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देश को आतंकवादियों से अधिक गद्दारों से खतरा, संभल जाइए नहीं तो ये देश तोड़ देंगे!

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पाकिस्तान में भारत को अस्थिर करने वाले जितने आतंकवादी नहीं हैं, उससे कहीं अधिक अपने देश में गद्दार भरे पड़े हैं। सोचने वाली बात है कि एक जैन मुनि को ऐसी टिप्पणी करने की आवश्यकता क्यों पड़ गई? अगर आप अपने दिमाग पर थोड़ा सा जोर डालेंगे तो खुद महसूस करेंगे। मानव कल्याण के लिए दुनिया तक भगवान महावीर के सत्य और अहिंसा का संदेश पहुंचाने वाले एक जैन मुनि का मन अशांत हुआ है तो इसके पीछे की उनकी चिंता जरूर बहुत गहरी रही होगी। शायद एक साजिश के तौर पर दुनिया भर में देश की जो छवि पेश की जाने की कोशिश हो रही है उसी ने उनको इतनी पीड़ा पहुंचाई है। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि पिछले तीन साल से देश में चल क्या रहा है ?

जैन मुनि की चिंता बहुत गंभीर है
आगे बढ़ें उससे पहले ये जान लेना जरूरी है कि जाने-माने जैन मुनि तरुण सागर ने देश में भरे हुए गद्दारों को लेकर कहा क्या है? उनके शब्दों में, पाकिस्तान में जितने आतंकवादी नहीं है, उससे ज्यादा हमारे देश में गद्दार हैं। उन्होंने पूछा है कि, जो देश का खाते हैं और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाता हो वो गद्दार नहीं तो और क्या हैं? तरुण सागर अपने कड़वे लेकिन सत्य वचनों के लिए जाने जाते हैं।

अपनी ही सेना का अपमान
पूरा देश जानता है कि भारतीय सेना किस स्थिति में जम्मू-कश्मीर में अपने नागरिकों की रक्षा करने के लिए दिन-रात जोखिमों से खेल रहे हैं। सियाचिन जैसे दुनिया के सबसे खतरनाक रणक्षेत्र में शून्य से भी नीचे तापमान में ड्यूटी देकर भारत माता की रक्षा कर रहे हैं। लेकिन हमारे देश के कुछ गद्दार उसी सेना के जवानों के लिए अपमानजनक टिप्पणियों का इस्तेमाल करते हैं। थल सेनाध्यक्ष की तुलना जनरल डायर तक से कर दी जाती है। आप ही सोचिए कि अपनी ही सेना का अपमान करना गद्दारी है कि नहीं ?

इन्हें चाहिए सैन्य कार्रवाई के सबूत
दुनिया के किसी देश में ऐसा उदाहरण नहीं मिलता जब वहां के नागरिक अपनी ही सेना के गौरवपूर्ण कार्रवाई का सबूत मांग बैठे हों। लेकिन भारत में पाकिस्तान परस्त राजनेता ये नीचता भी कर चुके हैं। उरी बेस पर आतंकवादी हमले के विरोध में जब भारतीय सेना के जाबांज सिपाहियों ने पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादियों को चुन-चुन कर ध्वस्त किया तो देश की जनता का सिर गर्व से ऊंचा हो गया। लेकिन कुछ गिरे हुए नेताओं ने सरकार के विरोध के नाम पर उस सर्जिकल स्ट्राइक का भी सबूत मांग लिया।

सेक्युलरी सोच से देश का बंटाधार
आप खुद महसूस करते होंगे कि पिछले तीन साल में कुछ आपराधिक वारदातों को सेक्युलरों ने समुदायों से जोड़कर किस तरह से देश की छवि बिगाड़ने की कोशिश की। दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले कुछ चर्चों को साजिशों के तहत निशाना बनाया गया और उसपर खूब बवाल हुआ। फिर बिहार विधानसभा चुनाव से पहले दादरी में हुई एक आपराधिक कांड को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश हुई। इसी तरह से पिछले कुछ दिनों से हरियाणा के बल्लभगढ़ में ट्रेन में सीट को लेकर हुए विवाद में हुई एक हत्या के नाम पर धार्मिक उन्माद फैलाने की साजिशें रची जा रही हैं। भारत में ही नहीं कुछ लोग बाहर भी देश को बदनाम करने में जुटे हुए हैं।

कानून-व्यवस्था को केंद्र से जोड़ने का खेल
भारत के संविधान के अनुसार कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्यों की है। आतंकवादियों पर लगाम लगाने के लिए कई बार केंद्र की ओर से कुछ पहल भी किए गए हैं, तो राज्यों ने इसी नाम पर इसका भारी विरोध किया है। लेकिन आपको पता है कि हर बार ऐसी घटनाओं को लेकर केंद्र सरकार को कितनी चालाकी से कठघरे में खड़े करने की कोशिश की जाती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यूपी का दादरी कांड है। वहां मोहम्मद अखलाक नाम के व्यक्ति की निर्मम हत्या की जिम्मेदारी तत्कालीन अखिलेश सरकार की थी। लेकिन सेक्युलर मीडिया और तमाम विपक्षी पार्टियां उसपर केंद्र सरकार से जवाब मांग रहे थे। हद तो तब हो गई जब तत्कालीन यूपी सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री यूनाइटेड नेशन तक पहुंच गए थे।

अलगाववादियों का साथ
जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं के पीछे अलगाववादियों का हाथ है। ऐसे कई खुलासे हुए हैं जिससे साबित होता है कि इस काम के लिए अलगाववादियों को पाकिस्तान से मदद मिलती है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के विरोध के नाम पर कुछ लोग खुलेआम ऐसे अलगाववादियों का साथ देते हैं। उन्हें हर तरह से सहयोग करने के लिए तैयार रहते हैं।

पाकिस्तान की शरण में झुकने को तैयार
पीएम मोदी से राजनीतिक विरोध का स्तर ये है कि सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के एक नेता पाकिस्तान तक से उन्हें सत्ता से बेदखल करने की गुहार लगा चुके हैं। बात ये नहीं है कि पाकिस्तान की ऐसी औकात नहीं। चिंता इस बात की है कि ऐसे ही गद्दारों के चलते भारत एक बार गुलाम बन चुका है और करोड़ों देशवासियों को सैकड़ों सालों तक गुलामी झेलनी पड़ चुकी है।

विरोध के लिए गाय भी काट दी
गाय और भारतीय संस्कृति एक-दूसरे की पूरक है। गाय हमारी आस्था का प्रतीक है। हमारे संविधान में गौरक्षा का संकल्प व्यक्त किया गया है। लेकिन सिर्फ पीएम मोदी का विरोध दर्ज कराना है इसीलिए सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने सरेआम गोकशी का भी पाप करके दिखा दिया।

सत्य और अहिंसा का संदेश देने के लिए निकले एक मुनि अगर आहत हैं, तो इसके पीछे यही कारण हैं। देश की 125 करोड़ जनता की ये जिम्मेदारी है कि कुछ मुट्ठीभर गद्दारों को पहचान लें और उनकी साजिशों का पर्दाफाश कर अपने देश को सशक्त बनाने का काम करें।

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