Home समाचार सावधान! फिर आ रही केजरीवाल की ‘नौटंकी’, होगा दिल्लीवालों का बेड़ा गर्क

सावधान! फिर आ रही केजरीवाल की ‘नौटंकी’, होगा दिल्लीवालों का बेड़ा गर्क

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एक मार्च से दिल्लीवालों की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। पानी की समस्या हो, ट्रैफिक की समस्या हो या फिर शिक्षा से जुड़ी कोई परेशानी – इसे दूर करने के लिए 1 मार्च के बाद आपको अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्रियों के धरने के खत्म होने का इंतजार करने पड़ेगा। दरअसल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 1 मार्च से धरना पॉलिटिक्स शुरू कर रहे हैं। सत्ता में चार साल गुजारने के बाद उन्हें अब तक दिल्ली के पूर्ण राज्य न होने की बात याद नहीं आई। अब जब लोकसभा चुनाव सिर पर है। संसद की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए खत्म कर दी गई है तो केजरीवाल ने 1 मार्च से धरना देने का ऐलान किया है। गौरतलब है कि जब सरकार धरने पर बैठती है तो एक तरह से पूरा प्रशासनिक अमला बैठ जाता है। राज्य की सभी कार्यवाहियां स्थगित हो जाती हैं। विकास के सारे काम रुक जाते हैं। ऐसे में लोगों ने इसे अभी से केजरीवाल की नौटंकी कहना शुरू कर दिया है।

सीएम रहते पहले भी धरना दे चुके हैं केजरीवाल

जनवरी, 2015 में केजरीवाल ने रेल भवन के सामने अपने मंत्रियों के साथ दिल्ली पुलिस को लेकर धरना दिया था। लगातार 10 दिनों तक जब इससे दिल्लीवालों की परेशानी बढ़ गई, तब उन्होंने बिना नतीजे के धरना खत्म किया। 10 जून 2018 को उन्होंने उपराज्यपाल के घर पर ही धरना देना शुरू कर दिया। करीब 9 दिनों तक चलने वाले धरने से फिर दिल्ली वालों को बेहाल होना पड़ा।

अन्ना के साथ 2011 में किया था आंदोलन 

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए एक मार्च से आंदोलन करने की घोषणा की है। लेकिन दिल्लीवालों के लिए यह एक नौटंकी से ज्यादा कुछ नहीं है। क्योंकि अरविंद केजरीवाल का आंदोलन हो या धरना दिल्लीवालों का नुकसान ही हुआ है। पहले आंदोलन के साथ-साथ लोग धोखा भी देख चुके हैं। भ्रष्टाचार और लोकपाल के लिए अन्ना के साथ आंदोलन कर केजरीवाल ने जो धोखा दिया उससे लोगों का आंदोलन से ही भरोसा उठ गया है। इसलिए लोग अभी से ही इसे नौटंकी कहना शुरू कर दिया है। 2011 में अरविंद केजरीवाल ने अन्ना के साथ मिलकर भ्रष्टाचार के खिलाफ किया था आंदोलन। लेकिन आंदोलन के दौरान देश की जनता से राजनीति से दूर रहने का वादा एक साल बाद ही 2012 में तोड़ दिया। वादाखिलाफी करते हुए अन्ना को धोखा देकर राजनीतिक पार्टी बना ली। बाद में तानाशाही के चलते बारी-बारी से पुराने सहयोगियों को कर दिया पार्टी से बाहर। इस प्रकार केजरीवाल ने युवाओं के मन में आंदोलन पर ही बट्टा लगा दिया।

 

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