू की फैक्ट्री वाला बयान भूला नहीं जा सकता
उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने बयान दिया था कि सत्ता में आने पर वो आलू किसानों के फायदे के लिए आलू की फैक्ट्री लगवा देंगे। अब बताइए जिस नेता को यह ही नहीं पता कि आलू जमीन में होता है, या पेड़ पर होता, या फिर कारखाने में बनता है, उससे आप देश के जमीनी मुद्दों की लड़ाई की उम्मीद कैसे कर सकते हैं।

गरीबी का भोजन से लेना-देना नहीं- राहुल
अगस्त, 2013 में राहुल ने इलाहाबाद के पंडित गोविन्द बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान के एक कार्यक्रम में कहा था, ‘गरीबी सिर्फ एक मानसिक स्थिति है। इसका भोजन, रुपये या भौतिक चीजों से कोई लेना-देना नहीं। उन्होंने यहां तक कहा कि जब तक आदमी खुद में आत्मविश्वास नहीं लाएगा, उसकी गरीबी खत्म नहीं होगी।’

झूठ बोलने में माहिर हैं राहुल गांधी
राहुल गांधी देश की सबसे पुरानी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, लेकिन झूठ बोलना उनकी आदत में शुमार है। राहुल को लगता है कि झूठ का सहारा लेकर वो देश की जनता के दिल में जगह बनाने में कामयाब हो जाएंगे। गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने महंगाई और महिला साक्षरता के झूठे आंकड़े पेश किए थे। गुजरात में ही उन्होंने केंद्र सरकार पर उद्योगपतियों को 45,000 करोड़ एकड़ जमीन देने का आरोप लगा दिया था। इसी प्रकार रायबरेली के साथ केंद्र की तरफ से भेदभाव के झूठे आरोप लगाए। कई बार तो ऐसे झूठ बोलते हैं कि उनकी समझ पर तरस आती है। संसद में उनका यह तीसरा कार्यकाल है, लेकिन पिछले वर्ष सितंबर में जब वह अमेरिका गए थे तो वहां एक यूनिवर्सिटी में छात्रों को संबोधित करते हुए सांसदों की संख्या ही 546 बता डाली।

एक कमजोर नेता को पीएम पद का उम्मीदवार कैसे कुबूल करेगी जनता
पूरा विश्लेषण यह समझाने के लिए काफी है कि राहुल गांधी जनता के बीच के नहीं, बल्कि जनता पर जबरन थोपे गए नेता हैं। इस देश के नागरिक प्रधानमंत्री पद एक ऐसे शख्स को देखना चाहते हैं, जिसका कोई विजन हो, देश को आगे ले जाने की संकल्प है, देश के मुद्दों की समझ हो और देश की समस्याओं को खत्म करने की ललक हो। इनमें से एक भी गुण राहुल गांधी के व्यक्तित्व में तो दिखाई नहीं देते हैं। राहुल गांधी की ब्रांडिंग की जो कोशिश हो रही हैं उससे, उनका व्यक्तित्व निखर जाएगा ऐसा लगता तो नहीं है। दरअसल, नेतृत्व की योग्यता को किसी फैक्ट्री में डिजाइन नहीं किया जा सकता है, इसके लिए खुद के भीतर आत्मविश्वास पैदा करना होता है। यह आत्मविश्वास वर्षों तक जमीनी स्तर पर लोगों के बीच कार्य करने के अनुभव से आता है। इन गुणों की कमी के बिना नेतृत्व क्षमता पैदा होना मुश्लिक होता है। यह सभी गुण अभी तक राहुल के भीतर दिखाई नहीं देते हैं। इसलिए यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर कब बड़े होंगे राहुल बाबा?

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