Home नरेंद्र मोदी विशेष राफेल डील के सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा!

राफेल डील के सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा!

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राफेल..ऱाफेल..ऱाफेल
इस आवाज ने पिछले कुछ महीनों से लोगों के मन को मथ के रख दिया, मीडिया से लेकर चुनावी सभाओं में लेफ्ट और सेक्यूलर गुटों ने मोदी सरकार पर राफेल डील में भ्रष्टाचार का आरोप चिपकाने के लिए चिल्ला-चिल्ला कर राफेल की बांग दी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर सीधे आरोप मढ़ा और कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मित्र अनिल अंबानी को तीस हजार करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाया।

लेफ्ट और सेक्यूलर गुट गली-गली राफेल ऱाफेल चिल्लाकर थक गये लेकिन उनकी दाल नहीं गली, क्योंकि इस गुट की अगुवाई कर रही कांग्रेस और उसके अध्यक्ष राहुल गांधी पर जनता को विश्वास नहीं है। विश्वास फिर से पाने के लिए इस गुट के पास सिर्फ एक ही रास्ता बचा, और वह था सर्वोच्च न्यायालय से राफेल डील पर किसी तरह जांच करवाने का आदेश लिया जाए। अलीबाबा और चालीस चोरों ने सामाचार पत्र और पत्रिकाओं की कतरनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर कर दी।

सुप्रीम कोर्ट ने महीनों सरकार और सेक्यूलर गुटों की बातों को ध्यान से सुना और सरकार के वे सभी गोपनीय दस्तावेज देखे जिसे संसद को भी देखने का अधिकार नहीं है। पूरे सोच विचार के बाद मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन न्यायधीशों की खंडपीठ ने 14 दिसंबर 2018 को प्रधानमंत्री मोदी पर लगाये गये सारे आरोप खारिज कर दिए।

फेक न्यूज को आधार बनाकर देश की सुरक्षा और आत्म-सम्मान के साथ खिलवाड़ करने वालों आरोपों का सुप्रीम कोर्ट ने एक एक कर जवाब दिया। आइये आपको उन आरोपों और उसके सुप्रीम जवाब के बारे में बताते हैं।

आरोप नं. 01- प्रधाानमंत्री मोदी ने यूपीए की डील क्यों कैंसिल की।

सुप्रीम जवाब– मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने विस्तार से इस प्रश्न के जवाब के लिए सबूतों की पड़ताल की और लिखा कि 2001 में 126 लड़ाकू विमान खरीदने की शुरुआत हुई। इस खरीद के लिए 2002 में DPP ( Defence Procurement Procedure) बना। ( इस बीच वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की जगह डॉ मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार सत्ता में आ गयी) 2005 में DPP में ऑफसेट क्लाज़ को भी जोड़ा गया। दो साल बाद 29 जून 2007 को 126 लड़ाकू विमानों के लिए ‘Acceptance of Neccessity’ जारी किया गया। अगस्त 2007 में Bidding Process शुरु हो गई। 6 वेंडरों ने अप्रैल 2008 में सरकार को प्रपोजल दिया। सभी प्रोपजल का Technical और Field evaluation किया गया। यह प्रक्रिया तीन साल यानी 2011 में पूरी हुई। नवंबर 2011 में इसका Commercial टेंडर खुला। जनवरी 2012 में  M/S Dassault Aviation को L-1 घोषित किया गया। इसके बाद Dassault Aviation से बातचीत शुरु हुई जो 2014 तक चली, इसी दौरान केन्द्र में सरकार बदल गई।( 26 मई 2014 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार सत्ता में आयी ) 

यह बातचीत 2014 तक पूरी नहीं हो सकी क्योंकि Dassault Aviation और HAL के बीच लड़ाकू विमानों को बनाने के लिए Man Hours पर बात अटकी रही। HAL इन लड़ाकू विमानों को बनाने के लिए अधिक Man Hours की मांग कर रहा था जबकि Dassault Aviation उतने Man Hours देने को तैयार नहीं था।

तीन साल तक Man Hours की बात पर पूरे लड़ाकू विमानों की खरीद रुकी रही। इस देरी की वजह से लड़ाकू विमानों की कीमत भी बढ़ रही थी क्योंकि Dassault Aviation के साथ किए गये समझौते में यह क्लॉज़ था कि यदि देरी होती है तो कीमत एक निश्चित दर से बढ़ेगी और उसमें रुपये-यूरो की विनिमय दर को भी जोड़ा जाएगा। HAL से बात अटकने के कारण मार्च 2015 में सरकार को RFP कैंसिल करना पड़ा क्योंकि पिछले कुछ सालों में पड़ोसी देशों में चौथी और पांचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमान आ चुके थे। इससे भारत की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो चुका था। सामरिक मोर्चे पर ऐसे हालात से निपटने के लिए सरकार ने Intergovernmental Agreement का रास्ता चुना।

आरोप नं. 02- प्रधाानमंत्री मोदी ने व्यक्तिगत स्तर पर राफेल डील करने का निर्णय लिया, कैबिनेट को भी नहीं बताया।

सुप्रीम जवाबप्रधानमंत्री मोदी ने लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए Defence Procurement Procedure 2013 के नियमों का पालन किया। इस Defence Procurement Procedure के तहत RFP को कैंसिल करने की पूरी प्रक्रिया अपनायी गई। 

Defence Procurement Procedure 2013 के पैराग्राफ 71 के अनुसार सरकार के पास यह अधिकार है कि वह RFP को कैंसिल करके Intergovernmental Agreement अपने मित्र राष्ट्रों से कर सकती है जिससे देश की सामारिक स्थिति मजबूत हो। इस नियम के अनुसार Intergovernmental Agreement का अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व होगा, यह किसी Standard Procurement Procedure के नियमों में नहीं बांधा जा सकता है लेकिन Defence Procurement Procedure 2013 का पैराग्राफ 71 यह भी कहता है कि Intergovernmental Agreement के लिए Indian Negotiating Team बनेगी, जो खरीद के बारे में मित्र राष्ट्र से बातचीत करेगी।

प्रधानमंत्री मोदी ने Defence Procurement Procedure 2013 के तहत मार्च 2015 में राफेल की RFP कैंसिल करके,  मई 2015 में Intergovernmental Agreement के लिए एक Indian Negotiating Team का गठन किया। इसने अप्रैल 2016 तक 74 बैठकें की, इसमें 48 बैठकें देश में रक्षा विशेषज्ञों के साथ और 26 बैठकें फ्रांस के साथ हुई। Indian Negotiating Team ने  Dassault Aviation के साथ पहले से भी अच्छा समझौता तैयार किया। इस तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने Defence Procurement Procedure 2013 के नियमों का पूरी तरह से पालन किया।

आरोप नं. 03- प्रधानमंत्री मोदी ने 36 ऱाफेल लड़ाकू विमान फ्रांस से महंगे में खरीदे और देश को नुकसान पहुंचाया।

सुप्रीम जवाब 36 राफेल लड़ाकू विमानों के दाम के बारे में पत्र पत्रिकाओं में छपे लेख के आधार पर कहा गया कि प्रधानमंत्री मोदी ने पहले से अधिक कीमत दी है। इसकी सच्चाई जानने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से बंद लिफाफे में वे सारी जानकारी मांगी जो सुरक्षा की दृष्टि से सामान्य तौर पर संसद को भी नहीं बताई जाती। सरकार ने ये सभी जानकारी कोर्ट को दी।

सरकार द्वारा दी गई जानकारी को न्यायालय ने अच्छी तरह समझा और सैन्य अधिकारियों से इस बारे में भी बातचीत की। सरकार द्वारा दी गई गोपनीय जानकारी और रक्षा विशेषज्ञों से बातचीत के बाद, न्यायालय ने गोपनीयता को ध्यान में रखते हुए सिर्फ इतना कहा कि डील पर शक करने का कोई सबूत नहीं है। यह भी कह सकते हैं कि Intergovernmental Agreement के तहत खरीदे गये लड़ाकू विमान पहले के समझौते से बेहतर और लाभप्रद है।

आरोप नं. 04- प्रधानमंत्री मोदी ने HAL से ऑफसेट कॉन्ट्रेक्ट छीनकर अपने मित्र अनिल अंबानी को दिलवाया।

सुप्रीम जवाबDefence Procurement Procedure 2013 में ऑफसेट के लिए एक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया का 8.2 क्लॉज कहता है कि जब वेंडर या रक्षा उपकरण बनाने वाली कंपनी एक फॉर्मेट में सरकार को प्रपोजल देती है, उसके बाद ही ऑफसेट के मामले में सरकार का हस्तक्षेप होता है। इससे पहले ऑफसेट पार्टनर के चुनाव में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता।

अभी तक Dassault Aviation ने कोई भी फॉर्मेट प्रपोजल नहीं दिया है। और Defence ऑफसेट गाइडलाइंस के अनुसार Dassault Aviation या कोई भी वेंडर किसी भी कंपनी को चुनने के लिए स्वतंत्र है, इसमें सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं है।

फरवरी 2017 में Dassault Aviation ने रिलायंस के साथ एक ज्वाइंट वेंचर बनाया, जो पूरी तरह से दो कंपनियों का व्यवसायिक मामला है। इसी तरह से फरवरी 2012 में 126 लड़ाकू विमानों के लिए जब Dassault Aviation को  L-1 के लिए चुना गया था तो कंपनी ने दो हफ्तों के अंदर ही रिलांयस इंडस्ट्रीज (एक दूसरी कंपनी) के साथ समझौता किया था।

इसमें कोई शक नहीं है कि Reliance Aerostructure Ltd. हाल ही में बनी हुई कंपनी है लेकिन इसकी मूल कंपनी Reliance Industries के साथ Dassault Aviation ने 2012 में ऱक्षा क्षेत्र में समझौता किया था। 

इस तरह से Dassault Aviation और Reliance Aerostructure Ltd के बीच समझौता दो कंपनियों के बीच का व्यवसायिक मामला है, इसमें  मोदी सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं है।

इस तरह से भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर लगे सभी आरोपों को खारिज कर दिया।

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