सूचना के अधिकार के तहत गृह मंत्रालय से मांगी गई जानकारी को आधार बनाते हुए मीडिया के एक विशेष वर्ग ने मोदी सरकार में आतंकी घटनाएं बढ़ने की खबरें छापी हैं। इन खबरों के अनुसार मनमोहन सिंह के आखिरी तीन वर्षों 705 आतंकी घटनाओं में 59 नागरिक मारे गए थे और 105 जवान शहीद हो गए थे। वहीं मोदी सरकार के तीन वर्षों में 812 घटनाओं में 62 नागरिकों की मौत हुई और सुरक्षाबलों के 183 जवान शहीद हो गए। लेकिन ये आंकड़े आधे-अधूरे हैं।
दरअसल मोदी सरकार में आतंकियों के समूल सफाये का अभियान चल रहा है और बीते तीन वर्षों में यूपीए सरकार की तुलना में मारे गए आतंकियों की संख्या 120 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है। लेकिन मीडिया का एक धड़ा इन तथ्यों को छिपा रहा है। लेकिन आइए हम इन दावों की सच्चाई जानते हैं।
यूपीए की तुलना में 120 प्रतिशत अधिक आतंकी ढेर
बीते तीन सालों में जम्मू कश्मीर में आतंकियों पर लगाम कसने में बड़ी सफलता मिली है। 2017 में 11 अक्टूबर तक घाटी में 156 आतंकियों को मार गिराया गया है। अगर बीते साढ़े तीन सालों के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि 524 आतंकियों को ढेर कर दिया गया है। यानी यूपीए सरकार के आखिरी तीन सालों के 239 आतंकियों की तुलना में 120 प्रतिशत से अधिक आतंकियों को ढेर कर दिया गया है।
वर्ष | मारे गए आतंकियों की संख्या |
2011 | 100 |
2012 | 72 |
2013 | 67 |
2014 | 110 |
2015 | 108 |
2016 | 150 |
2017 | 156 |
90 से अधिक पाकिस्तानी आतंकी ढेर
राज्य पुलिस, सेना और सीआरपीएफ के साझा ऑपरेशनों से बड़ी सफलता मिल रही है। आतंकियों के विरुद्ध कार्रवाई के तहत जनवरी से 11 अक्टूबर तक 156 आतंकी मारे जा चुके हैं। इन आतंकियों में से लश्कर-ए-तैयबा, हिज्बुल मुजाहिदीन और अल-बद्र के टॉप कमांडर थे। इतना ही नहीं इनमें लगभग 90 आतंकी पाकिस्तानी थे।
आतंकमुक्त कश्मीर अभियान
सेना के एक्शन के कारण एक तो नये आतंकवादियों की भर्ती नहीं पा रही है ऊपर से हाल ये है कि जितनी भर्ती होते हैं उससे दोगुने आतंकवादियों को ढेर कर दिया जा रहा है। दरअसल जम्मू और कश्मीर में मजबूत ग्राउंड इंटेलिजेंस की सहायता से जारी आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई से आतंकी संगठनों की कमर टूट गई है। इतना ही नहीं राज्य में अलगाववादी अब अपनी गतिविधियों के लिए विदेशी घुसपैठियों पर अधिक निर्भर रह रहे हैं।
आतंकियों की संख्या में भारी कमी
इंटेलिजेंस रिकॉर्ड के अनुसार सितंबर के आखिरी हफ्ते तक इस साल जम्मू कश्मीर में जहां 71 आतंकियों की भर्ती हुई है, वहीं 156 आतंकियों को सैन्य ऑपरेशन में मार गिराया गया है। पाकिस्तान और PoK से इस साल जुलाई तक 78 आतंकवादियों ने घुसपैठ की है। वहीं पिछले वर्ष 2016 में यह आंकड़ा कुल मिलाकर 123 था। इस ट्रेंड को देखते हुए घाटी में सक्रिय आतंकियों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है।
कुख्यात आतंकवादी किए जा रहे ढेर
बीते तीन महीनों में ही कई बड़े आतंकी ढेर हो चुके हैं। हाल में जो आतंकी मारे गए हैं उनमें सबजार अहमद बट्ट हिजबुल-मुजाहिदीन का कमांडर था। जुनैद लश्कर का कमांडर था। लश्कर का डिविजनल कमांडर अबू दुजाना के अलावा बशीर वानी, सद्दाम पद्दर, मोहम्मद यासीन, अल्ताफ, अबू इस्माइल और जैश-ए-मोहम्मद का चीफ ऑपरेशनल कमांडर उमर खालिद भी मारा गया है। ये सब सुरक्षा बलों की ‘मोस्ट वांटेड’ सूची में थे। इसके साथ ही अलकायदा के एक संगठन के चीफ बन चुके जाकिर मूसा जैसों को खत्म करने के लिए ठोस प्लान तैयार है।
खुफिया एजेंसियों में बढ़ा तालमेल
कुछ महीनों पहले तक कश्मीर में विभिन्न सुरक्षा बलों के अलग अलग इंटेलिजेंस मशीनरी काम कर रही थी। लेकिन बाद में सुरक्षा बलों ने आपस में तालमेल बिठाते हुए एक दूसरे से इंटेलिजेंस शेयरिंग किया है। इसी का नतीजा है कि कश्मीर में आतंक के पांव उखड़ने लगे हैं। विदेशी और स्थानीय आतंकी गिरोहों के बीच टकराव होने के कारण हमें गोपनीय सूचनाएं मिलती हैं, जिनके आधार पर सुरक्षा बल कार्रवाई करते हैं।
‘खोजो और मारो’ का अभियान
11 जुलाई को अमरनाथ तीर्थयात्रियों पर हमले के बाद अब कश्मीर में आतंकियों को जिंदा पकड़ने की बाध्यता को खत्म करते हए ‘खोजो और मारो’ की नयी नीति बनाई गई है। इसके साथ ही साथ दूसरी रणनीति भी शुरू हो चुकी है, ये रणनीति है आबादी में ‘घेरो, जंगल में मारो’। सरकार का मानना है कि इस रणनीति के तहत कश्मीर घाटी में आतंकियों का सफाया कर पाने में कामयाब हो पाएगी।
अलगाववादियों पर शिकंजा, पत्थरबाजी घटी
कश्मीर घाटी में पत्थरबाजी की साजिश की सच्चाई दुनिया के सामने पहले ही आ चुकी है। ये साफ है कि पत्थरबाजों को अलगावादी नेताओं द्वारा फंडिंग की जाती है और बेरोजगार नौजवानों को गुमराह कर पत्थरबाजी करवाई जाती है। पाकिस्तान इसके लिए बाकायदा फंडिंग भी करता है। दरअसल पहले पत्थरबाजों को आतंक संगठनों से पैसे मिलते थे, लेकिन पिछले आठ-दस महीनों से पत्थरबाजी की घटना देखने को नहीं मिली है। जाहिर है अलगाववादियों पर शिकंजा कसे जाने से यह संभव हो पाया है।