Home बिहार विशेष तेजस्वी जी!… जानिए कब-कब सबसे बड़ी पार्टी को नहीं मिला है मौका

तेजस्वी जी!… जानिए कब-कब सबसे बड़ी पार्टी को नहीं मिला है मौका

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बिहार में नीतीश कुमार महागठबंधन का साथ छोड़कर एनडीए के सहयोग से फिर से मुख्यमंत्री बन गए हैं। नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के राज्यपाल के फैसले पर राजद नेता और लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव ने सवाल उठाए। तेजस्वी ने कहा कि सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सरकार बनाने का मौका हमें मिलना चाहिए था। तेजस्वी ने राज्यपाल के फैसले के खिलाफ अदालत जाने की भी बात कही है। लेकिन बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री को यह पता होना चाहिए कि सरकार बनाने का न्योता देना राज्यपाल के विवेक पर है और वो यह तय कर सकते हैं कि कौन स्थायी सरकार दे सकता है।

सबसे बड़े दल की बाध्यता नहीं

ये जरूरी नहीं है कि सबसे बड़े दल को ही सरकार बनाने के लिए बुलाया जाए। 1996 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली बीजेपी को राज्यपाल रोमेश भंडारी ने सरकार बनाने के लिए आमंत्रित नहीं किया। इसके खिलाफ मामला अदालत में भी पहुंचा था। लेकिन 19 दिसम्बर, 1996 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि विधानसभा के सबसे बड़े दल को सरकार बनाने को कहने के लिए राज्यपाल बाध्य नहीं हैं। राज्यपाल अपने विवेक के अनुसार यह तय कर सकता है कि किस दल या गठबंधन को विधानसभा का विश्वास प्राप्त है या हो सकता है।

वैसे यह पहली बार नहीं हुआ है। आजादी के बाद से कई बार ऐसा हुआ है कि राज्यपाल ने सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने का निमंत्रण नहीं दिया। आइए कुछ पर नजर डालते हैं-

गोवा में पर्रिकर सरकार को शपथ
सुप्रीम कोर्ट ने गोवा में मनोहर पर्रिकर को शपथ दिलाने के  राज्यपाल मृदुला सिन्हा के फैसले को सही ठहराया था। यहां राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने मनोहर पर्रिकर को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था। गोवा विधानसभा में कुल 40 सीटों में से बीजेपी को 13 जबकि कांग्रेस को 17 सीटें मिली थीं। लेकिन बीजेपी ने बाकी दलों के साथ मिलकर अपना 22 विधायकों का समर्थन जुटा लिया। जबकि कांग्रेस ऐसा करने में नाकाम रही। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने भी राज्यपाल के फैसले को सही ठहराया।

केजरीवाल सरकार
हाल ही में 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी 32 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई थी। 70 सीटों वाले इस विधानसभा चुनाव में आप को 28 और कांग्रेस को सिर्फ आठ सीटें मिली थीं। लेकिन तत्कालीन राज्यपाल नजीब जंग ने अरविंद केजरीवाल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था।

शिबू सोरेन सरकार
दिल्ली से पहले 2005 में झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन को 36 सीटें मिली थीं। जबकि कांग्रेस-जेएमएम गठबंधन को 81 सदस्यीय विधानसभा में से सिर्फ 26 सीटें मिली थीं। लेकिन राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने जेएमएम प्रमुख शिबू सोरेन को सरकार बनाने के लिए कहा था।

कर्नाटक में धरम सिंह सरकार
कर्नाटक के 2004 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 224 में से 79 सीटें मिली। कांग्रेस को 65 सीटें और जेडीएस को 58 सीटें मिली थीं। लेकिन राज्यपाल टीएन चतुर्वेदी ने कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। जिसने जेडीएस के साथ मिलकर सरकार बनाई और धरम सिंह मुख्यमंत्री बने।

यूपी में बीजेपी को मौका नहीं
उत्तर प्रदेश में 1996 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 176 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी। लेकिन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने बीजेपी को आमंत्रित ना करके राज्यपाल शासन लगा दिया।

मुलायम सिंह सरकार
इसके पहले 1993 में भी राज्यपाल ने उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी को मौका नहीं दिया था। बीजेपी को 178 सीटें मिली थी। जबकि समाजवादी पार्टी को 109 सीटें और बसपा को 67 सीटें मिली थीं। दोनों की सीटें मिलाकर भी बीजेपी से कम थी लेकिन सरकार बनाने का मौका मिला मुलायम सिंह यादव को।

हरियाणा में भी राज्यपाल की मर्जी
सबसे बड़ी पार्टी ओर गठबंधन के हिसाब से 1982 में हरियाणा में 90 विधानसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में बीजेपी-लोकदल को 36 सीटें मिली। कांग्रेस को एक कम 35 सीटें मिली थीं। लेकिन राज्यपाल जीडी तपासे ने कांग्रेस को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया।

राजस्थान में सुखाड़िया सरकार
1967 में राजस्थान विधानसभा चुनाव में गैर कांग्रेसी गठबंधन को 93 और कांग्रेस को 88 सीटें मिली थी। लेकिन राज्यपाल डॉ संपूर्णानंद ने कांग्रेस के मोहनलाल सुखाड़िया को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया।

मद्रास में सी राजगोपालाचारी सरकार
1952 के मद्रास विधानसभा चुनाव (14 जनवरी 1969 के बाद तमिलनाडु विधानसभा ) में कांग्रेस को 312 में से 155 सीटें मिली थी जबकि यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट को उससे ज्यादा 166 सीटें मिली थीं। फिर भी राज्यपाल श्री प्रकाशा ने कांग्रेस के सी राजगोपालाचारी को आमंत्रित किया।

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