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UDAY से हुआ देश उजियारा, पीएम मोदी की सोच से बिजली कटौती से मिला छुटकारा

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UDAY यानि Ujwal DISCOM Assurance Yojana ने देश को बिजली की बदहाली से उबारना शुरू कर दिया है। योजना के लागू होने के मात्र दो साल हुए हैं, लेकिन इतने कम समय में ही बिजली कटौती की समस्या आधी से भी कम रह गई है। इस योजना के चलते राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों यानि DISCOMS की आर्थिक बदहाली के दिन दूर हो चुके हैं। इसका असर ये हुआ है कि प्रति दिन बिजली कटौती के घंटे 19 से घटकर 7 तक पहुंच चुके हैं।

UDAY लेकर आया नया सवेरा
देश में बिजली की जबरदस्त किल्लत और DISCOM की आर्थिक बदहाली को सुधारने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 5 नवंबर, 2015 को UDAY लागू की। इस योजना ने राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों को कर्ज से उबरने का एक रास्ता दे दिया। आज ये कंपनियां अपने ऋणों को वित्तीय संस्थानों और बैंकों के बॉन्ड में बदलकर कर्ज के बोझ से बाहर आ चुकी हैं। हाल की रिपोर्ट बताती है कि ये कंपनियां लोन के 87 प्रतिशत यानि 2,32,000 लाख करोड़ का बॉन्ड जारी कर चुकी हैं।

DISCOMS का घाटा कम हुआ
कर्ज की स्थिति में सुधार के साथ-साथ इस योजना के तहत, बिजली कंपनियों के नुकसान यानि AT&C को कम करने के लिए स्मार्ट मीटरिंग की व्यवस्था की गई है। इस तरह बिजली आपूर्ति पर आने वाले खर्च जिसे ACS कहा जाता है और बिजली आपूर्ति के खर्च की वसूली जिसे ARR कहा जाता है, के अंतर को भी पाटने की कोशिश की गई है। UDAY में 27 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश शामिल हैं। इसके तहत पिछले दो सालों में AT&C का नुकसान घटकर 20 प्रतिशत तक आ पहुंचा है। इसी तरह बिजली की आपूर्ति के खर्च और वसूली का भी अंतर घटकर मात्र 45 पैसे रह गया है, जो 2015-16 में 59 पैसा था। UDAY के लागू होने के बाद से राज्यों के बिजली वितरण कंपनियों का वार्षिक घाटा भी कम हो रहा है। 2016 में जहां इन कंपनियों को 51,340 करोड़ का नुकसान हुआ था, वहीं 2017 में यह घाटा 40, 295 करोड़ रुपये रह गया है।

UDAY से जनता को सीधा फायदा
राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों को मिल रहे फायदे का लाभ सीधे देश की जनता को मिल रहा है। इसी उद्देश्य से प्रधानमंत्री मोदी ने इस महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की थी। योजना से पहले जहां 18-19 घंटों की बिजली कटौती आम बात थी, वहीं योजना के लागू होने के दो साल के अंदर अब बिजली कटौती मात्र 7.45 घंटे ही रह गई है।

2014 के पहले थी कंगाली
2014 से पहले राज्यों की बिजली वितरण कंपनियां अभूतपूर्व 3,95,000 करोड़ रुपये के कर्ज के बोझ से दबी हुई थीं। हालत ऐसी हो चुकी थी कि बिजली का कुछ घंटे भी लगातार रहना एक बड़ी बात हो गई थी। 30 और 31 जुलाई 2012 का काला दिन, देश के मन में आज भी भय का अहसास करा जाता है, जब पूरे उत्तर भारत में बिजली, ग्रिड की खराबी के कारण बिजली सप्लाई ठप हो गई थी। ट्रेनें और मेट्रो तक रुक गयी थीं।

दरअसल पिछली यूपीए सरकार भ्रष्टाचार के दलदल में इस कदर फंसी हुई थी कि उसमें न निर्णय लेने की क्षमता बची थी और न ही योजनाओं को अमलीजामा पहनाने का हौंसला बचा था। 26 मई, 2014 के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस लकवाग्रस्त व्यवस्था में जान फूंकने का भागीरथ साहस दिखाया है। परिणाम धीरे-धीरे सामने आ रहा है।

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