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जिन्नावादी सोच के साइड इफेक्ट :  AMU के छात्रों को चाहिए देश तोड़ने की आजादी

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आतंकवादी मन्नान वानी कश्मीरी छात्रों ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में नमाज ए जनाजा पढ़ना चाहा। जिसके बाद  दो नामजद और एक अज्ञात छात्र के खिलाफ देशद्रोह का केस दर्ज हुआ है। यूनिवर्सिटी ने भी 9 छात्रों को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है। इसी के विरोध में यहां पढ़ने वाले 1200 कश्मीरी छात्रों ने यूनिवर्सिटी छोड़ने की धमकी दी है। पूर्व छात्रसंघ नेता सज्जाद सुभान ने एक चिट्ठी लिखकर एएमयू प्रशासन को चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगें नहीं सुनी गईं तो 1200 कश्मीरी छात्र अपनी डिग्री छोड़कर कश्मीर वापस चले जाएंगे। जाहिर है एएमयू में देशद्रोही नारों की गूंज सुनाई दे रही है।

आपको बता दें कि ये वही अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी है जहां पिछले दिनों मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीरों को लेकर बवाल हुआ था। तब कांग्रेस, वामपंथी और जिन्ना समर्थकों ने कहा था कि जिन्ना की एक तस्वीर से कोई फर्क नहीं पड़ता।  अब इसी यूनिवर्सिटी में आतंकवादी के समर्थन में आवाज उठती है और मुस्लिम छात्र उसके लिए शोक सभा रखते हैं। जब कार्रवाई होती है तो यूनिवर्सिटी प्रशासन को ही धमकी दी जाती है। इन्हें भारत से आजादी के नारे लगाने की इजाजत चाहिए और भारत के टुकड़े करने की आजादी चाहिए। जाहिर है ये जिन्नावादी सोच का ही साइड इफेक्ट है।

आपको बता दें कि देश बंटवारे की मांग जब जोरों पर थी और उसकी अगुआई मोहम्मद अली जिन्ना कर रहे थे तो एक बड़ा दिलचस्प वाकया सामने आया था। जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, ”एक क्या एक हजार जिन्ना भी पाकिस्तान नहीं बना सकते।” इसका जवाब देते हुए जिन्ना ने कहा था, ”पाकिस्तान का जन्म तो तभी हो गया था, जब पहले हिंदू का धर्म परिवर्तन करके उसे मुसलमान बना गया था।” दरअसल जिन्ना ने ये बात कहकर अपनी दूरदर्शिता का परिचय दिया था। जाहिर है कुछ दिन के बाद पाकिस्तान हकीकत बना और जवाहर लाल नेहरू गलत साबित हुए।

विभाजन की मांग के वक्त डॉ अंबेडकर जैसे दूरदर्शी नेता भी थे, जिन्होंने धर्म के आधार पर बंटवारे का समर्थन किया तो इस शर्त पर कि पूरा का पूरा स्थानांतरण हो जाए। यानि भारत में रहने वाले मुसलमान पाकिस्तान चले जाएं और पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू भारत में चले आएं। हालांकि महात्मा गांधी और पंडित नेहरू ने उनकी बात अनसुनी कर दी और मुसलमानों को भारत में रहने दिया। इस निर्णय का दुष्परिणाम यह है कि आजादी के समय पाकिस्तान में रहने वाली करीब 23 प्रतिशत हिंदू घटकर महज 1.5 प्रतिशत रह गए हैं, जबकि भारत में तब महज तीन प्रतिशत मुसलमान बढ़कर आज बीस प्रतिशत आबादी का हिस्सा हैं। जाहिर है यही रफ्तार रही तो आने वाले कुछ समय के बाद भारत को ‘मुगलिस्तान’ बनने से रोक पाना असंभव होगा।

धर्मनिरपेक्ष दिखने की होड़ में देशहित से खिलवाड़
बाबासाहेब का स्पष्ट मत था कि भारत धर्म निरपेक्ष राष्ट्र नहीं होगा, लेकिन कांग्रेस ने संविधान के मूल प्रस्तावना में ही संशोधन कर दिया है। इसमें कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और अखंडता शब्द को अलग से जोड़ दिया। आप संविधान के मूल प्रस्तावना को यहां देख सकते हैं। प्रस्तावना का मूल – ”हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य के लिए तथा उस के समस्त नागरिकों को – सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिये, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प हो कर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी)  को एतदद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधि-नियमित और आत्मार्पित करते हैं।’’ जाहिर है इसमें कहीं भी धर्मनिरपेक्ष शब्द नहीं है, लेकिन कांग्रेस की कुनीति के कारण आज देश में आबादी के हिसाब से एक और विभाजन की तस्वीर उभर रही है।

हिंदुओं को अपमानित करने का राजनीतिक खेल
कठुआ में बच्ची के साथ जुल्म पर जिस तरह की राजनीति हुई उसने न सिर्फ देश के सम्मान को नुकसान पहुंचाया बल्कि देश के करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं को भी ठेस पहुंचाई। कैसे एक घटना को हिंदू-मुस्लिम रंग दे दिया गया और हिंदू, हिंदुत्व और मंदिरों को टारगेट कर लिया गया। हर वारदात को हिंदू-मुस्लिम एंगल देने की कोशिश की जा रही है और हिंदुओं को नीचा दिखाने का काम किया जा रहा है।

असम और पश्चिम बंगाल की पट्टी में बढ़ती मुस्लिम आबादी
पिछले कुछ सालों में मीडिया की पक्षपाती और संकीर्ण दृष्टि के कारण मीडिया का एक वर्ग भयंकर रूप से ‘दोहरेपन’ का शिकार है। एक ओर तो छोटी-मोटी बातों पर भी ये राष्ट्रीय बहस खड़ी कर देते हैं। ऐसा लगने लगता है कि मानो देश में आपातकाल आ गया है, वहीं दूसरी ओर केरल, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में बेरहमी से किए गए हत्याओं पर भी चुप्पी साधे रहते हैं। पश्चिम बंगाल में 8000 गांव हिंदू विहीन हो गए, यह बात मीडिया को नहीं दिखती है। दर्जनों जिलों में आबादी का समीकरण बिगड़ गया और हिंदुओं पर जुल्म की खबरें आम हो गई हैं, लेकिन मीडिया नहीं दिखाता है। असम और बंगाल में भी बीसीयों जिले मुस्लिम बहुल हो गए हैं और हिंदू आबादी घटती जा रही है, लेकिन मीडिया इस सच्चाई से भी मुंह मोड़े हुए है। इसी दोहरेपन की वजह से आज पत्रकारिता जैसा पवित्र पेशा भी संदेह के घेरे में है।

भारत को मुगलिस्तान बनाने की साजिश
बीते दिनों अमेरिकी पत्रकार जेनेट लेवी ने अपने आकलन के आधार पर दावा किया था कि भारत का एक और विभाजन होने वाला है। जेनेट लेवी ने दावा किया है कि भारत का एक और विभाजन होगा और वह भी तलवार के दम पर। उन्होंने आशंका व्यक्त की है कि कश्मीर के बाद पश्चिम बंगाल में अब गृहयुद्ध होगा और अलग देश की मांग की जाएगी। बड़े पैमाने पर हिंदुओं का कत्लेआम होगा और मुगलिस्तान की मांग की जाएगी। दरअसल पश्चिम बंगाल, असम, केरल, कर्नाटक और पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में बढ़ती मुस्लिम आबादी चिंता का सबब है। इन क्षेत्रों में अलगाववाद की मांग भी जोर पकड़ती जा रही है और स्थानीय सरकारें इस सच्चाई से मुंह मोड़ रही है। पश्चिम बंगाल में अब तीस प्रतिशत, असम में 35 प्रतिशत, केरल 25 प्रतिशत, केरल में 16 प्रतिशत मुस्लिम आबादी कई बार पाकिस्तान के समर्थन में उठ खड़ी होती है।

मुस्लिम संगठनों का दोहरा चरित्र उजागर
फिलहाल जिन्ना की तस्वीर को लेकर जिस तरह से मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपना मत व्यक्त किया इससे जाहिर हो गया है कि वह सिर्फ और सिर्फ मुसलमान होने का समर्थन करता है, न कि उसे हिंदुस्तान से कोई प्रेम है। एक मामला रोहिंग्या मुसलमानों का है। साजिश के तहत देश में लाखों रोहिंग्या मुसलमानों को बसा दिया गया है और मुस्लिम संगठन इसके फेवर में खड़े हैं। जाहिर है वह सिर्फ धर्म के चश्मे से मामले को देखते हैं, न कि देश की सुरक्षा पर ध्यान दे रहे हैं। उन्हें सिर्फ और सिर्फ इस्लाम चाहिए और इसके लिए वह देश हित से खिलवाड़ करने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। जाहिर जिन्ना की तस्वीर हटाने भर से इस समस्या का समाधान नहीं होने वाला है। जरूरत अलगाववाद की जिन्नावादी सोच को खत्म करने की है।

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