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जानिए क्या है बिना निवेश के करोड़ों की कमाई वाला राहुल के जीजा का ‘वाड्रा मॉडल’

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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के जीजा रॉबर्ट वाड्रा कौड़ियों से करोड़ों बनाने में माहिर हैं। सत्ता में अपने रसूख का इस्तेमाल कर रॉबर्ट वाड्रा ने किस तरह जमीन सौदों के जरिए करोड़ों रुपये कमाए यह किसी से छिपा नहीं हैं। पैसे कमाने का यह तरीका ‘वाड्रा मॉडल’ के नाम से भी जाना जा सकता है। इस लेख में हम आपको बताएंगे की राहुल गांधी के रिश्तेदार हों या फिर कांग्रेस पार्टी के दूसरे नेता, इसी वाड्रा मॉडल का इस्तेमाल कर लृट-खसोट करते रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि राहुल गांधी भी इसी ‘वाड्रा मॉडल’ के फॉलोअर हैं। राहुल ने नेशनल हेराल्ड केस में इसी तरह हेराफेरी कर करोड़ों रुपये कमाए हैं, फिलहाल नेशनल हेराल्ड केस में राहुल गांधी जमानत पर हैं। एक नजर डालते हैं राहुल के रिश्तेदारों और कांग्रेस नेताओं के ‘वाड्रा मॉडल’ पर-

राहुल के जीजा रॉबर्ट वाड्रा का डीएलएफ घोटाला
लूट-खसोट का ‘वाड्रा मॉडल’ खासा दिलचस्प है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के जीजा रॉबर्ट वाड्रा पर सत्ता में अपने रसूख का इस्तेमाल कर करोड़ों रुपये कमाने का आरोप है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक डीएलएफ घोटाले की शुरुआत 2011 में होती है। रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी ने डीएलएफ से 5 करोड़ रुपये ब्याजमुक्त कर्ज लिया और इस पैसे का इस्तेमाल गुड़गांव के पास शिकोहपुर गांव में कौड़ियों के दाम पर किसानों से जमीन खरीदने में किया। बताया जा रहा है कि वाड्रा को पता था कि जल्द ही हरियाणा सरकार इस जमीन पर रेजीडेंशियल और कॉमर्शियल प्रोजेक्ट लांच करेगी। इसलिए वाड्रा ने डीएलएफ के साथ मिलकर यह खेल रचा और फिर 2012 में उसी जमीन को डीएलएफ को ही 50 करोड़ रुपये में बेच दिया। यानी बगैर कुछ किए रॉबर्ड वाड्रा की कंपनी को पचास करोड़ रुपये का फायदा हो गया।

अब यह मामला कोर्ट में है, आयकर समेत तमाम विभाग जांच में जुटे है। सुप्रीम कोर्ट ने 6 अप्रैल 2018 को अपने आदेश में कहा है कि वाड्रा की स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी को DLF जमीन सौदों में हुई आमदनी की आयकर विभाग से समीक्षा जारी रहेगी। दरअसल, स्काइलाइट ने सुप्रीम कोर्ट में आयकर विभाग की कार्रवाई को रद्द करने की मांग करती हुई याचिका दायर की थी। अब सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद राहुल गांधी के जीजा रॉबर्ट वाड्रा के साथ पूछताछ की जाएगी। वॉड्रा-डीएलएफ घोटाले में हरियाणा सरकार द्वारा गठित ढींगरा कमीशन ने भी अपनी रिपोर्ट सौंप दी है, इसमें वाड्रा के अलावा प्रियंका गांधी की संलिप्तता की बात भी कही जा रही है।

बीकानेर में वाड्रा का जमीन घोटाला
राजस्थान के बीकानेर में हुए जमीन घोटालों में रॉबर्ट वाड्रा की कंपनियों के जमीन सौदे भी शामिल हैं। अंग्रेजी न्यूज पोर्टल इकोनॉमिक्स टाइम्स के अनुसार गलत जमीन सौदों के सिलसिले में 18 एफआईआर दर्ज हैं, जिनमें से 4 वाड्रा की कंपनियों से जुड़े हैं। ये सारी एफआईआर 1400 बीघा जमीन जाली नामों से खरीदे जाने से जुड़ी हैं, जिनमें से 275 बीघा जमीन वाड्रा की कंपनियों के लिए जाली नामों से खरीदे जाने के आरोप हैं। यानी यहां भी कांग्रेस सरकार के जमाने में रॉबर्ट वाड्रा ने राजनीतिक संपर्कों का इस्तेमाल कर करोड़ों के वारे न्यारे किए हैं।

ये तो है कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के जीजा रॉबर्ट वाड्रा का कारनामा। कांग्रेस पार्टी में इस तरह से अपने पद और संबंधों का इस्तेमाल कर भ्रष्टाचार के जरिए अकूत दौलत कमाने वाले ‘वाड्रा मॉडल’ की फेहरिस्त काफी लंबी है। डालते हैं एक नजर-

सोनिया-राहुल का नेशनल हेराल्ड स्कैंडल
नेशनल हेराल्ड घोटाला भी इसी ‘वाड्रा मॉडल’ की तर्ज पर किया गया है। गांधी परिवार पर अवैध रूप से नेशनल हेराल्ड की मूल कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) की संपत्ति हड़पने का आरोप है। वर्ष 1938 में कांग्रेस ने एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड नाम की कंपनी बनाई थी। यह कंपनी नेशनल हेराल्ड, नवजीवन और कौमी आवाज नाम से तीन अखबार प्रकाशित करती थी। एक अप्रैल, 2008 को ये अखबार बंद हो गए। मार्च 2011 में सोनिया और राहुल गांधी ने ‘यंग इंडिया लिमिटेड’ नाम की कंपनी खोली और एजेएल को 90 करोड़ का ब्याज-मुक्त लोन दिया। एजेएल यंग इंडिया कंपनी को लोन नहीं चुका पाई। इस सौदे की वजह से सोनिया और राहुल गांधी की कंपनी यंग इंडिया को एजेएल की संपत्ति का मालिकाना हक मिल गया।

इस कंपनी में मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडीज के 12-12 प्रतिशत शेयर हैं, जबकि सोनिया गांधी और राहुल गांधी के 76 प्रतिशत शेयर हैं। गांधी परिवार पर अवैध रूप से इस संपत्ति का अधिग्रहण करने के लिए पार्टी फंड का इस्तेमाल करने का आरोप लगा। इस मामले में सोनिया और राहुल के विरुद्ध संपत्ति के बेजा इस्तेमाल का केस दर्ज कराया गया। इसी केस में  राहुल गांधी जमानत पर है। अब इसी मामले में आयकर विभाग ने प्रियंका गांधी की संलिप्तता भी पाई है।

अमरिंदर के दामाद ने किया 200 करोड़ का घोटाला
पंजाब में कांग्रेस के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के दामाद गुरपाल सिंह यूपी के हापुड़ में स्थित सिंभावली शुगर्स लिमिटेड में उप महाप्रबंधक हैं। इन पर आरोप है कि किसानों को गन्ना का भुगतान करने के लिए ओबीसी बैंक से 110 करोड़ रुपये लोन लेकर किसी अन्य काम में लगा दिया। ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स ने इस मामले में गंभीर रुख अपनाया और सीबीआई से जांच की मांग की। सीबीआइ ने इनकी मांग पर हापुड़ की सिंभावली शुगर्स लिमिटेड मिल और उसके अधिकारियों के खिलाफ करीब 110 (109.08 करोड़) करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का केस कर्ज किया है। सीबीआई की इस एफआईआर में कैप्टन अमरिंदर सिंह के दामाद गुरपाल सिंह समेत दूसरे निदेशक और शीर्ष अधिकारियों के नाम शामिल हैं।

दिग्विजय के दामाद पर धोखाधड़ी का केस
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के दामाद भवानी सिंह के खिलाफ बैंगलुरू की एक अदालत में धोखाधड़ी का केस दर्ज किया गया है। पिछले वर्ष अक्टूबर में बैंगलुरू की बालाजी इलेक्ट्रिकल्स नाम की कंपनी ने आरोप लगाया था कि जिस समय दिग्विजय सिंह कर्नाटक कांग्रेस के प्रभारी थे, उस समय उनके दामाद भवानी सिंह ने ठेका दिलाने का भरोसा दिलाया था। ठेका दिलाने के एवज में भवानी सिंह ने 1.15 करोड़ रुपए घूस लिया था, लेकिन बालाजी इलेक्ट्रिकल्स को न काम मिला और न ही पैसा वापस मिला।

चिदंबरम ने दिया 80-20 नीति का नाजायज लाभ
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम पर अपने पद के दुरुपयोग का मामला है। हाल ही में यह मामला खासा सुर्खियों में रहा था।अगस्त, 2013 में यूपीए-2 की सरकार ने 80:20 नियम लागू किया था। इस नियम के तहत व्यापारी उसी स्थिति में सोने का आयात कर सकते थे, जबकि उन्होंने अपने पिछले आयात का 20 प्रतिशत सोना निर्यात किया हो। लेकिन इस योजना के क्रियान्वयन में चिदंबरम ने ‘अनैतिक’ रास्ता अपनाया और अपने चहेतों को लाभ पहुंचाया। दरअसल 16 मई 2014 को जब लोकसभा चुनाव के परिणाम आ रहे थे और कांग्रेस नीत यूपीए की हार हो चुकी थी, उसी दिन तत्कालीन वित्त मंत्री ने 7 कंपनियों को गोल्ड स्कीम में एंट्री दे दी। सवाल उठ रहे हैं कि पी चिदंबरम ने ऐसा क्यों किया?

कार्ति चिदंबरम को दी गई थी रिश्वत
मामला 2007 का है। उस वक्त पी चिदंबरम वित्त मंत्री थे। आरोप है कि उन्होंने ही कार्ति का काम आसान बनाया था। गौरतलब है कि 2007 में आईएनएक्स मीडिया को विदेश से 305 करोड़ रुपए प्राप्त करने के लिए विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड की मंजूरी देने में अनियमित्ताएं हुईं। उस समय पी चिदबंरम वित्त मंत्री थे। इसी मामले में सीबीआई ने आईएनएक्स मीडिया, इसके डायरेक्टरों पीटर और इंद्राणी मुखर्जी के साथ कार्ति चिदंबरम का नाम भी जोड़ा गया था। इंद्राणी मुखर्जी और कार्ति चिदंबरम की आमने-सामने पूछताछ के बाद इंद्राणी मुखर्जी ने साफ किया कि वह अपने पति पीटर मुखर्जी के साथ नॉर्थ ब्लॉक में चिदंबरम से मिली थी। टाइम्स नाऊ की रिपोर्ट के अनुसार इंद्राणी ने यह भी माना कि उसकी दिल्ली के एक होटल में कार्ति से मुलाकात हुई थी जहां उसने रिश्वत के रूप में 1 मिलियन डॉलर की मांग की।

कद्दावर नेता को ट्रांसफर किए गए थे 1.8 करोड़
मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय ने दावा किया है कि कार्ति ने एक प्रभावशाली नेता के बैंक अकाउंट में 1.8 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए थे। देश के पूर्व वित्ते मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति ने इन रुपयों को रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड (RBS) की चेन्नई स्थित शाखा में अपने अकाउंट से ट्रांसफर किए थे। टाइम्स नाऊ की रिपोर्ट अनुसार जिस शख्स को रुपये ट्रांसफर किए गए, वह कद्दावर नेता हैं और उन्होंने अपने दशकों के राजनीतिक करियर में केंद्र सरकार में बहुत ही अहम जिम्मेदारियों को निभाया है। हालांकि अफसरों ने उस नेता का नाम नहीं लिया। उन्हों ने कहा कि इससे जांच प्रभावित हो सकती है। ED अफसरों का कहना है कि यह रकम 16 जनवरी, 2006 से लेकर सितंबर 2009 के बीच पांच किस्तों में उस नेता को ट्रांसफर की गई।

एक नजर कांग्रेस की सरकारों में हुए कुछ प्रमुख घोटालों पर-

2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला (2008)
भारत में सबसे बड़ा घोटाला 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला था, जिसमें दूरसंचार मंत्री ए. राजा पर निजी दूरसंचार कंपनियों को 2008 में बहुत सस्ते दरों पर 2 जी लाइसेंस जारी करने का आरोप लगाया गया था। नियमों का पालन नहीं किया गया था, लाइसेंस जारी करते समय केवल पक्षपात किया गया था। इसमें 1.96 लाख करोड़ रुपये का घोटाला हुआ था। दरअसल सरकार ने 2001 में स्पेक्ट्रम लाइसेंस के लिए प्रवेश शुल्क रखा था। इसमें दूरसंचार के बारे अनुभवहीन कंपनियों को लाइसेंस जारी किया गया था। भारत में 2001 में मोबाइल उपभोक्ता 4 मिलियन थे जो 2008 में बढ़ोतरी करके 350 मिलियन तक पहुंच गये।

सत्यम घोटाला (2009)
सत्यम कंप्यूटर सर्विसेजस के घोटाले से भारतीय निवेशक और शेयरधारक बुरी तरह प्रभावित हुए। यह घोटाला कॉरपोरेट जगत के सबसे बड़े घोटालों में से एक है, इसमें 14,000 करोड़ रुपये का घोटाला किया गया था। पूर्व चेयरमैन रामलिंगा राजू इस घोटाले में शामिल थे, जिन्होंने सब कुछ संभाला हुआ था। बाद में उन्होंने 1.47 अरब अमेरिकी डॉलर के खाते को किसी प्रकार के संदेह के कारण खारिज कर दिया। उस साल के अंत में, सत्यम का 46% हिस्सा टेक महिंद्रा ने खरीदा था, जिसने कंपनी को अवशोषित और पुनर्जीवित किया।

कॉमनवेल्थ गेम घोटाला (2010)
राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी और संचालन के लिए लिये लिया गया धन भारी मात्रा में घोटाले में चला गया। इसमें लगभग 70,000 करोड़ रुपये का घोटाला किया गया है। इस घोटाले में कई भारतीय राजनेता नौकरशाह और कंपनियों के बड़े लोग शामिल थे। इस घोटाले के प्रमुख पुणे के निर्वाचन क्षेत्र से 15 वीं लोकसभा के लिए कांग्रेस पार्टी के प्रतिनिधि सुरेश कलमाड़ी थे। उस समय, कलमाड़ी दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन समिति के अध्यक्ष थे। इसमें शामिल अन्य बड़े लोगों में दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री- शीला दीक्षित और रॉबर्ट वाड्रा हैं। इसका गैर-अस्तित्व वाली पार्टियों के लिए भुगतान किया गया, उपकरण की खरीद करते समय कीमतों में तेजी आई और निष्पादन में देरी हुई थी।

कोयला घोटाला (2012)
कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के दौरान कोयला घोटाले के कारण भारत सरकार को 1.86 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। सीएजी ने एक रिपोर्ट पेश की और कहा कि 194 कोयला ब्लॉकों की नीलामी में अनियमितताऐं शामिल हैं। सरकार ने 2004 और 2011 के बीच कोयला खदानों की नीलमी नहीं करने का फैसला किया था। कोयला ब्लॉक अलग-अलग पार्टियों और निजी कंपनियों को बेच दिये गये थे। इस निर्णय से राजस्व में भारी नुकसान हुआ था।

टाट्रा ट्रक घोटाला (2012)
वेक्ट्रा के अध्यक्ष रवि ऋषिफॉर्मर और सेना प्रमुख जनरल वी.के. सिंह के खिलाफ मनी लॉन्डरिंग प्रतिबंध अधिनियम (पीएमएलए) के तहत मामला पंजीकृत किया था। इसमें सेना के लिए 1,676 टाटा ट्रकों की खरीद के लिए 14 करोड़ रुपये की रिश्वत दी गई थी।

आदर्श घोटाला (2012)
इस घोटाले में मुंबई की कोलाबा सोसायटी में 31 मंजिल इमारत में स्थित फ्लैटों को बाजार की कीमतों से कम कीमत पर बेचा गया था। इस सोसायटी को सैनिकों की विधवाओं और भारत के रक्षा मंत्रालय के कर्मियों के लिए बनाया गया था। समय की अवधि में, फ्लैटों के आवंटन के लिए नियम और विनियमन संशोधित किए गए थे। इसमें महाराष्ट्र के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों- सुशील कुमार शिंदे, विलासराव देशमुख और अशोक चव्हाण के खिलाफ आरोप लगाये गये थे। यह जमीन रक्षा विभाग की थी और सोसायटी के लिये दी गई थी।

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