ग्रेटर नोएडा में अखलाक, राजस्थान के अलवर में पहलू खान फिर जुनैद की हत्या पर सेक्युलर मीडिया ने काफी हो-हल्ला मचाया। लेकिन जब भी किसी हिंदुओं पर जुल्म होता है तो ये नहीं बोलते। इन्हें केरल में सरेआम गाय का कत्ल करने वाला भी सेक्युलर दिखता है। इन्हें कश्मीर में अयूब पंडित की लिंचिंग जायज दिखती है। लेकिन इन्हें पश्चिम बंगाल में हिंदुओं पर हो रहा अन्याय नहीं दिखता। पश्चिम बंगाल में किस तरह से हिंदुओं पर हमले किए जा रहे हैं ये किसी से छिपा नहीं है। एक के बाद एक हिंदुओं की हत्या की जा रही है। लेकिन पश्चिम बंगाल की सरकार इसे और प्रश्रय दे रही है।
फेसबकु पर एक पोस्ट के बाद उत्तर 24 परगना जिले के बशीरहाट थाना क्षेत्र के बादुरिया में शुरू हुई हिंसा के कारण बुधवार को दंगाइयों की पिटाई से गंभीर रूप से घायल कार्तिक घोष ने गुरुवार को अस्पताल में दम तोड़ दिया। लेकिन सेक्युलर मीडिया आपराधिक चुप्पी साधे हुए है।
किस बिल में छिपे हैं छद्म सेक्युलर ?
ममता के राज में संविधान और कानून का मजाक बना दिया गया है। कट्टरपंथी ताकतें एक नाबालिग को अपने हाथों से सजा देना चाहते हैं। वो भारत में शरिया कानून के हिसाब से शासन चलवाना चाहते हैं। लेकिन देश का सेक्युलर गैंग मौन है। बात-बात में फ्री स्पीच की दुहाई देने वाले लोगों की बोलती बंद है। #NotInMyName के नाम पर प्रदर्शन करने वाले घरों में दुबके हैं। साफ जाहिर है कि बंगाल की वारदात उनके एजेंडे में फिट नहीं बैठता।
हरियाणा के बल्लभगढ़-पलवल ट्रेन में सीट के लिए हुई मुस्लिम जुनैद की हत्या को महज इसलिए तूल दिया गया कि एक बार फिर देश में माहौल अशांत हो जाए। खास तौर पर जब पीएम मोदी विदेश दौरों पर होते हैं तो ऐसे समय में ये प्रायोजित किया जाता है।
अयूब पंडित की लिंचिंग से इनके दिल को ठंडक पहुंची!
श्रीनगर में डीएसपी अयूब पंडित को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। उन्हें निर्वस्त्र कर करीब एक किलोमीटर घसीटा गया। उनकी मौत के बाद भी उन पर पत्थर फेंके जाते रहे। ऐसी क्रूर भीड़ थी जिसने अयूब पंडित के शव तक को नाली में फेंक दिया। लेकिन हमारे ‘सेक्युलर’ पंडितों को ये आजादी की मांग लगी। कोई कुछ नहीं बोला, किसी धर्मनिरपेक्ष गुंडे की जुबान नहीं खुली। जाहिर है सेक्युलर जमात को जुनैद की हत्या पर ब्लैक ईद मनाने का तो सूझा लेकिन अयूब पंडित की मौत का वे जश्न मनाते रहे।
28 जून को देश के कई हिस्सों में एक कैंपेन चलाया गया। कहने के लिए तो इस कैंपेन का उद्देश्य जुनैद नाम के उस किशोर के माध्यम से देश में हुई कुछ बर्बर हत्याओं के प्रति विरोध दर्ज करना था। लेकिन, इसमें शामिल लोग इसी बहाने अपने निहित एजेंडे का प्रचार करते हैं और देशविरोधी ताकतों को बढ़ावा देते हैं। आइए नजर डालते हैं ऐसे ही कुछ छद्म सेक्युलरों पर…
सबा दीवान, फिल्मकार
पेशे से डॉक्युमेंट्री फिल्म मेकर सबा दीवान की अधिकतर फिल्में sexuality और communalism पर आधारित होती हैं। वामपंथ का कीड़ा इन्हें खानदानी विरासत में मिला है। कहने के लिए बल्लभगढ़ के जुनैद की हत्या ने इन्हें इतना आहत किया कि ये देशभर में #NotInMyName नाम के कैंपेन की अगुवा बन गईं । इन्हें दादरी के अखलाक से लेकर वो तमाम ऐसी वारदातें हिलाती हैं, जिसमें पीड़ित कोई मुस्लिम होता है। लेकिन श्रीनगर में मस्जिद के बाहर नमाजियों द्वारा बेरहमी से मार डाले गए डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित के लिए इनके मन में जरा भी पीड़ा नहीं है। दिल्ली का होने का दम भरती हैं, लेकिन पंकज नारंग को उन्हीं के घर में पत्नी और मासूम बेटे के मॉब लिंचिंग की वारदात से इन्हें कोई परेशानी नहीं। और अब कार्तिक घोष के मारे जाने पर भी चुप्पी साधे हुई हैं।
शबनम हाशमी, सामाजिक कार्यकर्ता
शबनम हाशमी बल्लभगढ़ की घटना के विरोध में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार अवॉर्ड लौटा चुकी हैं। गौर करने वाली बात है कि ये अवॉर्ड उन्हें 2008 में कांग्रेसी सरकार के दौरान मिला था। इनकी मानसिकता देखिए कि तीन साल बाद भी ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उस पद पर पचा नहीं पा रही हैं। इनके अनुसार पीएम मोदी इनके प्रतिनिधि नहीं हैं। अब अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि जिस लोकतांत्रिक देश के चुने हुए प्रधानमंत्री के बारे में ये ऐसी सोच रखती हैं उस देश के प्रति इनकी भावना कितनी गहरी होगी? दरअसल कांग्रेसी शासन में पाले गए ऐसे बुद्धिजीवी दुनिया भर में देश का नाम खराब करने में लगे हैं।
उमर खालिद, JNU का विवादित छात्र
जेएनयू में भारत विरोधी नारेबाजी की घटना से कुख्यात हुए उमर खालिद पर कैंपस में हिंदू-देवी देवताओं के आपत्तिजनक चित्र लगाकर नफरत फैलाने के आरोप लग चुके हैं। आरोप ये भी है कि देशविरोधी वामपंथी विचारधारा का समर्थक होने के चलते ही इसे नियमों को ताक पर रखकर जेएनयू में होस्टल में जगह मिल गई। इसकी खतरनाक विचारधारा के चलते देशविरोधी मानसिकता के लोग इसे अब ब्रांड एंबेस्डर की तरह पेश करते हैं। लेकिन देश की दुर्दशा देखिए कि जब भी कार्रवाई की बात उठती है फ्री स्पीच गैंग ऐसे लोगों के बचाव में कूद पड़ते हैं।
आम आदमी पार्टी के सभी बड़े नेता
राजनीतिक नौटंकीबाजी के चलते पिछले दो साल से अधिक समय से दिल्ली की जनता को परेशान करने वाले आम आदमी पार्टी के लगभग सभी बड़े नेता मोदी विरोधी इस कैंपेन के हिस्सा बने। दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया समेत केजरीवाल के तमाम अराजक सहयोगी इसमें शामिल हुए। नौटंकीबाजों की इस लिस्ट में आशुतोष, आतिशी मरलेना और दिलीप पांडे जैसे कुख्यात लोग शामिल हैं। लेकिन बंगाल में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा पर ये आंखें बंद कर लेते हैं।
राजदीप सारदेसाई, पत्रकार
टीवी पत्रकार राजदीप सारदेसाई की मजबूरी यही है कि उन्हें अपना करियर बचाए रखने के लिए मोदी विरोध का सहारा लेना पड़ता है। मोदी विरोध के नाम पर पत्रकार को कलंकित करने के लिए ये व्यक्ति दुनिया भर में कुख्यात है। अपनी इसी बेहूदी आदतों के चलते एक बार इनकी न्यूयॉर्क में अमेरिकी नागरिकों ने भी जमकर धुनाई की थी। राजदीप भी कार्तिक के मारे जाने पर मौन हैं।
राणा अयूब, पत्रकार
इनकी पत्रकारिता पीएम मोदी और बीजेपी विरोध पर टिकी हुई है। यौन शौषण के आरोपी तहलका के पत्रकार तरुण तेजपाल के साथ काम कर चुकी हैं। पीएम मोदी को बदनाम करने के लिए ये किताब भी लिख चुकी हैं। मुस्लिमों के खिलाफ कुछ भी हो तो जोर-शोर से आवाज उठाने वाली राणा अयूब यहां कुछ नहीं बोल रही है।
शबाना आजमी, अभिनेत्री
शबाना आजमी वामपंथी विचारधारा से जुड़ी रही हैं। कहने के लिए स्वयं को एक मुस्लिम के रूप में पहचाने जाने का विरोध करती हैं। लेकिन पीएम मोदी के विरोध के लिए उन्होंने जिस कैंपेन का सहारा लिया वो देश के मुस्लिमों की भावनाएं भड़काने के लिए ही आयोजित की गई थी। वैसे तो ये खुद को धर्मनिरपेक्ष ठहराते नहीं अघाती हैं। लेकिन जब भी मौका मिलता है अपनी धार्मिकता दिखाने में पीछे नहीं रहती हैं। जुनैद पर हो-हल्ला मचाने वाली शबाना अभी चुप हैं।
नंदिता दास, अभिनेत्री
इनके कुछ फिल्मों को देखने से पता चलता है कि इनकी मानसिकता ही हिंदुओं की छवि धूमिल करने की रहती है। शबाना आजमी के साथ इनकी फिल्म फायर काफी विवादों में रही थी। फिल्म में जानबूझकर हिंदू धर्म को नीचा दिखाने की कोशिश की गई थी। नंदिता दास जैसी अभिनेत्रियों के दिमाग में ये बात घुसी हुई है कि अपने ही धर्म को या अपनी ही सरकार को बदनाम करेंगी तो लोग इन्हें बुद्धिजीवी समझने लगेंगे।संकर्षण ठाकुर, पत्रकार
हाल के दिनों में पीएम मोदी के विरोध में सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय हैं। यौन उत्पीड़न के आरोपी तरुण तेजपाल के तहलका लिए भी काम कर चुके हैं। बल्लभगढ़ की आपराधिक घटना को इन्होंने भी सांप्रदायिक ठहराने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। लेकिन जब हिंदुओं की बात आती है तो मौन हो जाते हैं।
साफ है कि पश्चिम बंगाल के 24 परगना में भड़की हालिया हिंसा के जरिए देश विरोधी कट्टरपंथी ताकतें खुलेआम कानून और संविधान को चुनौती देने लगी हैं। लेकिन वहां की ममता बनर्जी सरकार अभी भी वोट बैंक की राजनीति साधने में जुटी है। मालदा, अलीपुर द्वार, मुर्शिदाबाद जैसे इलाके कट्टरपंथियों की जद में है। आबादी का समीकरण ऐसा बिगड़ा है कि हिंदू वहां पूजा-पाठ तक नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन ‘सेक्युलर’ जमात का कोई नुमाइंदा पश्चिम बंगाल नहीं जाता। वहां बहू-बेटियों की इज्जत से खिलवाड़ भी इन्हें मंजूर है। क्योंकि ये ‘सेक्युलर’ हैं और हिंदू इंसान नहीं हैं?