प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल केंद्र सरकार की ठोस कश्मीर नीतियों की वजह से कश्मीर में हालात बदल रहे हैं। वहां के निवासियों का मिजाज बदल रहा है। सेना और केंद्र सरकार पर भरोसा और विश्वास बढ़ा है। उसी का नतीजा है कि अब कश्मीर में शहीद सैनिक की अंतिम यात्रा पर पथराव नहीं होता, वहां की जनता का सैलाब उमड़ता है, पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगते हैं। जिनके हाथों में पत्थर होता था, उनके हाथों में खेल का कीट आ गया है।
शहीदों की अंतिम विदाई में उमड़ा कश्मीर, लगे पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे
जम्मू के सुजवां आर्मी कैंप में 10 फरवरी को हुए फिदायीन हमले में 6 जवान शहीद हुए जबकि जैश-ए-मोहम्मद के 3 आतंकी मारे गए। शहीद 6 जवानों में से पांच जवान कश्मीर से ही थे। इस फिदायीन हमले में एक नागरिक भी मारा गया। जैश-ए-मोहम्मद के हमदर्दों और कार्यकर्ताओं के गढ़ के तौर पर कुख्यात दक्षिणी कश्मीर के त्राल कस्बे के शहीद लांस नायक मोहम्मद इकबाल शेख और उनके पिता मोहिउद्दीन शेख ने इस हमले में अपनी जान कुर्बान की और वहां आए लोगों ने नम आंखों से उन्हें सुपुर्द-ए-खाक किया। शहीद मोहम्मद इकबाल शेख की दो साल पहले शादी हुई थी। 12 साल से सेना में थे। पहली बार उन्हें गृह राज्य में पोस्टिंग हुई थी। इसलिए उन्होंने पिता को कैंप में साथ रहने खासतौर से बुलाया था। अनंतनाग में भी यही मंजर था, जब वहां शहीद मंजूर अहमद देवा का पार्थिव शरीर पहुंचा। उन्हें भी हजारों लोगों ने नम आंखों के साथ विदा किया।
उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के लोलाब व हैहामा में भी शहीद हबीबुल्लाह कुरैशी व मोहम्मद अशरफ मीर को हजारों लोगों ने अंतिम विदाई दी। शहीदों के नमाज-ए-जनाजे में हजारों लोगों ने शामिल होकर नम आंखों से विदाई दी। इन जवानों की अंतिम यात्रा में उमड़ा भारी जनसमूह बता रहा था कि कश्मीर के लोगों में आतंक के खिलाफ कितना गुस्सा है। जनाजे में शामिल लोगों में पाकिस्तान के खिलाफ आक्रोश देखा गया। इस दौरान पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे गूंजे। इसी त्राल में 2016 में आतंकी बुरहानी वानी की मौत पर हिंसा भड़क उठी थी।
स्थानीय लोगों का बढ़ा भरोसा
भारतीय सेना के बारे में भले ही जो भी छवि गढ़ने की कुत्सित कोशिश की जाती रही हो, लेकिन जमीन पर हालात अलग है। कश्मीर के ज्यादातर लोगों को सेना पसंद हैं, उनके काम पसंद हैं और स्थानीय लोगों से उनका जुड़ाव पसंद है। सेना भी कश्मीरियों का भला करने में पीछे नहीं रहती है। आर्मी गुडविल स्कूल के तहत जरूरतमंदों को शिक्षा मुहैया करना हो या फिर सुपर-40 के जरिये प्रतिभाओं को नई धार देने की कोशिश, सब में सेना बढ़-चढ़ कर शामिल रहती है। सेना में युवाओं के भर्ती अभियान को भारी सफलता मिल रही है। कश्मीर में लड़कियां खेल रही हैं क्रिकेट और फुटबॉल। कट्टरपंथियों को कश्मीर से युवा जवाब दे रहे हैं और मुख्यधारा से जुड़ने को बेताब हैं।
जम्मू-कश्मीर की छात्राओं में शिक्षा को लेकर उत्सुकता
जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर की 30 छात्राएं भारतीय सेना द्वारा आयोजित ऑपरेशन सद्भावना के अंतर्गत देश के विभिन्न भागों का भ्रमण कर रही हैं। इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलीं। प्रधानमंत्री मोदी ने स्कूली छात्राओं से बालिकाओं की शिक्षा, स्वच्छ भारत, उनके सपने और उनकी अभिलाषाएं जैसे विभिन्न विषयों पर बातचीत की। प्रधानमंत्री ने कहा कि जम्मू कश्मीर के स्कूली बच्चों के साथ शिक्षा, स्वच्छ भारत और योग के लाभों पर विस्तार से बात हुई। उन्होंने कहा कि बच्चों में इस बात को लेकर काफी उत्सुकता थी कि केन्द्र सरकार लड़कियों की शिक्षा को लेकर क्या कदम उठा रही है।
पत्थरबाजी करने वाली लड़की बनी फुटबॉल टीम की कप्तान
प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं कि युवाओं के हाथों में पत्थर नहीं, किताबें हों, हुनर हो, रोजगार हो। मोदी नीति का असर ही है कि अब वहां के युवा आतंकवादी बनने की बजाय इंजीनियर बनना चाहते हैं, डॉक्टर बनना चाहते हैं। मोदी नीति का ही असर है कि श्रीनगर की गलियों में पुलिस पर पत्थर फेंकने वाली लड़कियों के गुट की अगुवाई करने वाली अफशां आशिक अब जम्मू कश्मीर महिला फुटबॉल टीम की कप्तान बन गयी हैं। यह एक स्वप्निल बदलाव है और यह एक तरह से कश्मीरियों के दिलों को जीतने की सरकारी दास्तां भी बयां करता है। इस 21 वर्षीय खिलाड़ी ने 22 सदस्यीय फुटबाल टीम के साथ केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की थी। 22 लड़कियों में 11 जम्मू-कश्मीर की हैं, जिनमें से 4 जम्मू क्षेत्र और 2 लद्दाख से हैं।
Met the young and energetic girls of J&K’s first ever women football team. They are highly motivated & driven when it comes to football. Playing the role of new age ‘Gender Benders’ these girls are setting an example for others to follow. I wish them success and a great future. pic.twitter.com/3ZlMwhzkXm
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) December 5, 2017
मोदी लहर का असर, कश्मीरी युवाओं पर चढ़ा खेल का जादू
कश्मीरी लोग चाहते हैं कि देश के बाकी भागों की तरह उनके राज्य में भी जन-जीवन सामान्य हो जाए। इस विषय में मोदी सरकार द्वारा खेलों को बढ़ावा देने वाले प्रयासों का बड़ा योगदान है। हाल ही में कश्मीर से 66 किमी. दूर बांदीपोरा डिस्ट्रिक्ट के शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में, मोहम्मदन स्पोर्ट्स सोपोर और रियल कश्मीर फुटबॉल क्लब के बीच रात में हुए एक फुटबाल मैच को देखने के लिए भारी संख्या में लोग जमा हुए। 90 मिनट तक चले इस मैच में दर्शकों से अटे पड़े स्टेडियम में शोर तो था, मगर वह दहशत का नहीं, बल्कि खेल-भावना से भरे उल्लास का था। ऐसा हो पाने का सपना देखने वाली मोदी सरकार ने अपने पहले ही बजट में जम्मू-कश्मीर में खेल के बुनियादी ढांचों के विकास के लिए 200 करोड़ रुपये दिये थे। राज्य के युवाओं को विकास की मुख्यधारा से जोड़ना इन प्रयासों का मुख्य लक्ष्य है।
इस योजना के तहत 70 करोड़ रुपये की लागत से 500 खिलाड़ियों के लिए खेल छात्रावास का निर्माण होना है। साथ ही जम्मू और कश्मीर के इनडोर स्टेडियम का विकास, 2 करोड़ रुपये की लागत से श्रीनगर के मानसबल में जन खेल केंद्र का निर्माण तथा इसके अतिरिक्त राज्य में आठ स्थानों पर चार करोड़ रुपये की लागत से इनडोर स्पोर्टस कॉम्पलेक्स का निर्माण शामिल है। यही नहीं राज्य में गांव के स्तर पर भी खेल प्रतियोगिताओं को आयोजित करने के लिए केंद्र सरकार ने पांच करोड़ रुपये अलग से दिये हैं।
नहीं मिल रहा आतंकी संगठनों को नया कमांडर
केंद्र सरकार की पहल पर सेना ने घाटी से आतंकियों का सफाया करने के लिए ऑपरेशन ऑल आउट चलाया। इसमें सेना ने अब तक 218 आतंकियों को मार गिराया जबकि 911 आतंकियों को गिरफ्तार किया। आतंक के खिलाफ लड़ाई में जम्मू कश्मीर पुलिस और सेना के 81 जवान भी शहीद हुए। हालत यह है घाटी में लश्कर, जैश और हिज्बुल के टॉप कमांडर के एक-एक करके मारे जाने के बाद से आतंकियों की कमर टूट गई है। कश्मीर घाटी में पाकिस्तान समर्थित लश्कर ए तैयबा के शीर्ष नेतृत्व का सफाया हो गया है। हालात ये हैं कि अब आतंकी संगठनों को नये कमांडर भी नहीं मिल रहे।
पीएम मोदी की नीति से आतंकी गुटों में पड़ी बड़ी फूट
लगातार मारे जा रहे आतंकियों का असर आतंकी संगठनों की एकता पर भी पडऩे लगा है। सेना के लगातार हमलों से बौखलाए आतंकी संगठन लश्कर-ए तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन और जैश-ए मोहम्मद के बीच आपसी जंग छिड़ गई है। हिजबुल मुजाहिद्दीन और अलकायदा एक दूसरे पर पुलिस और सुरक्षा बलों से मिलीभगत का आरोप लगा रहे हैं। हिजबुल मुजाहिद्दीन ने पोस्टर्स के जरिये अपने पूर्व कमांडर जाकिर मूसा पर आरोप लगाये हैं कि वह कश्मीरियों की हत्या में भारतीय सेना की मदद कर रहा है। अब हालत यह है कि यूनाइटेड जेहाद कॉउंसिल और हिजबुल मुजाहिदीन के चीफ पद से सैयद सलाउद्दीन को हटाने की मांग जोर पकड़ने लगी है।वहीं कश्मीर के लोग भी अब यह मान रहे हैं कि आतंकियों का मंसूबा कश्मीर को स्वतंत्र करवाना नहीं, बल्कि वहां इस्लामी साम्राज्य कायम करना है।
‘गले लगाने’ की प्रक्रिया को मिल रही सफलता
प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से कहा था कि न गाली से, न गोली से… कश्मीर की समस्या गले लगाने से हल होगी। उन्होंने शांति की पहल की और केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर दिनेश्वर शर्मा को कश्मीर में शांति वार्ता के लिए भेजा भी। उन्होंने सभी स्टेक होल्डर्स से बातचीत की प्रक्रिया आगे भी बढ़ाने का प्रयास भी किया। दूसरी ओर सुरक्षा एजेंसियां भी सिर्फ आतंकियों को मार गिराने में सक्रिय नहीं हैं, बल्कि स्थानीय युवकों को पकड़ने, उनके आत्मसमर्पण को विश्वसनीय बनाने से लेकर नये लड़कों को आतंकी संगठनों में शामिल होने से रोकने के मोर्चे पर काम कर रही है। इसकी सफलता इस बात से समझी जा सकती है कि बीते वर्ष 60 लड़कों को आतंकी संगठनों की चंगुल से बचाया और उन्हें मुख्य धारा से जोड़ा। वहीं, 11 आतंकियों ने हथियार सहित सुरक्षा बलों के समक्ष आत्मसमर्पण किया है।