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कभी था कांग्रेस का एकछत्र राज, अब जादुई आंकड़े के बराबर चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार बनने के बाद से कांग्रेस का जनाधार सिमटता ही जा रहा है। कांग्रेस के सिमटते जनाधार का ही नतीजा है कि आगामी लोकसभा चुनाव कम से कम सीटों पर कांग्रेस पार्टी अपना प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारेगी। ऐसा पहली बार होगा कि कांग्रेस 50 फीसदी से भी कम सीटों पर चुनाव लड़ेगी। ‘सबका साथ सबका विकास’ के सिद्धांत पर चलने वाली मोदी सरकार से सीधे-सीधे टकराने से भी कांग्रेस कतरा रही है।

महज 250 सीट पर चुनाव लड़ेगी कांग्रेस!
लोकसभा चुनाव 2014 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में कांग्रेस को कड़ी शिकस्त मिली और केंद्र की सत्ता से कांग्रेस पार्टी बाहर हो गई। तब से लगातार कांग्रेस पार्टी चुनाव हार रही है। उसका जनाधार सिमट रहा है। कम होते जनाधार के बीच कांग्रेस पार्टी ने एके एंटनी के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई है। एंटनी कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर आगामी लोकसभा चुनाव 2019 को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष अंतिम निर्णय लेंगे। पार्टी सूत्रों की मानें तो कमेटी ने चुनाव को लेकर ब्लू प्रिंट तैयार कर लिया है। ब्लू प्रिंट के अनुसार आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी मात्र 250 सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारेगी। ऐसा हुआ तो आजादी के बाद ऐसा पहली बार होगा कि कांग्रेस पार्टी 50 फीसदी सीटों पर भी चुनाव नहीं लड़ेगी।

सिर्फ दो राज्यों में है कांग्रेस की सरकार!
कभी पूरे देश में राज करने वाली कांग्रेस आज महज सिर्फ पंजाब और पुडुचेरी में सिमट गई है। कर्नाटक में करारी हार मिलने के बाद भी कांग्रेस यहां सत्ता की भागीदार बनने के लिए कांग्रेस ने नैतिकता की सारी हदों को पार गई। कर्नाटक में भाजपा को सत्ता से रोकने के लिए जनादेश को घोंटने का काम कांग्रेस ने किया है।

क्षेत्रीय पार्टियों से समझौता करने को मजबूर 
कभी आई का मतलब इंदिरा, इंदिरा यानि इंडिया होता था। कांग्रेस और उसके नेता इतने ऐरोगेंट कि न्यायपालिका ने इंदिरा गांधी के जीत के नतीजे को हार में बदल दिया तो पूरे देश में आपातकाल लागू कर दिया। देश के लिए यह लोकतंत्र का काला अध्याय है। उस पार्टी से जनता इतनी विमुख हुई कि कांग्रेस को लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए 21 से अधिक क्षेत्रीय पार्टियों के साथ तालमेल बनाने के लिए मोल-भाव करने को मजबूर होना पड़ रहा है।

सहयोगियों की बैसाखी के बिना कांग्रेस का नहीं है कोई वजूद
करीब 28 वर्ष पहले 1989 में उत्तर प्रदेश और बिहार में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी, लेकिन उसके बाद जब क्षेत्रीय दलों का उभार हुआ तो कांग्रेस दोनों राज्यों में अपने दम पर कभी भी सरकार नहीं बना पाई। हालांकि जब भी सरकार में शामिल रही है तो क्षेत्रीय पार्टियों की छोटी सहयोगी बनकर। जब भी कांग्रेस ने अकेले दम पर चुनाव लड़ा उसे मुंह की खानी पड़ी। 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में कांग्रेस पार्टी ने अकेले दम पर चुनाव लड़ा था और सिर्फ दो सीटें ही जीत पाई थी, एक सोनिया गांधी की और दूसरी राहुल गांधी की। पिछले विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर 105 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, और जीत मिली सिर्फ 7 सीटों पर। सीटों के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे में कांग्रेस की यह हालत आगे भी बदलती नजर नहीं आ रही है। बड़ा सवाल यह है कि सहयोगियों की बैसाखियों के भरोसे क्या कांग्रेस का केंद्र में दोबारा लौटने का सपना पूरा हो पाएगा?

कई राज्यों में संगठन के नाम पर कुछ भी नहीं
कहने को कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है, देश पर सबसे ज्यादा वक्त तक शासन करने वाली पार्टी है, लेकिन आज इस पार्टी की हालत बेहद खराब हो चुकी है। देश की सत्ता हासिल करने में उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों का अहम योगदान होता है। कहा जाता है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। आज यूपी और बिहार दोनों में कांग्रेस का संगठन बेहद लचर हालत में है। हालत ये है कि जिस उत्तर प्रदेश से जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी चुनाव जीत कर प्रधानमंत्री बने और अब सोनिया और राहुल गांधी खुद चुनाव जीतते हैं, वहां कांग्रेस के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं है। राज बब्बर जो यूपी में कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, वो पहले समाजवादी पार्टी में थे, वहीं उनसे पहले कांग्रेस की अध्यक्ष रही रीता बहुगुणा जोशी, बीजेपी में जा चुकी हैं और सरकार में मंत्री भी हैं। 

पश्चिम बंगाल में वेंटिलेटर पर कांग्रेस
कांग्रेस मुक्त भारत के नारों के बीच पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का जीवन वेंटिलेटर पर आ गया है। पश्चिम बंगाल के उलुबेरिया संसदीय क्षेत्र और नोआपोरा विधानसभा क्षेत्र का फरवरी, 2018 में उपचुनाव हुए। इस उपचुनाव परिणाम ने यह बात साबित कर दिया है। उलुबेरिया संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में लगभग साढ़े 13 लाख मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया लेकिन कांग्रेस को सिर्फ 23 हजार वोट मिले यानि दो फीसदी भी कांग्रेस को वोट नहीं मिले। 

घोटालों के केंद्र में नेहरू-गांधी खानदान
आजादी के बाद से देश पर ज्यादातर समय कांग्रेस का शासन रहा है और कांग्रेस की कमान नेहरू-गांधी खानदान के हाथ में रही। कांग्रेस और नेहरू-गांधी परिवार ने पूरे छह दशक तक जमकर देश को लूटा है। अगर गांधी परिवार की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार के दौरान ये घोटाले न हुए होते तो भारत आज विश्व-महाशक्ति होता। कांग्रेस की सरकारों के तहत हुए घोटालों की सूची बहुत लंबी है। जीप घोटाला से शुरू हुई और अगस्ता वेस्टलैंड स्कैम, बोफोर्स घोटाला, नेशनल हेराल्ड घोटाला, जमीन घोटाला… न जाने कितने ऐसे स्कैम हैं, जो कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से जुड़े हैं। ये सारे मामले वे हैं, जो सोनिया गांधी, राहुल गांधी, रॉबर्ट वाड्रा दिवंगत राजीव गांधी जैसे नामों से सीधे जुड़े हैं।

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