Home विचार ‘शॉर्ट्स’ से ऊपर उठकर सोचिए राहुल जी !

‘शॉर्ट्स’ से ऊपर उठकर सोचिए राहुल जी !

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‘क्या संघ में कभी किसी महिला को स्कर्ट में देखा है?’ राहुल गांधी का यह बयान न सिर्फ उनकी सतही सोच को प्रकट करता है, बल्कि यह भी बताता है कि उनकी समझ का स्तर क्या है। अगर एक कदम और आगे बढ़कर विश्लेषण किया जाए तो जो बात सामने आती है, वह है- चिराग तले अंधेरा। संघ की साड़ी पहनने वाली महिलाओं की कुशलता, उनकी क्षमता पर शक करने वाले, उनकी पोशाक से उनकी सामर्थ्य आंकने वाले राहुल गांधी की अज्ञानता पर तो कोई भी टिप्पणी करना समय और ऊर्जा की बर्बादी है। उन्हें यह कौन समझाए कि संपूर्ण भारत के अधिकांश भाग में महिलाओं का पारंपरिक परिधान साड़ी ही है। यहां तक कि हमेशा आधुनिक पोशाक पहनने वाली महिलाएं भी सार्वजनिक जीवन में या पारंपरिक अवसर पर साड़ी पहनने को ही प्राथमिकता देती हैं। जब कभी कोई विदेशी महिला चाव से कोई भारतीय पोशाक पहनना चाहती है तो वह होती है- साड़ी।

भारत में रहकर भारतीयता तो समझिए

भारत में ही पैदा होने के बावजूद, राहुल गांधी भारत के बारे में इतनी सी बात नहीं जानते! अगर इसके पीछे कारण उनकी विदेशी परवरिश है तो भी एक सवाल, अत्यंत विनम्रता के साथ, उनसे पूछा जा सकता है। सोनिया गांधी जी एक विदेशी महिला हैं। अपने व्यक्तिगत ही नहीं, सार्वजनिक जीवन में भी उन्होंने सैकड़ों तरह की पोशाकें पहनी हैं, जिनमें जींस, स्कर्ट आदि सभी कुछ शामिल है और उस पर कभी किसी ने कोई ऊंगली नहीं उठाई। इसके बावजूद जब उन्होंने भारतीय राजनीति के सार्वजनिक जीवन में पदार्पण किया तो उन्होंने भारत के पारंपरिक परिधान को ही प्राथमिकता दी। वे हर मौके पर साड़ी में ही नजर आईं। अगर वे साड़ी की बजाय ‘शॉर्ट्स’ भी पहनकर राजनीतिक मंचों पर नजर आतीं, तब भी शायद ही किसी को आपत्ति होती, क्योंकि सोनिया गांधी जी भारतीय नहीं, विदेशी जमीन पर जन्मी हैं। फिर क्यों उन्होंने भारतीय जनता से ‘नजदीकी’ बढ़ाने के लिए साड़ी को ही चुना? अगर एक उदाहरण अपने घर में देखने के बावजूद राहुल गांधी साड़ी का महत्त्व नहीं समझ सकते तो तय है कि उनकी समझ को कोई नहीं बढ़ा सकता। फिर भी उन्हें कांग्रेस और संघ का फर्क समझना हो तो कुछ बातें तो वे जान ही सकते हैं, संघ की ‘सूट-साड़ीधारी’ महिलाओं के बारे में।

पहले जान तो लीजिए समिति को

राष्ट्रीय सेविका समिति की स्थापना राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना के 11 वर्षों बाद केशव बलिराम हेडगेवार ने वर्ष 1936 में की थी। मावशी केलकर इसकी पहली संस्थापक अध्यक्षा बनीं। वर्तमान में शांता अकक्का इसकी प्रमुख हैं, जिन्हें संघचालिका का सम्मान प्राप्त है। यह संघ की ही सहयोगी इकाई है। देश-भर में कुल 4 हजार से अधिक स्थानों पर इसकी शाखाएं लगती हैं। वर्तमान में लगभग 7 लाख से अधिक महिलाएं इसकी सक्रिय सदस्य हैं। इन्होंने जम्मू-कश्मीर के उजड़े हुए पंडितों, छत्तीसगढ़ की आदिवासी महिलाओं, बच्चों के हित में अनेक काम किये हैं। इनमें बड़ी संख्या प्रोफेशनल्स की है, सो उनकी काबिलियत पर कोई भी प्रश्न कोई ‘पप्पू’ ही उठा सकता है।

साहस ही है संघ का संस्कार

यह संघ का संस्कार ही है, जो इस बात में विश्वास करता है कि एक संस्कारित घर एक सक्षम महिला ही दे सकती है और वही घर फिर एक समर्थ-सशक्त समाज का निर्माण कर सकता है। यही बात ध्यान में रखकर संघ में महिलाओं के लिए अलग से सुबह-शाम शाखा लगती है, जिसमें उन के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास पर बल दिया जाता है। अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपनी परंपराएं, अपने नैतिक मूल्यों के प्रति सम्मान का भाव भी उनमें विकसित किया जाता है।  उन्हें आत्मरक्षा के गुर सिखाने के साथ-साथ किसी भी तरह की विषम परिस्थिति का सामना अपने दम पर करना भी सिखाया जाता है, जिसके लिए लाठी से लेकर तलवार और रायफल तक चलाने की ट्रेनिंग उन्हें दी जाती है। जूडो-कराटे व अन्य मार्शल आर्ट सिखाना भी इसी का भाग है। साथ ही आंतरिक विकास के लिए योग-ध्यान भी कराया जाता है। संघ की ही तरह इसका पथ संचलन भी निकलता है।

रसोई से देश की सुरक्षा तक

संघ की इस धारा ने कई विराट व्यक्तित्व वाली महिला नेता भी देश को दी हैं, जिनमें स्पीकर सुमित्रा महाजन, रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण, वसुंधरा राजे, उमा भारती, किरण महेश्वरी के अतिरिक्त कई अन्य राज्यों की महिला कैबिनेट मंत्री, विधायक शामिल हैं। जहां बतौर स्पीकर सुमित्रा महाजन पूरे सदन का संचालन कुशलता से करती हैं, वहीं बतौर रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण की निर्भिकता की झलक आए दिन किसी न किसी मंच से मिलती रहती है। इस संघ ने महिला शक्ति को हमेशा विशिष्ठ माना है, उसे आदर दिया है। संघ में महिलाओं को क्या दर्जा दिया जाता है, यह इन साहसी और आत्मविश्वास से भरी महिलाओं के उदाहरण से बड़ी ही आसानी से समझा जा सकता है। अब एक हाथ से रसोई में कलछी संभालने वाली और दूसरे हाथ से हथियार तक चलाने में समर्थ ये सभी सशक्त महिलाएं अपने जीवन में क्या खाना, क्या पहनना पसंद करती हैं, यह उनका निजी फैसला है, उनका अपना चयन है। दिलचस्प तो यह है कि यह सारे काम वे बिना शार्ट्स पहने साड़ी में ही बड़े आराम से कर लेती हैं।

‘मॉडर्न’ लोगों का पिछड़ापन

अब जरा एक नजर राहुल गांधी उस जगह पर भी डाल लें, जहां के ‘मॉडर्न’ परिवेश में उन्होंने परवरिश पाई है। वहां की विचारधारा में कितना दोगलापन है, क्या यह किसी को भी बताने की जरूरत है?  राहुल जी ने अपने यहां एक-दो नामों को छोड़कर किसी और ऐसे व्यक्ति को देखा ही नहीं है, जिसकी क्षमता पर वहां भरोसा किया जाता हो। दरअसल उन्हें केवल सर झुकाए खड़े चेहरे देखने की आदत है, ऐसे में किसी महिला पर तो क्या, किसी पुरुष पर ही भरोसा कर लें तो काफी है। जिस पार्टी के वे मुखिया बनने जा रहे हैं, वहां केवल ‘वंशजों’ की ही ‘ताजपोशी’ की परंपरा  रही है, चाहे उनकी अनुपस्थिति में उनकी खड़ाऊ से ही क्यों न काम चलाना पड़े।  सो राहुल जी आपकी दुविधा हम समझ रहे हैं, पर अब आप ‘बड़े’ हो गए हैं और अब अगर आपको अपने यहां कुछ भी सीखने को नहीं मिल रहा तो दूसरों से ही कुछ सीख लीजिए। विश्वास रखिए, महिलाओं की मजबूती उनकी पोशाक से नहीं, उनके दिमाग से तय होती है। सुंदरता के पैमाने बदल चुके हैं। आज शक्तिसंपन्नता ही सच्ची सुंदरता है…. पर राहुल जी, आप रहने ही दीजिए। शायद आपसे न होगा….

 

 

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